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अब विकास की नयी पटकथा लिखेगा लद्दाख : नामग्याल

लद्दाख के सांसद जामयांग सेरिंग नामग्याल के मुताबिक 2012 में उन्होंने राजनीति भाजपा के स्थानीय दफ्तर में सबसे निचले पद पर काम करके शुरू की। महज 34 वर्ष के इस युवा सांसद को उम्मीद है कि लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश के रूप में विकास की नयी पटकथा लिख सकेगा जिसके लिए उसे अबतक वंचित रखा गया। नामग्याल से फारवर्ड प्रेस के प्रतिनिधि कुमार समीर की विशेष बातचीत

लद्दाख के सांसद जामयांग सेरिंग नामग्याल आज परिचय के मोहताज नहीं हैं। और उन्होंने यह मुकाम हासिल किया है बीते 6 अगस्त 2019 को लोकसभा में अनुच्छेद 370 पर भाषण देने के कारण। उन्होंने लोकसभा में हुई बहस के दौरान सभी का ध्यान खींचा और उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सहित सत्ता पक्ष के अनेक सांसदों से वाहवाही मिली। लद्दाख के नवगठित केंद्र शासित प्रांत बनाए जाने, लद्दाख के विकास और जम्मू-कश्मीर के सवालों को लेकर फारवर्ड प्रेस के प्रतिनिधि कुमार समीर ने उसने बातचीत की। प्रस्तुत है बातचीत का संपादित अंश :

कुमार समीर (कु.स.) : लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने पर आपकी प्राथमिक प्रतिक्रिया क्या है? 

जामयांग सेरिंग नामग्याल ( एस. नामग्याल) : लद्दाख के लोग बहुत खुश हैं और केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने को स्वतंत्रता दिवस व बकरीद के सौगात के रूप में ले रहे हैं। इस फैसले से उनका विश्वास जगा है और उन्हें उम्मीद है कि अब उनके दिन बहुरेंगे। लद्दाख के साथ ही जम्मू-कश्मीर और राष्ट्र तीनों का भविष्य बेहतर होगा।

कु.स.: लोकसभा में आपने कहा कि लद्दाख अबतक उपेक्षित था। आपके हिसाब से इस उपेक्षा के लिए कौन जिम्मेवार रहे? 

एस. नामग्याल : यह बात सच है कि आजादी के बाद से ही हमारा क्षेत्र लद्दाख उपेक्षित रहा। जो भी विकास के लिए योजनाएं बनतीं, वह मुख्य रूप से श्रीनगर आदि क्षेत्रों तक सीमित रहतीं। इस कारण से लद्दाख एक तरह से पूरी तरह उपेक्षित रहा। न तो बुनियादी अधिसंरचनाओं का विकास हो सका और न ही इस इलाके के युवाओं के लिए कोई ठोस पहल किए गए। यही वजह रही कि लद्दाखवासी कई सालों से केंद्र शासित प्रदेश होने की मांग कर रहे थे। मेरा मानना है कि अगर आजतक  लद्दाख अविकसित रहा है तो इसके लिए अनुच्छेद-370 और कांग्रेस जिम्मेदार रहे हैं। इसके अलावा जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती व उमर अब्दुल्लाह भी जिम्मेदार हैं। ये लोग पंचायत चुनाव में गायब रहते हैं और जब पद लेने की बारी आती है तभी उन्हें लद्दाख की याद आती है। उन्हें लगता है कश्मीर उनकी पैतृक संपत्ति है लेकिन अब यह ऐसा नहीं है। स्थितियां बदल चुकी हैं। 

लद्दाख के सांसद जामयांग सेरिंग नामग्याल

कु.स.: आप दूसरी पार्टियों पर आरोप मढ़ रहे हैं, जबकि भाजपा लद्दाख में 2014 से जीतती रही है। पिछली बार 2014 में थुपस्तान छेवांग और इस बार आप विजयी रहे हैं?

एस. नामग्याल : आपका सवाल बिल्कुल जायज है लेकिन जवाब भी आपको ही ढूंढ़ना है, मैं केवल तथ्यों को आपके सामने रखता हूं। आजादी के बाद से जम्मू-कश्मीर (लद्दाख सहित) पर सबसे अधिक राज किया है तो वह कांग्रेस है। उसके बाद महबूबा मुफ्ती व उमर अब्दुल्ला की पार्टी ने राज किया है। साल 2014 में लद्दाख लोकसभा सीट से पहली बार भाजपा जीती और जम्मू-कश्मीर विधानसभा में भी महबूबा मुफ्ती की पार्टी के साथ राज्य में सरकार में शामिल हुई। इन सभी का नतीजा है कि 2019 में केंद्र में दोबारा से सत्ता में लौटने के बाद भाजपा धारा 370 खत्म करने में सफल रही और जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दोनों को अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने का फैसला लेने का हिम्मत जुटा पायी। अब जवाब आप ही दें कि भाजपा ने कुछ किया या कम समय में बहुत कुछ किया। 


