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मोदी सरकार न अगड़ों-पिछड़ों की, सिर्फ जनविरोधी है- आरएस भारती

मेरा कहना है कि यह संविधान संशोधन असंवैधानिक है और हमारे संविधान के मूल स्वरूप को नष्ट करता है। आरक्षण का मूल आशय उन समुदायों जैसे ओबीसी, एससी और एसटी हैं, जिनसे ऐतिहासिक काल से भेदभाव होता आया, उनका उत्पीड़न होता रहा, उस समुदाय के उत्थान से जुड़ा है

लोकत्रंत्र को उसकी संवैधानिक संस्थाएं बचाती हैं पर बचाए कौन। नोटबंदी की तरह आरक्षण को लेकर संविधान संशोधन भी एक ऐसा फैसला हुआ जो सांस्थानिक सनक का प्रमाण है। दोनों में कई समानताएं हैं। दोनों की भनक किसी को पहले नहीं लगने दी गई। एक को लागू होने में चार घंटे लगे तो दूसरे को सिर्फ चार दिन। नोटबंदी से देशवासियों के सामने रोजगार संकट खड़ा हुआ तो आरक्षण में संविधान को पलटने की चेष्टा हुई। सरकारी नौकरियों के बंद दरवाजों के बीच अभी महज़ चुनावी परसेप्शन (जनसाधारण में प्रचार का शोर) के लिए सवर्णों के लिए नौकरी व शिक्षा में आरक्षण की लॉलीपॉप गुजरात से लेकर यूपी तक बीजेपी के शासन वाले 6 राज्यों में दिखाई जा चुकी है, तब द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) इसके खिलाफ मद्रास हाईकोर्ट गई है। उसने याचिका में इसे असंवैधानिक कहा है। पार्टी के नेता अभी चेन्नई में विशेष रणनीति तैयार करने में जुटे हैं। उसके वरिष्ठ राज्यसभा सांसद और संगठन नेता आरएस भारती ने कोर्ट में याचिका दायर की। उनसे बात की प्रमोद कौंसवाल ने जिसके अंश यहां प्रस्तुत हैं।

 

मद्रास हाईकोर्ट की बिल्डिंग

डीएमके पहुंची हाईकोर्ट, कहा सवर्ण आरक्षण संविधान की मूल भावना के खिलाफ

  •  प्रमोद कौंसवाल

प्र.कौं : देश में डीएमके पहली पार्टी है जिसने आर्थिक तौर पर कमजोर वर्ग जिसे सवर्ण आरक्षण कहा जा रहा है, का विरोध किया है। आपने क्या सोचकर याचिका दायर की?

डीएमके के राज्यसभा सांसद आरएस भारती

आरएस भारती केस में मैं एक याचिकाकर्ता हूं और मामला अब कोर्ट में विचाराधीन है। इसलिए अच्छा नहीं लगता कि मैं आपके सवालों का जबाव दूं।

प्र.कौं : ठीक है। एक याचिकाकर्ता नहीं तो एक सांसद होने के आप कुछ पहलुओं पर तो बात कर ही सकते हैं?

आरएस भारती जरूर,पूछें।

प्र.कौं : क्या लगता है आपको हाल के चुनावों में हार के बाद सरकार इस संशोधन बिल को इसलिए लाई कि उसे लोकसभा चुनावों में जाना था?

आरएस भारती : सच्चाई यही है कि सरकार चुनावों को ध्यान में रखकर सवर्ण आरक्षण लाई जिसे आर्थिक कमजोर वर्ग आरक्षण कहा गया।लेकिन ना तो बिल का और ना सरकार का इससे कुछ बनने वाला है। सुप्रीम कोर्ट में यह संशोधन नहीं टिकने वाला है। इस बिल को लाकर सरकार ने लोगों को सिर्फ धोखे में रखने का काम किया है। यह छलावा है, चीटिंग है जनता के साथ। यह मेरा मत है और स्पष्ट मत है कि इस बिल का आर्थिक तौर पर पिछड़े लोगों की भलाई से कोई लेना देना नहीं है। यह मैं आपको एक याचिकाकर्ता के तौर पर नहीं बल्कि राज्यसभा सांसद के तौर पर बता रहा हूं।

डीएमके नेता कनिमोझी के साथ पार्टी अध्यक्ष स्टालिन

प्र.कौं : ऐसा माना जाता है कि यह सरकार ओबीसी की हितैषी है जिसकी संख्या देश में सबसे ज्यादा है। ओबीसी कार्ड चला भी था। फिर भी वह इस आरक्षण को लेकर आई?

आरएस भारती : मौजूदा मोदी सरकार किसी की नहीं है। जनता की सरकार नहीं है ये। यह जन-विरोधी सरकार है। यह ना तो ओबीसी की सरकार है ना ही एससी-एसटी और किसी अगड़े-पिछड़े की। मोदी सरकार को जनता की भलाई से कोई लेना देना नहीं है।

प्र.कौं : क्या आपको लगता है कि देश की आबादी की आर्थिक-सामाजिक संरचना को समझते हुएयह कानून लाया गया।

आरएस भारती : मोदी सरकार ने सिर्फ धोखा देने का काम किया है। वे देश की सामाजिक-आर्थिक संरचना को नहीं समझ रहे। उनको एससी-एसटी लोग कभी वोट नहीं करेंगे। आपने मध्य प्रदेश में देखा होगा कि बहुसंख्यक आबादी ने बीजेपी को वोट नहीं किया चाहे ठाकुर समुदाय के लोग हों या कोई और सबने मोदी सरकार के खिलाफ में वोट डाला। गुजरात में पटेल समुदाय हों या उत्तर भारत की जाट या उस जैसी अन्य जातियां…।

प्र.कौं : आगे क्या होगा?

