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स्त्री की नई भाषा-परिभाषा

रख्माबाई भारत की पहली महिला चिकित्सक थीं। इसके अलावा बेमेल शादी के खिलाफ अदालत में चुनौती देने वाली वह पहली महिला थीं। हालांकि कानूनी खेल में जीत अंतत: पुरूषवादी सामाजिक व्यवस्था को मिली, जो आजतक बरकरार है। अरविंद जैन का आलेख

न्याय क्षेत्रे-अन्याय क्षेत्रे

“क्या मैं ही पहला आदमी हूँ जो इस पुकार को सुनकर ऐसा व्याकुल हो उठा हूँ या औरों ने भी इस आवाज़ को सुना है और सुनकर अनसुना कर दिया है? और क्या सचमुच जवान लड़की की आवाज़ को सुनकर अनसुना किया जा सकता है?”

(‘जहाँ लक्ष्मी क़ैद है’ 1957, राजेन्द्र यादव, पृष्ठ 228)

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की पीठ ने 5 मार्च, 2019 को वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापना (रेस्टीट्यूशन ऑफ कंजुगल राइट्स) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देती एक जनहित याचिका (ओजस्व पाठक बनाम भारत सरकार) सुनवाई के लिए तीन न्यायमूर्तियों की खंडपीठ को सौंपी है। इस संदर्भ में ऐतिहासिक पृष्ठभूमि जानना जरूरी है और दादाजी बनाम रख्माबाई केस (1884-88) की चर्चा के बिना बात अधूरी रहेगी।

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लेखक के बारे में

अरविंद जैन

अरविंद जैन (जन्म- 7 दिसंबर 1953) सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता हैं। भारतीय समाज और कानून में स्त्री की स्थिति संबंधित लेखन के लिए जाने-जाते हैं। ‘औरत होने की सज़ा’, ‘उत्तराधिकार बनाम पुत्राधिकार’, ‘न्यायक्षेत्रे अन्यायक्षेत्रे’, ‘यौन हिंसा और न्याय की भाषा’ तथा ‘औरत : अस्तित्व और अस्मिता’ शीर्षक से महिलाओं की कानूनी स्थिति पर विचारपरक पुस्तकें। ‘लापता लड़की’ कहानी-संग्रह। बाल-अपराध न्याय अधिनियम के लिए भारत सरकार द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति के सदस्य। हिंदी अकादमी, दिल्ली द्वारा वर्ष 1999-2000 के लिए 'साहित्यकार सम्मान’; कथेतर साहित्य के लिए वर्ष 2001 का राष्ट्रीय शमशेर सम्मान

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