h n

‘हिन्दी साहित्य में दलित-बहुजन-महिलाएं’ विषय पर विमर्श को जुटेंगे देशभर के शोधार्थी

राजस्थान के श्रीगंगानहर स्थित भगवती कन्या जाटान महाविद्यालय ने “हंस” और “पूर्वकथन” पत्रिकाओँ के साथ मिलकर 11 अक्टूबर को दो दिवसीय सेमिनार और संगोष्ठी आयोजित की है। इसमें दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं के बेहतर भविष्य को लेकर शिक्षक-छात्र समुदाय विचार करेगा। कमल चंद्रवंशी की खबर   

बौद्धिक और शैक्षणिक मोर्चे पर इस समय देश के उच्च शिक्षण संस्थानों और विद्वानों में काफी सक्रियता देखी जा सकती है। इसी कड़ी में आगामी 11 अक्टूबर को “समकालीन विमर्श और बेहतर समाज के सपने- यथार्थ और संभावनाएँ”विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया गया है जिसे श्रीगंगानगर स्थित जाटान कन्या महाविद्यालय और साहित्य की दो पत्रिकाएं मिलकर कर रही है। 

आयोजन समिति का कहना है कि एक बेहतर और विकसित समाज के निर्माण की स्थापना और उसकी संभावनाओं को लेकर मौजूदा दौर में जिस परिवर्तनकारी विचार-मंथन, बौद्धिक विमर्श और विश्लेषण की आवश्यकता है। इसे केंद्र में रखते हुए दो दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया गया है। इसमें कथा मासिक ‘हंस’ (नई दिल्ली) और साहित्य, कला और विचार की पत्रिका ‘पूर्वकथन’ (श्रीगंगानगर) सह संयोजक हैं। 

इसमें दो राय नहीं कि शोधपरक और बौद्धिक विमर्श को लेकर जो आपसी सक्रिय सहभागिता से निष्कर्ष निकलकर सामने आएंगे, वे गोष्ठी के उद्देश्यों को स्थापित करने में अहम भूमिका निभाएंगे। इस महत्त्वपूर्ण संगोष्ठी में राजस्थान और देश के विभिन्न महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों के अध्येतागण, स्वतंत्र रचनाकार, चिंतक और समालोचक भाग लेंगे। गोष्ठी का केंद्रीय विषय ‘समकालीन विमर्श और बेहतर समाज के सपने : यथार्थ और संभावनाएं’ है जिसमें साहित्य, कला, संस्कृति, समाज, सिनेमा, शिक्षा, मीडिया सहित अनेक संवेदनशील मुद्दे विचार-विमर्श के केंद्र में रहेंगे। 

श्रीगंगानगर स्थित जाटान कन्या महाविद्यालय परिसर

आयोजकों ने संगोष्ठी के लिए  महाविद्यालयों/विश्वविद्यालयों से शोधपत्र आमंत्रित किए हैं। इसके लिए निम्नलिखित विषय भी प्रस्तावित हैं। 

