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‘कश्मीर में फैल रही है यसीन मल्लिक की मौत की अफवाह’

जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों की बड़ी संख्या में तैनाती को लेकर कयासबाजियों का दौर जारी है। कई अफवाहें भी हैं। फारवर्ड प्रेस ने जम्मू-कश्मीर में दलित-बहुजनों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले आर. के. कल्सोत्रा से बातचीत की। उनके मुताबिक जम्मू-कश्मीर में अलगाववादी नेता यासिन मलिक की मौत की सूचना है। हालांकि इसकी अधिकारिक पुष्टि नहीं की गयी है

आर. के. कल्सोत्रा जम्मू-कश्मीर में एससी-एसटी-ओबीसी फेडरेशन के संयोजक हैं तथा घाटी के उन गिने-चुने लोगों में से हैं, जो दलित-पिछडों की लडाई लंबे समय से लडते रहे हैं। जम्मू-कश्मीर में भारत सरकार द्वारा बड़ी संख्या में सैनिकों की तैनाती के मद्देनजर पूरे देश में तमाम तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। इनमें से एक यह भी केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर में 35ए और धारा 370 हटाने की घोषणा कर सकती है। बहरहाल, फारवर्ड प्रेस ने आर. के. कल्सोत्रा से दूरभाष पर बातचीत की।

नवल किशोर कुमार (न.कि.कु. ) : कल्सोत्रा जी, जम्मू-कश्मीर को लेकर कई तरह की बातें सामने आ रही हैं? आखिर चल क्या रहा है वहां?

आर. के. कल्सोत्रा (आर. के.क.) : देखिए, यहां चलने को तो हवाई जहाज भी चल रहा है, शहर में टैंक चल रहे हैं। चप्पे-चप्पे पर फोर्स खड़ी है।

न.कि.कु. : क्या वहां स्थानीय स्तर पर भी कुछ चर्चा है?

आर. के.क.: हां, 35ए और धारा 370 को लेकर कुछ बातें तो चल ही रही हैं। लोग विरोध भी कर रहे हैं। यहां घाटी में कई विरोध प्रदर्शन भी हुए हैं। साथ ही एक खबर यह भी मेरे व्हाट्सअप पर आ रही है कि यासीन मलिक की तिहाड़ जेल में मौत तीन-चार दिन पहले हो चुकी है। स्टेट में खून-खराबा न हो, इसके लिए सुरक्षा व्यवस्था अचानक बढ़ा दी गयी है।

आर.के. कल्सोत्रा

न.कि.कु. : क्या यसीन मलिक की मौत की खबर की अधिकारिक पुष्टि हुई है?

आर. के.क.: नहीं जी। अभी तक तो अधिकारिक तौर पर कुछ नहीं बताया गया है। केवल व्हाट्सअप आदि पर ऐसे संदेश आ रहे हैं। 

न.कि.कु. : हो सकता है कि यह महज अफवाह हो? क्या राज्य सरकार ने जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट आदि पर बैन नहीं लगाया है?

आर. के.क.: आप सही कह रहे हैं कि यह अफवाह भी हो सकता है। लेकिन लोगबाग अब यह कह रहे हैं। जबतक अधिकारिक तौर पर कुछ न कहा जाय, कुछ नहीं कहा जा सकता है। रही बात इंटरनेट की तो अभी तक इस पर बैन नहीं है। हो सकता है कि जिस तरह से सरकार सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद कर रही है, इस पर भी बैन लगा दे। अभी जम्मू-कश्मीर के जैसे हालात हैं, कुछ भी हो सकता है। अब आप ही बताइए कि सुरक्षा बलों की जरूरत तो सीमा पर होती है और वहां जवान पहले से तैनात हैं। अब सिविलियन इलाकों में जहां आम नागरिक रहते हैं, वहां सुरक्षा बलों की तैनाती का क्या मतलब है।

श्रीनगर में गश्त लगाते सुरक्षा बल के जवान

न.कि.कु. : कल्सोत्रा जी, पूरे देश में लगायी जा रही कयासबाजियों में से एक यह भी है कि केंद्र सरकार 35ए और धारा 370 को हटा सकती है। इन दोनों धाराओं का दलित-बहुजनों से क्या संबंध है?

आर. के.क.: देखिए ये दोनों धाराएं जम्मू-कश्मीर के दलित-बहुजनों के लिए महत्वपूर्ण हैं। जैसे कि 35ए के जरिए शेख अब्दुल्ला ने जब भूमि सुधार लागू किया तब बड़ी संख्या में जो बटाईदारी के आधार पर खेती करते थे, एकाएक जमीन के मालिक बन गए। इनमें दलित-बहुजन भी थे। यह धारा बाहरी लोगों को जमीन हस्तांतरण से रोकती है। अब यदि इसे हटा दिया गया तो आने वाले समय में यहां के लोगों के हाथों से जमीन छीनी जाएगी। दूसरी ओर धारा 370 के हटने से भले ही दलित-बहुजनों को बहुत ज्यादा नुकसान नहीं होगा लेकिन फायदा भी नहीं होगा। यह कहना ज्यादा मुनासिब है कि नुकसान ही ज्यादा होगा। सच तो यह है कि 370 के हट जाने के बाद घाटी में हिंदुओं का वर्चस्व बढ़ेगा और इसका शिकार मुसलमान तो होंगे ही दलित-बहुजन भी होंगे। मैं अभी एक कार्यक्रम में जा रहा हूं। वहां इस सवाल पर बोलूंगा। आपने सही सवाल उठाया है।

(कॉपी संपादन : सिद्धार्थ)


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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