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झारखंड के जैसे मॉब लिंचिंग प्रदेश बन रहा बिहार, अपनों के हाथों दलित-ओबीसी हो रहे शिकार

लेखक वीरेंद्र यादव बता रहे हैं कि झारखंड के बाद अब बिहार भी मॉब लिंचिंग प्रदेश के बनने की राह पर अग्रसर है। हाल के दिनों में एक के बाद एक कई घटनाएं घटित हुई हैं जिनमें दलित और ओबीसी के लोग शिकार हुए हैं

देश में भीड़ का उन्‍माद खतरनाक दौर में पहुंच गया है। कभी चोरी के नाम पर, कभी डकैती के नाम पर, कभी छेड़खानी के नाम पर तो कभी पशु तस्‍करी के नाम पर भीड़ किसी को भी अपनी हिंसा का शिकार बना ले रही है। यह भी संयोग है कि भीड़ की हिंसा का शिकार आमतौर पर आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर जातियों के लोग ही होते हैं। ठीक वैसे ही जैसे, बलात्‍कार की शिकार होने वाली लड़कियों में अधिकतर सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर जातियों की होती हैं। थानों में दर्ज रिपोर्ट देंखे तो दबंग और मजबूत जातियों की लड़कियों के अपहरण के मामले मिल जायेंगे, लेकिन बलात्‍कार का मामला शायद ही मिले।

भीड़ की हिंसा का अपना समाजशास्‍त्र है। पिछले दिनों छपरा में तीन लोगों को ग्रामीणों ने पीट-पीट कर हत्‍या दी। इन पर पशु चोरी का आरोप था और पशु चोरी करते पकड़़े गये थे। तीनों नट जाति के थे। दो हिंदू और एक मुसलमान नट जाति का था। 19 जुलाई 2019 को ही वैशाली जिले के महुआ में बैंक डकैती के आरोप में पसमांदा समाज के मो. अरमान को पीट-पीटकर मार डाला गया। तीसरी घटना 22 जुलाई 2019 को पटना जिले के धनरुआ में घटित हुई जब अन्य पिछड़ा वर्ग के रामप्रवेश प्रसाद को जमीन विवाद में पीट-पीटकर हत्‍या कर दी गयी।

मॉब लिंचिंग की ये हाल की घटनाएं हैं। ऐसी घटनाओं की लंबी फेहरिस्‍त है और यूपी, बिहार और झारखंड की इसकी तादाद ज्‍यादा ही है। वहीं 21 जुलाई 2019 को पड़ोसी राज्य झारखंड के गुमला जिले में चार लोगों को भीड़ ने पीट-पीट कर मार डाला। यह सभी आदिवासी और दलित थे। 

19 जुलाई 2019 को बिहार के छपरा में लोगों ने मवेशी चोरी के आरोप में तीन लोगों को पीट-पीटकर मार डाला

गौरतलब है कि धार्मिक आधार पर हुए मॉब लिंचिंग को मीडिया में राष्‍ट्रीय स्तर की सुर्खी मिलती है, लेकिन जातीय आधार पर मॉब लिं‍चिंग लोकल खबर कर रह जाती है। 22 जुलाई 2019 को बिहार विधान सभा की कार्यवाही इसी मुद्दे पर चर्चा की मांग को लेकर स्‍थगित कर देनी पड़ी थी। विपक्ष इस मुद्दे पर कार्यस्‍थगन प्रस्‍ताव लाना चाह रहा था, जिसे स्‍पीकर विजय कुमार चौधरी ने अस्‍वीकार कर दिया था। इसके बाद विपक्षी सदस्‍य हंगामा करने लगे और कार्यवाही स्‍थगित करनी पड़ी। बिहार विधान सभा की कार्यवाही दुबारा शुरू होने के बाद में राजद के विधायक रामानुज प्रसाद ने मामले में उठाते हुए कहा कि मॉब लिंचिंग का निशाना कमजोर और अल्‍पसंख्‍यक और दलित-पिछड़ों को क्‍यों बनाया जाता है। इसका क्‍या समाजशास्‍त्र है। छपरा में मारे गये सभी नट जाति के ही थे। इस संबंध में हालांकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के द्वारा कोई बयान नहीं दिया गया। उनकी ओर से विधानसभा में सत्‍तारूढ़ के मुख्‍य सचेतक और मंत्री श्रवण कुमार का मानना है कि सरकार इस मुद्दे पर गंभीर है और इस संबंध में आवश्‍यक कार्रवाई कर रही है।

बिहार के गृह मंत्री सह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर उठ रहे सवाल

हालांकि मॉब लिंचिंग का दूसरा पक्ष यह भी है कि इसके आरोपी या इसमें शामिल व्‍यक्ति भी बहुसंख्‍यक जातियों के ही होते हैं। मॉब लिंचिंग में आरोपी बनये गये अधिकतर लोग भी गैरसवर्ण ही होते हैं। दरअसल छोटी-छोटी बातों पर उत्‍तेजित हो जाने की घटनाएं तेजी से बढ़ रही है। समाज का बड़ा तबका हिंसा के साथ खड़ा दिख रहा है। वैसे में चोरी, डकैती, छेड़छाड़ और पशु तस्‍करी जैसे मामलों में आरोपित का पक्ष सुनने के बजाय भीड़ हमलावर हो जाती है और पीट-पीट कर मार डालती है। वैसे एक प्रवृत्ति यह भी देखी गयी है कि पशु तस्‍करी के नाम पर होने वाली मॉब लिंचिंग की घटनाओं के लिए सवर्ण जातियों के लोग पिछड़ी जातियों को उकसा कर पीछे हट जाते हैं और फिर धार्मिक उन्‍माद का राजनीतिक इस्‍तेमाल शुरू हो जाता है।

(कॉपी संपादन : नवल)


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लेखक के बारे में

वीरेंद्र यादव

फारवर्ड प्रेस, हिंदुस्‍तान, प्रभात खबर समेत कई दैनिक पत्रों में जिम्मेवार पदों पर काम कर चुके वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र यादव इन दिनों अपना एक साप्ताहिक अखबार 'वीरेंद्र यादव न्यूज़' प्रकाशित करते हैं, जो पटना के राजनीतिक गलियारों में खासा चर्चित है

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