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भारतीय मीडिया : कौन सुनाता है हमारी कहानी?

मीडिया की सामाजिक पृष्ठभूमि की जांच करने वाले इस सर्वेक्षण का उद्देश्य, मीडिया संस्थानों में भेदभाव और सामाजिक बहिष्करण को सामने लाना और इस पर सार्वजनिक बहस की शुरुआत करना है. इसे ऑक्सफेम इंडिया और न्यूज़लांड्री ने मिलकर तैयार किया है

भारतीय न्यूज़रूमों में हाशियाकृत जातियों का प्रतिनिधित्व

दस साल की लम्बी तलाश के बाद मैं देश के अंग्रेजी मीडिया में आठ दलित पत्रकारों को तलाश सका हूँ. उनमें से भी केवल दो ने सामने आने का जोखिम उठाना मंज़ूर कियासुदीप्तो मंडल, अल जज़ीरा, 2 जून 2017

यह रपट[i], भारतीय मीडिया में विभिन्न जाति-समूहों के प्रतिनिधित्व की पड़ताल करती है और बताती है कि मीडिया में कौन निर्णय लेता है और किसकी बात सुनी और मानी जाती है. हमारा उद्देश्य है मीडिया में हाशियाकृत जाति-समूहों के सीमित प्रतिनिधित्व और इसका समाचारों के चुनाव और उन्हें आकार देने पर प्रभाव पर बहस की शुरुआत करना.

पिछले कुछ दशकों में मीडिया की भूमिका में बड़ा बदलाव आया है. अब वह जनता तक सूचनायें पहुँचाने का माध्यम भर नहीं है. वह जनमत को प्रभावित करने, और यहाँ तक कि उसका उत्पादन करने का उपकरण बन गया है. जो लोग यह तय करते हैं कि क्या समाचार है और क्या नहीं, वे बहुत शक्तिशाली होते हैं. अगर उनमें से अधिकांश सामाजिक दृष्टि से वर्चस्वशाली समूहों से आते हैं तो वे वर्चस्ववादी परिप्रेक्ष्य को बढ़ावा देते हैं. इससे देश की विविधता को प्रतिबिंबित करने की अपनी मूलभूत ज़िम्मेदारी को मीडिया निभा नहीं पाता.

भारत में केवल चंद मीडिया संस्थान विविधता और समावेशिता को महत्व देते हैं, जबकि अधिकांश, विशेषाधिकार प्राप्त समुदायों और समूहों के सदस्यों से भरे अपने कार्यालयों की ओर से आँख मूंदे रहते हैं. न्यूज़रूमों में जातिगत विषमता से समाचारों का संकलन और उनका प्रस्तुतिकरण प्रभावित होता है. हाशियाकृत समुदायों की आवाज़ के अभाव में, समाचार केवल विशेषाधिकार प्राप्त समूहों के रिपोर्टरों, लेखकों या टीवी पैनलिस्टों की सोच के वाहक बन जाते हैं.

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जाति एक ऐसी व्यवस्था है जो जन्म के आधार पर सामाजिक पदक्रम में किसी व्यक्ति के स्थान का निर्धारण करती है. यह व्यवस्था, पवित्रता और प्रदूषण के विचार पर आधारित है और इसकी जड़ें हिन्दू सैद्धांतिकी में हैं. यह व्यवस्था हिन्दुओं को चार वर्णों में विभाजित करती है – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र. इन वर्णों में परस्पर विवाह प्रतिबंधित हैं और इनके सामाजिक कर्त्तव्य पूर्व-निर्धारित हैं. जो लोग वर्ण व्यवस्था से बाहर है, उन्हें दलित या अनुसूचित जाति (एससी) और आदिवासी या अनुसूचित जनजाति (एसटी) कहा जाता है. भारतीय संविधान में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्गों (जिनमें से अधिकांश शूद्र हैं) और देश के धार्मिक अल्पसंख्यकों के एक हिस्से की बेहतरी के लिए सकारात्मक कदम उठाने के प्रावधान हैं.

यद्यपि संविधान यह गारंटी देता है कि देश के नागरिकों में किसी तरह का नकारात्मक भेदभाव नहीं किया जायेगा तथापि जाति अब भी जनमत को प्रभावित करती है और यह तय करती है कि किसे नौकरी पर रखा जायेगा और किसे नहीं. देश में जाति-वार जनगणना नहीं होती और ना ही विभिन्न जातियों की आबादी के सम्बन्ध में कोई आधिकारिक आंकड़े उपलब्ध हैं. इस कारण, भारतीय मीडिया में जातियों के प्रतिनिधित्व के सम्बन्ध में किसी भी प्रकार के प्रामाणिक दावे करना संभव नहीं है. यह रपट, इस कमी को कुछ हद तक दूर करने का प्रयास है.

मीडिया में हाशियाकृत जाति-समूहों के प्रतिनिधित्व पर समग्र अध्ययन हेतु हमने अंग्रेजी और हिंदी समाचारपत्रों, टीवी चैनलों के प्रमुख बहस कार्यक्रमों, पत्रिकाओं और डिजिटल समाचार प्रदायकों की पड़ताल की. हमने इन संस्थानों के रिपोर्टरों, लेखकों और बहस कार्यक्रमों के पैनलिस्टों की जाति के सम्बन्ध में जानकारी एकत्रित की. हमने यह पता लगाने का प्रयास किया कि किन समूहों को विभिन्न विषयों पर अपने विचार प्रस्तुत करने का मौका मिलता है और किस हद तक.

भारत में कोई भी व्यक्ति उसकी जाति के बारे में पूछने पर असहज हो जाता है. इसका एक कारण है – जाति से जुड़ी सामाजिक दर्जे, पवित्रता और प्रदूषण की अवधारणाएं. यद्यपि किसी व्यक्ति की जाति का पता उसके उपनाम से लगाया जा सकता है परन्तु यह एक अविश्वसनीय विधि है और कई बार इसके नतीजे भ्रामक हो सकते हैं. इसलिए, हमने बड़े डाटाबेसों, जैसे संघ लोकसेवा आयोग (यूपीएससी) और दिल्ली विश्वविद्यालय की परीक्षाओं के परिणामों का उपयोग, उपनाम और जाति के बीच अंतर्संबंध का पता लगाने के लिए किया. जहाँ संभव था, वहां हमने पत्रकारों, लेखकों और बहस कार्यक्रमों के पैनलिस्टों की जाति का पता उनकी सहमति से लगाया.

