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आदिवासियों को मिटाने का नया रास्ता है सोनभद्र नरसंहार

18 जुलाई 2019 को उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में दस गोंड आदिवासियों की हत्या कर दी गई। वनों से आदिवासियों को बेदखल किया जा रहा है, विरोध करने वालों को रोज मारा जा रहा है, लेकिन यह तो सीधा नरसंहार है। गोंड आदिवासी समाज की अध्येता चंद्रलेखा कंगाली और उषाकिरण आत्राम ने नरसंहार की कड़ी भर्त्सना की है 

गोंड आदिवासियों के नरसंहार पर आदिवासी लेखिकाओं ने उठाए सवाल 

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में गोंड आदिवासी समाज के दस लोगों को एक नरसंहार में मौत के घाट उतार दिया गया। महाराष्ट्र के गोंड समुदाय की आदिवासी लोगों और लेखक समाज का सोनभद्र से गहरा नाता रहा है। प्रमुख गोंड लेखिकाओं और आदिवासी एक्टिविस्ट उषाकिरण आत्राम की नजर में यह नरंसहार बिहार में दलितों और पिछड़ों की एक जमाने में होने वाली उन सामूहिक हत्याओं और अत्याचारों से भी भयावह है, जहां दलित-पिछड़ों के खिलाफ खूनी संघर्ष का काला इतिहास रहा है।

ऊषाकिरण आत्राम कहती हैं, “सोनभद्र में अपने ही देश के लोगों ने अपने दस लोगों को मारा। यह समाज और सत्ता हमारी प्रतिनिधि नहीं है। हमारी धरोहर नष्ट होती जा रही है। हम जमीन के असली हकदार लोग हैं। आदिवासी और बाकी सब लोग ये जानते ही हैं कि दूसरे सारे जो जमीन पर कब्जा किए हैं वे बाहर से आए हैं। ये बाहर से आने लोगों की अवैध संतानें हैं जो जमीनों पर कब्जा चाहते हैं। ये लोग सोचते हैं आदिवासी लोग हमारी ज़मीन पर कब्जा करते हैं और एक होकर एक समय बाद हमको वहां से भगा देते हैं। पुलिस के पास मदद के लिए जाओ, कोई हमारे लोगों की रिपोर्ट ही दर्ज नहीं करता है। मीडिया के लोगों के पास जाओ तो वो हमारी असली खबर देने से बचते हैं। इतना बड़ा कांड हो गया। क्या किसी की जबावदेही तय होगी, क्या केंद्र सरकार ने राज्य सरकार से पूछा कि यह कैसे हो गया। आदिवासियों के जीवन का सरकार और व्यवस्था के लिए कोई मोल नहीं रह गया है। जानवर (गाय) तक की इस देश में कीमत है, लेकिन हम लोगों की कोई कीमत नहीं है। प्रशासन और शासन व्यवस्था किसके लिए हैं? हम क्या हैं? क्या हम ऐसे ही कीड़े-मकोड़ों की तरह मार दिए जाते रहेंगे..। हम इस देश में रहते हैं। हमारा हक है सरकार पर, जमीन पर और जो कुछ भी देश में हैं। हमें इंसाफ मिलनी चाहिए। बड़े लोग वे चाहे मुख्यमंत्री हों या फिर प्रधानमंत्री क्या अभी तक सोए हैं। जमीन से हटाने का सिलसिला चला ही हुआ है। आदिवासी को मार रहे, काट रहे। ये हम आदिवासियों को पूरी तरह से खत्म करने की साजिश है। सत्ता और ताकत में कोई भी आए और हमको खत्म करता चला जाए। यह कहां का न्याय है? हमारी बेइज्जती करे, मारे, लूटे… मेरा प्रश्न है कि क्या हम देश का रहबासी हैं या नहीं हैं?”

गोंड भाषा की लेखिका व सामाजिक कार्यकर्ता उषाकिरण आत्राम

महाराष्ट्र के नक्सली क्षेत्र गोंदिया में रहने वाली ऊषाकिरण आत्राम कहती हैं, “जब यही सब चलना है तो हम क्योंकर वोटिंग में शामिल हों। हम किस मुंह से बोलें कि ये हमारा देश है। सच पूछा जाए तो हम इनके लिए इस देश के नागरिक हैं ही नहीं। हमारे लिए भी कोई कायदा-कानून है इस देश में? हमें नहीं पता। लेकिन हमें न्याय चाहिए। राजनीति में जितने लोग हैं, जितने सांसद हैं, क्या वे सब सोए हुए हैं? अभी वो बाई (महिला) को राज्यपाल बनाया, सांसद बनाया। लेकिन किसके लिए? वे तलुए चाट रहे हैं एक-दूसरे के। आदिवासी नेतृत्व के नाम पर वे सभी हमें शर्मिंदा करते हैं। वो राजकीय लोगों के पालतू पशु हो गए। हमारा ऐसा ही हश्र किया गया तो हम इनको ही पीटेंगे। हम इनको अपनी सामाजिक जेल में बंद करेंगे। उनको खड़ा करके उनसे प्रश्न पूछेंगे- बोलें कि हमको न्याय देते हैं या फिर क्या मंशा है? आदिवासियों को उनके मूल से मिटाने की साजिश है यह सीधे-सीधे। यह आरएसएस, यह मोदी जो इस समय शासन में नेता बने हैं- यह इन सबकी साजिश है। ऐसा मेरा सीधा-सीधा कहना है इन सभी से।”

