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विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता हमारा प्रमुख एजेंडा : प्रो. शशि शेखर सिंह

डूटा कार्यकारिणी समिति के सदस्य पद के प्रत्याशी प्रो. शशि शेखर सिंह के मुताबिक आज सरकार उच्च शिक्षा से जुड़े हर मामले में हस्तक्षेप कर रही है। वह यह भी तय कर रही है कि छात्रों को क्या पढ़ाया जाय और किन विषयों पर शोध हो

उच्च शिक्षा

दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) का चुनाव 29 अगस्त को होने जा रहा है। इसे लेकर विभिन्न शिक्षक संगठनों के अपने-अपने दावे व समीकरण हैं। इस कड़ी में गैर राजनीतिक शिक्षक संगठन समाजवादी शिक्षक मंच के डूटा कार्यकारिणी के सदस्य पद के प्रत्याशी प्रो. शशि शेखर सिंह से कुमार समीर की हुई बातचीत का संपादित अंश :

 

कुमार समीर (कु.स.) : आप डूटा चुनाव लड़ने जा रहे हैं। विश्वविद्यालय व वहां के शिक्षकों के लिए आपके पास क्या कुछ खास है? यानि आपका एजेंडा क्या है?

प्रो शशि शेखर सिंह (प्रो. शशि) : सबसे पहले बता दूं कि मैं समाजवादी शिक्षक मंच की तरफ से डूटा कार्यकारिणी के लिए चुनाव लड़ रहा हूं। यह गैर राजनीतिक संगठन है और इससे मिलते-जुलते किसी भी राजनीतिक दल का इस मंच से कोई लेना-देना नहीं है। जहां तक एजेंडे की बात है तो पब्लिक फंडेड इंस्टीट्यूशन की स्वायात्तता को बरकरार रखना उनके मंच की पहली प्राथमिकता है। इसके साथ-साथ शिक्षकों के लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व को बनाए रखना, उच्च शिक्षण संस्थानों के निजीकरण की कोशिश पर रोक प्राथमिकताओं में शामिल हैं।

कु.स. : विश्वविद्यालयों की स्वायतत्ता से आपका क्या मतलब है ? क्या विश्वविद्यालय की स्वायतत्ता खतरे में है?

प्रो. शशि : बिल्कुल, विश्वविद्यालयों की स्वायतत्ता खतरे में है। पब्लिक फंडेड इंस्टीट्यूशन पर निजीकरण का खतरा मंडरा रहा है और समय रहते नहीं चेते तो इन्हें निजीकरण की गिरफ्त में आने से कोई नहीं रोक सकता।

 

प्रो. शशि शेखर सिंह

 

कु.स. : आपका आशय सरकार के इंटरफ्रेंस से है?

प्रो. शशि- आपने बिल्कुल सही समझा। शिक्षण संस्थानों में सरकार का हस्तक्षेप किस हद तक बढ़ गया है, इसे इस बात से भी समझा जा सकता है कि क्या पढ़ाया जाय, यह भी सरकार ही तय करना चाहती है। यह फासीवाद नहीं है तो और क्या है? आज स्थिति यह है कि मोटा-मोटी सिलेबस यूजीसी द्वारा तय किए जा रहे हैं और उसमें विश्वविद्यालय की तरफ से थोड़ा-बहुत बदलाव कर उसे हरी झंडी दे दी जा रही है। पिछले दिनों डीयू के हिस्ट्री, पॉलिटिकल साइंस, सोशियोलॉजी व इंग्लिश के पाठ्यक्रमों में इस तरह के हस्तक्षेप पर काफी विरोध हुआ और मजबूर होकर विश्वविद्यालय प्रशासन को अपने कदम पीछे खींचने पड़े। डूटा की यह जीत रही लेकिन हमें लगातार इस तरह के इंटरफ्रेंस पर नजर बनाए रखना है।  हमारी मांग है कि पाठ्यक्रमों के निर्माण में विश्वविद्यालय व संस्थानों की स्वायत्तता पहले की तरह बनी रहे और विभागीय स्तर पर सरकार के हस्तक्षेप पर तत्काल रोक लगे।

 


कु.स.: सिलेबस के अलावा और कहां-कहां हस्तक्षेप हो रहा है?

प्रो. शशि. : कहां-कहां हस्तक्षेप नहीं हो रहा है, यह पूछिए। क्योंकि इस सवाल के जवाब में शायद मैं निरुत्तर हो जाऊं। विश्वविद्यालय के डे-टुडे की एक्टिविटी तक में हस्तक्षेप है। ऐसे में विश्वविद्यालय की स्वायत्तता बहाल रहने की बात बेमानी है। विश्वविद्यालय शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया में किस तरह की कोशिशें हुईं, यह किसी से छिपी नहीं है। समय रहते डूटा ने इसका विरोध किया जिससे सरकार के इशारे पर विश्वविद्यालय प्रशासन की यह कोशिश भी सफल नहीं हो पायी।

कु.स. : इसे थोड़ा विस्तार से बताएं?

