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डॉग फाइटिंग :  उन बच्चों की लाशों पर किन नवधनाढ्यों के दांतों के निशान थे?

26 जनवरी 2019 को जब देश गणतंत्र दिवस मना रहा था, उस समय कुछ लोग कुत्तों की खूनी लड़ाई के खेल पर सट्टा लगा रहे थे। यह न सिर्फ अनेक अवैध धंधों का जन्मदाता और पशुओं के प्रति अमानवीयता प्रदर्शित करने का खेल है, बल्कि इसी कारण अनेक गरीब बच्चे कुत्तों का ग्रास बन चुके हैं

बहु-जन दैनिकी

क्या उन गरीब बच्चों के लाशों पर सिर्फ खूनी कुत्तों के दांतों के निशान हैं? क्या यह सम्भव नहीं कि डॉक्टर उनका पोस्टमार्टम करते हुए उन फार्म हाउस मालिकों के दांतों के निशान भी ढूंढ निकालें, जिन्होंने अपने शौक़ के लिए कुत्तों को आदमखोर बनाया?  

एक बानगी देखें :

26 जनवरी, 2019 को जब पूरा भारत में कानून और मानवीयता का राज स्थापित होने, गणतंत्र बनने की वर्षगांठ मना रहा था, उस समय हरियाणा के हिसार शहर के निकट एक फार्म हाउस में जमा दर्जनों नए-नवेले अमीर  ‘डॉग फाइट’ के खूनी खेल पर हर्ष-ध्वनि कर रहे थे।

हरियाणा के कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने फारवर्ड प्रेस को इस डॉग फाइट का वीडियो व संबंधित तस्वीरें भेजी हैं तथा इसे दुनिया के सामने लाने का आग्रह किया है।

फारवर्ड प्रेस के पास उपलब्ध वीडियो में हिसार के एक फार्म हाउस में चल रही 25 जनवरी की शाम और 26 जनवरी को दिन में कुत्तों की लड़ाई का वीभत्स नज़ारा है। जिसमें एक कुत्ता दूसरे को लहूलुहान कर रहा है। उनके मालिक और सिपहसलार उन्हें ललकार रहे हैं। नीचे वीडियो में देखें।


इन लड़ाइयों के लिए ऊंची नस्ल के कुत्ते पाकिस्तान से मंगवाए जाते हैं। फाइट में भाग लेने के लिए उन्हें क्रूरता से प्रशिक्षित किया जाता है। उनकी पूंछ और कान काट दिए जाते हैं। नशीले पदार्थों का आदी बनाया जाता है तथा फाइट से पहले कई-कई दिन तक भूखा रखा जाता है, ताकि वे चिड़चिड़े और खूंखार हमलावर बन सकें।

चित्र संख्या 1 : पाकिस्तान में मौजूद कुत्ता

भारत में डॉग फाइट ‘पशुओं के प्रति क्रूरता रोकथाम अधिनियम,1960’ के तहत दंडनीय अपराध है। जिसके तहत जुर्माना और जेल का प्रावधान है। लेकिन हिसार के विभिन्न फार्म हाउसों में यह खेल सालों भर छुप-छुप कर चलाया जाता है। पुलिस की नज़र से बचने के लिए आयोजक जगह बदलते रहते हैं। पूरा मामला पशु क्रूरता के साथ-साथ सट्टेबाजी, हवाला के माध्यम से पैसे के लेनदेन, कुत्तों व अन्य पशु-अंगों (मृग छाल, बाघ का चमड़ा, हाथी के दांत आदि) की तस्करी तथा अवैध हथियारों की खरीद-फरोख्त से भी नाभि-नाल बद्ध  है। दर्शकों को आमंत्रित करने व सट्टा लगाने के लिए कुछ गुप्त व्हाट्सएप्प ग्रुप बनाये गए हैं, जिनमें सबसे सक्रिय ‘बुली डॉग’ नामक व्हाट्सएप ग्रुप है।

सूत्रों के अनुसार डॉग फाइट के शौकीन हिसार के लोग कुत्ते मंगवाने के लिए पाकिस्तान स्थित तस्करों से निरंतर फोन पर भी सम्पर्क में रहते हैं। जांच एजेंसियों अगर इनकी सोशल मीडिया प्रोफ़ाइल्स और  कॉल डिटेल्स निकलवाएं तो आतंकवाद और हवाला से संबंधित अन्य अनेक धंधों का भी खुलासा होगा।

कुत्तों को मंगवाने के लिए सीमा के दोनों ओर पशु-तस्कर सक्रिय रहते हैं। एक कुत्ते की कीमत 5 से 10 लाख रुपये के बीच होती है। खरीद से पहले पाकिस्तान से कुत्ते की तस्वीर व्हाट्सएप के जरिये मंगवाई जाती है। उसके बाद हवाला के जरिये रकम ट्रान्सफर की जाती है।

चित्र संख्या 2 : उपरोक्त कुत्ते को हिसार की सड़कों पर घुमाते हरियाणा बिजली बोर्ड उपभोक्ता फोरम के सदस्य मन्नू विश्नोई

