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प्रोफेसर, क्या आप जानते हो कि नालंदा क्यों जलता रहा?

जेएनयू के संबंध में सरकार प्रायोजित दुष्प्रचार और इस यूनिवर्सिटी के पतन को लेकर प्रोफेसर अभिजीत पाठक और प्रोफेसर अपूर्वानंद ने मार्मिक लेख लिखे हैं, जो क्रमश: द वायर और इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित हुए हैं। फारवर्ड प्रेस के प्रबंध संपादक प्रमोद रंजन उनके विमर्श को आगे बढाते हुए, इस संघर्ष को गैर-अकादमिक दुनिया के बुद्धिजीवियों, समाज-संस्कृति कर्मियों तथा सामाजिक न्याय की लडाई से जोड़ने की आवश्यकता बता रहे हैं

बहु-जन दैनिकी

दिल्ली स्थित प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) के पतन को लेकर पिछलेे दिनों दो मार्मिक लेख प्रकाशित हुए हैं। दोनों ही लेख अभिव्यक्ति और विमर्श की आजादी के पक्षधर लोगों को झकझोर देने वाले हैं। इनमें से एक के लेखक हैं- जेएनयू में समाजशास्त्र के प्रोफेसर अभिजीत पाठक तथा दूसरे के लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर अपूर्वानंद हैं। ये क्रमश: ‘द वायर’ और इंडियन एक्सप्रेस में “The Story of the Fall of a Great University (एक महान विश्वविद्यालय के पतन की कहानी)” और  ‘Killing JNU’(जेएनयू की हत्या की जा रही है) शीर्षकों से प्रकाशित हुए हैं। दोनों ही लेख साहस और प्रतिरोध की बेहतरीन बानगी हैं, तथा मौजूदा सरकार की कारगुजारियों को उजागर करते  हैं। लेकिन, दुर्भाग्य से उनका सत्य एकांगी है और उनके द्वारा प्रस्तुत तर्क न तो गैर-प्राध्यापक बुद्धिजीवी तबकों को अपने साथ जोड़ पाएंगे, न ही बहु-संख्यक जनता को।

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लेखक के बारे में

प्रमोद रंजन

प्रमोद रंजन एक वरीय पत्रकार और शिक्षाविद् हैं। वे आसाम, विश्वविद्यालय, दिफू में हिंदी साहित्य के अध्येता हैं। उन्होंने अनेक हिंदी दैनिक यथा दिव्य हिमाचल, दैनिक भास्कर, अमर उजाला और प्रभात खबर आदि में काम किया है। वे जन-विकल्प (पटना), भारतेंदू शिखर व ग्राम परिवेश (शिमला) में संपादक भी रहे। हाल ही में वे फारवर्ड प्रेस के प्रबंध संपादक भी रहे। उन्होंने पत्रकारिक अनुभवों पर आधारित पुस्तक 'शिमला डायरी' का लेखन किया है। इसके अलावा उन्होंने कई किताबों का संपादन किया है। इनमें 'बहुजन साहित्येतिहास', 'बहुजन साहित्य की प्रस्तावना', 'महिषासुर : एक जननायक' और 'महिषासुर : मिथक व परंपराएं' शामिल हैं

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