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कानून मंत्री ने सवर्ण आरक्षण के लिए संविधान का दिया गलत हवाला : जस्टिस ईश्वरैया

सुप्रीम कोर्ट ‘सुप्रीम’ नहीं है। सुप्रीम कोर्ट को पहले राजस्थान हाईकोर्ट परिसर में लगे मनु की मूर्ति के बारे में पूछना चाहिए। हाईकोर्ट में मनु की मूर्ति का होना न्याय के गाल पर तमाचा है। यह बात संविधान बचाओ संघर्ष समिति के बैनर तले आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रो. रतन लाल ने कही

संविधान बचाओ संघर्ष समिति ने प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में 9 फरवरी 2019 को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया। प्रेस कान्फ्रेंस में केंद्र सरकार द्वारा संविधान की जगह मनुवादी विचारधारा को लोगों पर थोपने की कड़ी निंदा की गई। साथ ही एससी, एसटी, ओबीसी के आरक्षण के खिलाफ सवर्ण आरक्षण लागू करने की चाल को दबे-कुचले वर्गों के आरक्षण को खत्म करने के खिलाफ साजिश करार दिया। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में संविधान विशेषज्ञों, राजनीतिज्ञों समेत अनेक लोगों ने भाग लिया। मुख्य वक्ताओं के तौर पर कॉन्फ्रेंस को बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक डॉ. अनिल जयहिंद, बामसेफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष वामन मेश्राम, आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस वी. ईश्वरैय्या, राजद सांसद मनोज झा, डॉ. राजेश पासवान,  डॉ. रतन लाल, डॉ. सूरज मंडल, योगेन्द्र पीडी यादव आदि ने संबोधित किया।

कानून मंत्री ने संसद को किया गुमराह

जस्टिस वी. ईश्वरैय्या ने कहा- “बड़े खेद की बात है कि 10 प्रतिशत सवर्ण आरक्षण को मायावती और मुलायम ने भी सपोर्ट किया। ओबीसी को आरक्षण मिलने से पहले उनका प्रतिनिधित्व कहीं नहीं था। संविधान में आरक्षण समानता लाने और भेदभाव को खत्म करने के लिए किया गया था। कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने 10 प्रतिशत सवर्ण आरक्षण के लिए संसद में अनुच्छेद-46 का गलत हवाला देकर पढ़ा कि अनुच्छेद-46 उच्च शिक्षा और राज्य के रोजगार में हिस्सा लेने का अधिकार देता है। कानून मंत्री संसद को गुमराह करते हैं। यह द्रोपदी की तरह भरी सभी में संविधान का चीर हरण जैसा है। जबकि, अनुच्छेद-46 कहता है  कि एससी, एसटी और दूसरे कमजोर तबकों के शैक्षणिक और आर्थिक हितों को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार को उनका विशेष खयाल रखकर उन्हें सामाजिक अन्याय और सभी तरह के शोषण से बचाना होगा’। सरकार बताएगी कि सवर्णों के साथ कौन-सा सामाजिक अन्याय और सामाजिक शोषण हुआ है? इंदिरा साहनी केस के वक्त भी सुप्रीम कोर्ट ने यही बोला था। लेकिन आज सुप्रीम कोर्ट उनकी जेब में है। कोर्ट से न्याय मिलना मुश्किल है। एजुकेशन उनकी जेब में है। हेल्थ प्राइवेट सेक्टर के पास है। तो धीरे धीरे हर चीज एससी, एसटी, ओबीसी और वंचितों की पहुंच से बाहर की जा रही है। आरक्षण हमेशा से आरएसएस के निशाने पर रहा है, 13 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम और 10 प्रतिशत सवर्ण आरक्षण उसी दिशा में उठाया गया कदम है।”

संविधान बचाओ संघर्ष समिति द्वारा आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में उपस्थित वक्ता

सुप्रीम कोर्ट की खबर नहीं छापता मीडिया

बामसेफ के अध्यक्ष वामन मेश्राम ने कहा- “एससी, एसटी को उनकी संख्या के आधार पर आरक्षण दिया गया है, तो इसका अर्थ है कि संविधान संख्या के सिद्धांत को स्वीकार करता है। फिर तो ओबीसी को भी उनकी संख्या के आधार पर आरक्षण देना चाहिए। यह इक्वलिटी बिफोर लॉ का उल्लंघन है।”

प्रेस कॉन्फ्रेंस में वक्तव्य देते बामसेफ के अध्यक्ष वामन मेश्राम

उन्होंने कहा- “सुब्रमण्यम स्वामी ईवीएम के मुद्दे को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट गए थे। दिल्ली हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग की बात मानी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनकी बात मान ली कि ईवीएम फुलप्रूफ नहीं है। और 8 अक्टूबर 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि ईवीएम के आधार पर फ्री और फेयर चुनाव नहीं हो सकता। अतः वीवीपैट मशीन का इस्तेमाल हो’, लेकिन एक भी मीडिया संस्थान ने सुप्रीम कोर्ट की खबर नहीं छापी।”