शोध को ठोस और यथासंभव त्रुटिहीन बनाने के लिए हमने कई तरीकों और माध्यमों का प्रयोग किया. शोधकार्य के लिए जिस दल का गठन किया गया, उसमें हाशियाकृत समुदायों के सदस्यों के लिए स्थान आरक्षित कर हमने उसके चरित्र को विविधवर्णी बनाने का प्रयास किया. परन्तु समय और संसाधनों की बाध्यताओं के चलते, मजबूर होकर, हमें ऐसे दल से काम चलाना पड़ा, जिसके अधिकांश सदस्य ऊँची जातियों से थे. हमें एहसास था कि दल में सभी समुदायों का उचित प्रतिनिधित्व न होने के कारण हमें अपनी कमियों को पहचानने में समस्या आएगी. इसलिए हमने मीडिया और शिक्षा जगत में जाति के मुद्दे पर काम कर रहे विशेषज्ञों से इस अध्ययन की कार्यपद्धति और अन्य पहलुओं पर फीडबैक लिया.

इसके बाद भी, इस रपट में जो भी कमियां या भूलें रह गयी होंगीं, उनकी पूर्ण ज़िम्मेदारी हमारी है.

हमारे अध्ययन से यह इंगित होता है कि भारतीय मीडिया में उच्च जातियों, अर्थात ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य का वर्चस्व है. एसटी लगभग पूरी तरह से गायब हैं जबकि एससी का प्रतिनिधित्व करने वालों में से अधिकांश पत्रकार न होकर, सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिज्ञ हैं. ओबीसी, जो अनुमानतः देश की आबादी का आधा हैं, का प्रतिनिधित्व भी कम है.

इस रपट से काफी हद तक यह साबित होता है कि भारत के हाशियाकृत जाति-समूहों के बड़े हिस्से की उन मीडिया संस्थानों और विमर्शों तक पहुँच ही नहीं है जो जनमत को आकार देते हैं. इस कारण उनकी आवाज़ सुनी ही नहीं जाती. हमें आशा है कि यह रपट, इस समस्या के निदान की दिशा में एक शुरूआती कदम साबित होगी.

शोध प्रविधि

अक्टूबर 2018 से मार्च 2019 के बीच किये गए इस अध्ययन में प्रिंट मीडिया में विभिन्न जाति-समूहों के प्रतिनिधित्व का अध्ययन करने के लिए हमने ‘बाइलाइन काउंट’ (ख़बरों के साथ प्रकाशित सम्बंधित रिपोर्टरों के नामों की गिनती) विधि का प्रयोग किया. हमने अख़बारों और पत्रिकाओं में बाइलाइन खबरें चिन्हित कीं और प्रत्येक लेखक की जनसांख्यिकीय जानकारी डेटाबेस में डाली. न्यूज़ चैनलों के मामले में हमने एंकरों और बहस में भाग लेने वालों के नाम नोट किये और फिर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध स्त्रोतों, सर्वेक्षणों अथवा ट्रायेंग्युलेशन (त्रिकोणीयकरण) से उनकी जाति का पता लगाया.

चयनित स्रोत

हमने इंडियन रीडरशिप सर्वे 2018 के आधार पर ऐसे छह अंग्रेजी और सात हिंदी अख़बारों का चुनाव किया, जिनके पुराने संस्करण ऑनलाइन उपलब्ध थे.

अंग्रेजी अख़बारों के मामले में हमने उन शहरों से प्रकाशित संस्करण चुने, जहाँ या तो उनकी प्रसार संख्या सबसे ज्यादा थी अथवा जहाँ उनके मुख्यालय थे. चूँकि अधिकांश हिंदी दैनिकों का कोई राष्ट्रीय संस्करण नहीं है इसलिए हमने विभिन्न हिंदी-भाषी राज्यों से उनके प्रकाशित संस्करण चुने.

टीवी समाचार चैनलों में से हमने सात अंग्रेजी और इतने ही हिंदी चैनल चुने और उनके सबसे महत्वपूर्ण बहस कार्यक्रमों को चिह्नित किया. इस अध्ययन की छह माह की अवधि में, अंग्रेजी चैनलों में इन कार्यक्रमों का प्रसारण प्राइमटाइम (रात 8 से 11 बजे) तक हुआ. कुछ हिंदी चैनल, बहस कार्यक्रमों को शाम 5 से 7 बजे के बीच प्रसारित करते थे. इन बहसों को सुन कर सम्बंधित व्यक्तियों के नाम नोट किए गए.

हमने 11 डिजिटल मीडिया प्लेटफ़ॉर्मों और 12 पत्रिकाओं की भी पड़ताल की. ये पत्रिकाएँ राजनीति से लेकर व्यापार और संस्कृति से लेकर खेल जैसे विषयों पर केन्द्रित थीं. इनमें इंडियन रीडरशिप सर्वे 2018 के अनुसार सबसे अधिक प्रसार संख्या वाली चार पत्रिकाएँ भी शामिल थीं.

आंकड़ों का संग्रहण :

प्राथमिक

हमने प्रत्येक समाचार-पत्र के अक्टूबर 2018 से लेकर मार्च 2019 तक के अंकों के प्रथम पृष्ठ और संपादकीय, अर्थव्यवस्था और खेल पृष्ठों से डाटा एकत्रित कर उसे अपने डेटाबेस में शामिल किया।

टीवी चैनलों के मामले में हमने उनके अग्रणी बहस कार्यक्रमों को उनकी वेबसाइटों या आधिकारिक यूट्यूब चैनलों पर देखा और एंकरों व पैनलिस्टों की सामाजिक पृष्ठभूमि की जानकारी डेटाबेस में प्रविष्ट की.

डिजिटल मीडिया में उपलब्ध सामग्री का परिमाण इतना ज्यादा था कि उसका विश्लेषण करना हमारे लिए एक बड़ी समस्या थी. डिजिटल मीडिया से अपने लिए प्रासंगिक जानकारियां एकत्रित करने के लिए हमने ‘मीडियाक्लाउड’ का प्रयोग किया. यह मीडिया में प्रकाशित सामग्री के विश्लेषण के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला एक ओपन-सोर्स सॉफ्टवेर है. हमने अपना विश्लेषण केवल ऐसे लेखकों तक सीमित रखा, जिन्होंने संदर्भित अवधि में कम-से-कम पांच लेख लिखे थे.

पत्रिकाओं के मामले में हमारा विश्लेषण प्रत्येक अंक की कवर स्टोरी और उन लेखों/ख़बरों तक सीमित था, जिनका हवाला आवरण पृष्ठ पर दिया गया था.

