h n

विश्वविद्यालयों में विभागवार रोस्टर के खिलाफ बीएचयू में प्रदर्शन

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देश भर के दलित-बहुजन आंदोलित हैं। बीते 24 जनवरी 2019 को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय परिसर में विरोध प्रदर्शन किया गया  

बीते 22 जनवरी 2019 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और असिस्टेंट प्रोफेसर पदों पर नियुक्ति के लिए विभाग को रोस्टर बनाए जाने संबंधी फैसले का देश के सभी हिस्सों में एससी, एसटी और ओबीसी के छात्र/छात्राओं व बुद्धिजीवियों द्वारा विरोध किया जा रहा है। इस कड़ी में कल 24 जनवरी 2019 को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) परिसर में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में प्रदर्शन किया गया।

बीएचयू के अनुसूचित जाति/जनजाति छात्र कार्यक्रम आयोजन समिति और ओबीसी, एससी, एसटी व एमटी संघर्ष समिति के संयुक्त तत्वावधान में हुए विरोध प्रदर्शन में बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया। इस मौके पर केंद्र सरकार पुतला फूंका गया और सरकार के खिलाफ नारे लगाए गए। इस अवसर पर आयोजित जनसभा को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने एक स्वर में कहा कि उच्च शिक्षा का चरित्र मूलतः जातिवादी है। इसे कई स्तरों पर समावेशी व सामाजिक न्यायपरक होना था, जो कभी हुई ही नहीं. देश के वंचितों-शोषितों की बहुसंख्यक आबादी अव्वल तो उच्च शिक्षा तक कभी पहुँच ही नहीं पाई। इंदिरा साहनी केस, सब्बरवाल केस, वी. नागराज केस जैसे न्यायिक संघर्षों की एक लम्बी लड़ाई के बाद उच्च शिक्षा में आरक्षण लागू होने में ही पांच दशक बीत गए। इस प्रकार आज़ादी के पचास साल तक इन शिक्षण संस्थानों पर जन्मजात मेरिटधारी सवर्ण जातियों का ही कब्जा रहा।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार पर विरोध प्रदर्शन करते दलित-बहुजन छात्र

संघर्ष समिति के अध्यक्ष रवींद्र प्रकाश भारतीय ने इस मौके पर कहा कि भाजपा सरकार ने वादा किया था कि वे 200 पॉइंट रोस्टर पर अध्यादेश लाएंगे परन्तु उन्होंने धोखा किया। उन्होंने कहा कि ताज़ा मामला ‘असंवैधानिक’ विभागवार रोस्टर प्रणाली के लागू किये जाने का है। प्रावधान यह रहा कि विश्वविद्यालय/कॉलेज को एक इकाई मानकर पदों के सृजित होने की तिथि के बढ़ते क्रम से रोस्टर को फिक्स्स किया जाएगा। लेकिन बीएचयू के एक शोध छात्र की पहल पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की एकल बेंच ने एक फैसला सुनाया कि विभागवार रोस्टर प्रणाली लागू होगी। इसे 13 प्वाइंट रोस्टर भी कहा जाता है। इसके कारण एससी, एसटी और ओबीसी अभ्यर्थियों के लिए पद ही आरक्षित नहीं होंगे क्योंकि विभागवार पदों की संख्या कम होती है। उन्होंने कहा कि मनुवादी सरकार ने न्यायालयों के सहारे विभागवार रोस्टर लागू करके बची-खुची सम्भावनाओं को हमेशा के लिए दफ़न कर दिया है।

यह भी पढ़ें : विश्वविद्यालयों में आरक्षण : कमजोर आधार पर टिका है सुप्रीम कोर्ट का फैसला!

जनसभा को कन्हैया लाल यादव, राहुल यादव, नरेश राम, कृष्ण कुमार यादव, बालगोविंद, रीना कुमारी, शुभम आहाके,नीतीश,राहुल यादव आदि छात्रों ने संबोधित किया। इनके अलावा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की शिक्षिका डॉ. शोभना नार्लीकर ने भी समर्थन देते हुए मनुवादी सरकार के खिलाफ छात्रों से कड़े संघर्ष का आह्वान किया।


(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें 

अमेजन व किंडल पर फारवर्ड प्रेस की सभी पुस्तकों को एक साथ देखने के लिए तस्वीर पर क्लिक करें

 

मिस कैथरीन मेयो की बहुचर्चित कृति : मदर इंडिया

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार

लेखक के बारे में

एफपी डेस्‍क

संबंधित आलेख

यूपी : दलित जैसे नहीं हैं अति पिछड़े, श्रेणी में शामिल करना न्यायसंगत नहीं
सामाजिक न्याय की दृष्टि से देखा जाय तो भी इन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने से दलितों के साथ अन्याय होगा।...
बहस-तलब : आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पूर्वार्द्ध में
मूल बात यह है कि यदि आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाता है तो ईमानदारी से इस संबंध में भी दलित, आदिवासी और पिछड़ो...
साक्षात्कार : ‘हम विमुक्त, घुमंतू व अर्द्ध घुमंतू जनजातियों को मिले एसटी का दर्जा या दस फीसदी आरक्षण’
“मैंने उन्हें रेनके कमीशन की रिपोर्ट दी और कहा कि देखिए यह रिपोर्ट क्या कहती है। आप उन जातियों के लिए काम कर रहे...
कैसे और क्यों दलित बिठाने लगे हैं गणेश की प्रतिमा?
जाटव समाज में भी कुछ लोग मानसिक रूप से परिपक्व नहीं हैं, कैडराइज नहीं हैं। उनको आरएसएस के वॉलंटियर्स बहुत आसानी से अपनी गिरफ़्त...
महाराष्ट्र में आदिवासी महिलाओं ने कहा– रावण हमारे पुरखा, उनकी प्रतिमाएं जलाना बंद हो
उषाकिरण आत्राम के मुताबिक, रावण जो कि हमारे पुरखा हैं, उन्हें हिंसक बताया जाता है और एक तरह से हमारी संस्कृति को दूषित किया...