h n

आधुनिक और पारंपरिक विद्वानों के वाचन का मिलाजुला कैलेंडर

भारतीय ज्ञान परंपरा में आधुनिक विचार से लेकर मीडिया और हिंदी के प्रचार प्रसार को लेकर ऐसे तमाम आयोजन हो रहे हैं जिनमें आने वाले दिनों में देश के बौद्धिक और अकादमिक समाज के लोग काफी व्यस्त होंगे। ये आयोजन क्या हैं, इस हफ्तावार कॉलम में पहले से और अधिक आगामी कार्यक्रमों का ब्यौरा दे रहे हैं कमल चंद्रवंशी

सोच पर मीडिया का असर

न्यू मीडिया, मेन मीडिया, सोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रानिक मीडिया, वैकल्पिक मीडिया- कई नामों में इस समय देश में मीडिया पर चर्चाएं चल रही हैं। इसलिए शैक्षणिक और बौद्धिक जगत में इधर के समय में मीडिया पर विमर्श बढ़ गया है। इसी कड़ी में प्रयागराज के इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एन्थ्रोपॉलिजी विभाग ने मानव संसाधन मंत्रालय के संस्थान आईसीएएसएसआर के सौजन्य से 21-22 नवंबर 2019 को दो दिन का राष्ट्रीय सेमीनार आयोजित किया है।

आयोजन के सचिव शैलेंद्र कुमार मिश्रा ने बताया कि इस सेमीनार का विषय ‘ग्लोबलाइज्ड मीडिया एंड ट्रांसफार्मिंग सोसाइटीज- इशूज एंड चेंलेंजेज इन कंटपररी इंडिया’ रखा गया गया है। इस मुख्य विषय के आसपास शिक्षक और शोध छात्र अपने आलेख औऱ शोध जिन उपविषयों पर लिख सकते हैं, वो हैं- 1. मीडिया, पर्यावरण और खेती, 2. मीडिया, समाज संस्कृति और स्वास्थ्य मुद्दे 3. मीडिया, समाज, संस्कृति और अंतरराष्ट्रीय सीमाई क्षेत्र 4. मीडिया में लोक और आदिवासी मुद्दों का प्रतिनिधित्व 5. मीडिया, समाज, संस्कृति और उपभोक्ताओँ का व्यवहार 6 मीडिया और संवेदनशील मामले 7. मीडिया और राष्ट्रीय सुरक्षा 8. कल्चरल डाइमेंशन ऑफ फेक न्यूज समेत कई विषय रखे गए हैं।

आयोजकों के मुताबिक इस सदी में मीडिया का बड़ा रोल है। मीडिया ने हमारी सोच की प्रक्रिया को बदलने का काम किया है। पुराने समय में हर दौर की घटनाओँ और स्थितियों का सीमित दस्तावेजीकरण होता था। प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया का आज हर तरफ असर है। लेकिन इसी मीडिया ने सामाजिक बुराइयों जागरूकता पैदा की है। हाल के दशकों में मीडिया में कुछ नए मुद्दे आए हैं जैसे लिंग भेद, जातीय-भेदभाव और आदिवासियों के खिलाफ होने वाले अत्याचार। जाहिर है मीडिया का समाज के बड़े हिस्से पर प्रभाव पड़ता है इसलिए मीडिया का सृजन और शेयरिंग एक तरह से दुतरफा हुए हैं। लेकिन आयोजकों का यह भी मानना है कि आज के मीडिया से समाज के कई तबकों को शिकायत है कि उनकी ओर उसका ध्यान नहीं है। मेन स्ट्रीम मीडिया में कई तबकों की आवाजें नहीं सुनाई देती हैं। शोधार्थियों और शिक्षक समुदाय का इस ओर भी ध्यान दिलाया गया है कि किस तरह से मीडिया ने कई आंदोलनों को लेकर जोरदार कवरेज की। बीबीसी के फेक न्यूज के बारे में किए गए हाल के एक कवरेज का भी उल्लेख किया गया है। आयोजकों का कहना है इस सेमीनार का मकसद यही बताना है कि किस तरह से मीडिया ने हमारे समाज के बीच गहरे पैठ बनाई है। कहा जा सकता है इस सेमीनार से ना सिर्फ मीडिया को समझने के लिए काफी कुछ मिलेगा बल्कि देश का अकादमिक और बौद्धिक तबका भी मीडिया की गहराई को समझेगा।

कार्यक्रम के लिए मुख्य रूप से डॉ शैलेंद्र कुमार मिश्रा को shailendra17@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है। उनके फोन नंबर हैं-8052513613, 9415895246। इसके अलावा सचिन गिरी (sachingiri1@gmail.com, 920825136) से भी संपर्क किया जा सकता है। शोध और आलेख का सार संक्षेप 30 सिंतबर तक भेजना होगा। इनकी मंजूरी को लेकर  5 अक्टूबर तक सूचना दी जाएगी। पूर्ण शोध आलेख भेजने की अंतिम तिथि 30 अक्टूबर है। आलेख सारांश और पूर्ण लेख, शोध सांगठनिक सचिव को natisemianthro@gmail.com पर भेजना होगा।  

हिंदी का कहां कितना उपयोग हो रहा है

कृष्ण कुमार सिंह भावनगर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग ने सीएसआईआर- केंद्रीय नमक व समुद्री रसायन अनुसंधान संस्थान के साथ मिलकर 12-13 सितंबर, 2019 को राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया है। इसका विषय है “साम्प्रत समय (मौजूदा दौर) में विभिन्न क्षेत्रों में हिंदी भाषा साहित्य का अनुप्रयोग।” कार्यक्रम अटल ऑडिटोरियम, एम.के भावनगर विश्वविद्यालय सभागार में होगा।

आयोजन समिति के डॉ. एएम युसूफजई और प्रो एचएन वाघेला ने बताया कि कार्यक्रम का उद्घाटन सुबह 10:30 बजे होगा। इसमें डॉ महिपत सिंह चावड़ा, कुलपति, महाराजा कुष्णकुमार सिंहजी भावनगर विश्वविद्यालय शिरकत करेंगे जबकि मुख्य वक्ता के तौर पर प्रो उमाशंकर उपाध्याय शामिल हो रहे हैं जो महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा, महाराष्ट्र के पूर्व प्रोफ़ेसर हैं। कार्यक्रम में प्रो विष्णु सरवदे, प्रोफ़ेसर, केंद्रीय विश्वविद्यालय, हैदराबाद, तेलंगाना भाग ले रहे हैं। साथ ही प्रो.एसआर सरराजू, प्रोफ़ेसर, केंद्रीय विश्वविद्यालय, हैदराबाद, तेलंगाना, प्रो सूरज पालीवाल पूर्व अधिष्ठाता, कलासंकाय, महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय वर्धा, के अलावा केंद्रीय विश्वविद्यालय गुजरात, गांधीनगर के प्रो. आलोक गुप्त और पूर्व प्रोफ़ेसर एवं अध्यक्ष, सरदार पटेल विश्वविद्यालय, वल्लभ विद्यानगर के प्रो. नवनीत चौहान भी होंगे।

