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आदि धर्म समाज का प्रदर्शन और मुक्तमाला का जाप!

जंतर-मंतर का नजारा बदला-बदला था। सफाई कर्मियों की मांगों को लेकर कुछ दलित-संगठनों ने अनूठा प्रदर्शन किया। मीडिया कर्मियों की भेड़िया-धसान भीड़ तो आश्चर्यजनक थी ही, सफाईकर्मियों की मांगें भी दर्शन रत्न ‘रावण’ के जयकारों में गुम हो गईं

25 फरवरी, नई दिल्ली : जंतर-मंतर पर आज कुछ दलित-संगठनों ने एक अनूठा प्रदर्शन किया। कार्यक्रम के मुख्य आकर्षण दर्शन रत्न ‘रावण’ थे, जिनकी पहचान एक सामाजिक कार्यकर्ता के साथ-साथ एक दलित धर्मगुरू के रूप में भी है। उनके अनुयायी ज्यादातर वाल्मिकी समुदाय के हैं। दर्शन रत्न रावण इस समुदाय के बीच शिक्षा के प्रसार के लिए किए गए अपने कामों तथा वाल्मिकी कृत रामायण के पात्र रावण को दलित समुदाय की अस्मिता से जोडने के लिए जाने जाते हैं।


उपरोक्त प्रदर्शन वाल्मिकी आंबेडकर फाउंडेशन, आदि आंबेडकर आंदोलन व आदि धर्म समाज (आधस) के संयुक्त तत्वावधान में किया गया था।

कार्यक्रम की शुरुआत जोरदार नारों से हुई। हजारों की संख्या में जंतर-मंतर आए अनुयायियों ने खड़े होकर पहले मुक्तमाला प्रार्थना का सस्वर पाठ किया। इसके बाद भव्य मंच पर लगभग 50-60 खास कार्यकर्ताओं को जगह देकर बिठाया गया।

इस बीच आदि धर्म समाज के अनुयायी लगातार बैनर लेकर जंतर-मंतर की सड़क पर पुरजोर नारे लगाते रहे। ये नारे लगातार कार्यक्रम के खत्म होने तक लगते रहे। इससे वहीं पर बगल में एक दिवसीय धरना दे रहे आदिवासी समुदाय के लोगों को असुविधा हुई। हालांकि, नारे भले ही अलग थे, लेकिन उनसे  मुझे दस दिन पहले (15 फरवरी,2019) का वह मंजर याद आ गया, जब इसी जंतर-मंतर पर बजरंग दल और विहिप कार्यकर्ताओं द्वारा उन्मादपूर्ण नारे लगाए जाने, पुतले फूंकने और शोर शराबे से वहां पर हो रहे दिल्ली ऑटो चालकों, और कारीगर (आर्टिजन) समुदाय के लोगों के किंचित शांतिपूर्ण और वैचारिक कार्यक्रम में बहुत बाधा पहुंची थी।

आदि धर्म समाज द्वारा आयोजित कार्यक्रम में मंच पर दर्शन रत्न ‘रावण’ के साथ स्वराज अभियान के नेता योगेंद्र यादव व अन्य

बहरहाल, प्रदर्शन में भाग लेने के लिए आदि धर्म समाज (आधस) के प्रमुख दर्शन ‘रत्न’ रावण जैसे ही कार्यक्रम में पहुंचे उनके पांव छूने की अनुयायियों में होड़ लग गई। दर्शन रत्न रावण जी मंच पर जाने से पहले नीचे मैदान पर बैठे अनुयायियों के बीच गए और बारी-बारी से सभी को अपने पांव छूने का सौभाग्य प्रदान किया।

 
इसके बाद वे मंच पर आए। उनके मंच पर पहुंचते ही एनडीटीवी के एंकर ने उन्हें मंच पर आकर धर लिया। मंच का माइक शांत हो गया। आधे घंटे तक बाइट लेने के बाद जब एंकर मंच से नीचे आया तब मंच का माइक फिर से बोला। लेकिन इसके बाद लगातार एक-एक करके मीडिया पर्सन मंच पर आधस प्रमुख की बाइट लेते रहे। तभी स्वराज अभियान के संस्थापक योगेंद्र यादव और शिक्षाविद् पूर्वा भारद्वाज आए। उसके बाद तो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लोगों ने मंच को हाईजैक ही कर लिया। मंच पर कौन बैठा है, यह नीचे बैठे अनुयायियों को नहीं दिखा। दो अधेड़ कार्यकर्ता नीचे से पकड़-पकडकर एक-एक मीडियाकर्मी को ऊपर मंच तक पहुंचा रहे थे।

वहीं, अनुयायियों का काम नारों से चल रहा था। बीच बीच में कोई-कोई बोल बाल जाता था। मंच पर मौजूद मीडिया के काम में खलल पड़ता तो उन्हें चुप करा दिया जाता।

‘रावण हमारे दूसरे आंबेडकर हैं’ नारा लगाने वाले लोगों ने कार्यक्रम की शुरूआत में मुक्तमाला का जाप किया

बहरहाल, योगेन्द्र यादव और पूर्वा भारद्वाज मंच पर ही मीडिया को बाइट देकर विदा हो लिये। उन्हें मंच पर से सुनने का अवसर दूर-दूर से आये अनुयायियों और कार्यकर्ताओं को नहीं मिला।