इस तरह जो कच्चे आंकड़े हमने एकत्रित किये, उनमें निम्न विवरण शामिल थे :

1) मीडिया संस्थान का नाम.

2) प्रकाशन अथवा प्रसारण की तिथि.

3) पृष्ठ का शीर्षक या प्राइम टाइम स्लॉट.

4) टीवी कार्यक्रम का नाम.

5) लेखक/लेखकों के नाम.

6) एंकर/एंकरों के नाम.

7)  पैनलिस्टों के नाम.

जिन मामलों में कोई लेख एक से अधिक व्यक्तियों द्वारा लिखा गया था, उनमें हमने प्रत्येक को अलग-अलग उक्त लेख का लेखक माना. समाचार एजेंसियों की ख़बरों, न्यूज़डेस्कों या संपादकों द्वारा लिखित लेखों और बिना बाइलाइन वाली ख़बरों को हमने विश्लेषण में शामिल नहीं किया.

हमारा उद्देश्य था हाशियाकृत जाति-समूह के पत्रकारों, लेखकों और पैनलिस्टों की संख्या और ऊंची जाति-समूह के सहकर्मियों की तुलना में, उनके काम के परिमाण का पता लगाना. इसलिए, हमने दोनों समूहों की बाइलाइन ख़बरों या टीवी कार्यक्रमों में उनकी उपस्थिति की संख्या की गणना की. इससे हमें मीडिया में विभिन्न जाति-समूहों के प्रतिनिधित्व और मीडिया संस्थानों में उन्हें मिलने वाले स्थान की तुलना करने में मदद मिली.

हमने न्यूज़रूमों का नेतृत्व करने वालों में हाशियाकृत समुदायों की हिस्सेदारी को भी मापा. हमने उन पत्रकारों को नेतृत्व का हिस्सा माना जो मुख्य संपादक, प्रबंध संपादक, कार्यकारी संपादक, ब्यूरो प्रमुख या इनपुट/आउटपुट संपादक के पदों पर कार्यरत थे. जो व्यक्ति इनमें से किन्हीं दो पदों पर थे, उन्हें एक गिना गया. इस सम्बन्ध में न्यूज़ 18 इंडिया, राज्यसभा टीवी, नवभारत टाइम्स और दैनिक भास्कर से आंकड़े उपलब्ध नहीं हो सके.

द्वितीयक

हमने यह पता लगाने का प्रयास भी किया कि पत्रकारों, लेखकों व बहस कार्यक्रमों में भाग लेने वालों में से किस जाति-समूह के सदस्य मीडिया में किन मुद्दों पर बात करते हैं. इस उद्देश्य से हमने बाइलाइन ख़बरों/लेखों और टीवी बहसों के मुद्दों को 11 श्रेणियों में विभाजित किया. यथासंभव, हमने इन ‘विषयों’ को परस्पर अनन्य रखने का प्रयास किया परन्तु हम यह स्वीकार करना चाहेंगे कि कुछ लेख व बहसें एक से अधिक श्रेणियों में शामिल की जा सकतीं थीं. हमने लेखों और बहसों को विषयानुसार वर्गीकृत करते समय, उनके सन्दर्भ को ध्यान में रखा. विषयों की संपूर्ण सूची परिशिष्ट 2 में है.

अगर कोई लेख या बहस, जाति से जुड़े किसी मुद्दे पर केन्द्रित थी तो हमने उसका अलग वर्गीकरण किया. इस श्रेणी को उपरोक्त 11 श्रेणियों से अलग रखा गया क्योंकि जाति से जुड़े मुद्दे एक से अधिक विषयों से सम्बंधित हो सकते हैं. उदाहरण के लिए – भीमा-कोरेगांव युद्ध की जयंती मनाये जाने सम्बन्धी समाचार को ‘सार्वजनिक जीवन’ के अतिरिक्त ‘जाति सम्बन्धी लेख’ के रूप में भी वर्गीकृत किया गया.

टीवी बहसों में भाग लेने वालों को उनके पेशे के आधार पर 14 ‘क्षेत्रों’ में विभाजित किया गया. वे किसी राजनैतिक समूह के प्रतिनिधि हो सकते थे या अधिकारी अथवा विषय-विशेषज्ञ. इससे हम यह पता लगा सके कि जिन लोगों को किसी मुद्दे पर साधिकार बोलने के लिए आमंत्रित किया जाता है वे किन जाति-समूहों के होते हैं और वे किस तरह के दृष्टिकोण को वैध ठहराते हैं. क्षेत्रों की संपूर्ण सूची परिशिष्ट 3 में दी गई है.

जाति की पहचान

भारतीय उपमहाद्वीप में जाति-व्यवस्था किस तरह काम करती है, यह समाजशास्त्रियों के लिए कौतूहल का विषय रहा है. जैसे-जैसे किसी व्यक्ति के बारे में अधिकाधिक जानकारी उपलब्ध होती जाती है – यथा, वह किस क्षेत्र से है, उसकी आजीविका का पारंपरिक साधन या बोली क्या है – वैसे-वैसे उसकी जाति का ठीक-ठीक अंदाज़ा लगाना आसान होता जाता है. पूर्व में, कई पत्रकारों और संस्थाओं ने मीडिया में जाति की भूमिका को समझने का प्रयास किया है. हमने मीडिया स्टडी ग्रुप और सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ़ डेवलपिंग सोसाइटीज़ द्वारा संयुक्त रूप से सन 2005 में किये गए एक अध्ययन[ii] और शिवम विज, बी.एन. उन्नियाल और एजाज़ अशरफ जैसे पत्रकारों की खोजपूर्ण रपटों को अपने अध्ययन की शुरूआती परिकल्पना का आधार बनाया.

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हमने पत्रकारों, लेखकों और बहस कार्यक्रमों के पैनलिस्टों की सामाजिक पृष्ठभूमि को निम्न आधारों पर चिन्हित किया :

  • सामान्य श्रेणी, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी के चार संवैधानिक समूह.
  • नहीं कह सकते.
  • उपलब्ध नहीं.

उनकी जाति के सम्बन्ध में जानकारी तीन चरणों में संकलित की गयी.

हमने सैकड़ों पत्रकारों, लेखकों और टीवी पैनलिस्टों को एक विस्तृत प्रश्नावली भेजी, जिसमें हमने उनकी आयु, जन्मस्थान, लिंग, धर्म, जाति और सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि की जानकारी चाही. हमने फ़ोन और सोशल मीडिया के जरिये उनसे सम्पर्क भी किया. हमने उन्हें इस अध्ययन की प्रकृति और उद्देश्य की जानकारी दी. प्रश्नावली, परिशिष्ट 4 में देखी जा सकती है.

