भारत की अवैदिक और भौतिकवादी चिंतनधारा मूल रूप से समतावादी रही है। इसी को चन्द्रिका प्रसाद ‘जिज्ञासु’ ने भारत का मौलिक समाजवाद कहा है।[1] इस मौलिक समाजवाद की अवधारणा हमें ‘बेगमपुर शहर’ में मिलती है, जो रैदास साहेब का बहुचर्चित पद है—
बेगमपुरा सहर को नाउ, दुखु-अंदोहु नहीं तिहि ठाउ।
ना तसवीस खिराजु न मालु, खउफुन खता न तरसु जुवालु।
अब मोहि खूब बतन गह पाई, ऊहां खैरि सदा मेरे भाई।
काइमु-दाइमु सदा पातिसाही, दोम न सोम एक सो आही।
आबादानु सदा मसहूर, ऊहाँ गनी बसहि मामूर।
तिउ तिउ सैल करहिजिउ भावै, महरम महल न को अटकावै।
कह ‘रविदास’ खलास चमारा, जो हम सहरी सु मीतु हमारा।[2]
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