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सावित्री बाई फुले की गुमनामी और आंबेडकर के मुखौटे तले अटल

सावित्री बाई फुले जयंती पर राजनीतिक दलों की चुप्पी और आंबेडकर के नाम पर जनसंघ-कांग्रेस आदि के प्रतिक्रियावादी नेताओं के महिमामंडन के बीच के रिश्ते पर नज़र रखें

दो-पहर, 03 जनवरी, 2019

आज बहुजन नायिका सावित्री बाई फुले का जन्मदिन है। उन्हें भारत की पहली महिला शिक्षिका होने का गौरव प्राप्त है। लेकिन हिंदी-अंग्रेजी अखबारों में इसका कोई जिक्र नहीं है।

 

विभिन्न सरकारी विभाग बात-बेबात विज्ञापन जारो करने की होड़ में रहते हैं। लेकिन सावित्री बाई की याद ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का नारा देने वाली इस सरकार के किसी विभाग को नहीं आई। सावित्री बाई जैसी विशाल शख्सियत के प्रति देश की कृतज्ञता की अभिव्यक्ति की जिम्मेवारी विशेष तौर पर स्त्री, स्वास्थ्य और सामाजिक न्याय से जुड़े मंत्रालयों तथा विभागों की होनी चाहिए। इस मामले में पूर्ववर्ती सरकार का रवैया भी अलग नहीं रहा है।

बहुजन समुदाय और प्रगतिशील लोगों को इन चीजों पर निरंतर नज़र रखनी चाहिए। इस पर नागरिक-निगरानी आवश्यक है कि सरकारें किन प्रतीकों को, किन उद्देश्यों से प्रोत्साहित कर रही है, और किनकी उपेक्षा कर रही।

दल आते- जाते रहेंगे, लेकिन नए सामाजिक-सांस्कृतिक प्रतीक और  मिथकों का बनना और पुराने का संवर्धन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसका सही दिशा में जारी रहना जरूरी है।

भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले

आंबेडकर का मुखौटे तले पलेंगे संघ परिवार के प्रतीक पुरुष

6 जनवरी को शाम 6 बजे दिल्ली में एक कार्यक्रम होने जा रहा है। कार्यक्रम का नाम है – ‘अटल…अचल, अविचल’। आयोजक हैं – राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के थिंक टैंक के सदस्य, सांसद विनय सहस्त्रबुद्धे। आमंत्रण में कार्यक्रम स्थल का नाम छपा है – “डॉ. आंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर, जनपथ, नई दिल्ली”।

आम्बेडकर इंटरनेशनल सेंटर, दिल्ली में अटल बिहारी वाजपेयी पर आयोजित कार्यक्रम का ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के 3 जनवरी अंक में प्रकाशित विज्ञापन

आयोजक के अनुसार यह ‘प्रतिभा-पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी के शब्द, वाणी और स्वर त्रिवेणी’ उत्सव’ है। कार्यक्रम में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी के राजनीतिक और सांस्कृतिक कार्यों का महिमामंडन करने के लिए अनेक कलाकारों, संगीतकारों को बुलाया गया है।

ब्राह्मणवादी वाजपेयी भाजपा के पितामह और प्रतीक पुरूष हैं। इसलिये संघ परिवार द्वारा उनका महिमामंडन स्वाभाविक हैं। लेकिन रेखांकित करने योग्य यह है कि उनके ‘थिंक टैंक’ ने इसके लिए नवनिर्मित आम्बेडकर इंटरनेशनल सेंटर को चुना है।

आम्बेडकर इंटरनेशनल जब बन रहा था, तब मौजूदा सरकार ने इसकी योजना को अपनी उदारता और आम्बेडकर के विचारों के शिष्यत्व के  प्रमाण के तौर पर पेश किया था।

उस समय आला अधिकारियों ने मीडिया को बताया था कि  “आम्बेडकर इंटरनेशनल सेंटर को एक थिंक टैंक के रूप में विकसित किया जाएगा। यह संस्थान सरकारी मान्यता प्राप्त शैक्षणिक पाठ्यक्रमों, अनुसंधान के अवसरों और सरकारी अधिकारियों और कॉर्पोरेट्स के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों की पेशकश करेगा तथा यह बौद्ध साहित्य अध्ययन के लिए उत्कृष्टता केंद्र भी होगा।”

लेकिन आज सरकार इस अवधारणा के साथ क्या वर्ताव कर रही है, इसे सहज ही महसूस किया जा सकता है।

(कॉपी संपादन : अर्चना)


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