कुछ जाने-माने लेखकों और पैनलिस्टों के मामले में हमने उनकी जाति की जानकारी मीडिया जगत के विश्वसनीय स्त्रोतों से हासिल की और फिर इसकी पुष्टि उनके स्वयं के वक्तव्यों, कथनों आदि से की. यह विधि केवल सार्वजनिक जीवन में सक्रिय ऐसे व्यक्तियों के मामले में अपनायी गयी, जिनकी जातिगत पहचान से सभी वाकिफ थे.

इन दोनों तरीकों से हम करीब 15 प्रतिशत पत्रकारों, लेखकों और पैनलिस्टों की जाति का पता लगा सके.

चूँकि इस अध्ययन का क्षेत्र अत्यंत व्यापक था और हमारे सर्वेक्षण को अपेक्षित प्रतिसाद नहीं मिला था, इसलिए हमें अधिकांश लोगों की जाति का पता लगाने के लिए ट्रायेंग्युलेशन विधि का प्रयोग करना पड़ा. हमने दिल्ली विश्वविद्यालय और यूपीएससी द्वारा आयोजित परीक्षाओं के पिछले सात वर्षों के परिणाम हासिल किये. चूँकि इन परीक्षाओं में भाग लेने वालों को अपना जाति प्रमाणपत्र, अधिकृत सरकारी प्राधिकारियों से प्राप्त करना होता है इसलिए इन परीक्षाओं से सम्बंधित डाटा, जाति के सम्बन्ध में प्रमाणिक जानकारी का स्त्रोत माना जाता है. इन दोनों डेटाबेसों में लगभग एक लाख व्यक्तियों के नाम और उनकी जाति की जानकारी उपलब्ध थी. हमारा यह मानना था कि इन दो डाटाबेसों की मदद से हम उपनामों को जाति से जोड़ कर, उन अधिकांश पत्रकारों, लेखकों व पैनलिस्टों की जाति का पता लगा सकेंगे, जिन्होंने अपने उपनाम हमें उपलब्ध करवाए थे. और यही हुआ. इन डेटाबेसों की मदद से, हम हमारे डेटाबेस के तीन-चौथाई से अधिक व्यक्तियों की जाति का पता लगाने में सफल रहे.

परन्तु हमारे डाटाबेस में शामिल नामों में से करीब 10 प्रतिशत की जाति का पता हम उपरोक्त तीनों विधियों से भी नहीं लगा सके. इनमें ऐसे व्यक्ति शामिल थे जिनके उपनाम, परीक्षा परिणामों में थे ही नहीं. हमने उन्हें ‘कह नहीं सकते’ की श्रेणी में रखा.

ईसाई, मुसलमान और पारसी पत्रकारों, लेखकों और पैनलिस्टों को ‘उपलब्ध नहीं’ की श्रेणी में रखा गया. यद्यपि भारत में ईसाईयों और मुसलमानों में भी कुछ हद तक जाति प्रथा व्याप्त है, परन्तु फिर भी हमने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उनके उपनाम को किसी जाति से जोड़ना संभव नहीं था. सभी गैर-भारतीय पत्रकारों, लेखकों और पैनलिस्टों की पहचान कर उन्हें विश्लेषण में शामिल नहीं किया गया.

हमारी मान्यता है कि प्रश्नावली पर आधारित व्यापक और समग्र सर्वेक्षण ही भारतीय मीडिया में जातिगत प्रतिनिधित्व को मापने का सबसे सटीक तरीका हो सकता है. हमने कई मीडिया संस्थानों के सम्पादकीय कार्यालयों से संपर्क कर यह अनुरोध किया कि वे हमें उनके संपादकीय विभाग में कार्यरत व्यक्तियों का स्वैच्छिक सर्वेक्षण करने दें ताकि जातिगत प्रतिनिधित्व का पता लगाया जा सके. परन्तु उनमें से अधिकांश को हम इसके लिए राजी नहीं कर सके. कई संस्थानों ने हमें सर्वेक्षण करने की इज़ाज़त इस शर्त पर देने का प्रस्ताव किया कि हम उनके संस्थान का नाम उजागर नहीं करेंगे. कई पत्रकारों ने प्रश्नावली में चाही गयी सभी जानकारियां भर दीं, सिवा उनके नाम के. संस्थानों या व्यक्तियों के नाम गोपनीय रखने से इस अध्ययन का कोई अर्थ नहीं रह जाता. इसलिए हमने इस शर्त को स्वीकार नहीं किया. हमें आशा है कि इस अध्ययन से मीडिया संस्थानों सहित सभी हितधारक, भविष्य में इस तरह के अध्ययनों में सहयोग करने के लिए प्रेरित होंगे.

प्रमुख निष्कर्ष :

  • अध्यनान्तर्गत समाचारपत्रों, टीवी न्यूज़ चैनलों, न्यूज़ वेबसाइटों और पत्रिकाओं में न्यूजरूम का नेतृत्व करने वाले 121 व्यक्तियों – मुख्य संपादकों, प्रबंध संपादकों, कार्यकारी संपादकों, ब्यूरो प्रमुखों व इनपुट/आउटपुट संपादकों – में से 106 पत्रकार ऊंची जातियों से थे. इनमें एक भी एससी या एसटी नहीं था.
  • प्रमुख बहस कार्यक्रमों के हर चार एंकरों में तीन ऊँची जाति के थे. उनमें से एक भी दलित, आदिवासी या ओबीसी नहीं था.
  • न्यूज़ चैनलों ने अपने प्रमुख बहस कार्याक्रमों में से 70 प्रतिशत में जिन पैनलिस्टों को आमंत्रित किया, उनमें से बहुसंख्यक ऊँची जातियों के थे.
  • अंग्रेजी अख़बारों में प्रकाशित लेखों में से 5 प्रतिशत से अधिक दलितों और आदिवासियों द्वारा लिखित नहीं थे. हिंदी अख़बारों में स्थिति थोड़ी बेहतर थी. उनमें लगभग 10 प्रतिशत लेखों के लेखक इन वर्गों से थे.
  • हिंदी और अंग्रेजी समाचार-पत्रों में जाति से जुड़े मुद्दों पर लिखने वालों में से आधे से अधिक ऊँची जातियों से थे.
  • न्यूज़ वेबसाइटों पर प्रकाशित बाइलाइन लेखों में से 72 प्रतिशत के लेखक ऊँची जातियों के थे.
  • बारह पत्रिकाओं के मुखपृष्ठ पर जिन 972 लेखों का हवाला दिया गया था, उनमें से केवल 10 जाति से जुड़े मुद्दों पर थे.

