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जाति का अवसान अर्थात हिन्दू राष्ट्र के स्वप्न का अवसान

गोलवलकर के लिए राष्ट्र का अर्थ था, चार वर्णों से निर्मित ‘विराट पुरुष। इतना ही नहीं, सावरकर क्रूर पेशवा (ब्राह्मण) शासनकाल को गौरवशाली मानते थे

हिन्दू राष्ट्रवादियों की विचारधारा और गतिविधियों का अंतिम लक्ष्य है, ऋग्वेद  में निर्धारित सामाजिक व्यवस्था को बनाये रखना। वे समाज को चार वर्णों में विभाजित करते हैं। सामान्य तौर पर माना जाता है कि हिन्दू राष्ट्रवाद के मूल में मुसलमानों और ईसाईयों के प्रति घृणा है। परन्तु यह घृणा, हिन्दू राष्ट्रवाद की विचारधारा की केवल ऊपरी सतह है।

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लेखक के बारे में

नागेश चौधरी

नागेश चौधरी विगत तीस वर्षों से सामाजिक कार्यकर्ता का धर्म बखूबी निभा रहे हैं। वे मराठी पाक्षिक 'बहुजन संघर्ष’ के संस्थापक संपादक हैं। उन्होंने मराठी, अंग्रेजी व हिंदी में कई पुस्तकें लिखीं हैं, जिनमें 'जाति व्यवस्था व भारतीय क्रांति’ और 'व्हाय बहुजंस आर डिवाइडेड एंड ब्राह्मिंस स्टे यूनाइटेड एंड स्ट्रांग’ शामिल हैं 

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