आयोजकों का मानना है कि आज के समय में विश्व ग्लोबल हट बन चुका है। इस दौर में भाषा और साहित्य का अनुप्रयोग प्रत्येक क्षेत्रों में अपनी निजी पहचान के साथ उभर रहा है, जैसे सूचना प्रौद्योगिकी की भाषा, इलेक्ट्रोनिक उपकरणों की भाषा, प्रिंट मीडिया की भाषा, बाज़ार की भाषा सभी में एक निश्चित परिवर्तन लक्षित है। समय के अनुसार नए-नए शब्द, वाक्यावली एवं प्रयुक्तियाँ प्रयुक्त होती रही हैं। इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के तहत हम विभिन्न क्षेत्रों के अधिकारी विद्वानों को साम्प्रत विषय पर अपने लेख प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित कर चुके हैं।


राष्ट्रीय संगोष्ठी के अन्य सभी प्रतिभागी निम्नांकित विषयों पर अपना प्रपत्र drhnv1959@gmail.com पर भेज सकेंगे। विषय होंगे- वैश्वीकरण की संकल्पना, स्वरूप एवं उसका हिन्दी भाषा साहित्य पर प्रभाव। साम्प्रत कहानी लेखन की हिन्दी भाषा, सूचना प्रौद्योगिकी के विभिन्न उपकरणों की हिन्दी भाषा, साम्प्रत लघुकथा लेखन की हिन्दी भाषा, साम्प्रत समय में पत्रकारिता की हिन्दी भाषा, उपन्यास लेखन की हिन्दी भाषा, पत्र-पत्रिकाओं की हिन्दी भाषा, नाट्य लेखन की हिन्दी भाषा, टेलीविजन की हिन्दी भाषा, निबंध लेखन की हिन्दी भाषा, नाट्य रूपांतरण की हिन्दी भाषा और एकांकी लेखन की हिन्दी भाषा। अधिक जानकारी के लिए डॉ. युसूफजई और प्रो. वाघेला को 9427232294, 9427456958, 07990657503 फोन नंबरों पर संपर्क किया जा सकता है।

छायावाद में मुक्ति की चाह क्या है

जामिया मिल्लिया इस्लामिया नई दिल्ली के हिंदी विभाग ने “छायावाद- मुक्त की चाह” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया है। जामिया मिल्लिया के अंसारी ऑडिटोरियम के सभागार में यह कार्यक्रम 25 और 26 सितंबर को होगा। 

ज्ञातव्य है कि इन  हिंदी साहित्य का छायावाद का सौवां वर्ष मना रहा है जिसमें छायावाद से जुड़े रचनाकारों, खासकर कवियों के लेखन की जीवंतता को पहचानने की कोशिश हो रही है। हिंदी विभाग से जुडे एक आयोजक का कहना है कि उस काव्य आंदोलन के दौर का स्मरण इसलिए भी जरूरी हो जाता है कि आज के समय में उसके कई अनछुए पहलू या तो पहचाने नहीं गए या भुला दिए गए हैं। छायावाद के ही दौर में गांधी, नेहरू, आंबेडकर, सुभाष, पटेल जैसे लोगों ने आजादी की आंच को नई ऊष्मा दी थी। इस दौर में प्रसाद, पंत, निराला और महादेवी की रचनाएं कालजयी बनीं।

कार्यक्रम की आयोजन समिति में अब्दुल हासिम, सुनील कुमार यादव, वरुण भारती, सुशील द्विवेदी, डॉ मुकेश कुमार मेरोठा और चंद्रदेव यादव हैं। ज्यादा जानकारी के लिए hindi@jamia.ac.in पर या 011 26981717, 011 26982783 फोन नंबरों के जरिए संपर्क किया जा सकता है।

विज्ञान व तकनीक की मानक शब्दावली

वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, उच्चतर शिक्षा विभाग ने “वैदिक गणित एवं भारतीय भाषाएँ” विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का 18-19 अक्टूबर 2019 विशेष आयोजन किया है। संगोष्ठी में वैदिक गणित एवं आठवीं अनुसूची में वर्णित भारतीय भाषाओं से संबंधित विषय के प्रतिभागी शिक्षक, विद्वान, वैज्ञानिक, अधिकारी और संबंधित व्याख्यान से जुडे संसाधक विद्वान व वैज्ञानिक भाग लेंगे। 

गौरतलब है कि विभिन्न विषयों की भारतीय भाषाओँ में मानक तकनीकी शब्दावली निर्माण के लिए और भाषा संवर्धन के लिए सरकारी स्तर पर काफी काम हो रहा है। आयोग ने प्रामाणिक शब्दावली के प्रयोग को समुचित बढ़ावा देने के उद्देश्य तथा विभिन्न भारतीय भाषाओँ में निर्मित मानक शब्दावली का उपयोग किस प्रकार किया जाए इस उद्देश्य से आयोग द्वारा विभिन्न संस्थाओं, विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों संस्थानों तथा आयोग परिसर में विभिन्न संगोष्ठियों, कार्यशालाओं का आयोजन किया जाता हैं। इन कार्यक्रमों में तकनीकी शब्दावली के सिद्धांतों, समस्याओं और उनके निर्माण के विभिन्न पक्षों के साथ-साथ व्याख्यान के माध्यम से किसी विषय या विषय समूह के विभिन्न पहलुओं पर विचार विमर्श तथा तकनीकी शब्दावली के प्रयोग से प्रतिभागियों को परिचित कराया जाता हैं।

मानव संसाधन विकास मंत्रालय, उच्चतर शिक्षा विभाग में वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर अवनीश कुमार ने बताया कि संगोष्ठी के लिए अंतिम तिथि 30 सितंबर 2019 तक प्रतिभागियों, व्याख्यानदाताओं से शीर्षक संबंधित विषयों में हिंदी भाषा में शोध पत्र व लेख भी आमंत्रित किए जा रहे हैं। इसके लिए जरूरी जानकारी के लिए https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLSepWfd0z5BPgAyf0ILxYnhIYpo9JrP_5FXx3UIC-hGFC0OORg/viewform?usp=sf_link पर जा सकते हैं।

यह कार्यक्रम वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, उच्चतर शिक्षा विभाग, पश्चिमी खंड 7, आर के पुरम, नई दिल्ली में होगा। संगोष्ठी से संबंधित जानकारी के लिए जिन अधिकारियों से संपर्क किया जा सकता है, वो हैं- 1. डॉ. बी. के. सिंह, सहायक निदेशक, 011-26105211, 2.  विजय राज सिंह शेखावत, स. वैज्ञानिक अधिकारी (गणित), 9971513820, इनका ईमेल पता है- vjcstt@gmail.com, 3. सी. बिनोदिनी देवी, स. वैज्ञानिक अधिकारी (पत्रकारिता), 9899717448। संगोष्ठी में पंजीकरण के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा।

साहित्य के अनुवाद की समस्या

साहित्यिक रचनाओँ का काम जितना कल्पनाशील होता उतना ही कठिन भी  जाता है। इस समस्या पर दिल्ली विश्वविद्यालय के पीजीडीएवी कॉलेज ने आगामी 11-12 अक्टूबर 2019 को साहित्य अकादमी, नई दिल्ली और शोधसंवाद-रिसर्च फोरम के संयुक्त तत्वावधान में दो दिन की राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया है। इसका विषय है- “साहित्यिक अनुवाद और तुलनात्मक अध्ययन में उभरती हुई चुनौतियों का अध्ययन”। आयोजकों ने उक्त संगोष्ठी में शिक्षकों और छात्रों को शोधपत्र प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया है।

