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विमुक्त व घुमंतू जनजातियों के लिए इदाते कमीशन की सिफारिशें

अंग्रेजों द्वारा दिया गया क्रिमिनल टैग भले ही आजादी के बाद सरकारी दस्तावेजों में खत्म हो गया, लेकिन सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर विमुक्त, धुमंतू और अर्द्ध-घुमंतूओं के साथ आज भी वहीं व्यवहार किया जा रहा है। हालांकि केंद्र सरकार द्वारा गठित इदाते कमीशन ने अपनी रिपोर्ट दे दी है, परंतु सवाल जस के तस ही हैं

जातिवार जनगणना 2011 के अनुसार भारत में विमुक्त एवं घुमंतू जनजाति की संख्या 15 करोड़ है। यह विशाल समुदाय भारत की आजादी के बाद भी आज तक सामाजिक न्याय से पूरी तरह वंचित एवं विकास की धारा से कोसों दूर है। विमुक्त जनजातियों के साथ जो उपेक्षा सरकारों यहां तक कि सामाजिक न्याय के ध्वजवाहकों ने की है, वह वास्तव में चिंता और चिंतन का विषय है। आखिर कौन हैं विमुक्त जनजातियां और इन्हें विकास की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए क्या उपाय किए जाएं, इसे लेकर भारत सरकार द्वारा कई कमेटियों व आयोगों का गठन किया जा चुका है। इनमें से एक इदाते कमीशन भी शामिल है।

इस कमीशन ने अपनी रिपोर्ट सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय को 8 जनवरी 2018 को सौंप दी थी। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार ने इदाते आयोग की बीस सूत्री सिफारिशों पर संबंधित 22 मंत्रालयों, आयोगों, डीएनटी विषय के विशेषज्ञों एवं समस्त राज्य सरकारों तथा नीति आयोग से राय मांगी है।

बताते चलें कि ब्रिटिश हुकूमत ने जिन कट्टर सशस्त्र विद्रोही समुदायों को क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट, 1871 के तहत जन्मजात अपराधी घोषित कर दिया था और भारत सरकार ने आजादी के 5 वर्ष बाद 31 अगस्त 1952 को ब्रिटिश हुकूमत के काले कानून क्रिमिनल ट्राईब्स एक्ट से मुक्त कर दिया था, अब वे विमुक्त जनजातियां कहलाती हैं। अंग्रेजों की प्रसारवादी नीतियों के विरुद्ध स्थानीय कृषक जातियों/जनजातियों ने अपने-अपने स्तर और क्षमता के अनुसार सशस्त्र विद्रोह किये थे। किन्तु इतिहास की पुस्तकों में उन्हें वह स्थान नहीं मिला जो उन्हें मिलना चाहिए था।

राष्ट्रीय घुमंतू, अर्द्ध-धुमंतू जनजाति आयोग के अध्यक्ष भीकू रामजी इदाते

पूर्व में भी भारत सरकार ने कुछ आयोग एवं कमेटियों का गठन किया था। उन्होंने भी यह माना था कि विमुक्त समुदाय एक विशिष्ट वर्ग है, जिन्हें ब्रिटिश विद्रोह के कारण जन्मजात अपराधी के रूप में कलंकित होना पड़ा। उन्होंने यह भी माना कि इनके उत्थान के लिए उपाय किए जाने चाहिए। विभिन्न शोधकर्ता, इतिहासकार एवं विद्वान स्पष्टत: यह स्वीकार करते हैं कि विमुक्त जातियां ब्रिटिश हुकूमत की सशस्त्र विद्रोही थी, ये वास्तविक स्वातंत्र्य योद्धा थे। इनके ऊपर जन्मजात अपराधी होने का कलंक लगाना अमानवीय है। ये समुदाय ब्रिटिश सरकार की नज़र में अपराधी हो सकते हैं, किंतु भारत के लिए वास्तविक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ही थे। जबकि घुमंतू जनजातियाँ भारतीय (हिन्दू) संस्कृति की रक्षक थीं और आज भी हैं। घुमंतू समुदाय गाड़िया लोहारों के त्याग, वलिदान और दृढ प्रतिज्ञ हिन्दू संस्कृति के महान रक्षकों को कौन नहीं जानता? आज उनकी स्थिति बद से बदतर है। परंतु, इसके बावजूद अधिकांश प्रांतीय सरकारें उन्हें अपने प्रान्त का नागरिक भी नहीं मानतीं।