प्रो. शशि : ईडब्लूएस यानि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए दस फीसदी आरक्षण लागू होने के साथ ही सबसे बड़ी मुसीबत सालों से तदर्थ शिक्षकों के रूप में पढ़ाते आ रहे व्याख्याताओं पर आ गई। ऐसे लगभग 450-500 शिक्षक जो अपने परमानेंट होने का इंतजार कर रहे थे, उनके सामने नौकरी जाने का संकट उत्पन्न हो गया।

 

 

कु.स. : नौकरी जाने के खतरे को थोड़ा विस्तार से बताएं?

प्रो शशि : नया पोस्ट लाएं और ईडब्लूएस कोटा बहाल करें इस मांग के साथ सालों से तदर्थ शिक्षकों के रूप में नौकरी करते आ रहे व्याख्याताओं के नौकरी जाने के खतरे को टाला गया। क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो ईडब्लूएस कोटे में एक भी  तदर्थ शिक्षक नहीं आते क्योंकि उन सबों की आय ईडब्लूएस कोटे की अधिकतम आय आठ लाख रुपए सालाना से अधिक बैठती थी। शिक्षकों के सामूहिक प्रयास का ही नतीजा रहा कि एक भी रीप्लेसमेंट नहीं होने दिया गया और तदर्थ शिक्षकों के हित का ख्याल रखा गया रोस्टर में।

कु.स. : तो क्या आप ईडब्लूएस कोटे को गलत मानते हैं?

प्रो. शशि : सैद्धांतिक रूप से पक्ष में नहीं थे। सरकार ने लागू कर दिया तो अब आगे विरोध भी नहीं करने जा रहे हैं। क्योंकि, इससे किसी भी वर्ग की सेहत पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ने जा रहा बल्कि इससे एससी,एसटी,ओबीसी कैटेगरी के इनटेक के रूप में भी उसी अनुपात में बढ़ोतरी होगी जबकि अनरिजर्व कैटेगरी में कोई नुकसान नहीं होगा। ईडब्लूएस श्रेणी में दस प्रतिशत सीटें बढ़ती हैं तो अन्य श्रेणियों में उसी अनुपात में सीट बढ़ोतरी के लिए कुल लगभग 25 फीसदी सीटों की बढ़ोतरी करनी होगी। इससे अधिक छात्रों को मौका मिलेगा और उसी अनुपात में शिक्षकों की नियुक्तियां भी होंगी।

कु.स. : संक्षेप में पूछें तो पहले आप लोग ईडब्लूएस कोटे का विरोध क्यों कर रहे थे?

प्रो. शशि : मैंने पहले भी कहा कि सैद्धांतिक रूप से इसके पक्ष में नहीं थे लेकिन जब सरकार की तरफ से इसे बहाल कर दिया गया तब हम सबों ने मांग रखी कि किसी का हक मारकर किसी को फायदा नहीं पहुंचाया जाए। नया पोस्ट लाएं, ईडब्लूएस कोटा बहाल करें। यह हमारी प्रमुख मांग थी और हम सब शुरू में ईडब्लूएस कोटे का नहीं, उसके क्रियान्वयन का विरोध कर रहे थे। क्रियान्वयन में सुधार हो गया और किसी की हकमारी नहीं हुई, इसलिए हम सब ने विरोध करना बंद कर दिया।

कु.स. : इसके अलावा सरकार की किन-किन बातों का विरोध कर रहे हैं?

प्रो. शशि- पब्लिक फंडिंग इंस्टीट्यूशन के फंड में कटौती कर उसे लोन के रूप लेने के लिए दबाव का भी विरोध कर रहे हैं। यह शिक्षा के कॉमर्शिएलाइजेशन की तरफ बढ़ते कदम जैसा है। इसके अलावा नयी शिक्षा नीति से राजनीतिक हस्तक्षेप का भी खतरा बढ़ेगा जिसका शिक्षक समुदाय विरोध कर रहे हैं। पोस्ट डॉक्टोरल फेलोशिप (पीडीएफ) जिसमें मेधावी छात्र-छात्राओं को रिसर्च का मौका मिलता है, वहां भी सरकार कि हसतक्षेप हो रहा है और रिसर्च को नियंत्रित करने के तरीके ढूंढे जा रहे हैं। 

(कॉपी संपादन : नवल)


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लेखक के बारे में

कुमार समीर

कुमार समीर वरिष्ठ पत्रकार हैं। उन्होंने राष्ट्रीय सहारा समेत विभिन्न समाचार पत्रों में काम किया है तथा हिंदी दैनिक 'नेशनल दुनिया' के दिल्ली संस्करण के स्थानीय संपादक रहे हैं

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