इसके लिए रजिस्ट्रेशन फीस छात्रों के लिए 300 रुपये और शिक्षकों के लिए 500 रुपये रखी गई है। पूरा शोध आलेख apnetwork18@gmail.com पर भेजा जा सकता है। शोध आलेख भेजने की अंतिम तिथि 25 सितंबर है। ज्यादा जानकारी के लिए आयोजकों से 7678118393, 8851475025, 9718704903 फोन नंबरों पर सपर्क किया जा सकता है।

आंबेडकर के विजन का लोकतंत्र

नागपुर स्थित नागलोक नागार्जुन संस्थान ने 9-10 अक्टूबर 2019 को डॉ. आंबेडकर और लोकतंत्र विषयक विश्व सम्मेलन आयोजित किया है जिसके लिए विश्वभर से शोधार्थियों, छात्रों, दार्शनिकों और बौद्ध स्कॉलरों से शोध और आलेख आमंत्रित किए हैं। संस्था से जुड़े आयोजक लखिंदर सोरेन ने बताया कि उनकी पहली कोशिश ये बताने की है कि वो सैद्धांतिक पहलू क्या थे जिन्होंने आंबेडकर को सर्वाधिक प्रभावित किया और जिसने उनकी सोच को लोकतंत्र को समझने में गहराई से प्रभावित किया। जॉन डेवी, बुद्ध, फुले, शाहू महाराज और कई अन्य थे जिन्होंने उनकी लोकतंत्र के प्रति सोच तैयार की थी।

पूरे सम्मेलन को लेकर तैयार की गई रूपरेखा और संदर्भ के मुताबिक 26 जनवरी 1950 को जब भारत के लोकतांत्रिक गणतंत्र की नींव रखी गई, तो यह किसी एक धार्मिक समूह या खास विचारधारा से नहीं थी। आंबेडकर ने अपना पूरा जीवन लोकतंत्र की स्थापना के लिए झोंक दिया था। जिसमें समाज के हर नागरिक की गरिमा, आत्म-सम्मान और आजादी दी गई। ताकि लोग लोकतंत्र में मिली आजादी का आनंद उठा सकें और उसमें खुद भी भागीदार बनें। जाहिर है,ऐसे में भारतीय लोकतंत्र में आंबेडकर की भूमिका फाउंडेशन फादर की तरह है।

संस्थान ने सम्मेलन में विशेष मुख्य व्याख्यान रखे हैं- उनमें आंबेडकर और लोकतंत्र, अर्थशास्त्र और लोकतंत्र, चुनाव प्रणाली और डेमोक्रेसी, बुद्धिज्म एंड डेमोक्रेसी रखे हैं। इनमें रूट्स ऑफ डॉ. भीमराव आंबेडकर एंड डेमोक्रेटिक मूवमेंट इन इंडिया, फिलॉसफी एंड स्कोप ऑफ डेमोक्रेसी इन बाबा साहेब थाट्स एंड फिलॉसफी, बुद्धिज्म एंड डीप डेमोक्रेसी, एनाइलेश्न ऑफ कास्ट एंड डेमोक्रेसी, डेमोक्रेटिक मूवमेंट इन इंडिया एंड इट्स ग्लोबल सीग्निफीकेनश्स, डेमोक्रेसी एंड ट्रांसफॉरमेशन जैसे विषय पर खास जोर होगा।

शोधपत्र और आलेख 15 सितंबर तक भेजे जा सकते हैं जिनके बारे में ईमेल के जरिए 17 अगस्त को स्वीकृति मिल सकती है। अपने आलेख और शोध http://www.nagaloka.org/ic2019 पर भेजें। ज्यादा जानकारी के लिए लखिंदर सोरेन से 9967883973 पर संपर्क किया जा सकता है। कार्यक्रम स्थल नागपुर का कांप्टी रोड स्थित नागार्जुन संस्थान होगा।

पश्चिम बंगाल में कविता परिसंवाद

समकालीन कविता के विविध संदर्भ को लेकर हावड़ा संस्कृत साहित्य समाज मंच की ओर से 8 सितंबर 2019 को विचार संवाद का आयोजन किया गया है। इसमें डॉ. शंभुनाथ शुक्ल और प्रोफेसर रविभूषण शामिल होंगे। जबकि मुख्य वक्ता के तौर पर उत्तर बंगाल विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की अध्यक्ष मनीषा झा शिरकत करेंगी। इस मौके पर मुक्तांचल पत्रिका के अंक का भी विमोचन किया जाएगा। कार्यक्रम विप्लव हरेंद्रनाथ घोष सारणी हावड़ा में होगा जो म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन के नजदीक है।

आयोजकों ने बताया कि परिसंवाद में दामोदर मिश्र, मुक्तेश्वर नाथ तिवारी, विजय भारती, सुनील कुमार सुमन, राजीव कुमार रावत, शशिभूषण द्विवेदी, विभा कुमारी भी शिरकत करेंगे। इस मौके पर एक कवि गोष्ठी भी होगी जिसमें रणजीत वर्मा- पटना, अशोक कुमार सिंह- दुमका, शैलेंद्र शांत, उमा झुनझुनवाला, निर्मला तोदी, जितेंद्र धीर, लखवीर सिंह निर्दोष, सेराज खान बातिश, विमलेश त्रिपाठी, जीवन सिंह, सविता पोद्दार, सुमन कनुप्रिया, सारदा बनर्जी, वसुंधरा मिश्रा, डॉ. आशुतोष रावेल पुष्प, सरिता खोवाला, रीमा पांडे. आरती सिंह. श्वेता सिंह, संजीव दुबे, जितेद्र जितांशु, नवीन सिंह कुशेश्वर, यतीश कुमार, नीलकमल, आशुतोष कुमार सिंह, अजय चक्रवर्ती अतिरेक, चंद्रिका प्रसाद पांडे, अनु नेवटिया, अनुराधा सिंह अपनी रचनाओँ का पाठ करेंगे।

इस बारे में ज्यादा जानकारी के लिए 6/ 2/ 1 आशुतोष मुखर्जी लेन, सलकिया हावड़ा स्थित आयोजक विद्यार्थी मंडल से संपर्क किया जा सकता है। आयोजकों से 033 26751686 पर या मोबाइल नंबर 9831497320 पर संपर्क किया जा सकता है।