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ऐतिहासिक दृष्टिकोण से देखें तो विश्व के लगभग 53 देशों में अंग्रेजों का शासन था, लेकिन क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट केवल भारत में लागू किया गया था। इसकी पृष्ठभूमि में अंग्रेजों की धारणा यह थी कि जिस तरह से भारत में जातिगत व्यवसाय होते हैं, जैसे लोहार का लड़का लोहार होता है, बढ़ई का लड़का बढ़ई होता, है चिकित्सक का लड़का चिकित्सक होता है, इसी तरह अपराधी का संतान भी अपराधी ही होता है। इसलिए भारत की लड़ाकू जातियों की संतानों को भी अनिवार्य रूप से जन्मजात अपराधी मान लिया गया था। क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट इन्क्वायरी कमेटी (अय्यंगर कमेटी- 1949-50) ने अपना अभिमत व्यक्त किया है कि क्रिमिनल ट्राईब्स को दो भागों में बांटा जा सकता है। एक वह है जो एक ही स्थान पर निवास करते थे और आवश्यकता पड़ने पर ये लोग युद्ध किया करते थे, इनमें से कुछ को आक्रमणों के कारण अपने मूल स्थान से विस्थापित भी होना पड़ा था। दूसरे जिप्सियों की भांति घुमंतू थे जैसे सांसी, कंजर, नट आदि। साथ ही अन्य जनजातियां जो काम की तलाश में या भिक्षाटन के लिए भटकती रहती थी, जैसे बेलदार, बंजारा आदि।

राष्ट्रीय विमुक्त, घुमंतू एवं अर्ध घुमंतू जनजाति आयोग (इदाते कमीशन) की मुख्य सिफारिशें :

