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मदर इंडिया : भारत का यथार्थ दर्शन

भारत में आज भी अंधकार-ही-अंधकार है। ऐसे में ‘मदर इंडिया’ किताब अंधकार को नष्ट करने वाली चिनगारी साबित होगी

बाबा साहब डॉ. आंबेडकर जी ने यह सुनिश्चित किया था कि इस देश की सबसे बड़ी समस्या जातीय असमानता है, जिसका प्रभाव जीवन के हरेक क्षेत्र में पड़ रहा है। जाति-प्रथा हर समस्या का मूल आधार है। अतः जाति का उच्छेदन उनका एक मात्र कर्म था। वे मानते थे कि जाति का उच्छेदन जब तक नहीं होता, तब तक भारत में देश-भक्ति की भावना का प्रस्फुटन नहीं होगा। उस समय भी भारत अनगिनत जातियों का समुच्चय था। उसमें सभी जाति-धर्म के अहंकारी लोग रहते थे; मगर कोई भी भारतवासी नहीं रहता था।

करोड़ों लोगों की सोच बदलना है, यही सोचकर कई लोग अपना कार्य करते थे। उनमें से एक थीं मिस कैथरीन मेयो; जो भारत देश की अशिक्षा, असमानता और गरीबी देखकर व्यथित हुई थीं। भारतीय समाज को देखने और समझने के लिए तब वह 1924 में भारत आई थीं और यहां के शूद्रों और स्त्रियों की हालत देखने के बाद ‘मदर इंडिया’ किताब लिखी। जिसके 1927 में पहली बार प्रकाशित होने के बाद उसकी यहां घोर निंदा की गई।

यह सच है कि मिस मेयो ने पितृसत्तात्मक वर्चस्वकारी हिंदू धर्म और भारतीय संस्कृति पर आक्रमण किया। 1927 में ही बाबा साहब डॉ. आंबेडकर ने महाड़ के तालाब पर जन-आंदोलन शुरू किया। मिस मेयो ने जो लिखा था, वह उचित भी था; क्योंकि भारत के साहित्यकार “शूद्र और नारी सब हैं ताड़न के अधिकारी” इस तरह का संदेश देते थे; और वह भी सांस्कृतिक व धार्मिक ग्रंथ के जरिए।

सन 1920 के पश्चात भारत के सांस्कृतिक और राजनीतिक आंदोलनों का नेतृत्व गांधी कर रहे थे। गांधी हिंदू धर्म, संस्कृति और मनुवादी सामाजिक व्यवस्था के समर्थक थे। मिस कैथरीन मेयो की किताब ‘मदर इंडिया’ की आलोचना तब गांधी ने भी की और उनके विरोध ने भारत में लोगों को इस कदर उद्वेलित किया कि इस किताब की प्रतियों को जलाया गया और कैथरीन मेयो के पुतले फूंके गए।

मदर इंडिया पुस्तक का कवर पृष्ठ

इतिहास गवाह रहा है कि प्रतिक्रांतिवादी या परंपरावादी लोगों की संख्या हमेशा ज्यादा होती है। गांधी समय के साथ बहने वाले थे। यानी वह प्रवाह-पतित थे। प्रवाह के विरोध में खड़े होने की हिम्मत उनमें नहीं थी। क्रांतिकारी या समाज को सकारात्मक दिशा में बदलने वाली विचारधारा को मानने वाले लोग निस्संदेह कम होते हैं। प्रवाह के विरोध में खड़े होने की शक्ति डॉ. आंबेडकर में थी।

प्रवाह-पतित लोगों ने 1957 में ‘मदर इंडिया’ नाम की फिल्म बनाई, जिसमें स्त्री स्थितिवादी दिखाई गई। अपार कष्ट करने वाली स्त्री को ईश्वरवादी दिखाया गया। फिल्म की नायिका को संस्कृति के रसूखदारों के सामने झुकने वाली के रूप में दिखाया गया। मजबूरन वह गीत गाती है –

“दुनिया में अगर आये हैं तो जीना ही पडेगा,

जीवन है अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा।”

सच तो यह है कि स्त्री हमेशा संघर्षशील होती है। उसमें अपने ऊपर होने वाले अन्याय-अत्याचार के खिलाफ खड़े होने की ताकत होती है। वह सामाजिक बंधनों के खिलाफ विद्रोह करने वाली होती है।

