h n

फेलोशिप : क्यों और कौन सा राज छिपा रहा आईसीएसएसआर?

आईसीएसएसआर तीन तरह के फेलोशिप देता है। इसमें एससी, एसटी और दिव्यांगों के लिए विशेष छूट का प्रावधान है। परंतु ओबीसी के लिए नहीं। केंद्रीय उच्च शिक्षण संस्थानों में ओबीसी को आरक्षण दिए जाने की कानूनी बाध्यता है। फिर सवाल यह है कि वे कौन से अधिकारी हैं, जो  इस तबके को आरक्षण नहीं दे कर सरेआम कानून का उल्लंघन कर रहे हैं?

भारतीय सामाजिक अनुसंधान परिषद (आईसीएसएसआर) द्वारा हर साल तीन तरह के फेलोशिप दिये जाते हैं। इनमें से एक डॉक्टोरल, दूसरे को पोस्ट डॉक्टोरल और तीसरे को सीनियर फेलोशिप कहा जाता है। इस बार भी आईसीएसएसआर ने फेलोशिप को लेकर विज्ञापन जारी किया है।

आईसीएसएसआर द्वारा जारी विज्ञापन  मुताबिक इन तीनों प्रकार के फेलोशिप के लिए आवश्यक अहर्ता रखने वाले अभ्यर्थी 25 जुलाई तक ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। [विज्ञापन की मूल प्रति देखने के लिए यहां क्लिक करें]

सूचनाएं, जिन्हें बताने से आईसीएसएसआर को नहीं है परहेज  

आईसीएसएसआर को अपने विज्ञापन में यह बताने से परहेज नहीं है कि डॉक्टोरल फेलोशिप के लिए आवेदन करने वाले आवेदक की उम्र 40 वर्ष से कम होनी चाहिए। और उनके पास किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय की प्रथम या द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण मास्टर डिग्री होनी चाहिए। वहीं पोस्ट डॉक्टोरल फेलोशिप के लिए आवेदन करनेवाले अभ्यर्थी की उम्र 45 वर्ष से कम होनी चाहिए। और उनके पास पीएचडी की डिग्री होनी चाहिए।जबकि सीनियर फेलोशिप के लिए आवेदन करनेवाले अभ्यर्थी की आयु वर्ग 45-70 वर्ष के बीच होनी चाहिए। साथ ही उनके पास पीएचडी की डिग्री और गुणवत्तापूर्ण रिसर्च वर्क होना चाहिए। 

आईसीएसएसआर का विज्ञापन यह भी बताता है कि एससी, एसटी और विकलांग वर्ग के लिए 5 वर्ष की आयुसीमा की छूट है। आवेदक के पास सोशल साइंस के किसी विषय में पीएचडी की डिग्री होनी चाहिए। लेकिन ओबीसी को संविधान प्रदत्त आरक्षण के बारे में न सिर्फ यह विज्ञापन मौन है, बल्कि संस्थान के पदाधिकारी भी इस बारे में पूछने पर बगलें झांकने लगते हैं।

ओबीसी के लिए नहीं है कोई प्रावधान

दरअसल, आईसीएसएसआर द्वारा दिये जाने वाले फेलोशिप में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए प्रावधान हैं। परंतु ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) के लिए पृथक रूप से कोई व्यवस्था नहीं है। जबकि उच्च शिक्षण संस्थानों में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण दिये जाने का संवैधानिक प्रावधान है। आरक्षण तो दूर की बात है ओबीसी के अभ्यर्थियों को आयु सीमा में छूट तक नहीं दी गई है। 

आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थी बताते हैं कि आईसीएसएसआर द्वारा आरक्षण के संबंध में समुचित जानकारी नहीं दी जाती है। इस बार के विज्ञापन में भी इस बात की चर्चा नहीं की गयी है कि कुल कितने फेलोशिप दिए जायेंगे और उनमें एससी और एसटी कितने होंगे। ओबीसी तो वैसे भी आईसीएसएसआर के लिए कोई मायने नहीं रखते।

आईसीएसएसआर का लोगो व केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक की तस्वीर

फारवर्ड प्रेस पहले से भी यह सवाल उठाता रहा है कि किस तरह फेलोशिप के मामले में ओबीसी की अनदेखी की जाती रही है। पढ़ें यह रिपोर्ट : पोस्ट डॉक्टरेट फेलोशिप परिणामों में ओबीसी का स्पष्ट उल्लेख क्यों नहीं?

आईसीएसएसआर का (कु)तर्क

आईसीएसएसआर द्वारा इस साल कितने लोगों को फेलोशिप दिये जाने हैं और क्या इसमें आरक्षण भी लागू होगा, इस बारे में फारवर्ड प्रेस ने आईसीएसएसआर के उप निदेशक (शोध) व पोस्ट डॉक्टोरल व सीनियर फेलोशिप के प्रभारी  डॉ. सुरेंद्र मोहन वर्मा से दूरभाष पर बातचीत की। सवाल सुनने के बाद उन्होंने कहा कि “आईसीएसएसआर अपने पैतृक संगठन जो कि भारत सरकार का मानव संसाधन विकास मंत्रालय है, के निर्देशों के आधार पर काम करता है। हर साल मंत्रालय द्वारा लक्ष्य निर्धारित किया जाता है और दिये गये लक्ष्य के अनुरूप ही फेलोशिप दिये जाते हैं।” लेकिन इसकी संख्या कितनी है या फिर जितने लोग आवेदन करेंगे, उन सभी को फेलोशिप दिये जाएंगे? इसके जवाब में डॉ.  वर्मा ने कहा कि “इसके लिए नियमावली है। सफल अभ्यर्थियों को ही फेलोशिप दी जाती है।”

बहरहाल, सवाल तो अब भी यही है कि उच्च शिक्षण संस्थानों में ओबीसी को आरक्षण देने का फैसला खुद भारत सरकार का फैसला है और इसके लिए संसद में कानून भी बनाया गया है, और यह भारतीय संविधान का हिस्सा है,  फिर आईसीएसएसआर को ओबीसी के लिए आरक्षण का प्रावधान करने में किस तरह की परेशानी हो रही है? इसके लिए कौन लोग जिम्मेवार हैं? सवाल भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के लिए भी है कि क्या वह यह मानता है कि ओबीसी के शोधार्थी आईसीएसएसआर के फेलोशिप पाने के हकदार नहीं हैं?