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में हुए नरसंहार के बाद एक मृतक का पार्थिव शरीर व विलाप करते परिजन

उनके शब्दों में- “सोनभद्र के नरसंहार का सीधा इशारा है कि आप डरे रहो। आदिवासी डरा रहे। आपको ना तो न्याय मिलेगा, ना कोई कानून आपके लिए है, आप चिल्ला भी नहीं सकते, आप ऐसे ही मरो…। तुम हमारे गुलाम बनकर रहोगे। उनका इशारा है कि वो हमारे अस्तित्व को खत्म कर देना चाहते हैं ताकि आगे के लिए कुछ भी हमारा बचा नहीं रहे। छोटा-मोटा तो रोज मारा जा रहा, अब आदिवासी को नक्सली कहकर मार रहे हैं, माओवादी के नाम से मार रहे। जमीन से बेदखल करते हुए मार रहे, इधर से मार रहे-उधर से मार रहे। कहां जाएंगे हमलोग। अभी दस लोगों को मारा है, कल मुझको भी मारा जाएगा क्योंकि मेरी जमीन भी गैर लोगों ने हड़प ली है। मारने वालों को तो प्रोत्साहन मिलेगा। इस समाज में एक ढर्रा बन गया है कि आदिवासी हो तो चलता है, उसको कोई भी मार सकता है। कानून और न्याय व्यवस्था तो कहीं है ही नहीं। अपने समाज के लोगों के जरिए हम इस सरकार और व्यवस्था को आवाज दे सकते हैं, लेकिन वे खुद तलवे चाट रहे हैं तो क्या करेंगे। पहले इनकी दवा करनी पड़ेगी कि आप बोलेंगे कुछ या नहीं। हमें बता दीजिए क्योंकि समाज के आप प्रतिनिधि हैं। हमारे लोगों ने चुनकर संसद/विधानसभा भेज दिया तब तो आप वहां राज करने गए हो, कुर्सी पर बैठे हैं। लेकिन किनके लिए और क्यों बैठे हो, सिर्फ जी-हुजूरी के लिए ही ना…। आदिवासियों का भविष्य धोखे में है। सोनभद्र का रास्ता आदिवासियों को खत्म करने की तरफ जा रहा है। यहां से गुंडों को रास्ता मिला है। वो खत्म करने के लिए आ रहे हैं…। वो (सरकार) हमको कोई न्याय नहीं देगा। हम मर भी रहे होंगे तो कोई नहीं पूछेगा। ना टीवी वाले ना अखबार के मीडिया वाले, ये सब तो उनकी बपौती बनकर रह गए हैं। कोई भी मीडिया वाले हमारी आवाज नहीं आने देते। इस सत्ता में बैठे शहरी बिरादरी के एक-दो मारे जाते हैं तो कैसा तांडव मचा देते हैं। लेकिन हमें कौन पूछता है? हमारे इतने लोग मारे गए, किसी ने भी तो आंसू नहीं बहाए।”

मैंने देखा है सोनभद्र में आदिवासियों की बदहाली – चंद्रलेखा कंगाली

गोंड साहित्य व परंपराओं की अध्येता चंद्रलेखा कंगाली कहती हैं, “जब तक जागृति नहीं आएगी, नरसंहार होते रहेंगे। अधिकारों के लिए आदिवासी लड़ेंगे नहीं तो यही तो होगा। सभी संगठनों को अधिकारों के लिए लोगों को साथ लेकर लड़ना होगा। यह सब आदिवासियों के नाम चल रहा है। हर कमजोर समाज को दबाने की कोशिश हो रही है। दबे-कुचले सभी लोगों व उनके पास जो कुछ भी है वह सब हड़पने के लिए  इस समय की सत्ता में काबिज ताकतें एकजुट हैं। व्यवस्था को धीरे-धीरे नष्ट करने का काम चल रहा है। कमजोर को खत्म करो, उसको जीने का अधिकार नहीं है- यही सरकार सोचती है। हर बलवान सत्ता की कोशिश होती है कि कमजोर को खत्म कर दिया जाए। वास्तविकता तो यह है कि उसका किसी और पर चलता नहीं है, इसलिए भी वह सब लोग ऐसे करते हैं। चेतना नहीं है इस तबके में, अज्ञानता भी है, यह बड़ा फैक्टर है। गरीबी तो है ही। मूलभूत सवालों की ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा, सरकार को तो इससे मतलब ही नहीं। मैं कुछ साल पहले ही सोनभद्र गई थी-जब मैं छत्तीसगढ़ भी गई थी… वहां (सोनभद्र, यूपी) के हमारे लोग काम करते हैं, रिश्ते में जानने वाले भी है। हमने देखा वहां आदिवासियों की बहुत दयनीय हालत है।  जबतक खुद की लड़ाई खुद नहीं लड़ेंगे तब तक कुछ नहीं हो सकता। इसके लिए मेरा कोई माई-बाप आएगा, मुझे बचाएगा, ऐसा अब नहीं रह गया है। टाइम लगेगा लेकिन एक ना एक दिन जागृति आएगी जब मिलकर सभी उठ खड़े होंगे। हम सरकार को यह बताना चाहते हैं कि हम स्वतंत्र भारत के नागरिक हैं- कोई गुलाम नहीं हैं कि कोई भी आए और हमें मार दे…।”