अंग्रेजी टीवी न्यूज़ चैनल

इस अध्ययन में सात अंग्रेजी न्यूज़ चैनलों की पड़ताल की गई. ये थे– सीएनएन-न्यूज़18, इंडिया टुडे, मिरर नाउ, एनडीटीवी 24×7, राज्यसभा टीवी, रिपब्लिक टीवी और टाइम्स नाउ.

इन चैनलों में नेतृत्व करने वाले पदों में से 89 प्रतिशत पर ऊँची जातियों के पत्रकार काबिज़ थे और इनमें एक भी एससी, एसटी या ओबीसी नहीं था.

तालिका 1 : नेतृत्व वाले पद (%)

सामान्यएससीएसटीओबीसीउपलब्ध नहींकह नहीं सकते
89.300010.70

अक्टूबर 2018 से लेकर मार्च 2019 के बीच, इन सात चैनलों द्वारा उनके मुख्य बहस कार्यक्रमों के कुल 1,965 एपिसोड प्रसारित किये गए जिनमें 1,883 पैनलिस्टों ने भाग लिया. इन कार्यक्रमों के 47 एंकरों में से 33 ऊंची जातियों के थे.

तालिका 2 : एंकरों की जाति (%)

सामान्यएससीएसटीओबीसीउपलब्ध नहींकह नहीं सकते
75.600022.22.2

आधे से अधिक बहस कार्यक्रमों में, बहुसंख्यक पैनलिस्ट[iii] ऊंची जातियों के थे. इससे यह प्रतिबिंबित होता है कि अंग्रेजी न्यूज़ चैनलों में ऊँची जतियों का वर्चस्व है. राज्यसभा टीवी में 80 प्रतिशत से अधिक कार्यक्रमों के पैनलिस्टों में ऊँची जातियों का बहुमत था.

तालिका 3 : बहस कार्यक्रम जिनमें बहुसंख्यक पैनलिस्ट ऊँची जातियों से थे (%)

सीएनएन-न्यूज़18इंडिया टुडेमिरर नाउएनडीटीवी 24x7राज्यसभा टीवीरिपब्लिक टीवीटाइम्स नाउ
68.665.963.971.480.852.754.2

सभी चैनलों में, बारम्बारता की दृष्टि से, उच्चतम दश्मक के 60-76 प्रतिशत पैनलिस्ट ऊँची जातियों से थे. इंडिया टुडे और टाइम्स नाउ के पैनलिस्टों में से केवल लगभग 10 प्रतिशत एससी, एसटी या ओबीसी थे.

प्रमुख बहस कार्यक्रमों में भाग लेने वाले पैनलिस्टों में से लगभग 30 प्रतिशत या तो धार्मिक अल्पसंख्यक थे या उनकी जाति का पता नहीं लगाया जा सका. शेष में से, 79 प्रतिशत ऊंची जातियों के थे और 12 प्रतिशत ओबीसी थे. (तालिका-4).

तालिका 4 : टीवी बहस कार्यक्रमों में पैनलिस्टों और उनकी उपस्थिति का जाति समूहवार विश्लेषण 

सामान्यएससीएसटीओबीसीउपलब्ध नहींकह नहीं सकते
सीएनएन - न्यूज़ 18उपस्थिति60.76.70.3613.912.3
पैनलिस्ट55.960.67.614.914.9
इंडिया टुडेउपस्थिति66.53.70.16.415.28.1
पैनलिस्ट55.55.70.27.920.110.6
मिरर नाउउपस्थिति56.54.90.38.411.518.5
पैनलिस्ट53.860.48.112.419.5
एनडीटीवी 24x7उपस्थिति67.14.50.37.310.710
पैनलिस्ट56.75.40.49.412.415.7
राज्यसभा टीवीउपस्थिति70.26.51.861.514.1
पैनलिस्ट704.81.773.313.2
रिपब्लिक टीवीउपस्थिति52.74.90.27.6268.6
पैनलिस्ट57.44.90.67.319.410.4
टाइम्स नाउउपस्थिति5530.2628.17.7
पैनलिस्ट52.62.30.78.42014
कुलउपस्थिति58.24.60.36.919.110.8
पैनलिस्ट54.95.60.78.313.616.8

औसतन, टीवी पर आने की बारम्बारता की दृष्टि से, हर पांच  पैनलिस्टों में से दो किसी न किसी राजनैतिक समूह से सम्बद्ध थे. इससे यह पता चलता है कि भारत में मीडिया और राजनैतिक प्रतिष्ठान के बीच गहरे पेशेवराना सम्बन्ध हैं. इन पैनलिस्टों में से 65 प्रतिशत से अधिक या तो ऊंची जातियों से थे या धार्मिक अल्पसंख्यक थे. व्यापार जगत और थिंक टैंकों का प्रतिनिधित्व करने वाले पैनलिस्टों में से बहुसंख्यक ऊँची जातियों से थे. अल्पसंख्यक समुदायों के पैनलिस्टों में से अधिकांश धार्मिक संस्थाओं या समूहों के प्रतिनिधि थे. इससे यह स्पष्ट होता है कि अल्पसंख्यक समुदायों के व्यक्तियों को केवल उनकी धार्मिक पहचान से जोड़ कर देखा जा रहा है. (तालिका 5).

तालिका 5 : पैनलिस्टों के कार्यक्षेत्र (%)

कार्यक्षेत्रसामान्यएससीएसटीओबीसीउपलब्ध नहींकह नहीं सकते
शैक्षणिक जगत उपस्थिति52.24.10.221.39.213.2
पैनलिस्ट55.55.70.410.111.417
वकील व न्यायविद उपस्थिति49.12.50.452616.9
पैनलिस्ट52.54.21.47.915.618.4
नौकरशाह उपस्थिति63.47.90.410.84.216.4
पैनलिस्ट64.45.30.38.67.414.1
व्यापार - व्यवसाय उपस्थिति79.11.90.15.12.811.1
पैनलिस्ट68.72.60.14.84.819
रक्षा विशेषज्ञ उपस्थिति64.211.90.19.97.46.5
पैनलिस्ट66.25.30.29.97.111.2
वित्तीय विशेषज्ञ उपस्थिति49.82.9021.943.4
पैनलिस्ट59.55.303.44.527.3
स्वतंत्र विशेषज्ञ उपस्थिति50.35.40.3722.714.4
पैनलिस्ट51.15.50.37.715.819.5
मीडिया उपस्थिति58.460.8814.614.1
पैनलिस्ट57.151.36.413.716.5
एनजीओ व सीएसओ उपस्थिति50.53.70.2825.412.2
पैनलिस्ट49.47.60.58.314.319.8
राजनैतिक दल के प्रवक्ता उपस्थिति63.63.10.15.220.97.2
पैनलिस्ट52.46.30.310.215.315.5
राजनैतिक विश्लेषक उपस्थिति49.470.311.425.66.3
पैनलिस्ट565.20.36.51418
धार्मिक नेता उपस्थिति42.73.801.347.84.3
पैनलिस्ट18.39.90.135018.8
सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थिति52.12.80.84.723.216.3
पैनलिस्ट50.55.51.27.916.918
थिंक टैंक उपस्थिति81.54.80.962.24.7
पैनलिस्ट65.15.42.110.13.813.5

