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सम्पत्ति में बेटियों को बराबर अधिकार का सवाल बरकरार

सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि बेटियों को अपने माता-पिता की संपत्ति (पैतृक और अर्जित) में बेटों के समान अधिकार है। लेकिन यह इतना सरल नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के संज्ञान में लाए गए तीन मामलों में अलग-अलग बातें कही गई हैं। लिहाजा अभी भी सवाल बरकरार है

हिन्दू उत्तराधिकार 2005 से संशोधन के बावजूद बेटियों की संपत्ति में अधिकार का मामला अंतर्विरोधी और पेचीदा कानूनी व्याख्याओं में उलझा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार 9 नवंबर 2005 से पहले अगर पिता की मृत्यु हो चुकी है, तो बेटी को पैतृक संपत्ति में अधिकार नहीं मिलेगा। कानून में भी यह व्यवस्था पहले ही कर दी गई थी कि अगर पैतृक संपत्ति का बंटवारा 20 दिसंबर, 2004 से पहले हो चुका है, तो उस पर यह संशोधन लागू नहीं होगा। अब यह मामला 5 दिसंबर, 2018 को तीन जजों की पूर्णपीठ (न्यायमूर्ति अर्जन सीकरी, अशोक भूषण और  एम.आर. शाह) को भेजा गया है, जो अभी विचाराधीन है।

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लेखक के बारे में

अरविंद जैन

अरविंद जैन (जन्म- 7 दिसंबर 1953) सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता हैं। भारतीय समाज और कानून में स्त्री की स्थिति संबंधित लेखन के लिए जाने-जाते हैं। ‘औरत होने की सज़ा’, ‘उत्तराधिकार बनाम पुत्राधिकार’, ‘न्यायक्षेत्रे अन्यायक्षेत्रे’, ‘यौन हिंसा और न्याय की भाषा’ तथा ‘औरत : अस्तित्व और अस्मिता’ शीर्षक से महिलाओं की कानूनी स्थिति पर विचारपरक पुस्तकें। ‘लापता लड़की’ कहानी-संग्रह। बाल-अपराध न्याय अधिनियम के लिए भारत सरकार द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति के सदस्य। हिंदी अकादमी, दिल्ली द्वारा वर्ष 1999-2000 के लिए 'साहित्यकार सम्मान’; कथेतर साहित्य के लिए वर्ष 2001 का राष्ट्रीय शमशेर सम्मान

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