दर्शन रत्न रावण ने मीडिया को दिये बाइट में कहा कि “हमारी इस कार्यक्रम की तैयारी तीन महीने से चल रही थी। हमने मीडिया सोशल मीडिया और तमाम माध्यमों के जरिये इसका प्रचार किया था। सरकार इससे घबड़ा गई। इसी घबड़ाहट में आज यहां कार्यक्रम करने से पहले कल मोदी ने पांच सफाईकर्मियों का पांव धोकर हमें मुद्दे से भटकाने का स्वांग रचा है।”

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वहीं बीकानेर राजस्थान से आई आधस अनुयायी सरला गोयल ने हमें बताया कि “समाज का सबसे गंदा और घिनौना काम हमको दिया जाता है। सीवरेज और नालों में सिर्फ बाल्मीकि समुदाय के लोग मरे हैं। कभी किसी राजनीतिक पार्टी ने हमें मुख्यधारा से जोड़ने की कोशिश नहीं की। हमारी बहन-बेटियां उनके यहां काम करने जाती हैं तो उनके साथ दुष्कर्म होता है।”

जबकि लखनऊ से आए रवि ने कहा कि “मोदी जी ने कल पैर धोने का नाटक किया। हमें उनसे कहना है कि हमारे पांव मत धोइये, बल्कि हमारे पांव गंदगी से निकालिए।”

अप्रसांगिक और प्रायोजित नारे

कहते हैं कि नारे बहुत कुछ बोलते हैं। भोले-भाले कार्यकर्ता, व अनुगामी बड़े-बड़े भाषण और भारी दर्शन नहीं समझते, उनके लिए नारे गढ़े जाते हैं। वे नारों को लगाते हुए, नारों में विचारों और मागों  व आंदोलन को आगे बढ़ाते हैं। आदि धर्म सभा के मंच से गूंजे कुछ नारे निम्नांकित हैं। इन नारों का समसामयिक राजनीतिक-सामाजिक मुद्दों से दूर-दूर का कोई नाता नहीं दिखता। इन नारों में क्या था, यह आप स्वयं देखें :  

  • ‘बाल्मीकि धर्म का प्रकाश हो’
  • ‘जो बोले सो निर्भय, सृष्टिकर्ता बाल्मीकि की जय’
  • ‘मुक्तमाला की जाप करो, अपनी रक्षा आप करो’
  • ‘गर्व से कहो हम बाल्मीकिन हैं’
  • ‘रावण जी के सोच पे, पहरा देंगे ठोक के’
  • ‘रावण हमारे दूसरे आंबेडकर हैं’

बहरहाल, आधस कार्यकर्ताओं व अधिकारियों के अनुसार सरकार ने उनकी प्रमुख मांगे इस प्रकार हैं :

  1. सीवर साफ करने के लिए जहां तक संभव हो, किसी भी आदमी को सीवर में न उतारा जाए।
  2. न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता (कक्षा 5 या 8) निर्धारित कर सीवर में पायी जाने वाली गैसों की जानकारी, उनकी ज्वलनशीलता, और बचाव के उपायों की तकनीकी प्रशिक्षण दी जाय और प्रमाण पत्र दिया जाय।
  3. सीवर मैन और सफाई कर्मचारी की भर्ती के साथ ही मेडिक्लेम प्रारंभ हो जाना चाहिए। सीवर मैन का पहचान पत्र ही हर सरकारी व निजी हॉस्पिटल में आश्रित  मां-बाप व नाबालिग बच्चों के पूरे बिल की अदायगी कर सके।
  4. देश के सभी सैनिक स्कूलों में सीवर मैन व सफाई कर्मचारियों के बच्चो को प्राथमिकता के आधार पर दाखिला दिया जाय।

इनके अलावा  प्रदर्शन के दौरान कुछ मांगे और रखी गईं, मसलन :  

  • 13 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम को तुरंत रद्द किया जाय।
  • आरक्षण का कोटा (बैक-लॉग) पूरा भरा जाये और तब तक सामान्य भर्ती बंद की जाय।
  • सुप्रीम कोर्ट सहित फौज के तीनों अंगों में हर तरह के यूनिट में आरक्षण व्यवस्था लागू की जाय।
  • प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण लागू किया जाय।

इस प्रकार, सुबह 10 बजे शुरू हुआ कार्यक्रम अपराह्न 3 बजे तक चला। लगभग 3 बजे मौसम ने अचानक करवट ली और बूंदाबांदी होने लगी। बूंदाबांदी के बीच ही कार्यक्रम का समापन किया गया। भीड़ के साथ-साथ मांगे भी बिखरती चली गईं। वहां आए लोगों के जेहन में अगर कुछ रह गया होगा तो शायद वह यह नारा ही होगा कि – “रावण हमारे दूसरे आंबेडकर हैं”। गुजरती हुई भीड के साथ-साथ वहां से निकलते हुए मुझे लगा कि कुछ समय पहले लगाए जा रहे एक अन्य नारे की पैरोडी ठंडी हवा में गूंज रही है “मुक्तमाला की जाप करो, फुले-आंबेडकरवाद को साफ करो”!

(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)

[परिवर्धित : 25. 02. 2019 : 8.15 PM]


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सुशील मानव

सुशील मानव स्वतंत्र पत्रकार और साहित्यकार हैं। वह दिल्ली-एनसीआर के मजदूरों के साथ मिलकर सामाजिक-राजनैतिक कार्य करते हैं

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