14 फरवरी 2019 को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान वीरगति को प्राप्त कर गए। इस घटना के बाद पूरे देश में युद्धोन्माद भड़काया जा रहा है।
इसी बीच सीआरपीएफ के पूर्व कमांडेंट हवा सिंह सांगवान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम एक खुला पत्र लिखा है। उन्होंने फारवर्ड प्रेस को बताया कि बतौर कमांडेंट उनकी अंतिम पोस्टिंग दिल्ली में थी और 2004 में वे सेवानिवृत्त हुए। उन्होंने कहना कि भारत सरकार अर्द्ध-सैनिक बलों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार करती है। उन्होंने हमसे कहा कि उनके पास सेना व अर्द्ध-सैनिक बलों के जवानों के साथ सरकार के द्वारा किए जाने वाले व्यवहारों के संबंध में बहुत सारी ऐसी जानकारियां हैं जो वे देश की जनता के सामने लाना चाहते हैं।
हम उनके इस खुले पत्र को प्रकाशित कर रहे हैं। उनके द्वारा किए जाने वाले अन्य खुलासों को भी हम आने वाले समय में प्रकाशित करेंगे।
इस सामग्रियों[1] को प्रकाशित करते हुए हम देश की जनता से युद्धोन्माद भडकाने वालों का विरोध करने तथा देश के सुरक्षा बलों को दुश्मनों का प्रतिरोध करने में सक्षम और अपने देश के लोगों के प्रति मानवीय बनाने के लिए राजनीतिज्ञों पर दबाव बनाने की अपील करते हैं – प्रबंध संपादक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम सीआरपीएफ के पूर्व कमांडेंट हवा सिंह सांगवान का खुला पत्र
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हवा सिंह सांगवान
आदरणीय प्रधानमंत्री जी,
सबसे पहले मैं अपना परिचय देना चाहूंगा कि मैं केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) का सेवानिवृत्त अधिकारी (कमाडेंट) हूँ। मेरी अंतिम पोस्टिंग दिल्ली में 2004 में थी। आप जानते होंगे कि सेना व अर्द्ध-सैन्य बल तीन वर्गों में बंटी होती है। पहला वर्ग ‘ओआर’(Other Ranks), जिसमें सिपाही से लेकर हवलदार तक के रैंक शामिल होते हैं। यह वर्ग सबसे ज्यादा दिल वाला होता है और इसमें लगभग सभी ग्रामीण क्षेत्र के होते हैं। दूसरा वर्ग, जिसे सेना में जेसीओ व अर्द्ध-सैन्य बल (जैसे सीआरपीएफ) में एसओ (सबार्डिनेट ऑफिसर) कहते हैं। यह वर्ग भी लगभग पहले वर्ग से ही बनता है।तीसरे वर्ग में सभी ऑफिसर्स शामिल होते हैं।
मैंने सीआरपीएफ में लगभग साढ़े-चार साल ओआर वर्ग में, लगभग 10 साल एसओ वर्ग में, और तीसरे वर्ग में अधिकारी के तौर पर बीस साल सेवा दी है।
इस अवधि में सबसे पहले बंगाल में नक्सलबाड़ी मूवमेंट को झेला, इसके बाद और भी कई प्रकार की ड्यूटी करने के बाद 7 जून, 1986 को उग्रवाद प्रभावित पंजाब प्रान्त में अपनी सेवा शुरू करके 25 मार्च, 1992 तक सरदार बेअंत सिंह की सरकार बनने तक अपनी सेवाएं दी। पंजाब में ड्यूटी के दौरान ही एक बार चार महीने के लिए गुजरात पुलिस की हड़ताल के कारण गुजरात गया, और एक बार सन 1990 में चार महीने के लिए अयोध्या में रहा। जब लालकृष्ण आडवाणी जी की रथ यात्रा अयोध्या पहुंची थी और अर्द्ध सैन्य बल ने उस समय बाबरी मस्जिद को ढहाने से बचाया था। पंजाब में मेरी सेवाओं के दौरान मैंने देखा कि भाजपा