गोंडी भाषा की अध्येता चंद्रलेखा कंगाली

कंगाली ने आगे कहा “सेंट्रल गवर्नमेंट का आप देख सकते हैं- उसका एजेंडा साफ है। हिंदुत्ववादी तो ही है- यह सबको मालूम है। इसे लेकर कोई नई बात तो है ही नहीं। जो उनकी धार्मिक विधि से नहीं चलते, उनको वो पसंद नहीं आते। इसीलिए उस तरह के हिंदू से बाहर जो भी समाज और जातियां हैं, उनको वे एक ही तराजू से देखते हैं। उनका उद्देश्य सिर्फ हिंदू राष्ट्र के निर्माण करने को लेकर है। उस मकसद के सामने कोई भी आए, वे उसकी परवाह नहीं करते…। लेकिन मैं आदिवासी समाज के उत्थान को लेकर आशान्वित हूं। जागने में समय लगेगा लेकिन जो हम चाहते हैं, वह होकर रहेगा। आदिवासी को इस सरकार ने नक्सली घोषित कर ही दिया है। आने वाले समय में खत्म ही कर देंगे वे, अगर हम जागरूक नहीं हुए। कल यहीं पर नक्सली पैदा होने लगेंगे तो कौन जिम्मेदार रहेगा? सरकार ही होगी ना…। इसीलिए सरकार के लिए देखना चाहिए कि आगे क्या करना है नहीं तो भविष्य में बहुत मुश्किल हो सकती है।”

सोनभद्र का पूरा घटनाक्रम

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले के घोरावल कोतवाली क्षेत्र के ग्राम पंचायत मूर्तिया का उम्भा गांव एक दुस्वप्न है जहां एक समय के बिहार की तर्ज पर नरसंहार हुआ।

नब्बे बीघा जमीन के लिए 10 आदिवासियों को मार दिया गया। हत्यारे 32 ट्रैक्टरों में बैठकर आए जिनकी तादाद 80 से ज्यादा बताई जा रही है। सभी बंदूक, तलवार, कट्टा, गंडासा, फरसा, बल्लम, भाला जैसे हथियारों से लैस थे। गांव के प्रधान यज्ञदत्त गुर्जर ने दो साल पहले एक आईएएस अधिकारी से 90 बीघा जमीन खरीदी थी। लेकिन इस जमीन पर उसका कब्जा नहीं था। 17 जुलाई 2019 की बुधवार की सुबह यज्ञवत अपने 70-80 साथियों के साथ इस जमीन पर कब्जा करने पहुंचा। यहां पहुंचकर उसने जमीन को जोतना शुरू किया। आदिवासी ग्रामीणों ने इसका विरोध किया क्योंकि वे कई पीढ़ियों से इस जमीन पर खेती करते आए हैं। जिसके बाद प्रधान के आदमियों ने हवाई फायरिंग करके ग्रामीणों तो डराना चाहा। लेकिन नाराज ग्रामीणों ने लाठी और पत्थर से इन बाहरी लोगों को भगाने की कोशिश शुरू की। इसी के बाद संघर्ष हुआ। प्रधान के आदमियों ने ग्रामीणों पर घातक हथियारों से हमला बोल दिया जिसमें 3 महिलाओं समेत 10 लोगों की मौत हो गई। फायरिंग यज्ञदत्त के गुंडों की ओर से की गई। किसी के पीठ तो किसी के कमर में गोली लगी। किसी को सामने की ओर से कंधे तक में गोली लगी। गोलीबारी लगभग 20 मिनट तक चलती रही और देखते देखते कई लाशें बिछ गईं। बाद में दो की अस्पताल ले जाते समय मौत हो गई।

जंगलों से घिरे इस इलाके में गोंड आदिवासी रहते हैं और यहां की ज़्यादातर ज़मीन वनभूमि है। जिसपर पीढ़ियों से ग्रामीण आदिवासियों का कब्जा रहा है। लेकिन बाद में कागजातों में हेर-फेर करके लोग यहां जमीन खरीदने की कोशिश करते हैं। बाद में इन जमीनों पर कब्जे को लेकर विवाद हो जाता है। लेकिन सच यह भी कि गांव की जमीन पर पिछले 70 साल से खेत जोत रहे गोंड जनजाति के लोग प्रशासन से गुहार लगाते रहे लेकिन उन्हें जमीन पर अधिकार नहीं दिया गया।

(कॉपी संपादन : नवल)


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लेखक के बारे में

कमल चंद्रवंशी

लेखक दिल्ली के एक प्रमुख मीडिया संस्थान में कार्यरत टीवी पत्रकार हैं।

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