बौद्ध धर्म और हमारा समय

संत तुलसीदास पीजी कॉलेज कादीपुर, सुलतानपुर ने मौलाना अब्दुल कलाम आजाद स्टेट ऑफ एशियन स्टडीज कोलकाता के सौजन्य से “समय के प्रवाह में बौद्ध धर्म” (दक्षिण पूर्वी एशिया का परिपेक्ष्य) विषयक 2 दिन की राष्ट्रीय संगोष्ठी 21 और 22 सितंबर 2019 को अयोजित की है। इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में देशभर के शिक्षकों और स्कॉलरों से शोध पत्र व आलेख मंगाए गए हैं। आयोजकों का कहना है कि बौद्ध धर्म की आध्यात्मिकता ने समय के प्रवाह में अपनी जीवंतता को बनाया हुआ है और वर्तमान में उसके धार्मिक संदेश विश्व मानवता के लिए अमृत समान है। खासकर दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों को लेकर। इनकी सामाजिक बनावट, आर्थिक गतिविधियां एवं धार्मिक पद्धतियां में बौद्ध धर्म प्रतिबिंबित होता है। बौद्ध धर्म का प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रभाव पूरे विश्व के दर्शन में देखा जा सकता है। इस संगोष्ठी में 1. वैश्विक परिप्रेक्ष्य में बौद्ध धर्म एवं चिंतन की प्रासंगिकता और ग्राह्यता 2. बौद्ध धर्म में नैतिक आचरण संहिता और मानव सभ्यता के विकास में उसकी भूमिका 3. बौद्ध धर्म के शैक्षणिक प्रबंधन और मानववादी शिक्षा के विकास में उसकी भूमिका 4. नारी सशक्तिकरण में बौद्ध धर्म की महत्ता 5. पर्यावरण संवेदना एवं चिंतन में बौद्ध धर्म की नजरिया 6. विश्व में राजनीतिक स्थिरता और शांति स्थापना में बौद्ध धर्म का योगदान 7. सामाजिक गतिशीलता और उत्कर्ष में बौद्ध धर्म का अवदान 8. दक्षिण पूर्वी देशों में भारत की विदेश नीति और बौद्ध धर्म का आदर्श 9. बौद्ध धर्म के पवित्र स्थल और सांस्कृतिक पर्यटन में उनकी महत्ता 10. मनोवैज्ञानिक उन्नयन में बौद्ध धर्म का योगदान 11. कला, साहित्य और संस्कृति के आईने में बौद्ध धर्म 12. विश्व की अर्थव्यवस्था और नैतिक उत्थान में बौद्ध धर्म- प्रमुख विषय हैं। जिन पर शोधपत्र और आलेख तैयार किए जा सकते हैं।

कार्यक्रम के मुख्य संरक्षक आचार्य मनोज दीक्षित हैं, जो राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय अयोध्या के कुलपति हैं। इसके अलावा प्रबंध समिति में संत तुलसीदास पीजी कॉलेज कादीपुर के ओम प्रकाश पांडे, सौरभ त्रिपाठी, जितेंद्र कुमार तिवारी, समीर कुमार पांडे, सतीश कुमार सिंह हैं।

छात्रों के लिए 300 रुपये जबकि शिक्षकों के लिए 700 रुपये पंजीकरण राशि रखी गई है। शोधपत्र और आलेख को stdseminar2019@gmail.com पर भेजा जा सकता है। इस बारे में डॉ. समीर कुमार पांडेय से 9415360981 और सतीश कुमार सिंह से 9305183958 पर संपर्क किया जा सकता है।

जनकवि बाबा नागार्जुन के उपन्यास

जनकवि नागार्जुन स्मारक निधि और आत्मा राम सनातन धर्म महाविद्यालय (एआरएसडी) दिल्ली विश्वविद्यालय ने रज़ा फ़ाउंडेशन के सहयोग से 16 अक्तूबर 2019 को एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया है। इसका विषय है: नागार्जुन के उपन्यास: विविध आयाम। यह जानने योग्य बात है कि हिंदी,  मैथिली, संस्कृत और बांग्ला मे एक साथ लिखने वाले जनकवि नागार्जुन की ख्याति कवि के रूप में अधिक रही है। जबकि हिंदी और मैथिली में उन्होंने लगभग दर्जन भर उपन्यासों की रचना की। लेकिन उनके उपन्यास पर बहुत कम चर्चा हुई। आलोचकों ने उनके उपन्यास को गंभीरता से नहीं लिया या फिर जानबूझकर नज़रअंदाज किया। इधर मैनेजर पाण्डेय सहित कुछ विद्वानों ने नागार्जुन के उपन्यासों पर गंभीरता पूर्वक लिखा है। नागार्जुन का पहला उपन्यास मैथिली में ‘पारो’ 1946 ई. में प्रकाशित हुआ था। उसके बाद क्रमशः हिन्दी-मैथिली में उनके जो उपन्यास प्रकाशित हुए, वे है- ‘रतीनाथ की चाची’ (1948), ‘नई पौध’ (1953), ‘बलचनमा’ (1952), ‘नवतुरिया’ (1954), ‘बाबा बटेसरनाथ’ (1954), ‘वरुण के बेटे’ (1957), ‘दुखमोचन’ (1957), ‘कुंभीपाक’ (1960), ‘हीरक जयंती’ (1962), ‘उग्रतारा’ (1963), ‘बलचनमा’ मैथिली (1967), ‘जमनिया का बाबा’(1968), इसके अलावा एक अपूर्ण उपन्यास। ‘हीरक जयंती’ प्रकाशन ‘अभिनंदन’ नाम से भी हुआ था।

‘बलचनमा’ उपन्यास को हिन्दी का पहला आंचलिक-उपन्यास भी माना जाता है। प्रख्यात आलोचक मैनेजर पांडेय कहते हैं कि किसान आंदोलन को आधार बनाकर लिखा गया यह उपन्यास ‘गोदान’ का पूरक है और बलचनमा सामंती-व्यवस्था से विद्रोह का प्रतीक बन जाता है। स्वामी सहजानंद सरस्वती और महापंडित राहुल सांकृत्यायन के नेतृत्व में जब किसान आन्दोलन चला तो नागार्जुन अमबारी में किसान आंदोलन (1939 ई.) में शामिल हुए और जेल गए। उस उपन्यास को लिखने की प्रेरणा उन्हें जेल में रहते हुए राहुल सांकृत्यायन के सान्निध्य से प्राप्त हुई। ‘बालचनमा’ के संदर्भ में नागार्जुन को प्रेमचंद की परम्परा का उपन्यासकार सिद्ध करते हुए आलोचक गोपाल राय ने लिखा है– “बलचनमा केवल इसलिए उल्लेखनीय उपन्यास नहीं है कि उसमें कृषक-मजदूरों के अत्याचार और शोषण की सही तस्वीर है, वरन् इसलिए भी कि उसमें नागार्जुन ने जमींदारों से किसानों के संघर्ष की शुरुआत की कहानी लिखी है। प्रेमचंद किसानों की गरीबी, बेकारी और जहालत की कहानी लिख गए थे, पर उनकी मुक्ति की दास्तान वे नहीं कह पाए थे। प्रेमचंद के उपन्यासों में जमींदारों के विरुद्ध किसानों का विद्रोह केवल सांकेतिक होकर रह गया है, वे उसे सही कलात्मक परिणति नहीं प्रदान कर सके हैं। ‘गोदान’ का होरी तो खैर विद्रोह करने वाली पीढ़ी का आदमी ही नहीं है पर नई पीढ़ी का गोबर भी इस दृष्टि से उल्लेखनीय पात्र नहीं बन पाया है। लगता है, ‘गोदान’ का गोबर ही बलचनमा के रूप में सही रूप में उभरा है। अपनी आदर्शवादी मन:स्थिति के कारण प्रेमचंद गोबर के चरित्र को यथार्थवादी परिणति नहीं दे पाते, पर बलचनमा का विकास बड़े ही स्वाभाविक रूप में होता है।

‘वरुण के बेटे’ में नागार्जुन ने मछुआरों की जीवन-शैली, उनके रहन-सहन और उनके उन सरोकारों और संघर्षों को उद्घाटित किया जिनसे हिन्दी का कथा साहित्य अछूता था। ‘बाबा बटेसरनाथ’ में वे सामंती शोषण का इतिहास प्रस्तुत करते हैं। ‘बाबा बटेसरनाथ किसी व्यक्ति या साधु महात्मा विशेष का नाम न होकर एक वृक्ष विशेष का नाम है जो हमारे सामने एक प्रतीक के रूप में आता है। ‘दुखमोचन’ उपन्यास में नागार्जुन गांधीवाद को आधार बनाते हैं। नागार्जुन ने लगभग आधा दर्जन उपन्यास स्त्री-संवेदना को केंद्र में रखकर लिखे।

