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दलित की गोद में गिरा नरगिस का फूल, सवर्णों ने पीटा, जुर्माना भी वसूला

बीते 14-15 जनवरी,2019 को हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में एक धार्मिक आयोजन के दौरान नरगिस के फूलों का गुच्छा एक दलित युवक की गोद में गिरा। भीड़ ने न केवल उस युवक को पीटा, बल्कि उसके पांच साथियों की भी पिटाई की

शिमला। हिमाचल प्रदेश में दलित उत्पीडऩ का दौर थम नहीं रहा है। ताजा मामला कुल्लू जिला के बंजार के एक गांव थाटीबीड़ का है। यहां एक धार्मिक आयोजन के दौरान देवता के आशीष का प्रतीक नरगिस के फूल का गुच्छा एक दलित युवक लालचंद की गोद में जा गिरा। आयोजन में शामिल लोगों को जब इस बात का पता चला कि पवित्र फूल का गुच्छा एक दलित की गोद में गिरा है तो उन्होंने आव देखा न ताव और डंडों से उस युवक को पीटना शुरू कर दिया। यही नहीं, युवक के साथ धार्मिक आयोजन को देखने के लिए आए दोस्तों को भी भीड़ ने नहीं बख्शा। बाद में युवक को दंडस्वरूप 5100 रुपए भरने पड़े।

मामला मीडिया में उछला तो कार्रवाई शुरु हुई, लेकिन खबर लिखे जाने तक दोषियों को गिरफ्तार नहीं किया गया है। कार्रवाई सिर्फ पूछताछ तक ही सीमित है। प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर, जो खुद कुल्लू जिला से हैं, ने दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का आश्वासन दिया है, परंतु अभी तक एक भी दोषी गिरफ्तार नहीं किया गया है। पुलिस अधिकारी कहते हैं कि अभी शिनाख्त की प्रक्रिया चल रही है और दोषियों के खिलाफ एक्शन होगा।

हिमाचल के कुल्लू में पाल्दी फगली समारोह की एक तस्वीर (फाइल फोटो)

वहीं, तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। जिस इलाके में धार्मिक आयोजन हुआ, वहां के लोगों का कहना है कि देवता के आशीष वाले फूल पर उसी इलाके के लोगों का हक होता है। जिस युवक के साथ दुर्व्यवहार की बात की जा रही है, वह दूसरे गांव का है। फिर, जो दंड स्वरूप पैसा लिया गया है, वो परंपरा का हिस्सा है। फिलहाल, सारे मामले का खुलासा तो पुलिस की जांच के बाद ही होगा, लेकिन यह जरूर है कि दलितों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार का सिलसिला थमा नहीं है। आइए, देखते हैं कि पूरा मामला क्या है?

कुल्लू जिला के बंजार विधानसभा क्षेत्र का गांव है थाटीबीड़। यहां पल्दी फागली उत्सव होता है। स्थानीय बोली में घाटी यानी वैली को पल्दी कहा जाता है और फागली एक तरह का धार्मिक आयोजन है। इस आयोजन में थाटीबीड़ वैली के गांव के लोग ही सब इंतजाम करते हैं। इस बार जनवरी के पहले पखवाड़े के अंत में धार्मिक समारोह हुआ। इसमें भारी भीड़ जुटी। परंपरा के अनुसार देवता के कारकूनों (सेवकों) ने उपस्थित श्रद्धालुओं पर फूल बरसाए। बीठ यानी फूलों का गुच्छा, जो अंत में फेंका जाता है, वह एक दलित युवक की गोद में गिरा।

