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दलित-बहुजनों के लिए बॉलीवुड के तर्ज पर ‘बहुजनवुड’

बॉलीवुड के तर्ज पर अब बहुजनवुड की शुरुआत की गयी है। इसे लांच करते हुए चर्चित लेखिका अरुंधति राय ने कहा कि बहुजनों की संस्कृति और उनके सवालों के डॉक्यूमेंटेशन के लिए यह एक जरूरी पहल है। इसका स्वागत किया जाना चाहिए

साहित्य और संस्कृति को लेकर दलित-बहुजन सजग हो रहे हैं। इस कड़ी में अब बॉलीवुड (मुंबई फिल्म उद्योग) के तर्ज पर बहुजनवुड की शुरुआत की गयी है। कल 25 जुलाई 2019 को इसे लांच किया गया। इस मौके पर चर्चित लेखिका अरुंधति राय, भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर रावण, प्रोफेसर एम. के. रायपुरिया  भी उपस्थित रहे। इसके मुख्य संस्थापक बहुजन नेता कांशीराम की बायोपिक ‘द ग्रेट लीडर कांशीराम’ बनाने वाले अर्जुन सिंह हैं। 

अपने संबोधन में अरुंधति ने कहा कि “लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद यह पहली खुशख़बरी है कि बहुजन सिनेमा का ‘बहुजनवुड’ के जरिए पदार्पण हो रहा है। यह बहुत ज़रूरी है। जो बहुजन संस्कृति है, जो हमारी सभ्यता है, जो हमारे कलाकार हैं, जो हमारा दर्द है अगर उसे अगर बहुजनवुड आगे ले आकर रिप्रेजेंट करता है तो ये बेसिकली डॉक्यूमेंटेशन होगा जो आनेवाली पीढ़ी को पास होगा। और इसके जरिए हमारी अपनी खुद की अर्थव्यवस्था भी विकसित होगी क्योंकि जब हम कोई फिल्म देखने जाते हैं तो अपने पॉकेट से पैसे खर्च करते हैं और वो जाता किसी और के पास है।”

बहुजनवुड लांचिंग समारोह को संबोधित करतीं अरुंधति राय

वहीं चंद्रशेखर रावण ने कहा कि हम लोगों को एकजुट होकर बहुजन कलाकारों और बहुजन समाज को लेकर किस तरह से आगे बढ़ सकते हैं उस पर ज्यादा काम करना चाहिए। उन्होंने आह्वान करते हुए कहा कि अर्जुन सिंह जैसे लोगों को, जिनमें टैलेंट है, जिनके पास कांसेप्ट है उनको बढ़ावा देना चाहिए। बहुजन समाज के लोगों को आगे आकर उनका समर्थन करना चाहिए। उनके आइडियाज को कैसे एक्जीक्यूट करें, कैसे उस लेवल तक पहुंचाएं इसके लिए खुले समर्थन की ज़रूरत होती है, क्योंकि अकेले कोई क्या कर लेगा। इसके लिए समर्थन की ज़रूरत होती है।

बहुजनवुड का उद्देश्य

बहुजनवुड की स्थापना के पीछे मकसद और योजनाएं क्या हैं, इसे लेकर फारवर्ड प्रेस ने इसके सहसंस्थापक सुमित चौधरी से पूछा। जवाब में उन्होंने बताया कि, “जिस तरह से बॉलीवुड, टॉलीवुड कथित मुख्यधारा का सिनेमा चलाता है उसमें जो बहुजन समाज है उसकी कहीं पर भी वैल्यू नहीं है। कहीं पर भी चित्रित नहीं किया जाता है। अगर कहीं किया भी जाता है तो एक अलग तरीके से दीन दुखियारे तरीके से दिखाया जाता है। हमारे दर्द को, हमारे कहानी को हमारे अपने मुद्दों को हम अपने समाज तक अपने पर्दे पर लेकर आएं, यही बहुजनवुड का मकसद है। हम चाहते हैं कि हम अपनी कहानी खुद बताएं उसमें हमारे अपने कलाकारों को मौका मिले। उसमें हमारे लेखकों, व गीतकार, संगीतकार और गायकों को मौका मिले। हमारी संस्था बहुजन कलाकारों को प्लेटफॉर्म उपबलब्ध कराएगी।”