  1. स्थायी आयोग का गठन : विमुक्त एवं घुमंतू जनजातियां भारत में सर्वाधिक पिछड़े सर्वाधिक वंचित और सर्वाधिक उपेक्षित समुदाय हैं। यद्यपि इनमें से कुछ अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति या ओबीसी में शामिल हैं किंतु उन्हें आरक्षण का कोई लाभ नहीं मिला, जो मिलना चाहिए था। उनकी आवाज को हमेशा अनसुना किया जाता है फिर भी पिछले कुछ आयोग/समितियों ने इन समुदायों की स्थिति में सुधार करने के लिए बहुत सी सिफारिशें की थीं। किंतु स्थायी आयोग न होने के कारण कोई प्रभावी अनुश्रवण नहीं हो सका। साथ ही पूर्व के आयोगों/समितियों की सिफारिशों को लागू नहीं किया गया। इसलिए यह आयोग पहली सिफारिश यह करता है कि इन समुदायों के लिए स्थायी आयोग का गठन किया जाय, जिसमें विमुक्त-घुमंतू समुदाय के प्रभावशाली नेता को अध्यक्ष और भारत सरकार के सचिव या अवर सचिव स्तर के सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी को आयोग का सचिव बनाया जाय और दो ऐसे व्यक्तियों को सदस्य बनाया जाए जो प्रशासनिक विज्ञानी व समाजशास्त्री या प्रोफेशनल सामाजिक कार्यकर्ता हों। इस आयोग को वैधानिक दर्जा दिया जाय और अध्यक्ष सदस्यों का कार्यकाल उपयुक्त रूप से निर्धारित किया जाय और इस कमीशन को विमुक्त घुमंतू समुदायों के प्रत्यावेदन और शिकायतें समस्याएं सुनने का अधिकार हो।
  2. प्रत्येक राज्य में विभाग और निदेशालय का गठन किया जाए : जिस तरह से अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए प्रत्येक राज्य में पृथक विभाग और निदेशालय गठित किए गए हैं, ठीक उसी तरह विमुक्त एवं घुमंतू जनजातियों के लिए निदेशालय विभाग गठित किए जाएं। यहां यह प्रश्न उठता है कि अधिकांश विमुक्त एवं घुमंतू जनजातियां अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति में शामिल हैं फिर अलग से क्यों? यहां पर यह स्पष्ट कर देना जरूरी है कि बहुत सी विमुक्त एवं घुमंतू जनजातियां किसी भी वर्ग में नहीं हैं और जो हैं भी उन्हें विभाग और निदेशालय से कोई लाभ नहीं मिलता है, इसलिए विमुक्त घुमंतू जातियों के लिए प्रत्येक राज्य में शिक्षा निदेशालय विभाग का गठन किया जाय।
  3. विसंगतियों का हटाया जाना : कुछ विमुक्त घुमंतू समुदाय ऐसे हैं जो किसी आरक्षित श्रेणी में नहीं हैं। अत: यह कमीशन सिफारिश करता है कि ऐसे समुदायों को कम से कम प्रथम दृष्टया ओबीसी में शामिल किया जाए। जबकि कुछ समुदाय ऐसे हैं जो एक प्रांत में अनुसूचित जाति में तो किसी दूसरे प्रांत में अनुसूचित जनजाति में या ओबीसी में शामिल हैं। इस विसंगति को दूर करने के लिए यह कमीशन सिफारिश करता है कि एथनोग्राफिक स्टडी के आधार पर इन समुदायों को एक समान श्रेणी में सम्मिलित किया जाय।
  4. जनगणना : जातिवार जनगणना 2011 के आंकड़े प्रकाशित किए जाएं और विमुक्त तथा घुमंतू जातियों की संख्या की गणना करके उनकी संख्या बताई जाय ताकि उनके विकास एवं उत्थान के लिए उचित योजनाएं बनाई जा सकें। साथ ही आगामी 2021 की जनगणना में जातियों विशेषकर विमुक्त एवं घुमंतू समुदायों की जनगणना की जाए तभी हम इन वंचित समुदायों की सही सामाजिक आर्थिक स्थिति को मालूम कर सकते हैं जिसके आधार पर उनके लिए योजनाएं बनाई जा सकती हैं।
  5. पर्याप्त राजनीतिक भागीदारी : विमुक्त एवं घुमंतू समुदाय की आवाज को प्राय: इसलिए अनसुना किया जाता है, क्योंकि इन समुदायों में राजनीतिक भागीदारी का नितांत अभाव है. इसलिए आयोग सिफारिश करता है कि राष्ट्रपति महोदय, राजसभा के लिए एवं राज्यपाल महोदय, राजकीय विधान परिषद में कम से कम एक एक प्रतिनिधि मनोनीत करें.
  6. संवैधानिक संरक्षण : विमुक्त एवं घुमंतू जातियों को सामाजिक कलंक उत्पीड़न एवं बहिष्कार झेलना पड़ता है। इन समुदायों को एक सशक्त संवैधानिक संरक्षण और विधिक सुरक्षा की आवश्यकता है, इसलिए यह कमीशन सिफारिश करता है कि इन समुदायों को संवैधानिक संरक्षण प्रदान किया जाए साथ ही इन्हें प्रोटेक्शन ऑफ एट्रोसिटी एक्ट के दायरे में लाया जाए। इसके लिए तीसरा शेड्यूल जैसे शेड्यूल डिनोटिफाइड, नोमैडिक एंड सेमी नोमैडिक ट्राइब्स बनाया जाय।
  7. उप कोटा : यदि घुमंतू एवं अर्द्ध-घुमंतू समुदायों को रोजगार एवं सेवाओं में आरक्षण देने के लिए प्रथक शेड्यूल न बनाया जा सके ऐसी स्थिति में यह कमीशन सिफारिश करता है कि शेड्यूल कास्ट, शेड्यूल ट्राइब और ओबीसी कोटा के अंतर्गत ही इन समुदायों के लिए पृथक उपश्रेणी बनाई जाय। अभी भारत सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग के उपवर्गीकरण की जांच हेतु एक 5 सदस्यीय आयोग का गठन किया है, जो ओबीसी कोटा को उपश्रेणियों में विभाजित करेगा ताकि वंचित समुदायों को भी आरक्षण का लाभ मिल सके।