आरएस भारती :  कुछ नहीं होगा। सरकार समझती है कि 70 साल के इतिहास में जो नहीं हो सका वो वह 70 दिन में कर देगी। इस संविधान विरोधी कारगुजारी का कुछ नहीं बनेगा।

प्र. कौं:आपने सरकार के कदम को किस आधार पर असंवैधानिक कहा है?

आरएस भारती : मेरा कहना है कि यह संविधान संशोधन असंवैधानिक है और हमारे संविधान के मूल स्वरूप को नष्ट करता है। आरक्षण का मूल आशय उन समुदायों जैसे ओबीसी, एससी और एसटी हैं, जिनसे ऐतिहासिक काल से भेदभाव होता आया, उनका उत्पीड़न होता रहा, उस समुदाय के उत्थान से जुड़ा है। आरक्षण कोई गरीबी हटाओ कार्यक्रम नहीं है। महज़ आर्थिक स्थिति को पैमाना बनाते हुए इसे आरक्षण का आधार नहीं माना जा सकता। आरक्षण गरीबी उन्मूलन योजना नहीं है- वह एक सामाजिक न्याय प्रदान करने और उन जातियों के उत्थान का कार्यक्रम है जिनके लिए अलग-अलग दौर में शिक्षा या रोजगार के कोई साधन नहीं पहुंचे।

प्र. कौं : आगे क्या पेच हैं जिनसे आपको पार पानाहै या जो आसान तो नहीं ही होंगे?

आरएस भारती हमारे सामने कोई मुश्किल नहीं है। देश के लोगों को न्याय मिलेगा। संविधान का अनुच्छेद 15(5) समुदाय के आरक्षण से जुड़ा है। इसमें किसी व्यक्ति की आर्थिक स्थिति के आधार पर आरक्षण देने के लिए संविधान के निर्माताओं की कोई मंशा नहीं थी। मौजूदा आरक्षण के चलते जबकि तमिलनाडु में पहले से 69% आरक्षण है जो अधिनियम 1993 की नौंवी अनुसूची से किए प्रावधान के चलते है, वह बढ़कर 79% हो जाएगा और यह कहीं से भी संवैधानिक नहीं कहा जा सकता। इस देखते हुए और इस समय जिस तरह से कई राज्य आर्थिक आरक्षण लागू सक्रिय हैं, उसे देखते हुए कोर्ट से अनुरोध किया है कि केस का शीर्ष अदालत में निपटारा होने तक इस पर आंतरिक रोक लगाए।

प्र.कौं : जिस समय संसद में विधेयक लाया गया आपने कुछ दलों को साथ लेने की कोशिश नहीं की।

आरएस भारती हमारा स्टैंड साफ था। यह आरक्षण संविधान और शार्ष अदालत के तय किए सिद्धांतों के साफ खिलाफ लाया गया। बिना किसी कमेटी को भेजे सरकार रातोंरात यह बिल लेकर आई और अकेले ही सभी फैसले लेने की उसकी मंशा साफ दिखी। कनिमोझी जी ने बहस में हिस्सा लिया था। पिछड़ी जातियों को मिला आरक्षण कोई भीख नहीं बल्कि उनका अधिकार है, क्योंकि वो लोग पिछड़ी जातियों में पैदा हुए हैं। संसद सदस्यों पर रातोंरात बिल थोपने की कोशिश हुई।बिल को लाने के लिए सरकार की तैयारी नहीं थी। हमने राज्यसभा में पार्टी की लाइन साफतौर पर रखी। बिल को पहले स्टैंडिंग कमेटी के पास भेजा जाना चाहिए थाया फिर सेलेक्ट कमेटी को। आरक्षण का प्रावधान आर्थिक आधार पर है ही नहीं तो सरकार कैसे मनमर्जी कर सकती है। आर्थिक तौर पर पिछड़े सवर्णों को आरक्षण देने के पीछे आंकड़े साफ नहीं हैं तो कितने लोगों को इसका फायदा मिलने जा रहा है?क्या आर्थिक स्तर पर आरक्षण देने की कोई बुनियाद बन सकतीहै जबकि संविधान में संशोधन के लिए आप एक शक्ति से आगे नहीं जा सकते।ऐसा नहीं कि हमारे साथ दूसरे दल नहीं थे। हमारे साथ कई दलों के सांसदों ने कहा कि गरीबी मिटाने के लिए सरकार के पास सैकड़ों कार्यक्रम और परियोजनाएं हैं- क्या वो फेल हो गए हैं कि आप संविधान विरोधी कदम उठा रहे हैं।

(कॉपी संपादन – अर्चना)


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लेखक के बारे में

प्रमोद कौंसवाल

1992 में शरद बिल्लौरे पुरस्कार से सम्मानित प्रमोद कौंसवाल सहारा इंडिया टीवी नेटवर्क से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार हैं। पूर्व में जनसत्ता एवं अन्य संस्थानों में कई पदों पर कार्य करने के अलावा इन्होंने कविता, समालोचना और अनुवाद के क्षेत्र में भी काम किया है। 'भारतीय इतिहास संदर्भ कोश' सहित इनकी आठ किताबें प्रकाशित हैं

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