फ़ॉरवर्ड प्रेस को उपलब्ध करवाई  गई तस्वीरों में से एक में पाकिस्तान के किसी समारोह में एक लड़ाकू कुत्ता दिख रहा है (तस्वीर संख्या 1)। बाद में उस कुत्ते को हिसार में एक आदमी जंजीरों के सहारे हिसार की सड़कों पर घूमता हुआ दिखता है। बताया जाता है कि कुत्ते को सड़क पर घूमता हुआ यह व्यक्ति हरियाणा पब्लिक सर्विस कमीशन के चेयरमैन गुरमेश विश्नोई के पुत्र मन्नू विश्नोई हैं, जिन्हें हरियाणा सरकार ने बिजली बोर्ड उपभोक्ता फोरम का सदस्य बनाया है (तस्वीर संख्या 2)। सूत्रों के अनुसार  25-26 जनवरी को शूट किए गए डॉग फाइट के वीडियो में ललकार रहे लोगों के बीच उनकी आवाज भी है। डॉग फाइटिंग के ऐसे ही एक शौकीन भिवानी जिले के जुम्पा गांव के सरपंच दलीप गोदारा के बेटे द्विज गोदारा हैं, जो हिसार में रहते हैं। डॉग फाइटिंग के वीडियो में वे भी अपने उस कुत्ते के साथ दिखते हैं, जिसे वे सोशल मीडिया पर मौजूद एक अन्य तस्वीर में सड़कों पर टहलाते हुए दिखते हैं।

चित्न संख्या 3 : अपने कुत्ते के साथ हिसार में द्विज गोदरा, यही कुत्ता फार्म हाउस की फाइटिंग में भी दिखता है

इन डॉग फाइट्स का अंत तभी होता है, जब या तो एक कुत्त्ता लहूलुहान होकर पूरी तरह पस्त हो जाये, रिंग छोड़ कर भाग जाए या फिर घायल होकर मर जाये।

दरअसल, यह डॉग फाइटिंग का यह खेल सिर्फ हिसार तक सीमित नहीं है, बल्कि हरियाणा-पंजाब के अन्य शहरों तथा दिल्ली के आसपास स्थित अनेक फार्म हाउसों में भी पिछले लगभग एक दशक से चल रहा है। रीयल स्टेट आदि के कारोबार से बने नए करोड़पतियों में यह शौक दिनों-दिन और परवान चढ़ रहा है।

गली-कूचों के बच्चों के काल

इन डॉग फाइट्स का एक और खतरनाक पहलू है, जिससे कम ही लोग परिचित हैं। जब ये खूंखार कुत्ते प्रौढ़ हो जाते हैं या घायल होकर लड़ाई में भाग लेने लायक नहीं रह जाते हैं तो उनके मालिक उन्हें गाड़ियों में डालकर चुपके से कहीं दूर छोड़ देते हैं। इन्हें मांस और ताजा खून का चस्का होता है। लावारिश छोड़े जाने के बाद ये गलियों में खेलते मनुष्यों के छोटे बच्चों को शिकार बनाते हैं और अक्सर उन्हें घसीट कर मार डालते हैं।

यह भी पढ़ें : आवारा कुत्तों ने दो साल की मासूम को नोच डाला

हरियाणा में संयोगवश 25 जनवरी को भी ऐसी एक घटना हुई। प्राप्त सूचनानुसार, सिरसा जिला के चाथा गांव में 2 वर्षीय बालिका यशप्रीत अपने घर के बाहर खेल रही थी। जब कुछ समय तक वह नहीं दिखी तो परिवार वालों ने उसे ढूंढना शुरू किया। उन्होंने पाया कि एक आवारा कुत्ता उसे खेतों में ले जाकर नोंच रहा है। जब तक घरवाले उसे बचाने के लिए दौड़े तब तक कुत्त्ता उसका सर चबा चुका था। उसकी मौत हो चुकी थी।

पंजाब और दिल्ली में भी ऐसी अनेक घटनाएं पिछले कुछ वर्षों में सामने आयी हैं, जिनमें प्रायः स्लम कालोनियों, दलित टोलों में खेल रहे मासूम बच्चों को जान गंवानी पड़ी है। कुछ मामलों में इन कुत्तों ने घर के बाहर अकेले बैठे बुजुर्गों और महिलाओं को भी घायल किया है। हरियाणा में ही एक मामला तो ऐसा आया था, जिसमें एक फाइटर कुत्ते ने अपने केयरटेकर पर ही हमला कर दिया था तथा उसके शरीर के कुछ हिस्सों को नोच-नोच कर खा गया था। (नीचे दर्शाए गए पंजाब केसरी के वीडियो में देखें)