उन्होंने कहा-  “सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में यह भी कहा था कि विवाद की स्थिति में पेपर ट्रैल की री-काउंटिंग हो। पर कई जगह विवाद के बाद भी पुनर्गणना नहीं की गई। ईवीएम से चुनाव में सर्वोच्च न्यायालय के 2013 आदेशानुसार किसी भी विवाद में  वीवीपैट पेपर ट्रैल (मशीन से निकलने वाली पर्ची) को गिनने का प्रावधान इसी वर्ष (2019)से लागू किया जाए। चुनाव आयोग लगातार 2013 इस आदेश की अवेहलना कर रहा है। इसलिए हम चाहते हैं कि हर जगह पेपर ट्रैल का इस्तेमाल और रिकाउंटिंग सुनिश्चित किया जाए। अगर हमारी बात नहीं सुनी गई तो हम जेल भरो आंदोलन शुरू करेंगे।”

आरक्षण के खात्मे का टूल है 13 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम

राजेश पासवान ने कहा- “अकादमिक दुनिया को अलोकतांत्रिक बनाने की प्रक्रिया चल रही है। आप उन लोगों से पूछिए, जिन्होंने यूनिवर्सिटी में पढ़ाई तब की, हो जब वहां पर उनकी जाति के प्रोफेसर नहीं होते थे, तब उनके साथ कैसा बर्ताव हुआ था। अकादमिक मठाधीशी को तोड़ने के कोशिश के तहत ही आरक्षण लागू किया गया। 13 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम पर यह शे’र बिलकुल मुफीद बैठता है कि

यार तुम भी ग़ज़ब के सय्याद हो

पर कतर के कह दिया आजाद हो

यह विडबंना ही है कि आरक्षण लागू करने के लिए जो तकनीकी (13 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम) है, वही आरक्षण खत्म करने की टूल बन गई।”

प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपनी बात रखते प्रो. रतन लाल

दरअसल जनेऊ-लीला है सवर्ण आरक्षण

प्रो. रतन लाल ने कहा- “सुप्रीम कोर्ट ‘सुप्रीम’ नहीं है। सुप्रीम कोर्ट को पहले राजस्थान हाईकोर्ट परिसर में लगे मनु की मूर्ति के बारे में पूछना चाहिए। क्या मनु इन-जस्टिस का प्रतीक है? हाईकोर्ट में मनु की मूर्ति का होना न्याय के गाल पर तमाचा है। यह सरकार मनु के विधान में विश्वास करती है, संविधान में नहीं। उनके लिए ही हमने संविधान बचाओ समिति गठित की है। हम 2019 में इसे राजनीतिक मुद्दा बनाएंगे। सवर्ण आरक्षण दरअसल जनेऊ-लीला है। यह विशुद्ध जातीय आरक्षण है। हिंदू राष्ट बनाने की ओर यह पहला कदम है। 13 प्वाइंट रोस्टर पर हमारी आंशिक जीत हुई है। 13 प्वाइंट रोस्टर सामाजिक न्याय की हत्या है। लोहिया ने कहा था कि ‘जब सड़कें सूनी होती हैं, तो संसद आवारा हो जाती है।’ 13 प्वाइंट रोस्टर को लेकर हम लगातार सड़कों पर हैं, यह अच्छी बात है।”

पत्रकारों के सवालों का जवाब देते सांसद मनोज झा

बंच ऑफ थॉट से रिप्लेस किया जा रहा संविधान

आरजेडी सांसद मनोज झा ने कहा- “पिछले पांच साल में एक किताब की चर्चा लगातार हुई है। बंच ऑफ थॉट हमारे संविधान को रिप्लेस करने जा रही है। यह कोई अतिशयोक्ति नहीं है। संविधान में उसकी आत्मा स्वीकार की जाएगी और लोग टेबल थपथपाएंगे। काशी विश्वनाथ मंदिर में दलितों के प्रवेश को लेकर गोलवलकर ने लिखा था कि ‘दलितों के मंदिर प्रवेश पर सवर्णों का गुस्सा स्वाभाविक ही है।’ वो रोशनदान से घुसे हैं और पूरा आरक्षण खत्म कर देंगे। इसकी शुरुआत रोहित वेमुला से हुई है। रोहित वेमुला का खत जिंदा दस्तावेज है। रोहित प्रतीक था, करोड़ों ज़िंदगियों का। रोहित ने लिखा है- ‘मेरी जिंदगी एक घातक दुर्घटना है।’ एक खास वर्ग या जाति के लोगों की जिंदगी घातक दुर्घटना क्यों है? उसके मरने के बाद उसकी जाति पहचानने के लिए एक कमेटी बनाई गई। इसके बाद एससीएसटी एक्ट को डायल्यूट किया जाता है। इसीलिए, जो चीज संविधान सम्मत नहीं है, वह हमें स्वीकार नहीं है।”

(कॉपी संपादन : प्रेम बरेलवी)


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लेखक के बारे में

सुशील मानव

सुशील मानव स्वतंत्र पत्रकार और साहित्यकार हैं। वह दिल्ली-एनसीआर के मजदूरों के साथ मिलकर सामाजिक-राजनैतिक कार्य करते हैं

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