आयोजकों का मानना है कि मैथिली में लिखित उनका पहला उपन्यास ‘पारो’ और हिन्दी का ‘रतिनाथ की चाची’ के केंद्र में बेमेल विवाह और विधवा समस्या है। वहीं ‘उग्रतारा’ में वे सहजीवन की वकालत करते हैं। ‘कुम्भीपाक’ में नागार्जुन समाज और राजनीति में होने वाले स्त्रियों के शोषण को रेखांकित करते हैं तो ‘नई पौध’ में युवा वर्ग को स्त्री-शोषण के विरुद्ध आंदोलित करते हैं। नागार्जुन के उपन्यासों में अभिव्यक्त स्त्री स्वाधीनता के तीन चरण हैं। उनके प्रारंभिक उपन्यासों में बेमेल विवाह की शिकार बच्चियों की सिसकियाँ हैं, विधवाओं के करुण आर्तनाद हैं। दूसरे चरण के उपन्यासों में स्त्रियों के भीतर चेतना विकसित होते दिखाया गया है और तीसरा चरण संघर्ष का है। उनके उपन्यासों में पारो-बिरजू, मंगल-मधुरी, माया-कपिलदेव, रंजना-शशिनाथ, लीलाधर-मामी, उगनी-कामेश्वर आदि ऐसे प्रेमी-प्रेमिका हैं जो प्रेम की एक नई परिभाषा गढ़ते हैं जिसमें जाति, संप्रदाय, रक्त-शुद्धता आदि पितृसत्तात्मक व्यवस्था के लिए कोई जगह नहीं है। निःसंदेह नागार्जुन के उपन्यासों के फलक विस्तृत हैं जिस पर विस्तार से चर्चा और परिचर्चा की जरूरत है। यह संगोष्ठी उसी प्रयास की एक कड़ी है। कार्यक्रम में प्रमुख वक्ता के तौर पर प्रो. मैनेजर पांडेय, अशोक वाजपेयी, प्रो. आनंद प्रकाश, श्रीमती मैत्रेयी पुष्पा के अलावा डॉ. कमलानंद झा, डॉ. रमेश कुमार, डॉ. संजीव कुमार, गौरीनाथ होंगे। 

आयोजन में प्रपत्र के लिए उप विषय कुछ इस तरह हैं- 1. हिन्दी उपन्यास लेखन की परंपरा में नागार्जुन का स्थान, 2. किसान आंदोलन और नागार्जुन के उपन्यास 3. बलचनमा की भाषा-शैली 4. गोदान और बलचनमा का तुलनात्मक अध्ययन, 5. मछुआरा जीवन और ‘वरुण के बेटे’ 6. ‘बाबा बटेसरनाथ’ की ऐतिहासिकता 7.‘जमनिया का बाबा’ में अभिव्यक्त मठों का यथार्थ 8 गांधीवाद के संदर्भ में ‘दुखमोचन’ का मूल्यांकन 9. ‘कुंभीपाक’ के संदर्भ में भारतीय राजनीति का यथार्थ 10. स्त्री-स्वाधीनता का प्रश्न और नागार्जुन के उपन्यास 11. बेमेल विवाह की समस्या और ‘पारो’ 12. विधवा समस्या के संदर्भ में ‘रतिनाथ की चाची’ का मूल्यांकन 13. स्त्री-विमर्श के संदर्भ में ‘उग्रतारा’ का अध्ययन 14. नागार्जुन के उपन्यासों में अभिव्यक्त मिथिलांचल का जन-जीवन।

शोध पत्र का सार संक्षेप 25 सितम्बर 2019 तक स्वीकृत किया जाएगा। शोध-पत्र सार संक्षेप की स्वीकृति- 30 सितम्बर होगी. जबकि पूर्ण शोध पत्र जमा करने की अंतिम तिथि 5 अक्तूबर 2019 है। शोधपत्र sdharam08@gmail.com पर भेजा जा सकता है। ज्यादा जानकारी के लिए डॉ. श्रीधरम को 9868325811 पर संपर्क किया जा सकता है। कार्यक्रम स्थल : सेमिनार हॉल, आत्मा राम सनातन धर्म महाविद्यालय, धौला कुआँ, नई दिल्ली 11021 है।

वैश्वीकरण के दौर में हिंदी

हिंदी विभाग, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी और दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मद्रास के संयुक्त आयोजन में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी और परिसंवाद का आयोजन किया गया है। 

कार्यक्रम के संयोजक निरंजन सहाय के मुताबिक वैश्वीकरण के दौर में हिंदी विषय को लेकर 14 सितंबर को सुबह 11 बजे से चर्चा शुरू होगी। आरंभिक सत्र में प्रो टीएन सिंह, कुलपति, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, डॉ उदय प्रताप सिंह, हिन्दुस्तानी एकेडमी, इलाहाबाद, और प्रो अनुराग कुमार शिरकत करेंगे। कार्यक्रम भगवान दास केंद्रीय पुस्तकालय के समिति कक्ष में होगा। पहले सत्र में हिंदी की वैश्विक चुनौतियाँ और रास्ते विषय पर प्रो सुरेंद्र प्रताप, प्रो. उषा शर्मा, प्रो.आशीष त्रिपाठी विचार रखेंगे। दूसरा सत्र का विषय- बहुभाषिक देश में हिंदी का कारवां है जिस पर प्रो शिवकुमार मिश्र, प्रो मनोज सिंह, डॉ प्रभाकर सिंह, डॉ.अतुल तिवारी

डॉ.अखिलेश (पटना) अपने विचार रखेंगे। तीसरे सत्र में राष्ट्रीय एकता की सूत्र भाषा हिंदी को लेकर डॉ.जितेन्द्र नाथ मिश्र, प्रो श्रद्धानन्द, डॉ रामसुधार सिंह, डॉ. किंशुक पाठक (गया) विचार रखेंगे।

कार्यक्रम के दूसरे दिन यानी 15 सितंबर 2019 को सुबह के सत्र में हिंदी की संवैधानिक स्थिति और स्वरूप पर प्रो उषा शर्मा चर्चा करेंगी। कार्यक्रम के समापन सत्र में हिंदी के भविष्य पर विमर्श होगा। इसमें प्रो टीएन सिंह, प्रो राममोहन पाठक शिरकत करेंगे। पाठक दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा मद्रास के कुलपति भी हैं। इस कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के तौर पर डॉ. ज्ञानदेव मणि त्रिपाठी भाग लेंगे।

बहुआयामी गांधी-विविध परिदृश्य

विश्व हिंदी सम्मेलन, विश्व हिंदी संघ, विश्व हिंदी संवाद, विश्व हिंदी परिषद कई नामों से हिंदी को लेकर कल्याण कार्यक्रम हो रहे हैं। यहां हम बात कर रहे हैं विश्व हिंदी परिषद की जिसने महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के मौके पर दिल्ली के कनॉट प्लेस में 13 औऱ 14 सितंबर को विशेष अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन बहुआयामी गांधी-विविध परिदृश्य विषयक कार्यक्रम आयोजित किया है। कार्यक्रम एनडीएमसी सभागार में होगा।

