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प्रियंका गांधी का द्विज-शो और मीडिया

यह सवाल बेमानी है कि यदि महिला किसी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या फिर अन्य पिछड़ा वर्ग की होती तो क्या तब भी मीडिया का व्यवहार यही होता और वह समाज जो प्रियंका की आगवानी कर रहा था, वह तब भी ऐसे ही फूल बरसाता

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में 11 फरवरी 2019 को प्रियंका गांधी का रोड शो हुआ। वाकई दृश्य वैसा ही था जिसका अनुमान पूर्व में लगाया जा रहा था। कांग्रेस की ऐसी परंपरा भी रही है। राजनीतिक चुनाव में रोड शो की परंपरा कोई नई बात तो है नहीं। ऐसा नरेंद्र मोदी भी 2013 से लगातार कर रहे है। दोनों में कोई फर्क नहीं है। लेकिन प्रियंका गांधी के रोड शो में जो हुआ, वह बहुत खास रहा।

द्विज मीडिया अचानक रातों-रात ‘आक्रामक हिंदुत्ववादी संघी मीडिया’  का चोला फेंक प्रियंका की स्तूति करने लगा। यह एक नया दृश्य था। वह भी तब जबकि नरेंद्र मोदी भी उत्तर प्रदेश में ही थे और मीडिया को मानों इसकी कोई खबर ही नहीं थी। उसके लिए तो जैसे केवल प्रियंका थीं। इससे यह स्पष्ट है कि यह मीडिया सिर्फ द्विजों के लिए है। द्विज मीडिया के लिए कांग्रेस और बीजेपी में अंतर नहीं है।

कहने की जरूरत नहीं है कि इसी द्विज मीडिया ने वंचित तबके के नेताओं को किस तरह से अपमानित किया है। कारपोरेट फंडिंग और जाति के प्रति लगाव सवर्णों की खासियत है। प्रियंका को इसका लाभ मिल रहा है।

11 फरवरी 2019 को लखनऊ में रोड शो के दौरान प्रियंका गांधी

रोड शो वेल मैनेज्ड इवेंट था। साथ में खड़े राहुल गांधी और फूलों की वर्षा। मानों सवर्ण वंदना कर रहे हों। होडिंग आदि में प्रियंका को दुर्गा के रूप में दिखाया गया। सवाल उठता है कि कांग्रेस और भाजपा अलग कैसे है?

रोड शो और प्रियंका का वीभत्स महिमामंडन दर्शाता है कि कैसे सवर्ण समाज एक सवर्ण महिला की आगवानी आगे बढ़कर कर रहा था। यहां यह सवाल बेमानी है कि यदि महिला किसी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति या फिर अन्य पिछड़ा वर्ग की होती तो क्या तब भी मीडिया का व्यवहार यही होता और वह समाज जो प्रियंका की आगवानी कर रहा था, वह तब भी ऐसे ही फूल बरसाता? क्या ये वही लोग नहीं हैं जो केरल के सबरीमाला मंदिर में रजस्वला महिलाओं के प्रवेश का विरोध कर रहे हैं।


 आइए, इसी को विचारते हैं। यह पहली मर्तबा नहीं है जब इस तरह की भीड़ उमड़ी हो। सवर्ण समुदाय की संख्या भले ही बहुत कम हो, परंतु वे यह जानते हैं कि अपने सामाजिक फायदे के लिए किस अवसर का उपयोग किस तरह से करना है। वे इसके लिए पूरी रणनीति बनाते हैं। मतलब यह कि ब्राह्मण आपको कांग्रेस में भी मिलेंगे और भाजपा में भी। वे समाजवादी पार्टी में भी होंगे और यहां तक कि बहुजन समाज पार्टी में भी। वे अपने लिए हर फोरम का उपयोग करना जानते हैं। अभी 200 प्वाइंट रोस्टर वाले मामले में वे दिलचस्पी दिखा रहे हैं। जाहिर तौर पर इसमें भी उनका हित ही होगा। वर्ना ये तो वही लोग हैं जो आरक्षण का विरोध करते थे (आर्थिक आाधार पर 10 फीसदी आरक्षण मिलने से पहले)।

लखनऊ में कांग्रेस द्वारा लगाए गए होर्डिंगों में प्रियंका गांधी को दुर्गा के रूप में दिखाया गया

प्रियंका के रोड शो से ट्विटर के आंकड़े भी बदले। प्रियंका के रोड शो के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फॉलोअर्स की संख्या 88 हज़ार की कमी हो जाती है और उधर प्रियंका के अकाउंट में बढ़ोतरी हुई। इससे भी आपको इस वर्ग के चरित्र का अंदाज हो जाएगा। सवर्ण वर्ग को विश्वास है कि बीजेपी ने ऐसा कोई काम नहीं किया जिसे कांग्रेस ने नहीं किया था और कांग्रेस बीजेपी के ही काम को आगे बढ़ाएगी। यानी दोनों ही सूरतों में सवर्णों का हित है।

यह देखना दिलचस्प होगा कि अब तक नमो-नमो जपने वाली सवर्ण मीडिया और कितनी गुलाटियां मारती है। 360 डिग्री की पलटी तो हमें अभी से नज़र आ रही है।

बहरहाल, बहुजन सचेत और जागृत रहें। द्विजों के इस जाल में न फंसें। आधी से ज्यादा बर्बादी तो हो चुकी। अब क्या धाराशायी होने की राह देख रहा है बहुजन समाज?

(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


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लेखक के बारे में

मनीषा बांगर

डॉ. मनीषा बांगर पेशे से चिकित्सक और पीपुल पार्टी ऑफ इंडिया-डी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। वे हैदराबाद के डेक्कन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज में गेस्ट्रोएंटेरोलोजी व हेपेटोलोजी की एसोसिएट प्रोफेसर हैं। पिछले एक दशक में उन्हें भारत और विदेश में अनेक विश्वविद्यालयों व मानवाधिकार और फुले-आंबेडकरवादी संगठनों व संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा लैंगिक समानता, स्वास्थ्य व शिक्षा से लेकर जाति व फुले, पेरियार और आंबेडकर जैसे विषयों पर अपने विचार रखने के लिए आमंत्रित किया जाता रहा है।

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