गौर तलब है कि आईसीएसएसआर तीन तरह के फेलोशिप देता है। मसलन, सीनियर फेलोशिप एक पूर्णकालिक अवधि का रिसर्च वर्क है लेकिन इसकी अवधि 2 वर्ष है। इसके लिए 45,000 हजार प्रति माह और फुटकर खर्च के लिए 40 हजार प्रति वर्ष निर्धारित है। वहीं पोस्ट डॉक्टोरल फेलोशिप के लिए 2 वर्ष निर्धारित है। चयनित अभ्यर्थी को लिए 31,000 प्रति माह और अन्य खर्च के लिए 25,000 प्रतिवर्ष दिया जाता है। जबकि डॉक्टोरल फेलोशिप 2 वर्ष के लिए है। चयनित अभ्यर्थी को 20,000 प्रति माह और कन्टिजन्सी ग्रांट 20,000 प्रति वर्ष दिया जाएगा।

ये फेलोशिप इकोनॉमिक्स, मैनेजमेंट, कॉमर्स, सोशियोलॉजी, सोशल वर्क, सोशल आंथ्रोपोलॉजी, कल्चरल स्टडीज, सोशियो-संस्कृत स्टडीज, सोशियो फिलोसफिकल स्टडीज, सोशल लिंग्व्स्टिक, जेंडर स्टडीज, हेल्थ स्टडीज, पोलिटिककल साइंस, इंटरनेशनल स्टडीज, पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन, डायस्पोरा स्टडीज, नेशनल सेक्युरिटी एंड स्ट्रेटजिक स्टडीज, एजुकेशन, सोशल साइकोलॉजी, लीगल स्टडीज, सोशल ज्योग्रॉफी, पर्यावरण अध्ययन, आधुनिक सामाजिक इतिहास, मीडिया स्टडीज, लाइब्रेरी साइंस आदि विषयों में शोध के लिए दिये जाते हैं। 

 (फारवर्ड प्रेस उच्च शिक्षा जगत से संबंधित खबरें प्रकाशित करता रहा है। हाल के दिनों में कई विश्वविद्यालयों द्वारा नियुक्तियों हेतु विज्ञापन निकाले गए हैं। इन विज्ञापनों में आरक्षण और रोस्टर से जुड़े सवालों को भी हम  उठाते रहे हैं; ताकि उच्च शिक्षा के क्षेत्र में दलित-बहुजनों समुचित हिस्सेदारी हो सके। आप भी हमारी इस मुहिम का हिस्सा बन सकते हैं। नियोजन संबंधी सूचनाओं, खामियों के संबंध में हमें editor@forwardmagazine.in पर ईमेल करें। आप हमें 7004975366 पर फोन करके भी सूचना दे सकते हैं)

(कॉपी संपादन : नवल)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें


आरएसएस और बहुजन चिंतन 

मिस कैथरीन मेयो की बहुचर्चित कृति : मदर इंडिया

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार

लेखक के बारे में

सुशील मानव

सुशील मानव स्वतंत्र पत्रकार और साहित्यकार हैं। वह दिल्ली-एनसीआर के मजदूरों के साथ मिलकर सामाजिक-राजनैतिक कार्य करते हैं

संबंधित आलेख

गुरुकुल बनता जा रहा आईआईटी, एससी-एसटी-ओबीसी के लिए ‘नो इंट्री’
आईआईटी, दिल्ली में बायोकेमिकल इंजीनियरिंग विभाग में पीएचडी के लिए ओबीसी और एसटी छात्रों के कुल 275 आवेदन आए थे, लेकिन इन वर्गों के...
बहुजन साप्ताहिकी : बिहार के दलित छात्र को अमेरिकी कॉलेज ने दाखिले के साथ दी ढाई करोड़ रुपए की स्कॉलरशिप
इस बार पढ़ें रायपुर में दस माह की बच्ची को मिली सरकारी नौकरी संबंधी खबर के अलावा द्रौपदी मुर्मू को समर्थन के सवाल पर...
बहुजन साप्ताहिकी : सामान्य कोटे में ही हो मेधावी ओबीसी अभ्यर्थियों का नियोजन, बीएसएनएल को सुप्रीम कोर्ट ने दिया आदेश
इसके अलावा इस सप्ताह पढ़ें तमिलनाडु में सीयूईटी के विरोध में उठ रहे स्वर, पृथक धर्म कोड के लिए दिल्ली में जुटे देश भर...
एमफिल खत्म : शिक्षा नीति में बदलावों को समझें दलित-पिछड़े-आदिवासी
ध्यातव्य है कि इसी नरेंद्र मोदी सरकार ने दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा 2013 में शुरू की गई चार वर्षीय पाठ्यक्रम को वापस कर दिया था।...
गुरुकुल बनते सरकारी विश्वविद्यालय और निजी विश्वविद्यालयों का दलित-बहुजन विरोधी चरित्र
हिंदू राष्ट्रवाद का जोर प्राचीन हिंदू (भारतीय नहीं) ज्ञान पर है और उसका लक्ष्य है अंग्रेजी माध्यम से और विदेशी ज्ञान के शिक्षण को...