आयोजकों के मुताबिक, कार्यक्रम में श्रेष्ठ 20 शोधपत्र और आलेखों का वाचन और उन पर चर्चा होगी। कार्यक्रम में शिक्षक और छात्रों के अलावा सरकारी और गैर-सरकारी संस्थानों के विद्वान भी अपने विचार रखेंगे। इस कार्यक्रम में भारी संख्या में लोगों के आने के आसार हैं।

कार्यक्रम को लेकर विस्तार से जानकारी के लिए www.vishwahindiparishad.org  पर जाएं। या फिर भी कोई जानकारी पूरी नहीं मिलती तो 011 4102 145, 85860 16348 और 95820 82456 पर संपर्क किया जा सकता है। इस कार्यक्रम में बेहतरीन शोधपत्र और आलेख प्रस्तुत करने वालों को प्रमाण पत्र जारी किए जाएंगे।

गुरुनानक का समाज कैसे बने

बाबा गुरुनानक देव आज के संदर्भ में बहुत प्रासंगिक हो चुके हैं। हरियाणा के मस्तनाथ विश्वविद्यालय, अस्थल बोहर रोहतक और हरियाणा साहित्य अकादमी पंचकूला ने संयुक्त रूप से एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की है जिसका विषय है- संत साहित्य में गुरु नानक वाणी की महत्ता। इसका आयोजन मानविकी संकाय मस्तनाथ विश्वविद्यालय रोहतक ने 10 सितंबर 2019 को रखा है।

विश्वविद्यालय के आयोजकों का कहना है कि भारत वर्ष संतो की भूमि रही है, यहां का हर क्षेत्र, हर भाग संतों की वाणी और महिमा से गूंजता रहा है। मनुष्य के निर्माण में संत वाणी ने उसके उत्थान, उसके परिष्कार में अद्भुत योगदान दिया है। गुरु नानक, गुरु जांभोजी, दादू, रज्जब. रैदास आदि का नाम ऐसे ही गौरवपूर्ण संतों की परंपरा में गिना जाता है। गुरु नानक का जन्म तलवंडी गांव में हुआ था जिसे आज ननकाना के नाम से जाना जाता है। गुरु नानक देव की पंजाब जन्म भूमि थी। संपूर्ण भारतवर्ष में ही नहीं पूरी दुनिया में गुरु नानक की महिमा यहीं से निखरी। उन्होंने अपने उपदेशों के माध्यम से नारी सम्मान, राष्ट्र प्रेम, सामाजिक सद्भाव, नैतिक शिक्षा का जैसा शंखनाद किया है, वह अतुलनीय है। कालजयी महत्व के कारण ही गुरुनानक का 550वां जन्मवर्ष पूरी दुनिया बड़े उल्लास के साथ मना रहा है।

आयोजक कहते हैं कि दोहराय नहीं कि गुरु नानक महान संत कवि रहे हैं। उनकी शक्ति को आज के इस समाज को समझना जरूरी है। आज जब मानवता तार-तार हो रही है, हिंसा का प्रबल प्रसार है, नशे में पूरा समाज डूबा हुआ है, वृक्षों की, प्रकृति की निर्मम हत्या की जा रही है, जाति-धर्म-प्रांत, ऊंच-नीच के नाम पर समाज को बांटा जा रहा है, तब गुरु नानक और उनकी वाणी की चर्चा करना समाज और मानवता के लिए बहुत अपरिहार्य हो जाता है।

कार्यक्रम में उप-विषय इस तरह होंगे- संत साहित्य की परंपरा, गुरु नानक की शिष्य परंपरा, संत साहित्य की सामाजिक सार्थकता, गुरु नानक की सामाजिक सार्थकता, गुरु नानक की भाषा शैली, गुरु नानक के साहित्य की संगीतात्मकता, गुरु नानक का संत साहित्य में महत्व, गुरु नानक की दार्शनिक चेतना, गुरु नानक की सांस्कृतिक भावना, गुरु नानक की भक्ति भावना और वे सभी विषय जो गुरु नानक की वाणी और संत साहित्य से जुड़े हैं।

प्रतिभागी संगोष्ठी संयोजक डॉ सुमन पांडे को अपने आलेख और शोध पत्र भेज सकते हैं जिनका ईमेल पता है- seminargnd550@gmail.com । डॉ. सुमन का फोन नंबर 9896101034 है। यह कार्यक्रम रोहतक स्थित विश्वविद्यालय के मिनी ऑडिटोरियम में होगा।

ऑनलाइन टीचर्स ट्रेनिंग

इन दिनों ऑनलाइन शिक्षा का खासा जोर है। इस कड़ी में सावित्रीबाई फुले यूनिवर्सिटी के नेशनल रिसोर्स सेंटर ने उच्च शिक्षा के लिए शिक्षक प्रशिक्षण के लिए 16 हफ्ते का ऑनलाइन प्रशिक्षण शुरू किया है जो 31 दिसंबर 2019 तक चलेगा। शिक्षण में मदद करने के लिए यह एक सालाना रिफ्रेशर प्रोग्राम है जो 40 घंटे का कोर्स है। आयोजकों का कहना है कि उच्च शिक्षा में शिक्षण कार्य की सैद्धांतिक पृष्ठभूमि और पढ़ाने के व्यावहारिक तरीकों के बारे में इस कोर्स के जरिए ट्रेनिंग दी जाती है।

कोर्स के तहत ऑनलाइन वीडियो, पावर प्वाइंट प्रजंटेशन जैसे माध्यमों से प्रशिक्षण दिया जाएगा। हफ्ते में एक-एक घंटे की चार क्लासेस होंगी। संदर्भ सामग्री भी ऑनलाइन मुहैया कराई जाएगी। कोर्स खत्म होने के बाद प्रतिभागी की परीक्षा होगी जिसके आधार पर प्रमाण पत्र जारी किए जाएंगे।  

कोर्स में शामिल होने के लिए आयोजकों में प्रोफेसर डॉ. संजीव सोनवान और डॉ. वैभव जाधव से ज्यादा जानकारी ली जा सकती है। इसके और अन्य विवरण के लिए https://swayam.gov.in/nd2_arp19_ap67/preview लिंक को देखें।  

ब्रज की तीर्थ संस्कृति  

ब्रज संस्कृति शोध संस्थान यहां के इतिहास, पुरातत्व, कला, साहित्य, और लोक संस्कृति के लिए समर्पित संस्था है। यह गोदा विहार परिषद वृंदावन मथुरा में स्थित है। संस्था ने 6 से 8 दिसंबर 2019 को तीन दिन की संगोष्ठी के लिए ‘ब्रज से ब्रज तक की यात्रा’ विषय को लेकर शोधपत्र और आलेख विद्वानों से आमंत्रित किए हैं। आय़ोजकों ने बताया कि यह संगोष्ठी 16वीं से 20वीं शताब्दी के मध्य विकसित ब्रज की तीर्थ संस्कृति और ब्रज मंडल के विविध नजरिये को समग्र रूप से समझने का प्रयास है। इसलिए सभी आलेख मूल भावना के अनुरूप ही लिखे जाने का आग्रह किया गया है।

