h n

मरीजों को घसीटकर ले जाना पड़ता है अस्पताल, रास्ते में दम तोड़ देते हैं अनेक मरीज

तिब्बत-चीन सीमा से सटे इलाकों, खासकर पहाड़ी इलाकों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। अस्पतालों की कमी है और एंबुलेस है नहीं। बीती 7 मार्च को फारवर्ड प्रेस को एक ऐसा ही वीडियो मिला, जिसमें कुछ लोग एक नाजुक मरीज को स्की पर घसीटते हुए ले जा रहे हैं, जबकि अस्पताल कई किमी दूर बताया जा रहा है

पिछले कुछ समय से भारत-पाक सीमा पर तनाव की खबरें आने के बाद विभिन्न राजनीतिक दल लोगों की देशभक्ति की भावना का दोहन करने में जुटे हैं। इस मामले में राजनीतिक दलों से भी आगे हिंदी-अंग्रेजी समाचार माध्यम हैं। लेकिन, अपने देश की सीमा पर रह रहे लोगों को किन कठिनाइयों में जीवनयापन करना पड़ता है, इसकी फिक्र किसी को नहीं है। भारत के उत्तरी और उत्तर-पश्चिम सीमा पर बसने वाली अधिकांश आबादी जनजातीय समुदायों की है। इनमें बौद्ध, मुसलामान और हिंदू धर्म को मानने वाली अनेक खानाबदोश जातियां भी शामिल हैं। हमारी सरकारें इन इलाकों के लोगों को कठिन भौगोलिक स्थितियों में जीवनयापन के लिए आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध करवाने में असफल रही हैं।

मसलन, भारत-चीन सीमा से सटे हिमाचल प्रदेश के लॉ स्पीति घाटी वाले इलाके में आज भी मरीजों को अस्पताल ले जाने में मीलों का सफर तय करना पड़ता है, वह भी पैदल। यह कार्य तब और भी मुश्किल हो जाता है, जब यहां विकट बर्फबारी हो रही हो। बर्फबारी के समय सभी सड़कें और दूसरे रास्ते बंद हो जाते हैं। माइनस 5 से 18 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान होता है। ऐसे में किसी व्यक्ति का पैदल चलना भी मौत से लड़ने के बराबर होता है, तब किसी मरीज को स्की (बर्फ पर चलने के बनाया गया लकड़ी का पट्टा) पर लेटाकर घसीटते हुए ले जाना और भी मुश्किल कार्य है।

7 मार्च को फारवर्ड प्रेस को ऐसा ही एक वीडियो मिला। इस वीडियो में स्पीति जिले के पाङम गांव के एक व्यक्ति को कुछ लोग स्की पर घसीटते हुए अस्पताल ले जाते दिख रहे हैं। वीडियो में एक व्यक्ति को अपने इलाके की समस्याओं का वर्णन करते व सरकार से मदद के लिए अपील करते सुना जा सकता है।

वीडियो बना रहा व्यक्ति कह रहा है कि लोग केंद्र व राज्य सरकार तक इस समस्या को पहुंचाएं, ताकि कम-से-कम इस इलाके में रहने वालों को बिजली, सड़क, अस्पताल और एंबुलेंस सुविधा मिल सके। वीडियो में बोल रहे व्यक्ति के मुताबिक, मरीज पाङम गांव का है, जिसकी हालत बहुत नाजुक है। मरीज को लॉ स्पीति घाटी के रास्ते कुछ लोग स्की पर घसीटते हुए ले जा रहे हैं, जबकि उसे अभी इसी तरह घसीटकर 24 किमी दूर काजा में स्थित अस्पताल तक ले जाना है। वीडियो में व्यक्ति सरकार को एयर एंबुलेंस के वादे को याद कराते हुए कह रहा है कि मेरा निवदेन है कि मोदी जी केंद्र सरकार, बीआरओ ग्रेफ वाले और हिमाचल प्रदेश की सरकार हमारी मदद करें, हमारी थोड़ी-सी देखभाल करें। यह उनका फर्ज है।

 हम लोग बॉर्डर पर रहते हैं। व्यक्ति ने कहा है कि कहां तो सरकार कहती है कि वह एयर एंबुलेंस की सुविधा देंगी, उसके पास ग्रेफ वाले हैं, वे जाम रोड तुरंत खुलवाते हैं, फिर केंद्र और राज्य सरकार तथा ग्रेफ वाले यह कैसी मदद कर रहे हैं। व्यक्ति ने कहा है कि ग्रेफ वाले बंद रोड खोलने में बहानेबाजी बहुत करते हैं। साथ ही कहा है कि प्रधानमंत्री कहते हैं कि अच्छे दिन आएंगे, देख लिए अच्छे दिन! व्यक्ति का कहना है कि स्पीति घाटी के लोग केंद्र और राज्य सरकारों से सिर्फ सड़क, बिजली और अस्पताल की सुविधा देने की गुजारिश करते हैं, बाकी उन्हें सरकारों से कुछ नहीं चाहिए। हालांकि, यह वीडियो फारवर्ड प्रेस को 7 मार्च को प्राप्त हुई।

लॉ स्पीति घाटी में बसा एक गांव (पुरानी तस्वीर)

इस मामले में हिमाचल प्रदेश के एक अन्य सीमावर्ती जिले किन्नौर के लक्की नेगी बताया कि इन इलाकों दयनीय स्थिति है। यहां अस्पतालों का अभाव है। जो थोड़े-बहुत अस्पताल हैं, वे दूर-दराज के इलाकों में हैं। एयर-एंबुलेंस की सुविधा के अभाव में अनेक मरीज रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं।

(कॉपी संपादन – प्रेम)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें

 

आरएसएस और बहुजन चिंतन 

मिस कैथरीन मेयो की बहुचर्चित कृति : मदर इंडिया

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार

लेखक के बारे में

प्रेम बरेलवी

उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के प्रेम बरेलवी शायर व स्वतंत्र पत्रकार हैं। इनकी कई रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हैं

संबंधित आलेख

यूपी : दलित जैसे नहीं हैं अति पिछड़े, श्रेणी में शामिल करना न्यायसंगत नहीं
सामाजिक न्याय की दृष्टि से देखा जाय तो भी इन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने से दलितों के साथ अन्याय होगा।...
बहस-तलब : आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पूर्वार्द्ध में
मूल बात यह है कि यदि आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाता है तो ईमानदारी से इस संबंध में भी दलित, आदिवासी और पिछड़ो...
साक्षात्कार : ‘हम विमुक्त, घुमंतू व अर्द्ध घुमंतू जनजातियों को मिले एसटी का दर्जा या दस फीसदी आरक्षण’
“मैंने उन्हें रेनके कमीशन की रिपोर्ट दी और कहा कि देखिए यह रिपोर्ट क्या कहती है। आप उन जातियों के लिए काम कर रहे...
कैसे और क्यों दलित बिठाने लगे हैं गणेश की प्रतिमा?
जाटव समाज में भी कुछ लोग मानसिक रूप से परिपक्व नहीं हैं, कैडराइज नहीं हैं। उनको आरएसएस के वॉलंटियर्स बहुत आसानी से अपनी गिरफ़्त...
महाराष्ट्र में आदिवासी महिलाओं ने कहा– रावण हमारे पुरखा, उनकी प्रतिमाएं जलाना बंद हो
उषाकिरण आत्राम के मुताबिक, रावण जो कि हमारे पुरखा हैं, उन्हें हिंसक बताया जाता है और एक तरह से हमारी संस्कृति को दूषित किया...