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मदद के लिए बढ़े हाथ, अब रामजल गार्ड की जगह, जेएनयू के छात्र होंगे

जेएनयू किसी गार्ड को गरीब होने का अहसास नहीं कराता। रामजल मीणा की कहानी जितनी आदिवासी समुदाय की जीवटता के बारे में है, उतनी ही जेएनयू के संजीदा माहौल को लेकर भी है। कमल चंद्रवंशी की रिपोर्ट

जेएनयू ने कभी गरीब होने का अहसास होने नहीं दिया- रामजल मीणा

आदिवासी मजदूर परिवार के रामजल मीणा का फोन पर बातचीत करते-करते गला थक गया है। ये फोन शुभ चिंतकों, नातेदारों-रिश्तेदारों और पत्रकारों के हैं। मुनिरका के अपने घर वे खाना खा रहे थे, जब मैंने उनको फोन किया। मैं उनसे कहा इत्मीनान से खाना खा लिजिए आराम से ग्यारह बजे बात करते हैं। रामजल पूरी तरह से खुलासा तो नहीं करते लेकिन बताते है पिछले तीन दिन से कई ऐसे लोगों के फोन आ चुके हैं जो खुद या अपने एनजीओ की ओर से मदद करना चाहते हैं ताकि आगे गार्ड की नौकरी न करनी पड़ी, बल्कि वो जेएनयू में बीए रशियन की रेगूलर पढ़ाई कर सके।

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लेखक के बारे में

कमल चंद्रवंशी

लेखक दिल्ली के एक प्रमुख मीडिया संस्थान में कार्यरत टीवी पत्रकार हैं।

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