राजनैतिक मुद्दों पर बहस कार्यक्रमों में आमंत्रित पैनलिस्टों में से 70 प्रतिशत ऊँची जातियों या धार्मिक अल्पसंख्यक वर्गों से थे. कार्यक्रमों में भाग लेने की बारम्बारता की दृष्टि से, इस तरह के पैनलिस्टों का अनुपात 80 प्रतिशत से भी अधिक था. इसका अर्थ यह है कि अन्यों की तुलना में, उन्हें कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए अधिक आमंत्रित किया जाता है.

तालिका 6 : पैनलिस्टों के बीच चर्चा के विषय

सामान्यएससीएसटीओबीसीउपलब्ध नहींकह नहीं सकते
व्यापार एवं अर्थव्यवस्थाउपस्थिति70.63.70.36.16.213.2
पैनलिस्ट67.65.30.48.15.712.9
अपराध और दुर्घटनाएं उपस्थिति54.94.70.57.221.111.6
पैनलिस्ट55.54.20.77.31714.6
संस्कृति और मनोरंजन उपस्थिति56.44.70.1618.512
पैनलिस्ट58.24.20.15.522.29.7
रक्षा व राष्ट्रीय सुरक्षा उपस्थिति55.56.51.66.311.817.2
पैनलिस्ट56.74.40.86.619.711.8
पर्यावरण व उर्जाउपस्थिति57.35.40.26.7823.5
पैनलिस्ट55.24.20.287.623.7
अंतर्राष्ट्रीय मामलेउपस्थिति56.66.51.66.311.817.2
पैनलिस्ट56.74.40.86.619.711.8
राजनीतिउपस्थिति58.64.50.26.9218.7
पैनलिस्ट54.160.68.716.414.2
सार्वजनिक जीवनउपस्थिति55.44.20.5718.114.9
पैनलिस्ट56.94.80.67.515.115.1
विज्ञान व तकनीकीउपस्थिति87.3507.700
पैनलिस्ट87.3507.700
खेलउपस्थिति37.83.80.512.733.911.3
पैनलिस्ट43.22.10.69.731.113.3
राज्य व नीतिउपस्थिति60.44.40.26.917.210.9
पैनलिस्ट54.95.80.4814.416.5

बहस का विषय चाहे जो हो, एसटी को ना के बराबर प्रतिनिधित्व मिला. जाति से सम्बंधित मुद्दों पर बहसों में से हाशियाकृत समुदायों के सदस्यों को पूरी तरह बाहर रखा गया.

तालिका 7 : जाति से सम्बंधित मुद्दों पर बहस में भाग लेने वाले पैनलिस्ट (%)

सामान्यएससीएसटीओबीसीउपलब्ध नहींकह नहीं सकते
सीएनएन-न्यूज़1877.84.00.14.9013.3
इंडिया टुडे53.312.60.110.29.514.3
मिरर नाउ59.74.40.412.311.611.6
एनडीटीवी 24x778.310.80.410.400
राज्यसभा टीवी80.28.52.29.100
रिपब्लिक टीवी53.82.3016.727.30
कुल62.06.40.49.89.810.9

हिंदी टीवी न्यूज़ चैनल

इस अध्ययन के लिए चुने गए हिंदी न्यूज़ चैनलों – आज तक, न्यूज़18 इंडिया, इंडिया टीवी, एनडीटीवी इंडिया, राज्यसभा टीवी, रिपब्लिक भारत और जी न्यूज़ – में नेतृत्व करने वाले सभी पदों पर ऊँची जातियों के पत्रकार काबिज़ थे.

तालिका 1 : नेतृत्व वाले पद (%)

सामान्यएससीएसटीओबीसीउपलब्ध नहींकह नहीं सकते
100.000000

इन सात चैनलों के प्रमुख कार्यक्रमों के हर 10 में से 8 एंकर, ऊंची जातियों के थे और उनमें से एक भी एसटी, एससी या ओबीसी नहीं था.

तालिका 2 : एंकरों की जाति (%)

सामान्यएससीएसटीओबीसीउपलब्ध नहींकह नहीं सकते
80.500012.27.3

सभी चैनलों के बहस कार्यक्रमों में से तीन-चौथाई से अधिक में बहुसंख्यक पैनलिस्ट ऊंची जातियों के थे. राज्यसभा टीवी में हर दस में से नौ कार्यक्रमों के पैनलिस्टों में ऊँची जातियों का बहुमत था (तालिका-3).

तालिका 3 : बहस कार्यक्रम जिनमें बहुसंख्यक पैनलिस्ट ऊँची जातियों से थे (%)

आज तकन्यूज़18 इंडियाइंडिया टीवीएनडीटीवी इंडियाराज्यसभा टीवीरिपब्लिक भारतजी न्यूज़
73.064.176.065.989.173.969.9

सभी चैनलों में, बारम्बारता की दृष्टि से, टॉप टेन (दस प्रतिशत) यानी उच्चतम दश्मक के दो-तिहाई पैनलिस्ट ऊँची जातियों से थे और पांचवा हिस्सा (1/5), धार्मिक अल्पसंख्यक थे.

इन सात हिंदी न्यूज़ चैनलों द्वारा उनके मुख्य बहस कार्यक्रमों के कुल 1,184 एपिसोड प्रसारित किये गए जिनमें 1,248 पैनलिस्टों ने भाग लिया. लगभग एक-चौथाई पैनलिस्टों के मामले में या तो उनकी जाति का पता नहीं लगाया जा सका या वे धार्मिक अल्पसंख्यक थे. शेष में से 80 प्रतिशत ऊँची जातियों के थे. राज्यसभा टीवी – जो कि सरकारी है – के पैनलिस्टों में से 70 प्रतिशत ऊंची जातियों के थे. न्यूज़ 18 इंडिया और रिपब्लिक भारत के एक-चौथाई से अधिक पैनलिस्ट अल्पसंख्यक समुदायों से थे.