  8. विमुक्त एवं घुमंतू समुदायों की पहचान उनका सूचीकरण एवं परिभाषा : विमुक्त एवं घुमंतू जनजातियों की पहचान एवं परिभाषा और उनका सूचीकरण, प्रत्येक राज्य में एक समान नहीं है। यहां तक कि जो घुमंतू जनजातियां अनेक वर्षों से उस राज्य विशेष में वर्षों से निवासरत हैं उन्हें भी वह राज्य अपने यहां का नागरिक नहीं मानते। इसलिए कमीशन यह सिफारिश करता है कि यदि कोई समुदाय ब्रिटिश भारत के किसी तत्कालीन प्रोविंस या प्रेसिडेंसी के किसी भाग में बतौर जन्मजात अपराधी नोटिफाई किया गया था उसे समस्त भारत के उन सभी प्रांतों में जहां पर वे निवासरत हों, उन्हें विमुक्त जाति का दर्जा दिया जाय। इसी तरह से बहुत सी घुमंतू जनजातियां हैं जो कई वर्षों से एक राज्य में रह रही हैं लेकिन वह राज्य सरकार उनको अपने यहां का नागरिक नहीं मानती हैं। इसलिए उन्हें घुमंतू जनजाति का दर्जा भी नहीं मिलता। इसलिए यह कमीशन यह सिफारिश करता है जो भी घुमंतू जनजातियां जिस किसी भी प्रांत में एक निर्धारित समय सीमा से रह रही हो उन्हें घुमंतू जनजाति का दर्जा दिया जाय और वहां की जाति/जनजाति कि सूची में शामिल किया जाय।[1]
  9. कलंकीकरण एवं उत्पीड़न से बचाव : इन समुदायों के ऊपर अभी भी अपराधी होने का कलंक लगा हुआ है, और इसी आधार पर इनका सामाजिक बहिष्करण व उत्पीड़न किया जाता है। नस्लीय भेदभाव को समाप्त करने के लिए संयुक्त राष्ट्र की कमेटी (सीआरईडी-2007) ने भी माना था कि भारत में जो समुदाय क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट 1871 के तहत अपराधी घोषित किए गए थे, उनके ऊपर आज भी हैबिचुअल ऑफेंडर्स एक्ट के तहत उनके ऊपर अपराधी होने का कलंक लगा हुआ है। उनके बच्चों के साथ विद्यालयों में भेदभाव किया जाता है, महिलाओं को परेशान किया जाता है, इसलिए यह कमीशन सिफारिश करता है कि जिन राज्यों में हैबिचुअल ऑफेंडर्स एक्ट लागू है, उसे समाप्त किया जाय।
  10. जागरूकता अभियान : सामान्य जनता एवं निर्वाचित प्रतिनिधि, प्रशासक, पुलिस एवं मीडिया को विमुक्त घुमंतू जनजातियों के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है, इसलिए इन वंचित समुदायों के प्रति इनकी कोई हमदर्दी नहीं रहती और न ही इनके मामलों को कोई समझना ही चाहता है। चूंकि इन समुदायों में इनकी ‘आवाज’ उठानेवाला कोई नहीं है, और इनमें राजनीतिक संघर्ष क्षमता की भी कमी है, इसलिए वे ज्यादातर लोगों की ‘मानसिक चेतना’ का हिस्सा भी नहीं बनते हैं। इन समुदायों के प्रति जनता की सोच रूढ़िवादी और औपनिवेशिक पूर्वाग्रहों से प्रभावित है। इसलिए विमुक्त एवं घुमंतू समुदायों द्वारा सामना किए जाने वाले मुद्दों और समस्याओं के बारे में निर्वाचित प्रतिनिधियों, प्रशासकों, पुलिस और मीडिया सहित आम जनता में जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है। जिस तरह से स्वच्छ भारत एवं अन्य योजनाओं के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारें इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिंट मीडिया में 30 से 1 मिनट तक का विज्ञापन जारी करती हैं, उसी तरह से विमुक्त एवं घुमंतू समुदाय के प्रति जन-सामान्य को जागरूक करने के लिए दूरदर्शन एवं अन्य टीवी चैनल के माध्यम से जन-सामान्य के बीच में प्रचार-प्रसार किया जाना चाहिए। आईएएस अधिकारियों एवं राज्य सिविल सेवा के अधिकारियों को विमुक्त एवं घुमंतू संवेदनशील किया जाना आवश्यक है। नेशनल काउंसिल फॉर एजुकेशन रिसर्च एंड ट्रेनिंग और स्टेट स्कूल बोर्डों को विमुक्त समुदायों के इतिहास को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए।
  11. मुख्यधारा में समाहित किए जाने हेतु नीतिगत उपायों में विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। जैसे- वोटर कार्ड, आधार कार्ड, पीडीएस कार्ड. ओल्ड पेंशन और संबंधित पेंशन, बीपीएल सर्टिफिकेट जारी करने वाले अधिकारियों को विमुक्त एवं घुमंतू समुदायों के प्रति संवेदनशील बनाए जाने पर जोर दिया जाय।
  12. विमुक्त एवं घुमंतू समुदायों को विशेष अनुदान सहायता : विमुक्त एवं घुमंतू समुदायों को विशेष आर्थिक सहायता दिए जाने हेतु यह आयोग सिफारिश करता है कि न्यूनतम दस हज़ार करोड़ रुपए की धनराशि केंद्र सरकार राज्यों को आवंटित करें।