बहुजनवुड के लांचिंग समारोह को संबोधित करते भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर रावण

अत्याधुनिक तकनीक से लैस होगा ‘बहुजनवुड’

सुमित चौधरी ने बताया कि ‘बहुजनवुड’ का एक मोबाइल एप भी हमने डिजाइन किया है जोकि अभी एंड्राइड फोन पर उपल्ब्ध है। नेटफ्लिक्स और अमेजन के तर्ज पर हमारा एप हमारे दर्शकों को वीडियो उपलब्ध कराएगा। साथ ही हम कंटेंट डेवलप करेंगे। हमलोगों ने एक वेबसाइट भी बना रखा है जिसके जरिए आसानी से हमसे जुड़ा जा सकता है। 

बहुजनवुड के सहसंस्थापक सुमित चौधरी (बायें से पहले)

सुमित चौधरी बताते हैं कि बहुजनवुड की फिल्में सिनेमा हॉल में जाएंगी या नहीं ये बहुत कुछ रिसोर्सेस पर निर्भर करता है। कांशी राम फिल्म को अर्जुन सिंह ने सिनेमाघरों में भी लांच किया था लेकिन बहुत से सिनेमाघरों ने मना कर दिया, जबकि मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ चुनिंदा सिनेमाघरों में ये फिल्म चली भी। मूलरूप से ये बातें रिसोर्सेस पर निर्भर करती हैं। लेकिन चूंकि हम कम बजट में अच्छा काम करना चाहते हैं तो हमें ये भी ध्यान में रखना है कि हम अपना बजट बाहर वेस्ट न करके डिजिटल माध्यम में ही लेकर आते हैं तो वो ज्यादा कारगर रहेगा। सिनेमाहॉल में तो बहुत सारे लोग पहुंच भी नहीं पाते हैं क्योंकि उस तरीके से प्रमोशन और दूसरी तमाम चीजें भी रहती है। फिलहाल ये शुरुआत है। यदि संभव हुआ तो हम सिनेमाघरों में भी लांच करेंगे। इसके अलावा हम अगले कुछ महीनों में देश के कुछ चुनिंदा शहरों में इसके लिए ऑडीशन करेंगे। जिसमें बहुजन समाज के कलाकारों को सेलेक्ट करना और उनकी कला को प्रोफेशनल तरीके से कैसे आगे ले जाकर ट्रेन्ड किया जा सकता है इस पर फोकस किया जाएगा। 

बहरहाल, सुमित चौधरी बताते हैं कि बहुजनवुड एक साथ 6 फिल्मों पर काम कर रहा है। इसमें एक फिल्म ‘रोहित वेमुला’ पर, एक फिल्म ‘महार जल सत्याग्रह’ पर जिसमें बाबा साहेब ने बहुजन समाज को पानी पीने का अधिकार दिलाया, एक फिल्म ‘सावित्री बाई फुले’ और उनके जीवन संघर्षों पर, एक फिल्म 2 अप्रैल के ऐतिहासिक ‘भारत बंद’ पर जो कि बिना किसी चेहरा और नेता के और इतने व्यापक स्तर पर सफलतापूर्वक घटित हुआ जिसमें कई युवा शहीद हुए। 

(कॉपी संपादन : नवल)


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महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

लेखक के बारे में

सुशील मानव

सुशील मानव स्वतंत्र पत्रकार और साहित्यकार हैं। वह दिल्ली-एनसीआर के मजदूरों के साथ मिलकर सामाजिक-राजनैतिक कार्य करते हैं

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