संगोष्ठी के लिए प्रस्तावित विषय इस तरह हैं- ब्रज की तीर्थ यात्रा परंपरा, ब्रज की कला परंपराएँ एवं स्थापत्य, ब्रज क्षेत्र का आर्थिक एवं राजनीतिक अध्ययन, ब्रज तीर्थ यात्रा पारिस्थितिकी और पर्यावरण, नगरीकरण और ब्रज, संस्कृत और ब्रजभाषा साहित्य, भक्ति साहित्य और वैष्णव संप्रदाय, ग्रंथ, पांडुलिपियां और पाठ, ब्रज को आकार देने वाले कारक रूप- लोकवार्ता और वाचिक परंपराएं, ब्रज के स्वरूप का संरक्षण, मानचित्र कला- नक्शानवीसी और ब्रज का स्वरूप चित्रण आदि। आयोजकों की ओर से शोधपत्र को लेकर 10 सितंबर तक सूचित कर दिया जाएगा। पूर्ण शोध जमा करने की अंतिम तारीख 5 नवंबर 2019 है। अधिक जानकारी के लिए bsssseminar@gmail.com,  swatigoel90@ymail.com और paridhi.david@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है। 

नाट्यशास्त्र के सात दिन

भंडारकर ओरिएंट रिसर्च फाउंडेशन इंस्टीट्यूट (पुणे) ने नाट्य शास्त्र पर सात दिन की कार्यशाला आयोजित की है।14 से 20 अक्टूबर को होने वाली इस कार्यशाला को प्रोफेसर राधावल्लभ त्रिपाठी लेंगे।

आयोजकों की ओर से जारी की गई विषय अवधारणा टीका में भरतमुनि के नाट्य शास्त्र का उल्लेख किया गया है। नाट्यशास्त्र में कुल 36 अध्याय हैं। कार्यशाला में कुल 28 व्याख्यान रखे गए हैं। इसमें पावर प्वाइंट प्रजंटेशन और ग्राफिक्स के जरिए नाट्यशास्त्र को समझाने की कोशिश होगी। संस्कृत में लिखे नाट्यशास्त्र को समझाने के लिए इन सभी लेक्चर में समेटने की कोशिश की जाएगी।

कार्यशाला में अधिक से अधिक 100 लोग ही चयनित होंगे। इसमें पंजीकरण की आखिरी तारीख 30 सितंबर 2019 है। इसके लिए अधिक जानकारी cordiap.bori@gmail.com से लें या फिर अपने बारे पूर्ण विवरण वाट्सऐप नबंर 7796699822 पर भेजें।  

रचनात्मक लेखन के लिए पुरस्कार  

दिल्ली विश्वविद्यालय के एआरएसडी कालेज की हिंदी परिषद ने शोध संवाद रिसर्च फोरम और पोएसिस के साथ मिलकर 14 सितंबर 2019 को रचनात्मक लेखन प्रतियोगिता औऱ परिचर्चा आयोजित की है। इसमें बीए औऱ एमए कर रहे छात्र-छात्राएं शिरकत कर सकेंगे। कविता कहानी लिखने के अलावा अपनी कविता के पाठ भी कार्यक्रम में किया जा सकता है। 

रचनात्मक लेखन का कार्यक्रम सुबह 9.30 बजे से होगा जबकि कविता पाठ का समय 10.45 बजे से शुरू होगा।

दयाल सिंह कालेज के डॉ ज्ञानेंद्र कुमार और पोएसिस संस्था के आनंद खत्री निर्णायक मंडल में होंगे। इस मौके पर होने वाली परिचर्चा में हिंदी के अकादमिक जगत से जुड़े कई नामी लोग शिरकत करेंगे जिनमें प्रोफेसर चंदन कुमार, अनामिका, राकेश रेणु, ज्ञानतोष कुमार झा और अरविंद कुमार मिश्र होंगे। कार्यक्रम की संयोजक प्रियंका कुमारी झा हैं। कार्यक्रम के बारे में ज्यादा जानकारी लेने के लिए विशाल स्वरूप ठाकुर को 7982854370, नितेश कुमार से 7557288708 औऱ पुष्पा कुमारी से 8851475025 के अलावा तानिया से 8368685254 से संपर्क किया जा सकता है। कार्यक्रम स्थल एआरएसडी कालेज है जो दिल्ली के धौलाकुआं क्षेत्र में है।  

साहित्य अनुवाद, तुलनात्मक अध्ययन

दिल्ली विश्वविद्यालय के पीजीडीएवी कॉलेज (प्रात:कालीन). साहित्य अकादमी, और शोध संवाद ने संयुक्त रूप से “साहित्यिक अनुवाद और तुलनात्मक अध्ययन की चुनौतियां” को लेकर दो दिन का राष्ट्रीय सेमीनार आयोजित किया है। 11 और 12 अक्टूबर 2019 को होने वाले इस सेमीनार के लिए शिक्षकों, शोधार्थियों और छात्रों से आलेख औऱ शोधपत्र आमंत्रित किए गए हैं। यह कार्यक्रम कैंपस के न्यू ऑडिटोरियम में आयोजित किया गया है। 

आलेख, शोधपत्र को भेजने की आखिरी तारीख 10 सितंबर है जबकि पूर्ण शोध- पत्र या आलेख 25 सितंबर तक भेजा जा सकता है। चुनिंदा आलेखों को लेख संग्रह के संकलन में भी शामिल किए जाएंगे।  

अपने शोध पत्र का सारांश या पूर्ण शोध को apnetwork18@gmail.com पर भेजा जा सकता है। ज्यादा जानकारी के लिए 98717 26471, 7678118393, 9718704903, 7503443641, 97560181177 पर संपर्क किया जा सकता है। 

ज्ञान परंपरा में भारतीय भाषाओं का योगदान

चिन्मया यूनिवर्सिटी संस्कृत और तमाम भारतीय भाषाओँ को साधते हुए उनकी सीमाओँ को जानने के अध्ययन के लिए खासी मशहूर है। विश्वविद्यालय ने मानवीय विकास और भारतीय ज्ञान पंरपरा को लेकर तीन दिन का सम्मेलन आयोजित किया है। 16 से 18 दिसंबर 2019 को ये सम्मेलन केरल में अर्नाकुलम स्थित चिन्मया विश्वविद्यापीठ में होगा।  

इसके उपविषयों को जानकार इस सम्मेलन को समझने में मदद मिल सकती है। मसलन इसके कुछ उपविषय है- बाल विकास और ग्रहणशील अनुभव, बाल विकास और खाद्य- पौष्टिकता, बाल विकास और खेल व सामाजिक नर्सिंग, कहानी वाचन, भाषा व दशाएं, अर्ली चाइल्डहुड एंड सोशल एजूकेशन, वैकल्पिक शिक्षा, योग आदि भी इसमें शामिल हैं।