का कोई भी बड़ा नेता उग्रवाद के डर से पंजाब नहीं गया। उस समय ये हालात बना दिए गए थे कि हर सिख को संदेह की नजर से देखा जाता था जो आज कश्मीरियों के साथ हो रहा है। पंजाब के उग्रवाद को दबाने के लिए भारतीय सेना को भी भेजा गया था लेकिन वह पूर्णतया असफल रही थी। पंजाब में उग्रवाद का खात्मा पंजाब पुलिस और अर्द्ध सैन्य बलों की मदद से व तत्कालीन मुख्यमंत्री सरदार बेअंत सिंह और पंजाब पुलिस के पुलिस महानिदेशक के.पी.एस. गिल के प्रयासों से हुआ था।
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25 मार्च, 1992 को मेरा डिप्टी-कमाडेंट के पद पर प्रमोशन होने के बाद मुझे अवंतीपुरा में सीआरपीएफ के रिक्रूट ट्रेनिंग सेंटर-4 को खड़ा करने का आदेश हुआ। यह वही जगह है जहाँ अभी हमारे चालीस जवान शहीद हुए हैं। और इस सेंटर को लगातार डेढ़ साल तक बगैर किसी कमांडेंट के चलाने का मुझे श्रेय है। 1994 में इस सेंटर को श्रीनगर के हवाई अड्डे के पास हमामा में स्थान्तरित कर दिया गया था। तब वहां के हालात आज से भी ज्यादा बदतर थे।

हवा सिंह सांगवान, पूर्व कमांडेंट, सीआरपीएफ
उसके बाद द्वितीय कमांड अधिकारी के तौर पर मेरी पदोन्नति होने पर मेरी पोस्टिंग कश्मीर में ही थी। वहीं कश्मीर में 2 जून, 1996 को किश्तवाड़ क्षेत्र में बहुत सौ से अधिक आतंकियों ने घात लगाकर हमला बोला था। तब एक मुसलमान ने हम सबों की जान बचाई थी। जुलाई, 1996 को वहां से फिर मेरा तबादला उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र आसाम और फिर मिजोरम में हो गया। 1998 में वहां से फिर वापिस कश्मीर तबादला हुआ। इस दौरान सीआरपीएफ की तरफ से आर्मी के साथ मिलकर कई ऑपरेशनस को अंजाम दिया। इन ऑपरेशनों में उग्रवादियों के खिलाफ हमें सूचना देने वाले सभी के सभी स्थानीय कश्मीरी मुस्लमान थे, जो बड़ी बहादुरी से छिपते-छिपाते हमें बगैर किसी लालच के सूचना दिया करते थे। इसके लिए आज मैं उन कश्मीरी मुसलमानों को सलाम करता हूँ।
मैं 1969 में कश्मीर में ही भर्ती हुआ था, और जम्मू-कश्मीर से 2001 तक संबंध रहा है। मैंने कश्मीर के इतिहास को गंभीरता से पढ़ा है। मुझे याद है कि 1970 तक कश्मीर के ऐसे बहुत से थाने थे जहाँ कभी भी हत्या का मामला दर्ज नहीं हुआ था। इसीलिए कश्मीर में आगे का कदम उठाने के लिए हमें सभी कश्मीरी मुसलमानों को देशद्रोही समझने की भूल नहीं करनी चाहिए। ऐसा प्रचार करके हमें अपनी सेना और अर्द्ध सैनिक बलों के रास्ते में रोड़ा नहीं अटकाना चाहिए और न ही हमें जो कश्मीरी मुसलमान भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अधयन्न कर रहे हैं, उनको किसी प्रकार तंग करना चाहिए। यह सब बतलाने का मेरा मकसद है कि मेरे सेवाकाल का अधिक समय पंजाब और जम्मू-कश्मीर के उग्रवाद के बीच गुजरा है। मुझे अनेक घटनाएं याद हैं और मैं कश्मीरियों और पंजाबियों के बारे में बहुत कुछ जनता हूँ।