तालिका 4 : बहस कार्यक्रमों में पैनलिस्टों और उनकी उपस्थिति का जाति समूहवार विश्लेषण 

सामान्यएससीएसटीओबीसीउपलब्ध नहींकह नहीं सकते
आज तकउपस्थिति67.44.41.64.216.85.7
पैनलिस्ट57.96.30.58.219.67.4
इंडिया टीवीउपस्थिति67.42.91.14.817.66.1
पैनलिस्ट63.63.915.1206.5
एनडीटीवी इंडियाउपस्थिति65.25.60.99.910.97.5
पैनलिस्ट63.661.310.310.58.4
न्यूज़ 18 इंडियाउपस्थिति57.75.42.14.326.24.4
पैनलिस्ट55.161.15.426.26.2
राज्यसभा टीवीउपस्थिति73.36.71.17.84.17.1
पैनलिस्ट69.96.21.37.85.29.6
रिपब्लिक भारत उपस्थिति57.960.14.827.63.5
पैनलिस्ट59.24.40.14.329.12.9
जी न्यूज़उपस्थिति61.74.50.45.222.75.6
पैनलिस्ट5750.57.317.612.4
कुलउपस्थिति64.64.71.15.418.45.8
पैनलिस्ट60.65.90.68.614.310.1

न्यूज़ 18 इंडिया, इंडिया टीवी और रिपब्लिक भारत के कार्यक्रमों में भाग लेने वाले जिन पैनलिस्टों को वकील एवं न्यायविद के रूप में वर्गीकृत किया गया, उनमें से लगभग सभी अल्पसंख्यक समुदायों से थे, जबकि अध्ययन की छह माह की अवधि में, राज्यसभा टीवी ने अल्पसंख्यक समुदाय के एक भी वकील या न्यायविद को आमंत्रित नहीं किया.

तालिका 5 : पैनलिस्टों के कार्यक्षेत्र (%)

सामान्यएससीएसटीओबीसीउपलब्ध नहींकह नहीं सकते
आज तकउपस्थिति67.44.41.64.216.85.7
पैनलिस्ट57.96.30.58.219.67.4
इंडिया टीवीउपस्थिति67.42.91.14.817.66.1
पैनलिस्ट63.63.915.1206.5
एनडीटीवी इंडियाउपस्थिति65.25.60.99.910.97.5
पैनलिस्ट63.661.310.310.58.4
न्यूज़ 18 इंडियाउपस्थिति57.75.42.14.326.24.4
पैनलिस्ट55.161.15.426.26.2
राज्यसभा टीवीउपस्थिति73.36.71.17.84.17.1
पैनलिस्ट69.96.21.37.85.29.6
रिपब्लिक भारत उपस्थिति57.960.14.827.63.5
पैनलिस्ट59.24.40.14.329.12.9
जी न्यूज़उपस्थिति61.74.50.45.222.75.6
पैनलिस्ट5750.57.317.612.4
कुलउपस्थिति64.64.71.15.418.45.8
पैनलिस्ट60.65.90.68.614.310.1

जहाँ शैक्षणिक जगत के पैनलिस्टों में से 17.9 प्रतिशत अल्पसंख्यक समुदायों के थे वहीं विज्ञान एवं तकनीकी और पर्यावरण एवं ऊर्जा जैसे विषयों पर चर्चा में धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों से एक भी व्यक्ति को आमंत्रित नहीं किया गया.

तालिका 6 : पैनलिस्टों के बीच चर्चा के विषय

सामान्यएससीएसटीओबीसीउपलब्ध नहींकह नहीं सकते
व्यापार एवं अर्थव्यवस्थाउपस्थिति74.46.10.24.15.110.2
पैनलिस्ट69.760.256.412.8
अपराध और दुर्घटनाएं उपस्थिति63.73.71.26.821.82.7
पैनलिस्ट61.34.21.76.924.11.9
संस्कृति और मनोरंजन उपस्थिति564.52-37.5-
पैनलिस्ट564.52-37.5-
रक्षा व राष्ट्रीय सुरक्षा उपस्थिति67.55.314.815.26.1
पैनलिस्ट57.35.61.26.622.96.5
पर्यावरण व उर्जाउपस्थिति84.16.60.48.8--
पैनलिस्ट86.55.60.47.4--
अंतर्राष्ट्रीय मामलेउपस्थिति67.74.22.62.914.67.9
पैनलिस्ट663.62.23.516.58.2
राजनीतिउपस्थिति64.64.41.15.119.35.5
पैनलिस्ट59.15.30.6816.310.6
सार्वजनिक जीवनउपस्थिति52.160.2724.410.3
पैनलिस्ट53.570.28.61911.6
विज्ञान व तकनीकीउपस्थिति63.123122.4--
पैनलिस्ट63.123122.4--
खेलउपस्थिति60.29.61.213.215.8-
पैनलिस्ट60.29.61.213.215.8-
राज्य व नीतिउपस्थिति65.45.11.26.916.45.1
पैनलिस्ट64.35.80.77.815.16.3

जाति से जुड़े मुद्दों पर बहसों में आमंत्रित पैनलिस्टों में से 70 प्रतिशत ऊँची जातियों से थे.

तालिका 7 : जाति से सम्बंधित मुद्दों पर बहस में भाग लेने वाले पैनलिस्ट (%)

सामान्यएससीएसटीओबीसीउपलब्ध नहींकह नहीं सकते
आज तक63.44.40.28.214.39.5
न्यूज़ 18 इंडिया75.012.512.5---
इंडिया टीवी69.41.70.29.96.312.5
एनडीटीवी इंडिया58.85.70.312.27.715.4
राज्यसभा टीवी69.21.40.19.3--
जी न्यूज़68.52.01.25.59.113.6
कुल68.84.11.89.36.79.3

अंग्रेजी समाचारपत्र

इस अध्ययन के लिए चुने गए अंग्रेजी समाचारपत्रों – द इकनोमिक टाइम्स, हिंदुस्तान टाइम्स, द हिन्दू, द इंडियन एक्सप्रेस, द टेलीग्राफ और द टाइम्स ऑफ़ इंडिया – में नेतृत्व करने वाले लगभग 92 प्रतिशत पदों पर ऊँची जातियों के पत्रकार नियुक्त थे. इन पदों में एससी, एसटी, ओबीसी और धार्मिक अल्पसंख्यकों का कोई प्रतिनिधित्व नहीं था.