नरगिस के फूलों को माना जाता है देवताओं के आशीष का प्रतीक

मान्यता है कि जिस किसी की गोद में नरगिस के फूलों की बीठ यानी गुच्छा गिरता है, उस पर देवता की विशेष कृपा होती है। ऐसे में सभी लोग उत्सुकता से भरे होते हैं कि फूल किसकी गोद में गिरा। जब तहकीकात की गई तो पता चला कि फूल पड़ोसी गांव शलवाड़ के दलित युवक लालचंद की गोद में गिरा है। फिर क्या था, थाटीबीड़ के लोगों में हल्ला मच गया। स्थानीय लोगों ने डंडों से लालचंद को पीट डाला। उसके साथी भी भीड़ के गुस्से का शिकार हुए। अपने साथ हुए इस अमानवीय व्यवहार की शिकायत लालचंद ने कुल्लू जिले के पुलिस अधीक्षक से की।

पीड़ित दलित युवक लालचंद

जुर्माने के रूप में मांगा 11 हजार रुपए

पीडि़त युवक का कहना है कि वह साधारण परिवार से संबंध रखता है और उससे देवता कमेटी ने 5100 रुपए दंड वसूल कर लिए। इसी बीच, युवक के प्रति गाली-गलौच की वीडियाे सोशल मीडिया में वायरल हो गया। यहीं से मामला तूल पकड़ गया। दलित अधिकारों के लिए लड़ाई लडऩे वाले शिमला के आरटीआई कार्यकर्ता रवि कुमार ने इस मामले पर कड़ी प्रतिक्रिया जताई। यही नहीं, रवि कुमार ने इस मामले की निष्पक्ष जांच का आग्रह करते हुए हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के नाम पत्र भी लिखा है। रवि कुमार ने 19 जनवरी को लिखे पत्र में आग्रह किया है कि न्यायालय इस मामले की सही तरीके से जांच के लिए प्रदेश सरकार को आदेश जारी करे।

वहीं, अपने साथ हुए अमानवीय व्यवहार की शिकायत में लालचंद ने कहा कि वह अपने दोस्तों के साथ थाटीबीड़ करथा मेला देखने गया था। शाम के समय होने वाले बीठ आयोजन में जब नाग देवता के कारकूनों (सेवकों) ने फूल फेंका तो यह उसकी गोद में आ गिरा। जब ये फूल मेरी गोद में गिरा तो कारकूनों ने कहा कि अनुसूचित जाति के लोगों पर इस फूल का गिरना शुभ नहीं है, इन्हें मारो। इतना बोलते ही लोगों ने उसे और उसके पांच दोस्तों के साथ डंडों के साथ मारपीट की। कारकूनों ने उन्हें जातिसूचक शब्द कहकर अपमानित भी किया। इतना ही नहीं, देवता कमेटी के सदस्यों ने बीठ पकडऩे के लिए जुर्माने के तौर पर उनसे 11,000 रुपये देने की बात कही गई। अगर वो जुर्माना नहीं भरते तो उनकी जान भी जा सकती थी। अपनी जान बचाने के लिए आखिर में उन्हें 5100 रुपये बतौर जुर्माने के तौर पर देने पड़े। इसके बाद वे अपनी जान बचा पाए। उन्होंने कहा कि मारपीट के दौरान मोबाइल आदि सामान गुम हो गया।

कुल्लू की पुलिस अधीक्षक शालिनी अग्निहोत्री

जबकि कुल्लू के एसपी शालिनी अग्निहोत्री ने मामले को संवेदनशील बताया है। पुलिस की दखल के बाद देवता कमेटी से 5100 रुपए वापिस ले लिए गए हैं। जांच की जिम्मेदारी कुल्लू के एएसपी राजकुमार चंदेल को सौंपी गई है।