आपका यह एलान कि आपने सुरक्षा बलों को खुली छूट दे दी है, बड़ा ही हास्यास्पद बयान है। इसे हिप्पोक्रेटिक (दोहरे चरित्र वाला) बयान कहा जा सकता है। यह आम जनता को गुमराह करने वाला बयान है। नहीं तो सेना का कोई जनरल इस बयान की व्याख्या करके बतला दे। क्योंकि जहां कहीं भी उग्रवाद है वहां उग्रवादियों के खिलाफ लड़ने की खुली छूट होती है चाहे कोई भी सरकार हो। हमारी सेना-अर्द्ध सैन्य बल के सिपाहियों से लेकर जनरल तक को आदेशों की आवश्यकता होती है, खुली छूट की नहीं। जहाँ तक खुली छूट की बात है तो वह एक सिविलियन, जिसने अपनी सुरक्षा के लिए कोई लाइसेंसी हथियार ले रखा है, उसे भी अपनी सुरक्षा में अपना हथियार इस्तेमाल करने की पूरी छूट है। अभी यह जानने की आवश्यकता है कि क्या किसी पर भी उग्रवादी होने का संदेह होने पर उसे मार सकते हैं? और यदि मार सकते हैं तो इस दौरान मारे जाने वाले बेगुनाह लोगों की मौत का जिम्मेवार कौन होगा? क्योंकि क्रॉस फायरिंग में आमतौर पर बेगुनाह लोग भी मारे जाते हैं। ऐसा पहले एक बार हो चूका है, जिसके बारे में आपने कश्मीर में एक रैली में छाती ठोकते हुए अपने भाषण में बताया था कि “पहली बार , तीस साल में पहली बार, ये मोदी सरकार का कमाल देखिये पहली बार सेना ने प्रेस कांफ्रेंस करके कहा कि जो दो नौजवान मारे गए थे, वह सेना की गलती थी और सेना ने अपनी गलती मानी, जाँच कमीशन बैठा और जिन लोगों ने गोली चलाई थी उन पर केस दर्ज कर दिया गया, ये मेरे नेक इरादों का सबूत है।”
यदि अब ऐसा फिर हुआ तो आप फिर उसका जिम्मेवार सेना-अर्द्ध सेना बल के जवानों को बता देंगे? तो फिर खुली छूट का अर्थ क्या हुआ?
खुली छूट का मेरे जैसा सैनिक ( हाँ , मैं सैनिक हूँ , मेरी माँ द्वितीय विश्व युद्ध में विधवा हुई थी और वो सैनिक संस्कार मेरे अंदर हैं ) इसका दूसरा अर्थ भी निकाल सकता है । जैसे , सन 1969-70 में पश्चिमी पाकिस्तान के आला अधिकारियों ने पूर्वी पाकिस्तान में तैनात अपनी सेना को खुली छूट दी थी । परिणामस्वरूप वहाँ उनकी फ़ौज ने औरतों और बच्चों पर ज़ुल्म ढाए । परिणाम यह हुआ कि बांग्लादेश की आज़ादी के लिए मुक्ति वाहिनी खड़ी की गई थी। इसलिए मेरा मानना है कि खुली छूट शब्द का इस्तेमाल करना ही अनुचित है।
आज हमारी सेना व अर्द्ध सेना बल को आवश्यकता है आदेशों की, और ये आदेश स्पष्ट होने चाहिए कि जहां बॉर्डर पर पाकिस्तान की तरफ से टू-इंच या थ्री-इंच आदि के बम फायर किए जाते हैं, वहां टैंक या लड़ाकू विमान से गोला गिराया जाय ताकि वहां से फायरिंग आना बंद हो जाये | और साथ-साथ पाकिस्तान में जहां-जहां इन उग्रवादियों के ट्रेनिंग सेंटर हैं तथा उग्रवादी संगठनों के सरगना पनाह लिए हुए हैं, वहां कार्रवाई की जाय तथा आप अपने वायदे के अनुसार देश के गुनाहगार जो पाकिस्तान में रह रहें हैं, जिसमें दाऊद जैसे देशद्रोही को वापिस देश में लाकर सजा दिलाएं | नहीं तो इस प्रकार का आपका आदेश आम जनता को गुमराह करने वाला ही सिद्ध होगा।
अभी आपके पास मौका है 56 इंच सीना सिद्ध करने का। अभी चूके तो फिर यह मौका दुबारा नहीं मिलेगा। फरवरी, 2016 में हरियाणा में हिंसा के दौरान आपने हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को कहा था कि अभी दुबारा नहीं चूकना है। जबकि वहां उग्रवादी भी नहीं थे।
