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बहुजनों के आरक्षण को दरकिनार करने को निजीकरण पर जोर : पुनिया

कुमार समीर के साथ साक्षात्कार में राज्यसभा सांसद पी.एल. पुनिया बता रहे हैं कि सरकारी विभागों में आउटसोर्सिंग के जरिए नौकरी के अवसर सीमित किए जा रहे हैं। यहां तक कि रेलवे में भी जहां नौकरियों की भरमार होती थी, अब निजी क्षेत्र की कंपनियों को बढ़ावा दिया जा रहा है। यह बहुजनों के साथ हकमारी है

परदे के पीछे

(अनेक ऐसे लोग हैं, जो अखबारों की सुर्खियों में  भले ही निरंतर न हों, लेकिन उनके कामों का व्यापक असर मौजूदा सामाजिक-सांस्कृतिक व राजनीतिक जगत पर है। बातचीत के इस स्तंभ में हम पर्दे के पीछे कार्यरत ऐसे लोगों के दलित-बहुजन मुद्दों से संबंधित विचारों को सामने लाने की कोशिश कर रहे हैं। इस कडी में  प्रस्तुत है, कांग्रेस के राज्यसभा सासंद पी.एल. पुनिया से कुमार समीर की बातचीत। स्तंभ में प्रस्तुत विचारों पर पाठकों की प्रतिक्रिया का स्वागत है। -प्रबंध संपादक) 


केवल आरक्षण का ढोल पीट रही है केंद्र सरकार

  • कुमार समीर

दलित समुदाय से आने वाले पन्ना लाल पुनिया (पी. एल. पुनिया) राज्यसभा में कांग्रेस के सांसद हैं। वर्ष 2013-16 के बीच वे अनुसूचित जातियों के लिए राष्ट्रीय आयोग के अध्यक्ष रहे। फारवर्ड प्रेस की ओर से कुमार समीर ने उनसे मौजूदा समय में बहुजनों के आरक्षण एवं अन्य सवालों को लेकर विस्तृत बातचीत की। इस बातचीत में वे मानते हैं कि बहुजन समाज के लोग विकास की मुख्य धारा में शामिल हों, इसलिए आरक्षण जरूरी है और इस ज़रूरत को ध्यान में रख कर ही संविधान में इसकी व्यवस्था की गई है। इस व्यवस्था को मजबूत करने की जरूरत है और अगर कोई कमजोर करने की कोशिश करता है तो बहुजन समाज को डटकर विरोध करना चाहिए। प्रस्तुत हैं बातचीत का संपादित अंश :

कुमार समीर (कु.स.) : आरक्षण को लेकर मोदी सरकार की नीति पर आपका क्या कहना है? 

पी.एल.पुनिया (पी.एल.पु.) : आरक्षण को लेकर सही मायने में मौजूदा केंद्र सरकार की तरफ से कुछ भी खास नहीं किया गया है। हां, ढोल जरूर पीटा जा रहा है ताकि बहुजन समुदाय को अहसास कराया जा सके कि सरकार उनके लिए फिक्रमंद है। लेकिन हकीकत में कितनी फिक्र की जा रही है, उससे बहुजन समाज के लोग वाकिफ हैं और उनके झांसे में बिल्कुल नहीं आने वाले हैं।

राज्यसभा सांसद पी.एल. पुनिया

कु.स. : अगर आपसे सरकार को नंबर देने के लिए कहा जाए तो आप दस में से कितने नंबर देंगे?

पी.एल.पु. : नम्बर के पचड़े में मैं नहीं पड़ना चाहता। यह आकलन करना आप जैसे मीडिया वालों का काम है कि सरकार जो कह रही है, दावा कर रही है उसमें कितनी सच्चाई है। जब आप जमीनी स्तर पर रिपोर्टिंग करेंगे तो आपके पास ही जवाब होगा कि सरकार को कितने नम्बर दिए जाएं।

कु.स. : चलिए, आप नम्बर नहीं देना चाहते हैं तो यह बताएं कि सरकार की नीतियों में कहां-कहां खामियां हैं?

पी.एल.पु. : आरक्षण को लेकर सरकार की नीतियां कितनी कारगर हैं, इस सवाल का जवाब भी ग्राउंड लेवल पर की गई रिपोर्टिंग से ही पता चल सकता है। हां, मोटे तौर पर आप अगर हमारा जवाब चाहते हैं तो बता दूं कि सरकार की नीतियां दोषपूर्ण हैं और इससे बहुजन समाज का तो कहीं से भला नहीं होने वाला है। ये नीतियां ऐसी हैं जिनसे लगेगा जरूर कि भला होने वाला है लेकिन किसी का भला नहीं होगा।

 कु.स. : सरकार की नीतियों से किसी का भला नहीं होगा, इस दावे के पक्ष में आपका क्या तर्क है?