क्षत्रिय महासभा की ओर से दी जा रही सफाई

वहीं, अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा इस मामले में अलग ही बात कह रही है। क्षत्रिय महासभा के पदाधिकारी जितेंद्र राजपूत का कहना है कि इस मामले को बेवजह तूल दिया जा रहा है। उनका कहना है कि देवता की तरफ से फूल फेंकने वाला कारकून (सेवक) भी दलित समुदाय से आता है। ऐसे में भेदभाव की बात गलत है। दरअसल, पड़ोस के गांवों के लोगों को फूल पकडऩे के लिए आगे नहीं आना चाहिए, क्योंकि ये आशीष केवल पल्दी यानी थाटीबीड़ वैली के गांवों के लिए ही है। फूल फेंकने वाले वेदराम भी दलित समुदाय से हैं और 65 साल से अधिक आयु के हैं। उनका कहना है कि जमाना बदला है और अब दलितों के साथ उतना भेदभाव नहीं होता, जितना पहले होता था। इस मामले में अनुसूचित जाति आयोग के पास भी शिकायत पहुंची है।

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जितेंद्र ने कहा कि इस उत्सव में सभी जाति तथा समुदाय के लोग शामिल होते हैं और यहां किसी भी तरह का कोई भेद भाव किसी के साथ भी नहीं होता है। जिस नरगिस के फूलों के गुच्छे की बात की जा रही है उसे केवल दलित समुदाय के व्यक्ति को ही फेंकने का अधिकार है। अत: जो फूल अपवित्र होने का आरोप लगाया जा रहा है, वह पूर्णत: अधारहीन है। उन्होंने कहा कि आज से कुछ वर्ष पहले भी एक दलित व्यक्ति ने इस गुच्छे को पकड़ा था। तब भी कोई विरोध नहीं था और आज भी कोई विरोध नहीं है। हां यह बात सही है कि देव परंपरा के अनुसार इस गुच्छे को पकडऩे का अधिकर पिछले सैकडों सालों से पटौला,नरहुली, शिकारी बीड़ तथा चकुरठा गांव के लोगों के पास ही है। यहां तक कि जिस गांव में यह उत्सव होता है उस गांव के लोगों को भी इसे पकडने का कोई अधिकार नहीं है। लेकिन आज से लगभग 20 साल पहले लोगों की बढ़ती संख्या को देखते हुए मेला कमेटी ने यहां एक शुल्क तय किया कि यदि उक्त गांव में कोई भी इन फूलों को पकड़ता है तो उसे 551 रू की राशि देव कोष में जमा करनी होगी। इन गांव के अलावा कोई भी इस गुच्छे को पकड़ता है तो उसे  देव कोष में 5001 रुपए की राशि जमा करनी होती है। महासभा के पदाधिकारी का ये भी कहना है कि देव कामदारों ने उसे पीटने का आदेश नहीं दिया, बल्कि मेला कमेटी के लोगों ने लालचंद को भीड़ में हो रही हाथापाई से बचाया। उन्होंने कहा कि देव कामदारों पर एससी, एसटी एक्ट गलत मंशा से लगाया है।

बहरहाल, क्षत्रिय महासभा के पदाधिकारी जितेंद्र राजपूत की इस सफाई के बावजूद यह सवाल अनुत्तरित है कि क्या  किसी अन्य वैली/गांव के ब्राह्मण या राजपूत ने फूल पकड लिया होता, तो उसकी पिटाई की जाती? आखिर सैकडों सालों की इस परंपरा के इतिहास में इसका कोई उदाहरण क्यों नहीं मिलता कि किसी फूल पकडने पर किसी सवर्ण को इस प्रकार जाति सूचक गालियां दी गई हों, और बेदर्दी से पीटा गया हो?

इस मामले में  सामाजिक कार्यकर्ता व दलितों के अधिकारों की लड़ाई लडऩे वाले रवि कुमार का कहना है कि कुल्लू जिला में दलितों के साथ अन्याय आम बात है। इससे पहले भी पीएम नरेंद्र मोदी से जुड़े आयोजन में दलित छात्रों को तबेले में बिठाया गया था। यही नहीं, मिड डे मील परोसने में भी दलित छात्रों से भेदभाव होता है।

(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


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लेखक के बारे में

राजेश शर्मा

लेखक एक प्रमुख मीडिया संस्थान में डिजिटल विभाग में कार्यरत पत्रकार हैं।

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