यही बात अब हम आपसे कह रहें हैं कि अभी आप चूक करेंगे तो देश की जनता आपको माफ़ करने वाली नहीं है? हमने आपके प्रधानमंत्री बनने से पहले सन 2014 में ही लिख दिया था कि पाकिस्तान के विरुद्ध कोई भी कदम उठाने से पहले अच्छी तरह से सोच लेना कि पाकिस्तान के पास भी परमाणु हथियार हैं, और ये हथियार उस देश के पास हैं जो बिल्कुल भी परिपक्व नहीं है। ये ऐसी ही बात है जिस प्रकार किसी बन्दर के हाथ में उस्तरा दे दिया जाय। पाकिस्तान नाम का बंदर हम से पहले इन हथियारों का इस्तेमाल करेगा। इसीलिए हमारी कार्रवाई इतनी धमाकेदार होनी चाहिए कि बंदर इन हथियारों का इस्तेमाल ही न कर पाए। क्योंकि यही हकीकत रही है कि कमजोर अपने डर में घातक हथियारों का सबसे पहले इस्तेमाल करता है।
नवजोत सिंह सिद्धू ने पाकिस्तान के साथ बातचीत की जो बात कही है, वह शत-प्रतिशत उचित है क्योंकि पाकिस्तान के साथ बातचीत चाहे युद्ध करने से पहले या युद्ध के बाद करनी ही पड़ेगी। याद होगा कि सन 1971 में हमने पाकिस्तान को बुरी तरह से पटखनी दी थी और श्रीमती इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान को सजा के तौर पर अलग से बांग्लादेश बनवा दिया और पाकिस्तान के नब्बे हजार से अधिक सैनिकों को हमने बंदी बनाया। लेकिन फिर भी सन 1972 में पाकिस्तान के साथ शिमला समझौता करना पड़ा। इसीलिए उचित तो यह होगा कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को बुलाकर सपष्ट कह दिया जाये कि वे वहां उग्रवाद का धंधा बंद करें और हमारे गुनाहगारों को हमारे हवाले कर दें, नहीं तो इसका नतीजा भुगतने के लिए तैयार रहें। और यदि पाकिस्तान तुरंत ऐसा नहीं करता है तो बगैर किसी झिझक के पाकिस्तान पर हमला बोल देना चाहिए क्योंकि हमारे जनरल पहले से ही कह चुके हैं कि वे लड़ाई के लिए तैयार हैं। इस प्रकार नवजोत सिंह सिद्धू ने जो कुछ कहा है वह केवल उचित ही नहीं, हमारे देश के हित में भी है।
आज जब पुलवामा में शहीद हुए सीआरपीएफ के सिपाही अवधेश यादव के अंतिम संस्कार के समय उनका दो वर्ष का बेटा अपने मृतक पिता की तरफ कुछ न जानते हुए भी ताक रहा था तो उस समय मैं सोच रहा था कि यदि बदकिस्मती से आज से सोलह साल के बाद इसे कोई नौकरी नहीं मिल पाई तो यह बेचारा दसवीं पास करके सीआरपीएफ में सिपाही की नौकरी पाने के लिए अपने पिता की शहीदी की दुहाई देकर एक दिन मारा-मारा फिरेगा और नौकरी के लिए इतना परेशान हो जाएगा कि महीनों तक धक्के खा कर भी शायद ही इसे कोई नौकरी मिलेगी। वजह यह कि शहीदों के बच्चों को इतने सालों के बाद नौकरी देने का अभी तक कोई ठोस कानून नहीं बना है।
आज भी पंजाब तथा जम्मू-कश्मीर में शहीद हुए सिपाहियों के बच्चे ठोकर खाते फिर रहें हैं। मुझे तो लगता है कि सोलह साल के बाद यह लड़का अपने शहीद पिता के सरकारी कागज ही नहीं ढूंढ पाएगा, क्योंकि आजतक किसी भी सरकार ने अर्द्ध सैनिक बलों के शहीदों को शहीद का दर्जा नहीं दिया है। जब सरकार ने आजतक अर्द्ध सैनिक बलों के शहीदों को शहीद ही नहीं माना है तो फिर हम किस बात के लिए शहीद-शहीद कर रहें हैं? मुझे यह समझ में नहीं आता कि इस देश के करोड़ों लोग किस बात के लिए इनको शहीद-शहीद पुकार रहें हैं?