* समकालीन नव विमर्श और हिंदी साहित्य

* स्त्रियों की दुनिया: आधी आबादी का विमर्श

* आदिवासी विमर्श: जल, जंगल और जमीन

* दलित विमर्श

* अल्पसंख्यक विमर्श

* वैश्वीकरण के परिप्रेक्ष्य में विमर्श

* मीडिया विमर्श

* बाजार विमर्श

* समकालीन सामाजिक संदर्भ

* साँस्कृतिक संदर्भ: अतीत से भविष्य का निर्माण

* लोक जीवन और लोक संस्कृति

* धर्म और अध्यात्म: रोशनी या अँधेरा

* नई आर्थिक व्यवस्था: देश और दुनिया

* कला, साहित्य और शिक्षा

* कला : बाजार और सरोकार

* सिनेमा के सौ साल और नया सिनेमा

* साहित्यिक पत्रकारिता की भूमिका

* उच्च शिक्षा: दशा और दिशा

* शोध: दशा और दिशा

* समकालीन हिंदी साहित्य और लेखन

* साहित्य का बदलता स्वरूप

* साहित्य सृजन, पठन-पाठन और बाजार का अंत: संबंध

* पाठकीय अभिरुचि और नवलेखन

* साहित्य लेखन और साहित्यकारों की दृष्टि

* सोशल मीडिया का बढ़ता प्रभाव

* साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं की सिकुड़ती दुनिया

इस सेमिनार में शोधपत्र रखने के लिए शिक्षकों का सहभागिता शुल्क 1000 रुपये और शोधार्थी छात्र-छात्राओं के लिए शुल्क 500 रुपये रखा गया है। ये शुल्क स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, लालगढ़ जाटान, भगवती गर्ल्र्स कॉलेज, लालगढ़ जाटान के एकाउंट 61004680781, आईएफएससी कोड- एसबीआईएन. 0031299  एमआईसीआर कोड 335002085 में जमा कराया जा सकता है।

इसके अलावा एक ध्यान देने वाली बात जरूर नोट करें कि शिरकत करने वाले छात्र व शिक्षकों को अपने शोधपत्र का सार क्रुुतिदेव-10 फॉन्ट में 30 सितंबर तक bhagwaticollege@gmail.com भेजना होगा। साथ ही शोध पत्र 11 अक्टूबर, 2019 तक ई-मेल पर तथा इसकी एक हार्डकॉपी महाविद्यालय के पते पर प्रेषित करें। कार्यक्रम में आयोजन समिति को प्रमुख हिंदी पत्रिकाओँ के अलावा सुभाष सिंगाठिया, डॉ. वीना बंसल, राजाराम कस्वां हैं। इच्छुक शोधार्थी आवश्यकता पड़ने पर श्री कस्वां से उनके मोबाइल संख्या 9928429024 पर संपर्क कर सकते हैं।

(संपादन : नवल)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें 

मिस कैथरीन मेयो की बहुचर्चित कृति : मदर इंडिया

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार

लेखक के बारे में

कमल चंद्रवंशी

लेखक दिल्ली के एक प्रमुख मीडिया संस्थान में कार्यरत टीवी पत्रकार हैं।

संबंधित आलेख

यूपी : दलित जैसे नहीं हैं अति पिछड़े, श्रेणी में शामिल करना न्यायसंगत नहीं
सामाजिक न्याय की दृष्टि से देखा जाय तो भी इन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने से दलितों के साथ अन्याय होगा।...
बहस-तलब : आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पूर्वार्द्ध में
मूल बात यह है कि यदि आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाता है तो ईमानदारी से इस संबंध में भी दलित, आदिवासी और पिछड़ो...
साक्षात्कार : ‘हम विमुक्त, घुमंतू व अर्द्ध घुमंतू जनजातियों को मिले एसटी का दर्जा या दस फीसदी आरक्षण’
“मैंने उन्हें रेनके कमीशन की रिपोर्ट दी और कहा कि देखिए यह रिपोर्ट क्या कहती है। आप उन जातियों के लिए काम कर रहे...
कैसे और क्यों दलित बिठाने लगे हैं गणेश की प्रतिमा?
जाटव समाज में भी कुछ लोग मानसिक रूप से परिपक्व नहीं हैं, कैडराइज नहीं हैं। उनको आरएसएस के वॉलंटियर्स बहुत आसानी से अपनी गिरफ़्त...
महाराष्ट्र में आदिवासी महिलाओं ने कहा– रावण हमारे पुरखा, उनकी प्रतिमाएं जलाना बंद हो
उषाकिरण आत्राम के मुताबिक, रावण जो कि हमारे पुरखा हैं, उन्हें हिंसक बताया जाता है और एक तरह से हमारी संस्कृति को दूषित किया...