कु.स.: आप जिन पार्टियों पर आरोप लगा रहे हैं, उसके अधिकांश नेता या तो जेल भेज दिए गए हैं या फिर घर में नजरबंद कर दिए गए हैं? यहां तक कि गुलाम नबी आजाद सरीखे नेताओं को श्रीनगर हवाई अड्डे से वापस भेज दिया गया। जनप्रतिनिधियों को रोकने को आप कहां तक सही मानते हैं?

एस. नामग्याल : देखिए, राष्ट्र हित में उठाये गये कदम पर टीका-टिप्पणी का कोई मतलब नहीं बनता है। अब तक लगातार घटनाएं घटने व जान-माल  का नुकसान हो जाने के बाद सरकार ऐहतियातन इस तरह के कदम उठाती थी लेकिन इस बार पहले कदम उठाकर केंद्र सरकार ने जान-माल का नुकसान नहीं होने दिया, इसमें कहां और क्या बुराई है।

कु.स.: लद्दाख में बौद्ध धर्वालम्बियों के अलावा मुस्लिम आबादी अच्छी खासी है। आपको नहीं लगता है कि जिस तरह के विरोध की खबरें जम्मू-कश्मीर में सामने आ रही हैं, लद्दाख में भी सौहार्द्र बिगड़ सकते हैं?

एस. नामग्याल : मुझे पक्का भरोसा है कि लद्दाख का साम्प्रदायिक सद्भाव पहले की तरह न केवल बरकरार रहेगा बल्कि आने वाले समय में यह और मजबूत होगा। हमारे यहां साम्प्रदायिक सौहार्द की मुख्य वजह यह है कि बौद्धों और मुस्लिमो के बीच खून के रिश्ते हैं और कोई भी इस रिश्ते को बिगाड़ नहीं सकता। 

कु.स.: आपकी नजर में लद्दाख को अनुच्छेद 370 के कारण क्या-क्या नुकसान हुए? 

एस. नामग्याल : सत्तर सालों तक लद्दाख का विकास आखिर क्यों नहीं हुआ, यह बड़ा सवाल है। यहां के युवाओं की पीड़ा मैं समझता हूं क्योंकि यहां उच्च शिक्षा के विकल्प नहीं हैं। यहां ना कोई मेडिकल कॉलेज है और ना ही कोई इंजीनियरिंग या प्रबंधन संस्थान है। काफी समय से यहां के लोग इसकी मांग कर रहे थे लेकिन उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया। आपको जानकर हैरानी होगी कि बुनियादी सुविधाएं तक के लिए लोग तरस रहे हैं। ना तो यहां मूलभूत चिकित्सा सुविधाएं हैं और ना ही सूचना नेटवर्क मसलन मोबाइल नेटवर्क, टेलीविजन नेटवर्क आदि की सुविधा है, ऐसे में कैसे विकास की उम्मीद कर सकते हैं। केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा प्राप्त होने के बाद उम्मीद बंधी है।

कु.स.: अनुच्छेद 370 हट जाने से क्या ये सभी सुविधाएं मिलनी शुरू हो जाएगी?

एस. नामग्याल : एकदम से झटके में तो कोई करिश्मा नहीं हो सकता। हां, इस तरफ कदम बढ़ाना शुरू होता है तो, यह बड़ी बात है। अच्छी बात के रूप में बता दूं कि लद्दाख में 17 अगस्त से आदिवासी महोत्सव शुरू होने जा रहा है। अनुसूचित जनजाति मंत्रालय के कैबिनेट मंत्री अर्जुन मुंडा इसका उद्घाटन करेंगे। टूरिस्ट इलाका होने के कारण ट्रेवल मिनिस्ट्री भी खास करने जा रही है। वहां हैंडीक्राफ्ट्स हैंडलूम, पत्थर व क्ले के क्राफ्ट के स्टाल्स लगाकर पर्यटकों को यहां की संस्कृति आदि से अवगत कराया जाएगा। स्किल  डेवलपमेंट मंत्रालय की तरफ से भी अच्छी अच्छी कंपनियां इलाके में आएंगी और उनके हूनर को देखते हुए युवाओं व कामगारों को मौका देगी। आदिवासी महाेत्सव में युवाओं को रजिस्ट्रेशन कराने का मौका भी मिलेगा। 


कु.स.: और क्या कुछ खास होने जा रहा लद्दाख में ? 