प्रधानमंत्री जी, जनता तो भोली हो सकती है, परंतु क्या आप भी भोले हैं? आप बतलाएं कि क्या ये चालीस वास्तव में शहीद हैं? और यदि शहीद हैं तो इनको शहीद का दर्जा कब और किस सरकार ने दिया है? या देंगे?
प्रधानमंत्री जी, मुझे तो लगता है कि आपको अपनी पार्टी की निम्नलिखित कमियों को जान लेनी चाहिए ताकि आप खुद आकलन कर सकें।
- पंजाब में उग्रवाद के समय सन 1987 से लेकर सन 1991 तक अर्थात पांच साल के लम्बे समय तक आपकी पार्टी (भाजपा) का कोई भी बड़ा नेता डर के कारण पंजाब नहीं गया।
- आपकी ही पार्टी के राज में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपयी जी की सरकार में पुलवामा में शहीद हुए सीआरपीएफ के 40 जवानों को शहीद करने वाले कुख्यात सरगना मसूद अजहर को अपने दो साथियों के साथ हमारे ही देश के हवाई जहाज में हमारे ही तत्कालीन विदेश मंत्री श्री जसवंत सिंह जी अपने बगल में बैठा कर कंधार छोड़ कर आये थे। और इस अवधि में इस कुख्यात आतंकी ने हमारे हजारों सैनिकों की कश्मीर में जान ले ली।
- अपहृत विमान के लगभग 120 यात्रियों को मुक्त करवाने के लिए उनके परिजनों ने वाजपेयी सरकार को झुका दिया था। क्या इसके लिए अपह्रत विमान के यात्रियों के परिजन जिन्होंने इसकी रिहाई के लिए सरकार पर दबाव बनाया था वे कसूरवार नहीं हैं? यह आज इतिहास बन चूका है। इसे आप कैसे छिपाएंगे?
- आपकी ही पार्टी की सरकार ने इन अर्द्ध सैनिक बलों के जवानों को हमेशा-हमेशा के लिए अपनी पेंशन के नैतिक अधिकार से वंचित कर दिया। क्या आपकी सरकार ने लगभग पांच साल में इस पर कभी विचार किया?
- क्या यह सच नहीं है कि आपकी सरकार ने आजतक केवल सेना को ही देश का रक्षक समझा है और अर्द्ध सैनिक बलों को आपकी सरकार ने दूसरे दर्जे का नागरिक नहीं बना दिया है? उदाहरण के लिए तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने संसद में इन अर्द्ध सैनिक बलों के लिए कैंटीन व दूसरी मेडिकल सुविधाओं की बात चलाई थी, वे सभी बातें कहां गईं?
- आप अपने भाषणों में कई बार धर्म-निरपेक्षता की बात कह चुके हैं जो हमारे संविधान की मूलभावना की के अनुसार है तो क्या आप देश को बतलाएंगे कि कौन से काम के आधार पर आपकी पार्टी के सांसद 2 से बढ़कर 282 हो गए?
- यदि गाय-गंगा-गीता और मंदिर की बात छोड़ दी जाए तो कहने के लिए आपके पास क्या शेष है?
आदर सहित
प्रार्थी
हवा सिंह सांगवान,
पूर्व कमाडेंट, सीआरपीएफ
(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)
(आलेख परिवर्द्धित : 20 फरवरी 2019, 11:37 AM)
[1] पुलवामा आतंकी हमला : शहादत में गैर-ब्राह्मणों के लिए सौ फीसदी आरक्षण!