  13. विमुक्त एवं घुमंतू जनजातियां जागरुक नहीं है इसलिए इनको सहायता प्रदान करवाने हेतु केंद्र एवं राज्य सरकारें उपयुक्त मध्यस्थों की पहचान करें।
  14. विमुक्त एवं घुमंतू समुदायों को मुख्यधारा में लाने के लिए जरूरी है कि उन्हें उपयुक्त और जरूरी शिक्षा मुहैया कराई जाय। विशेषकर घुमंतू समुदाय बच्चों के लिए उनकी कितनी आबादी वाले जगहों पर प्राइमरी स्कूल खोले जाएं, उनके अभिभावकों एवं माता-पिता को प्रेरित किया जाए कि वे अपने बच्चों को स्कूल जरूर भेजें। विमुक्त और घुमंतू समुदायों के बच्चों के लिए निशुल्क शिक्षा, निशुल्क भोजन, निशुल्क पुस्तकें आदि दी जाएं एवं छात्रवृत्ति प्रदान की जाय।
  15. स्वास्थ्य : विमुक्त एवं घुमंतू समुदाय स्वास्थ्य के प्रति इतना जागरुक नहीं है जितने कि अन्य समुदाय के लोग। इसलिए इन समुदायों के मध्य जागरूकता अभियान चलाए जाएं। टीकाकरण, इम्यूनाइजेशन एवं दवाइयों के वितरण के कार्यक्रम तथा परिवार नियोजन और गर्भवती महिलाओं को दवाएं एवं पोषक आहार का वितरण सुनिश्चित की जाय। नियमित रूप से उनके स्वास्थ्य आदि की जांच की जाय। नियमित अंतराल पर चिकित्सकों एवं स्वास्थ्य कर्मियों की टीम उनकी बस्तियों में जाकर आवश्यक जांच करें। चलंत डिस्पेंसरियों का संचालन भी किया जाय। महिलाओं के प्रसव हेतु स्थानीय अस्पतालों में भर्ती कराया जाय। अन्य सामान्य गर्भवती महिलाओं को देय धनराशि की तरह विमुक्त एवं घुमंतू समुदाय की महिलाओं को भी राज्यों के नियमानुसार प्रसव राशि. विटामिन्स, आयरन, कैल्शियम की गोलियां आदि उपलब्ध कराए जाएं।
  16. भूमि और आवास : विमुक्त एवं घुमंतू समुदाय बहुत बड़ी संख्या में बिना किसी स्थाई आवास की सड़क के किनारे या ऐसे ही अन्य सरकारी जमीनों पर झोपड़ियों में रह रहे हैं। जिस तरह से अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए आवास हेतु जमीन के पट्टे दिए जाते हैं एवं मकान बनाने हेतु उपलब्ध कराया जाता है इसी तरह से विमुक्त एवं घुमंतू समुदायों के लिए भी आवास के निर्माण हेतु जमीन के पट्टे मकान हेतु एवं अनुदान उपलब्ध कराए जाने की यह आयोग सिफारिश करता है। आवासों में पेयजल की उपलब्धता, सीवर लाइन जैसी मूलभूत सुविधाओं को उन तक पहुंचाने की सिफारिश भी यह आयोग करता है।
  17. वन अधिकार : वन क्षेत्रों में निवासरत विमुक्त एवं घुमंतू समुदायों को प्राय: वन अधिकारियों एवं कानून लागू करने वाले अधिकारियों के उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है। इन अधिकारियों को इस बात के लिए संवेदनशील बनाया जाना जरूरी है कि वह इस तथ्य को नजरअंदाज न करें कि इन समुदायों की जीविका वनों पर ही निर्भर है। पशुचारण जैसे व्यवसाय से जुड़ी घुमंतू जनजातियों को वन अधिकार, चारागाह अधिकार, आवागमन का अधिकार राज्य की सीमा से बाहर भी मिलना चाहिए। इन समुदायों की जीविका भेड़ों उनको बकरियों पैसों एवं पक्षियों और मधुमक्खियों पर निर्भर करती है। शेड्यूल ट्राइब्स (रिकॉगनिशन ऑप फॉरेस्ट राइट्स) एक्ट, 2006 का विस्तार कर इसे घुमंतू जनजातियों के लिए भी लागू किया जाना चाहिए। साथ ही अनुसूचित जनजाति के लिए एक केंद्रीय प्रायोजित योजना है, जिसे “मामूली वन उत्पादन (एमएफपी)” के विपणन के लिए, जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) लागू किया जाता है, इसे विमुक्त और घुमंतू समुदायों तक बढ़ाया जाना चाहिए।
  18. कौशल विकास और रोज़गार : विमुक्त एवं घुमंतू जनजातियों को रोज़गार उपलब्ध करने हेतु उनके कौशल का विकास किया जाय।
  19. महिला सशक्तीकरण : विमुक्त और घुमंतू जनजतियों की महिलाओं के साथ दोहरा भेदभाव होता है। पहला उनके समुदाय विशेष का होने का कारण, दूसरा महिला होने के कारण। इनके सशक्तिकरण के लिए ज़रूरी है कि उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए स्वरोजगार हेतु, प्राथमिकता के आधार पर ऋण उपलब्ध कराये जाएं। और राज्य एवं राष्ट्रीय महिला आयोग में अलग से महिला प्रकोष्ठ गठित किए जाएं।
  20. विमुक्त एवं घुमंतू समुदायों के पास बहुत ही समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है इसके संरक्षण एवं संवर्धन के लिए यह आयोग सिफारिश करता है कि लंबे समय से इन समुदायों के द्वारा उत्पादित कलाकृतियों एवं घरेलू उपयोगी सामान की बिक्री के लिए कारगर उपाय किए जाएं एवं अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय मेले में उनके द्वारा बनाई गई कलाकृतियों का प्रदर्शन किया जाय।

