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पूर्वोत्तर में नागरिकता का सवाल हिंदुत्व पर भारी!

पूर्वोत्तर में स्थानीय दल सीएबी-2016 और एनआरसी के मुद्दे पर बाहर से भाजपा के खिलाफ मुखर न हों लेकिन अंदर से भाजपा के प्रखर विरोधी हैं। आसाम में एजीपी के समर्थक बीजेपी के ‘संकल्प पत्र’ में नागरिकता संशोधन बिल को शामिल करने से खुश नही हैं और कार्यकर्ताओं को मतदातों की नाराजगी झेलनी पड़ रही है

पूर्वोत्तर के 8 राज्यों की कुल 25 लोकसभा सीटों में से 14 के लिए मतदान प्रथम चरण में 11 अप्रैल को सम्पन्न हो गया। इसके साथ सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश की क्रमश: 32 और 57 विधानसभा सीटों पर भी मतदान पहले चरण में सम्पन्न हो गया। हालांकि अरुणाचल की 3 विधानसभा सीटों पर मतदान की जरूरत नही रही, क्योंकि इन सीटों पर सत्तारूढ़ भाजपा के उम्मीदवार पहले ही निर्विरोध निर्वाचित हो गये हैं। राज्यवार बात करें तो मणिपुर और त्रिपुरा की 1-1 सीट और आसाम की 5 लोकसभा सीटों के लिए दूसरे चरण में 18 अप्रैल को मतदान होना है| आसाम की अंतिम 4 सीटों के लिए मतदान तीसरे चरण में 23 अप्रैल को होगा।

कांग्रेस मुक्त पूर्वोत्तर में भाजपा की एकला चलो नीति

यह पहला अवसर है जब पूर्वोत्तर के किसी भी राज्य में कांग्रेस की सरकार नही हैं। कांग्रेस मुक्त पूर्वोत्तर में भाजपा आसाम के अलावा बाकी राज्यों में अकेले ही लोकसभा चुनाव लड़ रही है। आज जो पूर्वोत्तर में भाजपा की उपस्थिति है उसमें उसके सहयोगी दलों का महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

भाजपा ने पिछले दो-ढाई वर्षों में कांग्रेस पर क्षेत्र के विकास की उपेक्षा करने की राजनीति के सहारे जनजातीय समुदायों के स्थानीय दलों को अपने खेमे में शामिल कर लिया। मसलन, भाजपा ने 2016 में असम विधानसभा चुनाव से कुछ दिन पहले क्षेत्र के मुद्दों, क्षेत्र को कांग्रेस मुक्त करने के उद्देश्य के साथ पूर्वोत्तर लोकतान्त्रिक गठबंधन (नेडा) की स्थापना की थी।

नागालैंड में चुनावी सभा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

लेकिन एक बार पांव जमाने के बाद भाजपा ने अपने आपको स्थानीय दलों से अलग कर लिया। नवम्बर 2018 में हुये मिज़ोरम विधानसभा चुनाव में नेडा के तीन सहयोगी बीजेपी, एमएनएफ़ और एनपीपी ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। इस बार लोकसभा चुनाव में पूर्वोत्तर में भाजपा का चुनाव-पूर्व गठबंधन सिर्फ आसाम में आसाम गण परिषद (एजीपी) के साथ है।

कांग्रेस को गठबंधन की दरकार

वर्तमान में पूर्वोत्तर की 25 में से 8 सीटें भाजपा के पास है तो कांग्रेस के पास भी 8 सीटें हैं। कांग्रेस ने आसाम में बदरुद्दीन अजमल की पार्टी एआईयूडीएफ़ के साथ अघोषित तौर पर चुनावी गठबंधन किया हैं। मौजूदा लोकसभा में एआईयूडीएफ़ और कांग्रेस के 3-3 सदस्य हैं। मिज़ोरम में कांग्रेस और जोरम पीपुल्स मूवमेंट (ज़ेडपीएम) ने सत्तारूढ़ एमएनएफ़ के खिलाफ राज्य की एकमात्र लोकसभा सीट पर साझा उम्मीदवार उतारा हैं।

आसाम के गुवाहाटी में चुनवी रैली के दौरान कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी

दरअसल, पूर्वोत्तर के राज्यों में स्थानीय दलों और भाजपा दोनों के जनाधार अलग-अलग हैं। भाजपा की हिन्दुत्ववादी की छवि के चलते राज्यों में धार्मिक अल्पसंख्यक और जनजातीय समुदाय के राजनीतिक दल उसके साथ चुनावी गठबंधन करना नहीं चाहते हैं। असम में 14 लोकसभा सीटों में से दो सीटों पर बीजेपी की सहयोगी एजीपी चुनाव लड़ रही है, जिनमें धुबरी और बारपेटा सीट शामिल है।

पूर्वोत्तर में नागरिकता का सवाल महत्वपूर्ण

पूर्वोत्तर में न तो राष्ट्रवाद और न ही राष्ट्रीय सुरक्षा चुनावी मुद्दा है। लोकसभा चुनाव क्षेत्रीय मुद्दों और क्षेत्रीय हितों के आधार पर लड़े जा रहे हैं। इन चुनावों में पूर्वोत्तर क्षेत्र में नागरिकता संशोधन विधेयक-2016 सबसे बड़ा मुद्दा है।  बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और शिक्षा के मुद्दे भी इस क्षेत्र में प्रमुख तौर पर उभर कर सामने आए हैं। राज्यों के हिसाब से बात करें तो आसाम में राष्ट्रीय नागरिकता पंजीकरण (एनआरसी), सीएबी-2016, असम-समझौता -1985 को लागू करने, और चाय-बागानों के आदिवासी समुदायों की समस्यायें जैसे मुद्दे इस बार महत्वपूर्ण बन गए हैं। वहीं अरुणाचल प्रदेश में गैर-अरुणाचल जनजातीय समुदायों को स्थायी निवास प्रमाणपत्र (पीआरसी) का मुद्दा सबसे बड़ा है। मणिपुर में बहुसंख्यक मेइती समुदाय की राज्य में अनुसूची जनजाति का दर्जा देने की मांग बड़े मुद्दे के रूप में सामने आयी है।

जबकि नागालैंड में नागा शांति समझौता -2015 सबसे बड़ा मुद्दा है। राज्य के मतदाता सत्तारूढ़ एनडीपीपी के नेता और मुख्यमंत्री नफेयू रिओ की दलबदल की राजनीति से नाखुश हैं। विपक्षी दल एनपीएफ़ ने राज्य की एकमात्र लोकसभा सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी को समर्थन दिया है। वहीं सिक्किम में जनजातीय समुदायों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व सबसे बड़ा मुद्दा हैं। मेघालय में बाहरी नागरिकों के लिए इनर-लाइन रेग्युलेशन और खनन संसाधनों पर राज्य का अधिकार जैसे बड़े मुद्दे हैं। जबकि त्रिपुरा में अल्पसंख्यक तिरपरि जनजाति समुदाय के हितों का संरक्षण के अलावा सीएबी-2016 के साथ राज्य में विकास और रोजगार जैसे मुद्दे प्रभावी हैं।

सिक्किम की राजधानी गंगटोक में वोट देतीं महिलाएं

चुनाव के दौरान त्रिपुरा और आसाम में हिन्दुत्व राजनीति बनाम जनजातीय समुदाय के आधार पर चुनावी ध्रुवीकरण बन रहा है। दोनों राज्यों में बेरोजगारी नागरिकता संशोधन बिल के साथ सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा हैं | मिज़ोरम में विदेशी नागरिकों की अवैध घुसपैठ के साथ राज्य में असम की तर्ज पर एनआरसी लागू करने की मांग एक बड़ा मुद्दा हैं | हालांकि राज्य की एमएनएफ़ सरकार ने एनआरसी विधेयक को पास कर दिया हैं और इसको लोकसभा चुनाव बाद लागू करने की घोषणा की हैं| अलावा ब्रू-शरणार्थियों और चकमाओं  के अधिकार भी मुख्य मुद्दा हैं।

कद्दावरों का हाल

अरुणाचल पश्चिम लोकसभा सीट पर मुक़ाबला रोचक है। यहां से केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री किरेन रिजिजू को राज्य के कांग्रेस के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री नबम टुकी से कड़ी टक्कर मिल रही है। वहीं मेघालय की तूरा लोकसभा सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. मुकुल संगमा और सत्तारूढ़ एनपीपी की अगाथा संगमा के बीच कांटे की टक्कर होने की संभावना है।

(कॉपी संपादन : नवल)


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लेखक के बारे में

सुवालाल जांगु

पूर्वोत्तर भारत के समाज और संस्कृति के अध्येता सुवालाल जांगु मिजोरम विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के प्राध्यापक हैं

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