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अंग्रेजों ने ब्राह्मणों को प्रीवी काउंसिल में क्यों नहीं दी थी जगह?

अंग्रेजों ने किसी ब्राह्मण को कोलकाता हाई कोर्ट में प्रीवी काउंसिल का चेयरमैन नहीं बनाया था। इसके पीछे का कारण बताते हुए उन्होंने लिखा है कि ब्राह्मणों में जुडिशियस कैरेक्टर (न्यायिक चरित्र) नहीं होता है। इतिहास के इसी मुद्दे पर बामसेफ राष्ट्रीय अध्यक्ष के अध्यक्ष वामन मेश्राम का लेख

15 अगस्त, 1947 को भारत में प्रशासन में तीन प्रतिशत ब्राह्मण, 33 प्रतिशत मुसलमान और 30 प्रतिशत कायस्थ थे। जैसे ही ब्राह्मण भारत का शासक बन गया; वैसे ही जो अंग्रेजों की दृष्टि से नालायक थे, वे भारत के नियंत्रणकर्ता होने के बाद सभी लायक हो गए और बाकी सारे नालायक हो गए। कोलकत्ता हाई कोर्ट में प्रीवी काउंसिल हुआ करती थी। अंग्रेजों ने नियम बनाया था कि कोई भी ब्राह्मण प्रीवी काउंसिल का चेयरमैन नहीं हो सकता है। क्यों नहीं हो सकता? इसके उत्तर में अंग्रेजों ने लिखा है कि ब्राह्मणों में जुडिशियस कैरेक्टर (न्यायिक चरित्र) नहीं होता है। यहां यह समझना बहुत जरूरी है कि इसका क्या मतलब होता है? दरअसल, जुडिशियस कैरेक्टर का मतलब होता है कि जब दो वकील बहस कर रहे हों, तो जज पहले वकील की बहस ध्यानपूर्वक सुने, फिर दूसरे वकील की बहस ध्यानपूर्वक सुने। दोनों वकीलों के तर्क और बहस सुनने बाद वह निर्णय करता है कि सही क्या है? जिसके बाद वह न्यायपूर्वक फैसला देता है। इसे ही जुडिशियस कैरेक्टर कहते हैं। अब अंग्रेजों की उस बात पर कि ब्राह्मणों में न्यायिक चरित्र नहीं होता पर गौर करने के लिए एक उदाहरण लेते हैं। यह बात उस समय की है जब जस्टिस ए.एस.आनंद सुप्रीम कोर्ट के चीफ हुआ करते थे, तब उनकी बेंच में तमिलनाडु का एक वकील बहस कर रहा था। जस्टिस ए.एस.आनंद उस वकील की बात सुन ही नहीं रहे थे, तो उस वकील ने जूता निकाला और जस्टिस ए.एस.आनंद को फेंककर मारा। जस्टिस ए.एस.आनंद ने तुरंत आदेश दिया, इसको गिरफ्तार करो। वकील को तत्काल गिरफ्तार करके उस कटघरे में खड़ा किया गया और पूछा गया कि तुमने जज साहब को जूता क्यों मारा? उस वकील ने जबाब दिया कि जज का ध्यान मेरी बहस की तरफ नहीं था। इसलिए उसका ध्यान अपनी बहस की तरफ केंद्रित करने के लिए मैंने जूता मारा। यानी अंग्रेज ब्राह्मणों के (न्यायिक चरित्र के) बारे में जो कहते थे कि ब्राह्मणों में जुडिशियस कैरेक्टर नहीं होता, वह गलत नहीं कहते थे। दरअसल, जुडिशियस कैरेक्टर का मतलब होता है- ”निष्पक्षता का भाव’’ अर्थात निष्पक्ष रहकर, दोनों पक्षों या दोनों पक्षों के बहस कर्ताओं (वकीलों आदि) को, गवाहों को सुनकर सबूतों तथा दस्तावेजों को ध्यानपूर्वक देखकर, कानून और न्याय के सिद्धांत के अनुसार अपनी मनमानी न करते हुए जो सही है, उसे न्याय दे। यह (गुण) ब्राह्मणों के अंदर नहीं है; -यह अंग्रेजों का कहना था।

सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट पर ब्राह्मणों ने कर लिया कब्जा

लेकिन, अब सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट पर भी ब्राह्मणों ने कब्जा कर लिया है। वर्तमान में हाई कोर्ट में 600 के लगभग जज हैं; और एससी, एसटी, ओबीसी एवं माइनॉरिटी के लगभग 18 जज हैं। ब्राह्मण तथा तत्सम ऊंची जातियों के लोगों के लगभग 582 जज हैं। ब्राह्मणों का न्यायपालिका पर अनियंत्रित नियंत्रण है। इसलिए, संविधान द्रोह करने वाले ऐसे जजों को चौराहे पर लाकर उनका उचित सम्मान करना चाहिए। मैं अच्छी तरह जानता हूं कि मेरे द्वारा ब्राह्मणों का विरोध करना ठीक वैसा ही नारा लगाने के बराबर है, जैसा गांधी का ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ वाला नारा था। ‘ब्राह्मणों भारत छोड़ो! – इस नारे का विरोध वे (ब्राह्मण) कर भी नहीं सकते न। ब्राह्मणों को लगता है कि ऐसा करना खतरनाक है। वे जानते हैं कि जो ब्राह्मणों का विरोध कर रहा है, अगर उसका विरोध किया, तो उनकी पोल खुल जाएगी। इसलिए वे हमारे लोगों (एससी, एसटी, ओबीसी के लोगों) को लगातार प्रचार के द्वारा यह मनवाना चाहते हैं कि उन्होंने योग्यता के आधार पर यह कब्जा किया है। ऐसा प्रचार करने के पीछे दूसरा एक मकसद यह है कि वे हमारे लोगों के अंदर में हीन भावना का निर्माण करना चाहते हैं। कोई मनोवैज्ञानिक डॉक्टर से पूछो कि यह हीन भावना क्या होती है? तो वह बताएगा कि हीन भावना एक बीमारी होती है। इसका मतलब है कि अगर निरंतर प्रचार करो कि तुम लायक नहीं हो, तुम लायक नहीं हो; तो सामने वाले के अंदर हीन भावना धीरे-धीरे पनपने लगती है। अर्थात लगातार प्रचार करना कि तुम लायक नहीं हो, इसके पीछे का उनका मकसद यही है कि वे हमारे लोगों के अंदर हीन भावना निर्माण करना चाहते हैं और जब किसी के अंदर हीन भावना का निर्माण हो जाता है, तो वह खुद ही स्वीकार कर लेता है कि मैं नीच और कमजोर हूं। मैं इसी के लायक हूं और मुझे ऐसे ही रहना चाहिए। आप लोगों को मालूम नहीं है कि यह कितनी भयानक बात है? मगर यह भयानक बात लगातार प्रचार करने से लोगों के मन और मस्तिष्क में पेनिट्रेट की (लगातार कोशिश करके बातें दिमाग में घुसाई) जा सकती है।

यह बहुत भयंकर षड्यंत्र का हिस्सा है और इसलिए इस षड्यंत्र को समझना जरूरी है। यदि आप इस षड्यंत्र के विरोध में कोई आंदोलन खड़ा करना चाहते हैं, तो वह आंदोलन तब तक खड़ा नहीं किया जा सकता है, जब तक आप इस षड्यंत्र को नहीं जानते हैं; और तब तक आप कोई भी प्रतिकार भी नहीं कर सकते हैं। इसलिए पहले इस षड्यंत्र को जानना होगा, फिर इस षड्यंत्र को पहचानना होगा; फिर इसके विरोध में प्रतिरोध एवं विरोध संभव है। इस बात को जानने और समझने के लिए ये बात मैं आप लोगों को बता रहा हूं।

(प्रस्तुति : कुमार समीर, कॉपी संपादन : प्रेम बरेलवी)


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लेखक के बारे में

वामन मेश्राम

वामन मेश्राम वर्तमान में बामसेफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं

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