श्रोत : सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की ओर से दिनांक 7 मई 2018 को राज्यों के मुख्य सचिवों और

सम्बंधित आयोगों को प्रेषित संस्तुतियां.

(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)

संदर्भ :

[1] यहां पर यह ध्यान देने योग्य है कि मिनिस्ट्री ऑफ ट्राइबल अफेयर्स ने “रिमूवल ऑफ़ एरिया रेस्ट्रिक्शन अमेंडमेंट एक्ट, 1976” के आधार पर अनुसूचित जनजाति के मामले में यह अवधारित किया था कि यदि किसी समुदाय को किसी राज्य की केवल एक-दो तहसील या केवल एक दो जनपद में शेड्यूल ट्राइब का सर्टिफिकेट दिया जाता है तो अब उस समुदाय को उस प्रांत के प्रत्येक जनपद में अनुसूचित जनजाति का दर्जा देकर प्रमाण पत्र प्रदान किए जाएं। ठीक इसी तर्ज पर विमुक्त एवं घुमंतू जनजातियों को भी बिना किसी क्षेत्र प्रतिबंध के भारत के समस्त राज्यों के प्रत्येक जनपद में उन्हें विमुक्त एवं घुमंतू जनजाति का दर्ज़ा दिया जाय, जिन राज्यों में वे रहते हों।


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लेखक के बारे में

बी.के. लोधी

डॉ. बृजेन्द्र कुमार लोधी, विमुक्त और घुमंतू जनजाति आयोग, भारत सरकार के पूर्व उपसचिव हैं। वर्तमान में वे ऑल इंडिया बैकवर्ड इम्प्लॉयज फेडरेशन के विमुक्त एवं घुमंतू जनजाति प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय प्रभारी हैं। इतिहासपरक उनके लेख कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। उनकी एक पुस्तक ‘क्रांतिवीर बनाम क्रिमिनल ट्राइब्स’, 2015 प्रिंस प्रकाशन, प्रयाग द्वारा प्रकाशित है

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