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ई-कॉमर्स बिजनेस में दलितों के भी अपने लकी हैं, नाम है नरेश

दलित समुदाय के युवा भी उद्यमी बन सकते हैं। राजस्थान के लकी नरेश एक उदाहरण हैं। पत्रकारिता छोड़ ई-बिजनेस के क्षेत्र में पैर बढ़ाने वाले लकी नरेश दलित-बहुजन समाज के प्रति अपने दायित्वों का निर्वहन भी कर रहे हैं

दलित-बहुजन समाज में भी जागरूकता की अलख जगा रहे

दलित उद्यमी आधुनिक तौर तरीके वाले ई-कॉमर्स बिजनेस में कैसे प्रेरणा बन सकते हैं, इसकी मिसाल भरतपुर (राजस्थान) के लकी नरेश ने बखूबी साबित की है। वह आज शहर के स्थानीय लोगों से लेकर ऑनलाइन बाजार तक में लोकप्रिय हो रहे हैं। यह जानकर किसी को भी आश्चर्य होगा कि ई-काॅमर्स की पेचीदगियों को समझने के लिए लकी नरेश ने किसी बड़े संस्थान से कोई डिग्री हासिल नहीं की। सबकुछ उन्होंने अपने सामान्य अनुभव से हासिल किया है। वे एक प्रोफेशनल उद्यमी की भांति ई-कॉमर्स के विभिन्न गतिविधियों का प्रबंधन व संचालन करते हैं।

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भारत के सौंदर्य उत्पाद बाजार में ई-कॉमर्स के जरिए जगह बनाने वाले लकी नरेश का ई-कॉमर्स वेबसाइट है – जरीकार्ट डॉट कॉम। इसके जरिए वह महिलाओं के लिए कृत्रिम लंबे बालों का व्यपार करते हैं। उनका यह उद्यम उन महिलाओं में बहुत लोकप्रिय हो रहा है, जो लंबे बालों की ख्वाहिश रखती हैं, परंतु किसी कारणवश उनके बाल छोटे हैं या फिर वे लंबे बालों का ध्यान नहीं रख पाती हैं।

जरी कार्ट डॉट कॉम का होम पेज

लकी नरेश की चर्चा इसलिए भी उल्लेखनीय है, क्योंकि वह बहुजन समाज के मुद्दों को लेकर भी निरंतर सक्रिय हैं। सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों का इस्तेमाल वे समाज में जागरूकता बढ़ाने और अपने समाज के एकजुट करने के लिए करते हैं। सोशल मीडिया पर दलित प्रोजेक्ट नामक उनके पेज को डेढ़ लाख से अधिक लोगों ने पसंद किया है। वहीं यूट्यूब पर ‘बागी-ब्वायज’ के रूप में सक्रिय लकी नरेश दलित-बहुजनों के मुद्दों को दिखाते हैं। इनमें महिषासुर पर केंद्रित उपयोगी समाचार सामग्री शामिल हैं, जिन्हें अब तक डेढ़ लाख लोगों ने देखा है। लकी नरेश बतौर फ्रीलांस पत्रकार फारवर्ड प्रेस से भी संबद्ध रहे हैं।  

ई-कॉमर्स बिजनेस के लिए मार्केट के ट्रेंड को समझना जरुरी

ई-कॉमर्स बिजनेस को उन्होंने अपने कुछ साथियों के साथ विचार-विमर्श कर शुरू किया था। लेकिन अब अकेले ही इस काम को देख रहे हैं। वह कहते हैं कि ई-कॉमर्स के लिए भी स्ट्रेटेजी बनानी पड़ती है और सुव्यवस्थित तरीके से प्लानिंग करना और उन्हें अंजाम देना महत्वपूर्ण होता है। इसके पहले यह देखना भी जरुरी होता है कि मार्केट का ट्रेंड क्या है। किस तरह के प्रोडक्ट्स की डिमांड है। यह सब समझने के बाद ही प्रोडेक्ट्स को बाजार के लिए तैयार किया जाता है।

