h n

विभागवार आरक्षण : सरकार ने माना, बहुजनों को होगा 25 से 100 फीसदी तक नुकसान

विश्वविद्यालयों में आरक्षण के सवाल पर केंद्र सरकार और यूजीसी ने सुप्रीम कोर्ट में उन तथ्यों काे विस्तारपूर्वक रखा, जो यह बताते हैं कि यदि विभागवार आरक्षण लागू हुआ तो उच्च शिक्षा में आरक्षित वर्गों का प्रतिनिधित्व लगभग पूरी तरह समाप्त हो जाएगा

बीते 22 जनवरी 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने भले ही केंद्र सरकार की याचिका को खारिज करते हुए विश्वविद्यालयों में विभागवार आरक्षण को हरी झंडी दे दी, परंतु इस मामले की सुनवाई के दौरान सरकार ने भी यह कबूल किया कि विभागवार आरक्षण से नुकसान ही नुकसान है। दरअसल सरकार की ओर से जो दलीलें सुप्रीम कोर्ट में रखी गईं, उसके मुताबिक यदि विभागवार आरक्षण हुआ तो एक तरफ उच्च शिक्षा में सामान्य वर्ग की हिस्सेदारी में 25 से 40 फीसदी की वृद्धि हो जाएगी। वहीं दूसरी ओर आरक्षित वर्गों की हिस्सेदारी में 25 से 100 फीसदी तक की कमी आएगी।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के इस दलील के बावजूद याचिका को खारिज कर दिया। 2017 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायादेश कि विश्वविद्यालयों में आरक्षण का आधार विभाग हो न कि विश्वविद्यालय को इकाई माना जाय, के खिलाफ केंद्र सरकार ने पुनर्विचार याचिका दाखिल किया था।

सर्वोच्च अदालत में केंद्र सरकार ने विस्तार से पक्ष रखा। इसके लिए उसने 40 में से 20 केंद्रीय विश्वविद्यालयों का आंकड़े से अदालत को अवगत कराया। इसके मुताबिक कहा गया कि कई विभागों में यह संभावना है कि आरक्षित वर्ग के लिए जगह ही न बचे।

विभागवार आरक्षण के खिलाफ 31 जनवरी 2019 को नई दिल्ली के संसद मार्ग पर प्रदर्शन करते दलित-बहुजन

सरकार ने बिंदूवार जानकारी देते हुए कोर्ट को बताया कि अनुसूचित जनजाति को सबसे अधिक नुकसान होगा यदि विश्वविद्यालय के बजाय विभागवार आरक्षण का प्रावधान किया गया। सरकार के मुताबिक आने वाले समय में विश्वविद्यालयों में होने वाली नियुक्तियों में अनुसूचित जनजाति के प्रतिनिधित्व में 78 से 100 फीसदी की कमी हो जाएगी। जबकि अनुसूचित जाति के प्रतिनिधित्व में 58 से 97 फीसदी कमी होगी।

सरकार ने इस बात पर भी चिंता व्यक्त की कि विभागवार आरक्षण लागू हुआ तो इसका खामियाजा ओबीसी को भी भुगतना पड़ेगा। सरकार ने कोर्ट को बताया कि ओबीसी के प्रतिनिधित्व में भी 25 से 100 फीसदी की कमी होगी।

पद – प्रोफेसर

वर्गयदि विश्वविद्यालय को इकाई माना गयायदि विभागवार आरक्षण लागू हुआबदलाव
ओबीसी1344-97
एससी590-100
एसटी110-100
सामान्य732932+27

(साभार : इकोनॉमिक टाइम्स)

इस प्रकार सरकार की तरफ से कोर्ट को यह बताया गया कि विभागवार आरक्षण लागू होने से आरक्षित वर्गों का प्रतिनिधित्व पूरी तरह खत्म होने का खतरा है जबकि सामान्य वर्ग के प्रतिनिधित्व में 25 से लेकर 40 फीसदी तक की वृद्धि है। यह आंकड़ा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि सरकार यह स्वीकार करती है कि आरक्षण का प्रावधान होने के बावजूद आरक्षित वर्गों का प्रतिनिधित्व बहुत कम है।

पद – असिस्टेंट प्रोफेसर

वर्गयदि विश्वविद्यालय को इकाई माना गयायदि विभागवार आरक्षण लागू हुआबदलाव
ओबीसी1167876-25
एससी650275-58
एसटी32372-78
सामान्य732932+27

(साभार : इकोनॉमिक टाइम्स)

अभी हाल ही में इंडियन एक्सप्रेस द्वारा प्रकाशित खबर के मुताबिक देश के 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में एससी वर्ग के प्रोफेसर की संख्या महज 39 (3.47 प्रतिशत), एसटी वर्ग के प्रोफेसर की संख्या महज 8 (0.7 प्रतिशत) और ओबीसी प्रोफेसर की संख्या शून्य है। जबकि सामान्य वर्ग के प्रोफेसर की संख्या 1125 में से 1071 (95.2 प्रतिशत) है। इसी तरह इन विश्वविद्यालयों में एससी वर्ग के एसोसिएट प्रोफेसर की संख्या 130 (4.96 प्रतिशत), एसटी वर्ग के एसोसिएट प्रोफेसर की संख्या 34 (1.30 प्रतिशत) और ओबीसी वर्ग के एसोसिएट प्रोफेसर की संख्या शून्य है। जबकि सामान्य वर्ग के एसोसिएट प्रोफेसर की संख्या 2620 में 2434 (92.90 प्रतिशत) है।

(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें 

मिस कैथरीन मेयो की बहुचर्चित कृति : मदर इंडिया

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार

लेखक के बारे में

एफपी डेस्‍क

संबंधित आलेख

शीर्ष नेतृत्व की उपेक्षा के बावजूद उत्तराखंड में कमजोर नहीं है कांग्रेस
इन चुनावों में उत्तराखंड के पास अवसर है सवाल पूछने का। सबसे बड़ा सवाल यही है कि विकास के नाम पर उत्तराखंड के विनाश...
मोदी के दस साल के राज में ऐसे कमजोर किया गया संविधान
भाजपा ने इस बार 400 पार का नारा दिया है, जिसे संविधान बदलने के लिए ज़रूरी संख्या बल से जोड़कर देखा जा रहा है।...
केंद्रीय शिक्षा मंत्री को एक दलित कुलपति स्वीकार नहीं
प्रोफेसर लेल्ला कारुण्यकरा के पदभार ग्रहण करने के बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की विचारधारा में आस्था रखने वाले लोगों के पेट में...
आदिवासियों की अर्थव्यवस्था की भी खोज-खबर ले सरकार
एक तरफ तो सरकार उच्च आर्थिक वृद्धि दर का जश्न मना रही है तो दूसरी तरफ यह सवाल है कि क्या वह क्षेत्रीय आर्थिक...
विश्व के निरंकुश देशों में शुमार हो रहा भारत
गोथेनबर्ग विश्वविद्यालय, स्वीडन में वी-डेम संस्थान ने ‘लोकतंत्र रिपोर्ट-2024’ में बताया है कि भारत में निरंकुशता की प्रक्रिया 2008 से स्पष्ट रूप से शुरू...