पी.एल.पु. : मैं पूछता हूं कि आरक्षण का मूल मकसद क्या है। यही ना कि दशकों से शोषित होते आए समुदाय को मुख्यधारा से जोड़ा जाए। क्या सरकार ऐसा हकीकत में कर पा रही है। इस सवाल पर हमारा सीधा और सपाट सा जवाब है बिल्कुल नहीं। अब आप पूछेंगे कि आप जो कह रह हैं, उसका आधार क्या है। जी हां, सच कहें तो सही इच्छा शक्ति के साथ अगर आरक्षण की नीतियां बहाल की जातीं तो सकारात्मक परिणाम सामने होते।

यह भी पढ़ें : दलितों और ओबीसी का विकास टुकड़ों-टुकड़ों में नहीं हो सकता : सुनील आंबेकर

कु.स. : तो आपका मतलब है कि यह सब केवल दिखावे के लिए किया जा रहा है?

पी.एल.पु. : ऐसा मैं नहीं, जो कुछ हकीकत के रूप में सामने दिख रहा है, उससे महसूस हो रहा है और यह महसूस केवल मैं नहीं बल्कि पूरा बहुजन समाज महसूस कर रहा है।

कु.स. : एक-दो उदाहरण देकर समझाएं तो आपकी उपरोक्त बात को बेहतर ढंग से समझा जा सकता है?

पी.एल.पु. : नौकरियों में बैकलॉग नहीं भरे जाने की ही बात करें तो क्या यह सरकार की नीतिगत खामी नहीं है। इसके अलावा नियमों को दरकिनार कर धड़ल्ले से लेटरल एप्वाइंटमेंट को क्या कहा जाय। हाल ही में केंद्र सरकार ने ज्वाइंट सेक्रेटरी, डायरेक्टर, डिप्टी डायरेक्टर पद के लिए लेटरल एप्वाइंटमेंट किया। यह आरक्षण को दरकिनार करने की कोशिश नहीं है क्या।

कु.स. : इसके अतिरिक्त और कहां लगता है जहां आरक्षण को दरकिनार किया जा रहा है?

पी.एल.पु. :  वेकेंसी है नहीं और जो थोड़ी बहुत वेकेंसी बनती भी है तो उसे प्राइवेट सेक्टर को आउटसोर्सिंग पर दे दिया जाता है। रेलवे जहां नौकरियों की हर समय संभावनाएं बनी रहती थीं, वहां भी कई विभागों में पीपीपी (पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप) मॉडल बहाल कर प्राइवेट सेक्टर को चलाने का जिम्मा दे दिया गया है।

कु.स. : इसका क्या मतलब निकाला जाए?

पी.एल.पु. : इसका सीधा सा मतलब है कि सरकार की निजीकरण की पक्षधर है और यह हम सभी जानते हैं कि निजी क्षेत्र में आरक्षण बहाल करने की बाध्यता नहीं है। इसलिए यह कहने में हमें कोई गुरेज नहीं कि आरक्षण नहीं देना पड़े, इस कारण ही निजीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है। 

कु.स. : अंत में एक सवाल। बहुजनों को क्या आप कोई संदेश देना चाहेंगे?

पी.एल.पु. : बहुजन समाज को बारीकी से समझना होगा कि आप से आरक्षण को लेकर जो कहा जा रहा है, उसमें हकीकत क्या है। हवा-हवाई, जुमलों पर विश्वास नहीं कर वास्तुस्थिति को समझना होगा और अगर कहीं गड़बड़ी कहीं दिख रही है या उसकी थोड़ी सी भी संभावना नजर आ रही हो तो उसका पुरजोर तरीके से विरोध करें ताकि आरक्षण विरोधी ताकतों का मंसूबा कामयाब नहीं हो सके। उदाहरण के तौर पर अगर 13 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम का विरोध नहीं किया जाता तो दोबारा से 200 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम फिर से बहाल नहीं हो पाता। 13 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम किस तरह आरक्षण को दरकिनार करने वाला था, इससे हम सब वाकिफ हैं और इस पर काफी चर्चा हो चुकी है। 

(कॉपी संपादन : नवल)


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लेखक के बारे में

कुमार समीर

कुमार समीर वरिष्ठ पत्रकार हैं। उन्होंने राष्ट्रीय सहारा समेत विभिन्न समाचार पत्रों में काम किया है तथा हिंदी दैनिक 'नेशनल दुनिया' के दिल्ली संस्करण के स्थानीय संपादक रहे हैं

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