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अखिलेश के पक्ष में उतरे मायावती के फैसले से नाराज दलित-बहुजन

बसपा के पूर्व मंत्री दद्दू प्रसाद के मुताबिक, कांशीराम ने दलितों और ओबीसी के बीच एक विश्वास कायम किया था। उस विश्वास को मायावती तोड़ रही हैं

लोकसभा चुनाव-2019 में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) गठबंधन को करारी हार का सामना करना पड़ा। बसपा प्रमुख मायावती ने गठबंधन खत्म करने का एलान कर दिया है। उन्होंने कहा है कि चुनाव में यादव जाति के लोगों का वोट बसपा उम्मीदवारों को नहीं मिला और इस कारण हार हुई। उनके इस बयान पर दलित-बहुजन नेताओं ने सवाल उठाया है। वहीं दूसरी ओर वे अखिलेश यादव का समर्थन कर रहे हैं। उनका कहना है कि अखिलेश यादव को मायावती ने पूरे चुनाव उलझा कर रखा।

ध्यातव्य है कि इस चुनाव में सपा जहां केवल 5 सीटें जीत सकी, वहीं बसपा को 10 सीटें मिलीं। इससे पहले 2014 में बसपा को कोई सफलता नहीं मिली थी। इसके बावजूद मायावती ने अपने बयान में अखिलेश यादव पर यह कहते हुए प्रहार किया है कि वे अपनी पत्नी (डिंपल यादव) तक को चुनाव में जीत दिलाने में नाकाम रहे। मायावती ने उत्तर प्रदेश में 11 विधानसभा क्षेत्रों में अकेले चुनाव लड़ने का एलान किया है।

दद्दू प्रसाद, पूर्व मंत्री, उत्तर प्रदेश सरकार

बसपा प्रमुख मायावती के नये फैसले के संबंध में पूर्व में बसपा सरकार के कार्यकाल में मंत्री रहे दद्दू प्रसाद का कहना है कि मायावती जी का यह कहना बिल्कुल गलत है कि बसपा के उम्मीदवारों को यादव जाति के लोगों ने वोट नहीं दिया। सच तो यह है कि पूरे उत्तर प्रदेश में यादव, जाटव और मुस्लिम मतदाताओं को वोट शत प्रतिशत गठबंधन के प्रत्याशियों को ही गया। गठबंधन के उम्मीदवारों को उच्च जातियों के लोगों का वोट नहीं मिला। मायावती के करीबी सतीश चंद्र मिश्रा अपने समाज का वोट नहीं दिलवा सके। बसपा प्रमुख मायावती के बयान को खारिज करते हुए दद्दू प्रसाद ने कहा कि वे दलितों-ओबीसी के बीच विश्वास को खत्म कर रही हैं। इस विश्वास को कांशीराम ने बड़ी मेहनत से कायम किया था।

बसपा प्रमुख मायावती और सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव

गठबंधन की हार के संबंध में उन्होंने कहा कि पूरे चुनाव मायावती ने अखिलेश यादव को उलझा कर रखा। हालांकि गठबंधन का एलान पहले हो चुका था लेकिन सीटों के बंटवारे को लेकर उहापोह की स्थिति बनी रही।

यह भी पढ़ें : जातिवादी कारणों से हुई मायावती-अखिलेश की हार

वहीं सामाजिक कार्यकर्ता ए. आर. अकेला के मुताबिक, मायावती इस बार भाजपा की ओर से कांग्रेस के खिलाफ लड़ रही थीं। इस बार उन्होंने गुजरात के सभी सीटों पर अपने उम्मीदवारों को खड़ा किया, जहां बसपा की उपस्थिति नगण्य मात्र है। गुजरात में सभी सीटों पर चुनाव लड़ा। इसी प्रकार उनका यह कहना कि उत्तर प्रदेश में बसपा के उम्मीदवारों को यादव जाति के लोगों ने वोट नहीं दिया, बेबुनियाद है। मायावती की पार्टी ने इस बार उत्तर प्रदेश के 38 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किये। इनमें 12 सवर्ण शामिल हैं।

श्री अकेला के अनुसार प्रारंभ से ही मायावती भाजपा की बी टीम के रूप में काम रही थीं। यहां तक आंबेडकरनगर लोकसभा क्षेत्र में भी उन्होंने टिकट उच्च जाति के रीतेश पांडे को दिया। जबकि वह इस बात को जानती थीं कि आंबेडकर नगर दलित-बहुजन बहुसंख्यक हैं और उनकी निर्णायक भूमिका है। लेकिन मायावती ने यहां रीतेश पांडे को टिकट दिया। श्री अकेला ने बताया कि बसपा ने अन्य पिछड़ा वर्ग के केवल 16 उम्मीदवारों को  मौका दिया। अब वे कह रही हैं कि सपा के वोटरों ने उन्हें वोट नहीं दिया। यह सच्चाई से कोसों दूर है । उन्होंने कहा कि पहले जब कांशीराम ने बहुजन एकता की बात कही थी तब उसमें केवल जाटव शामिल नहीं थे। उनके आंदोलनों से देश के बहुजन मजबूत हुए। उन्होंने अति पिछड़ी जातियों के लोगों को आगे किया। तब जाकर यह विश्वास बना था कि बसपा ही बहुजनों की पार्टी है। परंतु मायावती ने कांशीराम के विचारों को पूरी तरह त्याग दिया है और  द्विजों के राजनीतिक पैंतरों में फंस गयी हैं।

(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


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नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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