पुलवामा हमला : वीरगति को प्राप्त जवानों की आधिकारिक सूची
जम्मू-कश्मीर में हिंसा और अशान्ति का गुनाहगार कौन?
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सही कहा है..
Superb…and 100 percent true sir ji
लेखक पर्वाग्रह से ग्रस्त हैं और उनके लहजे से साफ दिख रहा है कि वे कांग्रेस के गुनाहों का जवाब मोदीजी से मांग रहे हैं। लेखक ने ऐसी एक भी बात नहीं लिखी, जिसकी शुरुआत मोदीजी ने की है और उससे देश को नुकसान हुआ हो। मोदी जी ने देश हित मे रात-दिन एक कर दिया है। सी आर पी एफ के पूर्व सैनिक होने का फायदा उठाकर कुछ भी लिख देना कभी जायज नहीं होगा। आम जनता को ऐसे लोगों का पर्दाफाश करना होगा।
भाई आठ मार्च याद रखना…. दिल्ली मे अर्द सेनिक का मुर्दा मार्च करेगा स्पोर्ट करना (पेंशन बदहाली)
धन्यवाद
Bahot karara tamacha diya hai aapne Sangwan ji… hat’s up…
I am astonishingly happy to note the contents put by the great person Comdt.Mr.HawaSingh Sangwan.I appreciate his way if expression rather eye opening facts put by him before the PM as well as public.By the way I served BSF 1971 to 1977 as an officer,witnessed the Bangladesh operation .
I am still confused about the definition of SHAHEED. Normally the person related with Armed forces or Para military forces ,who dies for the reference of the Nation is called SHAHEED.But the Question of Mr.Sanswan has put me in suspanc.
Any way Questions , comments ,and the suggestions regarding prevailing circumstances expressed , of Mr.Sangwan do carry weight are to be taken into account seriously,in the interest of the nation Jai Hind.
Thanks for Mr.Sangwan for his boldness.
फारवर्ड प्रेस द्वारा इतनी अच्छी जानकारी मुहैया कराने के लिए जितने भी फॉरवर्ड प्रेस में संपादक हैं उन सभी को बहुत-बहुत धन्यवाद
Absolutely correct information.
Sahi baat hai sagwan ji ki sare duty capf hi kar rahe hai chunav ho ya danga ya apda seema ki bhi suraksha phir humlogo na hi pension na hi unke jasa payment na hi fasility akhir hai ye kya. Ek din pahle hamre Itbp ke 6 jawan glasiour me dab gaye bataiye unki family kya karegi ho sakta pariwar wale unka support na Kare to. Ya to kisi ke ghar bartan saaf karegi ya to sucied karegi. Pension hi to sahra tha. Wahi army wale puri naukri karke phir civil me bhi naukri mil jaati hai kyu ki unko ex Service man ki darza di hui hai or saath hi pension bhi lete hai. Is samay mai bhi sree nagar me chunav duty ke liye aa rakhe hai kitni kadinaiya hai ye hum hi jante hai. Phir iske turant hi baad amaranth yatra. Hum to iddhar udhar ghumte hi rahte hai apna pasa karch karke. Mess cuting hum dete hai. Ta da pata nahi 1 year me ayegi ya 2year me. Chuti hame puri nahi milti hai. Hamesha kahi na kahi kuch hota rahta hai. Phir bhi hame na facility na hi pasa na hi pension akhir hamre saath asa kyu ho raha hai. Bajpeiay ji khud pension per jite rahe or hame bhikhmanga bana ke chale gaye. Bahut saari bate hai ki kya kya bataye. Aap log bahut hi bhudhi jiwi hai aap log sarkar se is bare me baat kare. Kyuki hum kisi ke bete hai.
Sidhu ,Khera ko badnaam karne walo mr Hawa Singh Sangwan commandant ko suno, so Sara Punjab,jamu and Kashmir and many more state are saying same what Sidhu said. Please be a thinker not a sheep! And follow that commandant mrsidhu,Khera,mr Abdullah and thousands of those who want a peaceful talk with Pakistan!