आयोजकों का कहना है कि सम्मेलन के जरिए भारत की ज्ञान परंपरा के अतीत को झांकने-तलाशने के साथ ही भविष्य को बनाने की चुनौती को भी देखना है। भाषा और ज्ञान परंपरा को समग्र रुप में उसके तमाम संदर्भों को देखने की जरूरत है। मानव के विकास का संस्कृति के सामंजस्य का गहरा नाता है जिससे ज्ञान की प्रणालियों की निरंतरता, मौजूदा समय में उसकी प्रासंगिकता, मानवीय चिंताओँ के साथ उसके एकीकरण पर पुनरावृति करने में सक्षम करेंगे। ऐसे में जाहिर है अतीत को एक बार फिर से पाने की कोशिश के साथ आगे बढ़ने की जरूरत है। प्रस्तावित विषय की प्रासंगिकता और योगदान को लेकर सम्मेलन में प्रमुख बिंदू उभरकर सामने आएंगे। सम्मेलन में समग्र रूप से उन सब विचारों और हस्तक्षेपों को देखा जाएगा जो उम्र, जाति वर्ग और लिंग के संकीर्ण दायरे से बाहर थे। मुख्य सम्मेलन से दो दिन पहले यानी 14 और 15 दिसंबर को प्री-कांफ्रेंस वर्कशॉप भी होगी जिसमें मुख्य सम्मेलन के विषय की तैयारी को पुख्ता किया जाएगा। आयोजन समिति का मानना है कि दोनों कार्यशालाओँ के माध्यम से देश के मनोविज्ञान, शिक्षा, स्वास्थ्य अध्ययन, अर्थशास्त्र और प्रबंधन से जुड़े स्कॉलरों, शिक्षको और छात्रों को पूरा लाभ होगा।  

सम्मेलन में देशभर के जाने मान लोग शिरकत कर रहे हैं। इनमें सीएसआईआर के दिल्ली के प्रोफेसर शेखर मांडे, वर्धा हिंदी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति गिरिश्वर मिश्रा, हवायी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर धर्म भौमिक, दिल्ली की लेडी इरविन कालेज की पूर्व विभागाध्यक्ष नंदिता चौधरी, आईआईटी कानपुर के प्रो. लीलावती कृष्णन और यहीं के प्रो. रवि कुमार प्रिया शामिल होंगे। इनके अलावा मंबई और मैसूर के कई नामी संस्थानों के शिक्षाविद् भी इसमें शामिल हो रहे हैं।  

प्रतिभागियों के लिहाज से बात करें तो सम्मेलन के लिए अधिकतम 25 लोग ही चुने जाएंगे। इस बारे में ज्यादा जानकारी के लिए nfsi@cvv.ac.in  या आयोजन समिति की प्रोफेसर शिल्पा पंडित को 99622 69944 नंबर पर संपर्क किया जाना चाहिए।  

हिंदी के सरकारी, आधिकारिक विद्वानों का कार्यक्रम

हिंदी को लेकर चल रहे कार्यक्रमों के सिलसिले में एक महत्वपूर्ण आयोजन दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में 13 सितंबर 2019 को होना है। इसमें हिंदी के सरकारी और आधिकारिक दोनों तरह की शख्सियतें और विद्वान शामिल हो रहे हैं। सत्र योजना के बारे में बताया गया है कि सुबह 11.30 बजे से 12.30 बजे तक हिंदी का भविष्य पर चिंतन होगा जिसमें मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक से सच्चिदानंद जोशी की बातचीत सुनी जा सकती है। दोपहर 12.30 बजे से लेकर 1.30 बजे गांधी और हिंदी विषयक को लेकर मुख्य वक्ता राम बहादुर राय होंगे। प्रभाष जोशी के कार्यकाल में देश के प्रमुख समाचार पत्र जनसत्ता से संबद्ध रहे राय इस समय इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष भी हैं। उनके साथ जेएनयू के प्रो. आनंद कुमार होंगे। शाम 4.00- 5 बजे के दौरान हिंदी, समाज और धर्म को लेकर जाने माने साहित्यकार अब्दुल बिस्मिल्लाह, प्रो गोपेश्वर सिंह, कमलकिशोर गोयनका होंगे। कार्यक्रम का संचालन भगवानदास मोरवाल को दिया गया है। जाहिर है इस सत्र में जरूर शामिल होना चाहिए। शाम के सत्र में विज्ञापन की हिंदी विषय को लेकर प्रसून जोशी शामिल होंगे जिनसे अनंत विजय संवाद करेंगे। अधिक जानकारी के लिए आयोजन से जुड़े अर्नव कौशिक को 7017651662 मोबाइल नंबर पर संपर्क किया जा सकता है।  

जामिया में होगा समय से संवाद

वरिष्ठ आलोचक और जामिया मिल्लिया इस्लामिया के हिंदी विभाग के प्रोफेसर चंद्रदेव यादव के मुख्य भाषण और प्रसिद्ध साहित्यकार अब्दुल बिस्मिल्लाह की अध्यक्षता में ‘तीरभुक्ति’ और ‘हस्तांक’ ने मिलकर ‘विद्यापति- समय से संवाद’ विषय को लेकर 5 सितंबर को संगोष्ठी आयोजित की है। यह संगोष्ठी प्रेमचंद अभिलेखागार के सहयोग से की जा रही है जो उसी के प्रांगण में हो रही है।  

मुख्य वक्तव्य प्रोफेसर चंद्रदेव रखेंगे जिस पर मिथिला संघ दिल्ली के विजयचंद्र झा, अभिलेखागार निदेशक प्रो सबीहा अंजुम जैदी और जेएनयू के वरिष्ठ आलोचक प्रोफेसर देवशंकर नवीन विचार रखेंगे। इनके अलावा दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के बजरंग बिहारी तिवारी, नीरज कुमार, प्रेमा तिवारी, मुकेश मर्राठा, डॉ. लक्ष्मण यादव, स्वाति चौधरी, सुशील द्विवेदी जैसे प्रोफेसर और विद्वान अपने विचार रखेंगे। 

कार्यक्रम दोपहर बाद 3.30 बजे शुरू होगा। ज्यादा जानकारी के लिए आयोजन समिति से जुड़े नंबर 9015603769 पर संपर्क किया जा सकता है।

(कॉपी संपादन : नवल)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

लेखक के बारे में

कमल चंद्रवंशी

लेखक दिल्ली के एक प्रमुख मीडिया संस्थान में कार्यरत टीवी पत्रकार हैं।

संबंधित आलेख

अनिश्चितता के दौर में क्रिसमस लाया है उम्मीद, प्यार और खुशियों का संदेश
जैसे दो हजार साल से ज्यादा समय पहले चरवाहों को ईसा मसीह के जन्म का अहसास हुआ था, उसी तरह मुझे भी उस जन्म...
पंजाब में अकाली दल-बसपा गठबंधन : दल मिले, दिल नहीं
नए कृषि कानूनों से जाट-सिक्ख खफा हैं और उनके गुस्से का खामियाजा शिरोमणि अकाली दल को भुगतना पड़ रहा है। पंजाब की एक-तिहाई आबादी...
आरएसएस से धर्मनिरपेक्षता की राजनीति के सहारे नहीं लड़ा जा सकता
धर्मनिरपेक्षता की राजनीति आरएसएस के लिए सबसे आसान है। हालांकि इस स्थिति के निर्माण के लिए उसने लंबे समय से राजनीतिक अभियान चलाया है...
लिखने होंगे सलाखों के पीछे झुलसते बहुजनों की कहानियां
यह भारत की एक ऐसी सच्चाई है जिस पर शायद ही कभी विचार किया गया हो। बहुजन समाज के उत्पीड़न में पुलिस की भूमिका,...
बिहार चुनाव : दूसरे चरण के मतदान के बाद दलित-बहुजनों ने कर दिया इशारा
बिहार में दो चरण के मतदान हो चुके हैं। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के अपने दावे हैं। लेकिन बिहार के दलित-बहुजनों ने किस...