एस. नामग्याल : केंद्र शासित प्रदेश होने का एक फायदा यह भी होने जा रहा है कि डिजिटल इंडिया के तहत जल्द ही लद्दाख में लोगों को मुंबई, दिल्ली जैसी नेटवर्क की सुविधा मिलनी शुरू हो जाएगी। केंद्रीय दूरसंचार मंत्रालय इसके लिए 300 करोड़ रुपए का पैकेज जारी कर चुका है। 

कु.स.: आप जिस सीट से चुने गए हैं, भौगाेलिक दृष्टिकोण से वह देश के बड़े लोकसभा क्षेत्रों में से एक है। अपने लोकसभा क्षेत्र के बारे में बताएं? 

एस. नामग्याल : आपने सही कहा। लद्दाख लोकसभा क्षेत्र जम्मू-कश्मीर की 6 लोस सीटों में से एक है। यह सीट सूबे के दो जिलों कारगिल और लेह में फैला हुआ है। यह दोनों जिले, सूबे के सबसे कम आबादी वाले जिले हैं जहां वोटरों की संख्या 1.66 लाख है जिनमें 86 हजार पुरुष और 80 हजार महिला वोटर हैं। हालांकि क्षेत्रफल के लिहाज से यह लोस क्षेत्र देश का सबसे बड़ा है और इसका कुल क्षेत्रफल 1.74 लाख वर्ग किलोमीटर  है। यहां की अधिकांश आबादी आदिवासी और बौद्ध धर्मावलम्बी हैं। यही कारण है कि 2009 में इस सीट को अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित कर दिया गया था।इस सीट के अंतर्गत चार विधानसभा सीटें कारगिल, लेह, नोबरा और जानस्कार आती हैं।

कु.स.: कारगिल युद्ध के दौरान यह क्षेत्र कितना प्रभावित रहा? 

एस. नामग्याल :  एलओसी पर स्थित यह पूरा इलाका कारगिल युद्ध के बाद आर्थिक के साथ साथ राजनीतिक रूप से कमजोर और अस्थिर हो गया था । हिमालय की गोद में बसा यह क्षेत्र अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण विश्व में विख्यात है। यहां देश-दुनिया से पर्यटक घूमने आते हैं। यही कारण है कि पर्यटन यहां की रीढ़ है। कारगिल युद्ध के दौरान और उसके बाद भी काफी समय तक पर्यटकों का आना यहां ना के बराबर रहा, जिससे स्थानीय लोगों की आमदनी भी काफी कम हो गई थी लेकिन धीरे-धीरे अब फिर से यह रफ्तार पकड़ चुका है।

कु.स.: लोकसभा में आपके संबोधन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी तारीफ की। कैसा रहा है अबतक आपका राजनीतिक सफर?

एस नामग्याल : धन्यवाद। मेरा पालिटिकल कैरियर 2012 में जब शुरू हुआ जब मैं जम्मू पहुंचा और वहां भाजपा और उसकी विचारधारा के संपर्क में आया। उसी साल हमें लेह में भाजपा जिला कार्यालय का कार्यालय सचिव बनाया गया, जो ऑफिस की सबसे छोटी पोस्ट थी। मैंने यह जिम्मेदारी स्वीकार की। मैं उनलोगों के लिए आवेदन पत्र लिखता था जो कार्यालय में आते थे, क्योंकि वे साक्षर नहीं थे या अच्छी तरह से पढ़ना नहीं जानते थे। धीरे-धीरे मुझे पार्टी का प्रवक्ता बना दिया गया। काम करते-करते लोगों का मन जीता और टिकट मिलने पर जीत हासिल की।

कु.स.: लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिलवाने में बतौर सांसद आपकी क्या भूमिका रही?

एस. नामग्याल : मैंने कई मौकों पर कहा है कि  लद्दाख के लोग काफी लंबे समय से लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने की मांग करते आ रहे हैं। हमने केवल उनकी ही बातों को आगे बढ़ाया और जो इससे अनभिज्ञ थे उन्हें जागरूक किया। घर-घर जाकर लोगों से मिलते थे और केंद्र शासित प्रदेश होने के क्या-क्या फायदे हैं, उन्हें बताते थे। हमने बस इतना ही किया। रिजल्ट आपके सामने है। 

(कॉपी संपादन : नवल)


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लेखक के बारे में

कुमार समीर

कुमार समीर वरिष्ठ पत्रकार हैं। उन्होंने राष्ट्रीय सहारा समेत विभिन्न समाचार पत्रों में काम किया है तथा हिंदी दैनिक 'नेशनल दुनिया' के दिल्ली संस्करण के स्थानीय संपादक रहे हैं

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