दलित-बहुजन बच्चों के साथ लकी नरेश

पहले बने पत्रकार, फिर शुरु किया व्यापार

लकी नरेश के मामले में खास यह है कि ई-कॉमर्स के लिए जहां नामी कंपनियां फाइनेंस या मार्केटिंग में एमबीए या पीजी डिग्रीधारी कर्मचारी रखते हैं, वहीं नरेश यह काम खुद करते हैं। 9 मार्च 1982 में राजस्थान के भरतपुर में जन्मे लकी नरेश ने अपने ही शहर को अपनी कर्मस्थली बनाया है। उन्होंने यहीं के एक संस्थान से मास कम्युनिकेशन एंड जर्नलिज्म में डिग्री हासिल की और फिर देश के नामी मीडिया संस्थाओं से जुड़े रहे। वह दैनिक भास्कर और ईटीवी में काम करने के बाद सहारा इंडिया में राजस्थान, हरियाणा व एनसीआर में चैनल के लॉन्चिंग से जुड़े। फिर वह एनडीटीवी में अंशकालिक संवाददाता के तौर पर जुड़े रहे। इसी दौर में उन्होंने खबरों से जुड़े विभिन्न पहलुओं को समझा और वे सामाजिक सच्चाइयों से भी रूबरू हुए।

उन्हें पत्रकारिता के पेशे से कुछ ऐसे अनुभव हासिल हुए जो अच्छे भले नहीं थे, लेकिन इतने बुरे जरूर थे कि उनसे प्रेरणा मिल सकती थी। नरेश ने बुरे अनुभवों से मिली सीख को प्रेरणा माना और वह रास्ता अख्तियार किया जिससे वे नए दौर की मंजिल को पा सकते थे।

कहां से मिली ई-बिजनेस शुरु करने की प्रेरणा?

ई-कॉमर्स बिजनेस की प्रेरणा कैसे मिली? इस सवाल पर वह कहते हैं, “कई सारे मीडिया चैनलों में रहने के बाद मैंने महसूस किया कि मुझसे यह नौकरी नहीं हो सकती है, यह मुझसे संभव ही नहीं था असल में। सरकारी नौकरी का सपना मैंने इसलिए छोड़ दिया क्योंकि मेरी शादी 21 साल में हो गई और फिर परिवार और बच्चों की जिम्मेदारी मुझ पर भारी हो गई। मेरा एक बेटा और बेटी है। सरकारी नौकरी के लिए जैसे हालात हैं,, वह आप भी समझते हैं। पिता शिक्षक रहे, वे हाल में रिटायर हो गए। अंतिम तौर पर यह समझ आयी कि अब अपना बिजनेस ही करूंगा कोई। शुरू में मैंने पालिका से होर्डिंग लगाने का ठेका लिया। इस काम में मेरे साथ दो पार्टनर थे। वह हमारे दलित समुदाय से नहीं थे। ऐसे भी बड़े ठेकेदारों और पैसे वालों में हमारे बीच का कोई सिंगल भी नहीं है। यहां तक कि हमारे शहर में एससी-एसटी समुदाय का एक भी पत्रकार नहीं था। हम अपने को समझते रहते हैं कि हम पत्रकार बन गए। अपने समाज के लिए बहुत बड़ी क्रांति कर देंगे, लेकिन पता चलता था कि मीडिया के मालिक 15 अगस्त और  26 जनवरी पर कूपन पकड़ा देते थे कि इतना का विज्ञापन ले आओ, उतना का बिजनेस करो आदि। हकीकत में जो होता है, वही आगे चलकर खुद के लिए बड़ा संघर्ष खड़ा हो जाता है।”