इसी प्रकार अप्रैल-मई, 2018 में उत्तरप्रदेश के सीतापुर इलाक़े से अचानक कुत्तों द्वारा बच्चों पर किये जाने वाले जानलेवा हमलों की खबरें आने लगी थीं। हमले का शिकार होने वाले बच्चे 5 से 12 वर्ष के बीच के थे। कुत्तों ने अलग-अलग जगहों पर एक दर्जन से अधिक बच्चों को मार डाला था तथा कई जगह तो उन्हें खा भी गए थे। इनमें ज्यादातर बच्चे दलित अतिपिछड़े और मुसलमान परिवारों के थे।

सीतापुर के लोगों के अनुसार, हमला करने वाले कुत्ते सामान्य आकार के नहीं थे, बल्कि वे विशालकाय और अलग तरह के थे। उस समय कहा गया था कि इलाके में चल रहे एक कसाईघर के बंद होने से कुत्ते खूंखार बन गए गए थे, क्योंकि उन्हें भोजन मिलना बंद हो गया था। लेकिन बीबीसी ने अपनी एक पड़ताल में पाया था कि कुत्तों के आदमखोर बनने का कारण कसाईघर का बंद होना नहीं था क्योंकि वह  कुत्तों द्वारा बच्चों पर किये गए पहले हमले से छह महीने पहले ही बंद हो चुका था। वाशिंगटन पोस्ट ने भी उस समय अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि वैज्ञानिक कुत्तों द्वारा बच्चों पर किए गये हमले की वजह खोजने में जुटे हैं। लेकिन उनके हाथ भी अंततः कयासों के अतिरिक्त कुछ भी नहीं लग सका था। कुछ रिपोर्ट्स में अनुमान लगाया गया था कि वे कुत्ते नहीं, भेड़िये थे। लेकिन उनके भेड़िये होने का अनुमान कोरी-कल्पना के अतिरिक्त कुछ नहीं था क्योंकि दर्जनों प्रत्यक्षदर्शियों की गवाही के अनुसार वे कुत्ते  ही थे, भेड़िए नहीं।

जानकर बताते हैं कि अपने रुतबे के प्रदर्शन के लिए पाकिस्तान से कुत्ते मंगवाने वाले हरियाणा और पंजाब के रईस जानते हैं कि अगर उन्होंने उन्हें आसपास के गांवों में छोड़ा तो वे पहचान लिए जाएंगे। इसलिए अनेक मालिक उन्हें दूर के जंगली इलाकों में छोड़ आने के इंतजाम करते हैं, जहां से वे भोजन की तलाश में आसपास के गांवों में पहुंच जाते हैं। यह संभावना ज्यादा सटीक है कि जंगली इलाके के पास बसे सीतापुर में भी इन्हीं प्रौढ़, घायल, खून का स्वाद ले चुके चिड़चिड़े कुत्तों ने कहर बरपाया था।

वाशिंगटन पोस्ट की यह रिपोर्ट  पढ़ें : Stray dogs are killing children in India. Scientists want to find out why

जाहिर है नवधनाढ्यों का यह खूनी खेल न सिर्फ तस्करी और कई किस्म के अवैध आर्थिक लेनदेन का जरिया है, बल्कि यह बेजुबां कुत्तों के साथ-साथ कमजोर तबकों के मनुष्यों की भी जान ले रहा है। अब तक  इन घटनाओं को ‘आवारा’ कुत्तों का काम कह कर ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता रहा है। लेकिन जांच एजेंसियों को पता करना चाहिए कि इतने हिष्ट-पुष्ट कुत्ते अचानक ‘आवारा’ कैसे हो जाते हैं? ये किनके पालतू थे? इन्हें स्लम/दलित-मुसलमानों के बस्तियों के नज़दीक लाकर कौन छोड़ गया था?

जांच एजेंसियों को डॉग फाइटिंग के सभी पहलुओं की गहन जांच करनी चाहिए ताकि इन शौकिया हत्यारों, हवाला कारोबारियों और तस्करों को कड़ी सजा मिल सके। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं तथा पशु संरक्षण के लिए काम कर रही संस्थाओं को भी इस दिशा में कानूनी कार्रवाई की पहल करनी चाहिए।

(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


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लेखक के बारे में

प्रमोद रंजन

प्रमोद रंजन एक वरीय पत्रकार और शिक्षाविद् हैं। वे आसाम, विश्वविद्यालय, दिफू में हिंदी साहित्य के अध्येता हैं। उन्होंने अनेक हिंदी दैनिक यथा दिव्य हिमाचल, दैनिक भास्कर, अमर उजाला और प्रभात खबर आदि में काम किया है। वे जन-विकल्प (पटना), भारतेंदू शिखर व ग्राम परिवेश (शिमला) में संपादक भी रहे। हाल ही में वे फारवर्ड प्रेस के प्रबंध संपादक भी रहे। उन्होंने पत्रकारिक अनुभवों पर आधारित पुस्तक 'शिमला डायरी' का लेखन किया है। इसके अलावा उन्होंने कई किताबों का संपादन किया है। इनमें 'बहुजन साहित्येतिहास', 'बहुजन साहित्य की प्रस्तावना', 'महिषासुर : एक जननायक' और 'महिषासुर : मिथक व परंपराएं' शामिल हैं

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