आदरणीय कँवल भारती जी अथक प्रयास के बाद ‘मदर इंडिया’ का हिंदी अनुवाद लोगों के सामने लाए हैं। इसलिए वह अभिनंदन के पात्र हैं। धर्मवादी और परंपरावादी भारत में गंदगी-ही-गंदगी है। गंदगी किसी को भी प्यारी नहीं होती है। गंदगी का अस्तित्व महसूस करना भी काफी जरूरी होता है। गंदगी का अस्तित्व दिखाया जाएगा, तभी उसे हटाने के प्रयास किए जाएंगे, अन्यथा नहीं।

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भारत में आज भी सबसे ज्यादा गंदगी है। प्रति-क्रांतिवादी लोगों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। सरकार भी उन्हीं लोगों की है। ‘गर्व से कहो, हम हिंदू हैं’ का नारा लगाने वालों की सरकार होने से देश में अंधकार छा रहा है। समय बहुत-ही खतरनाक है। ऐसे समय में कँवल भारती जी के द्वारा ‘मदर इंडिया’ का अनुवाद किया जाना देश को गंदगी रहित और स्वस्थ बनाए जाने का प्रयास है।

इस बहुचर्चित किताब में मिस कैथरिन मेयो ने सभी विचारधारा के लोगों के साथ विमर्श और चर्चाएं की थीं। यह आंखों-देखा वर्णन है। पुराणमतवादी लोग किस तरह से अपने ही देशवासियों के साथ बर्ताव करते हैं, इसकी जानकारी है। जो चित्रण कैथरीन मेयो ने किया है, वह वर्चस्वकारी परंपराओं को मानने वालों के द्वारा किया जाने वाला जंगली बर्ताव है।

इस किताब का महत्व तभी समझा जा सकता है, जब इसे पढ़ा जाए। इसके अध्याय अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। जैसे कि लोगों की ‘गुलाम मानसिकता’, ‘जल्द विवाह-जल्द मृत्यु’, ‘पति परमेश्वर’, ‘भारत माता’, ‘धार्मिक नगरी’, ‘दुनिया का खतरा’, ‘महिलाओं की मुक्ति’, ‘भारत के राजे-महाराजे’, शूद्रों और महिलाओं को ‘शिक्षा देने से इनकार क्यों?’ आदि-आदि। इन अध्यायों को एक के बाद एक पढ़ने के बाद महसूस होगा कि सामाजिक वैज्ञानिकों, अध्येताओं और राजनीतिक कार्यकर्ताओं के लिए यह एक अति महत्वपूर्ण किताब है। इस किताब से भारत देश कैसा था, उसका सांस्कृतिक मूल्य क्या था और इससे छुटकारा पाने से भारत में कौन-सा बदलाव होगा, इसकी जानकारी प्राप्त होगी।

आज भी भारत में अंधकार-ही-अंधकार है। ऐसे में ‘मदर इंडिया’ किताब अंधकार को नष्ट करने वाली चिनगारी साबित होगी। हो सकता है कि इस किताब पर भी पाबंदी लगाई जाए। अत: पाठकों से मेरा आग्रह है कि वह जल्द-से-जल्द इसे पढ़ें और देश को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने में सहभागी बनें।

पुनश्च कँवल भारती जी को धन्यवाद। साथ में फारवर्ड प्रेस के प्रबंध संपादक प्रमोद रंजन जी को भी बधाई तथा धन्यवाद।

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किताब :  मिस कैथरीन मेयो की बहुचर्चित कृति मदर इंडिया

लेखक : कैथरीन मेयो

अनुवादक : कंवल भारती

मूल्य : 350 रूपए (पेपर बैक), 850 रुपए (हार्डबाऊंड)

पुस्तक सीरिज : फारवर्ड प्रेस बुक्स, नई दिल्ली

प्रकाशक : फारवर्ड प्रेस

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(कॉपी संपादन : प्रेम/एफपी डेस्क)


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मिस कैथरीन मेयो की बहुचर्चित कृति : मदर इंडिया

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार

लेखक के बारे में

जे. वी. पवार

कवि और उपन्यासकार जे.व्ही. पवार, दलित पैंथर्स के संस्थापक महासचिव हैं। वे 1969 में लिखे अपने उपन्यास 'बलिदान' और 1976 में प्रकाशित कविता संग्रह 'नाकाबंदी', जो बाद में अंग्रेजी में अनुवादित हो 'ब्लॉकेड' शीर्षक से प्रकाशित हुआ, के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने आंबेडकर के बाद के दलित आंदोलन का विस्तृत दस्तावेजीकरण और विश्लेषण किया है, जो कई खण्डों में प्रकाशित है। आंबेडकरवाद के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध पवार, महाराष्ट्र में कई दलितबहुजन, सामाजिक व राजनैतिक आंदोलनों में हिस्सेदार रहे हैं

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