परिजनों के साथ लकी नरेश

वह आगे कहते हैं, “मैं मुख्यधारा की मीडिया में रहकर सरकार और प्रशासन को थोड़ा बहुत समझने की स्थिति में था तो आगे बढ़ने की हिम्मत की। लेकिन होर्डिंग का काम दो-तीन साल चला और जैसा कि होता है, पैसे और बिजनेस की दुनिया में बड़ी मछली छोटी मछलियों को खा जाती है। देशभर के एक नामी एडवरटाइजर ने भरतपुर में भी अपना जाल फैला दिया तो हमारे लिए मुश्किल हो गई। यह काम हाथ से चला गया। फिर अखबार निकालने की कोशिश की। पांच-सात अंक निकाले भी, लेकिन बात नहीं बनी। फिर सोशल साइट्स पर बहुजन विषयक वीडियो डाला, लेकिन वह काफी नहीं था कि आजीविका चला पाते। लेकिन इसी बीच ख्याल आया कि ऑनलाइन बिजनेस शुरू किया जाय। मैंने खुद ही जरीकार्ट डॉट कॉम नाम से ई-बिजनेस शुरू किया। इस पर मैंने महिलाओं के लिए हेयर एक्सटेंशन, जो विदेशों पर लोकप्रिय है लेकिन भारत में अभी तक महानगरों में सीमित है, पर काम शुरू किया। मेरा मानना है कि अगर आपके पास पैसा नहीं है तो अपना कोई भी बिजनेस ठीक से शुरू नहीं कर सकते। ऑनलाइन के लिए भी इंटरनेट की दुनिया में विज्ञापन दिए बिना कारोबार नहीं बढ़ सकता। लेकिन फिलहाल मैं ऐसी ही चुनौतियों के बीच कार्य कर रहा हूं और आगे बड़ी उम्मीद है कि सफलता का नया मुकाम मिले।”   

युवाओं की भूमिका अहम

नरेश कहते हैं, “आज की युवा पीढ़ी पहले से कहीं ज्यादा शिक्षित व संगठित है और वह संघर्ष करना भी  जानते है। लेकिन आर्थिक उन्नति के बिना बहुजनों के हितों की बात करना बेमानी होगा। आज उद्योग और व्यापार के क्षेत्र में देखें तो आबादी के अनुपात में दलितों की भागीदारी नगण्य है। इसके लिए आज की पीढ़ी के लोगों को सरकारी नौकरी के अलावा व्यापार के क्षेत्र में भी नए आयामों को खोजना होगा और उनमें अपनी हिस्सेदारी सुनिश्चित करनी होगी। आज इंटरनेट पर एक क्लिक करके किसी भी चीज के बारे में जानकारी हासिल की जा सकती है। बहुजनों को इसका सही इस्तेमाल करना सीखना होगा । मेरा मानना है कि इंटरनेट क्रान्ति ने दलितों को पहले से ज्यादा संगठित किया है। युवा पीढ़ी अपने इतिहास को जान और समझ रही है । मेरा यह भी मानना है कि बहुजनों में भी मनुवाद किसी ना किसी रूप में अभी भी मौजूद है जिसे हटाने की जिम्मेदारी युवा पीढ़ी के कंधों पर है।”

बहरहाल, ई-बे, अमेजन, फ्लिपकार्ट, स्नैपडील, होमशॉप-18 के कब्जे वाले भारतीय ई-कॉमर्स बाजार में पैर पसारने की हिम्मत करना भी आज अच्छे-अच्छे के वश का नहीं है, लेकिन यह भी सच है कि मामूली कारोबार करने वाला कोई शख्स इस मायावी बाजार में टिक सकता है तो उसके पीछे संघर्ष और विश्वसनीयता के पहलू ही महत्वपूर्ण हैं। लकी नरेश भी यह समझते हैं और पूरे आत्मविश्वास के साथ आगे भी बढ़ रहे हैं।

(कॉपी संपादन :  एफपी डेस्क)


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लेखक के बारे में

प्रमोद कौंसवाल

1992 में शरद बिल्लौरे पुरस्कार से सम्मानित प्रमोद कौंसवाल सहारा इंडिया टीवी नेटवर्क से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार हैं। पूर्व में जनसत्ता एवं अन्य संस्थानों में कई पदों पर कार्य करने के अलावा इन्होंने कविता, समालोचना और अनुवाद के क्षेत्र में भी काम किया है। 'भारतीय इतिहास संदर्भ कोश' सहित इनकी आठ किताबें प्रकाशित हैं

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