तालिका 1 : नेतृत्व वाले पद (%)

सामान्यएससीएसटीओबीसीउपलब्ध नहींकह नहीं सकते
91.700008.3

हमने अक्टूबर 2018 से लेकर मार्च 2019 के बीच इन छह समाचार-पत्रों में प्रकाशित 16,000 लेखों का अध्ययन किया और द इकनोमिक टाइम्स और द टेलीग्राफ को छोड़कर, प्रत्येक से लगभग 3,000 बाइलाइन वाले लेख निकाले. केवल आर्थिक दैनिक होने के कारण द इकनोमिक टाइम्स में अर्थव्यवस्था पर केन्द्रित अलग से कोई पृष्ठ नहीं है. द टेलीग्राफ में, विशेषकर खेल पृष्ठों पर, विदेशी लेखकों – जो हमारे सर्वेक्षण से बाहर थे – द्वारा लिखित लेख बड़ी संख्या में प्रकाशित थे.

इनमें से, द हिन्दू को छोड़कर, सभी समाचार-पत्रों में 60 प्रतिशत से अधिक लेख ऊंची जातियों के लेखकों द्वारा लिखित थे. द हिन्दू इस मामले में कुछ अलग था, क्योंकि हम उसके लगभग 26 प्रतिशत लेखकों की जाति का पता नहीं लगा सके. कुल मिलाकर, इन छह समाचार-पत्रों के लगभग बीस फीसदी लेखकों की जाति का पता नहीं लग सका.

तालिका 2 : जाति समूहवार समग्र विश्लेषण 

सामान्यएससीएसटीओबीसीउपलब्ध नहींकह नहीं सकते
हिंदुस्तान टाइम्सउपस्थिति66.64.20.84.910.612.9
पैनलिस्ट57.56.50.88.27.917.3
द इकनोमिक टाइम्सउपस्थिति70.14.51.15.64.514.3
पैनलिस्ट57.85.11.27.75.622.6
द हिन्दूउपस्थिति52.15.30.57.48.626.1
पैनलिस्ट46.370.4101026.2
द इंडियन एक्सप्रेसउपस्थिति58.15.50.55.413.417.1
पैनलिस्ट53.46.70.78.411.519.4
द टेलीग्राफउपस्थिति71.63.80.17.411.75.5
पैनलिस्ट68.56.30.27.34.912.9
द टाइम्स ऑफ़ इंडियाउपस्थिति65.62.90.33.89.917.6
पैनलिस्ट53.85.10.97.49.423.6
कुलउपस्थिति62.14.40.55.510.217.2
पैनलिस्ट53.96.20.78.39.221.7

धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों के लेखकों और उन लेखकों, जिनकी जाति का पता हम नहीं लगा सके, को छोड़कर, प्रकाशित लेखों की संख्या के आधार पर लेखकों के टॉप टेन (दस प्रतिशत) यानी उच्चतम दश्मक में से 80 प्रतिशत उच्च जातियों के थे. इकनोमिक टाइम्स के मामले में यह आंकड़ा 96 प्रतिशत था.

समाचारपत्रों के जिन चार श्रेणियों के पृष्ठों की हमने विवेचना की, उन सभी में उच्च जातियों के लेखकों का वर्चस्व था. व्यापार पृष्ठों पर छपे बाइलाइन लेखों में से 72 प्रतिशत के लेखक ऊंची जातियों के थे जबकि प्रथम पृष्ठ पर छपे लेखों के मामले में यह आंकड़ा 62 प्रतिशत था.

तालिका 3 : पृष्ठवार जातिगत विश्लेषण (%)

पृष्ठसामान्यएससीएसटीओबीसीउपलब्ध नहींकह नहीं सकते
व्यापर - व्यवसायउपस्थिति71.84.70.23.77.711.9
पैनलिस्ट58.95.80.88.77.218.6
प्रथम पृष्ठउपस्थिति62.34.30.36.314.45.4
पैनलिस्ट56.65.90.68.211.417.2
संपादकीयउपस्थिति59.85.30.96.99.317.8
पैनलिस्ट53.76.50.78922.1
खेलउपस्थिति57.63.60.64.7825.5
पैनलिस्ट53.75.21.26.38.125.5

इस अध्ययन में जिन 16,000 लेखों को शामिल किया गया, उन्हें हमने विषय के आधार पर 11 श्रेणियों में बांटा. हमें यह ज्ञात हुआ की प्रत्येक श्रेणी के लेखकों में से 55 से 65 प्रतिशत, उच्च जातियों के थे. यह आंकड़ा शायद और बड़ा होगा क्योंकि हम लगभग बीस फीसदी लेखकों की जाति का पता नहीं लगा सके.

तालिका 4 : विषयानुसार विश्लेषण

सामान्यएससीएसटीओबीसीउपलब्ध नहींकह नहीं सकते
व्यापार एवं अर्थव्यवस्थाउपस्थिति70.34.70.34.18.112.4
पैनलिस्ट60.55.80.88.26.917.7
अपराध और दुर्घटनाएं उपस्थिति63.15.60.48.813.58.5
पैनलिस्ट58.860.6813.113.4
संस्कृति और मनोरंजन उपस्थिति59.85.40.75.811.616.7
पैनलिस्ट576.40.96.211.118.4
रक्षा व राष्ट्रीय सुरक्षा उपस्थिति59.33.60.24.7248.3
पैनलिस्ट60.64.60.26.214.713.6
पर्यावरण व उर्जाउपस्थिति62.97.90.38.56.314.1
पैनलिस्ट578.40.38.37.118.9
अंतर्राष्ट्रीय मामलेउपस्थिति66.42.90.74.813.112.1
पैनलिस्ट56.85.30.66.912.318
राजनीतिउपस्थिति58.65.10.37.215.113.8
पैनलिस्ट57.26.50.58.110.916.8
सार्वजनिक जीवनउपस्थिति56.65.71.47.71018.6
पैनलिस्ट556.20.58.69.720.1
विज्ञान व तकनीकीउपस्थिति54.16.40.36.310.122.8
पैनलिस्ट58.55.90.38.18.119.1
खेलउपस्थिति57.63.60.74.77.925.4
पैनलिस्ट54.75.31.16.57.125.2
राज्य व नीतिउपस्थिति63.840.35.910.115.8
पैनलिस्ट57.95.40.57.31018.9

द इंडियन एक्सप्रेस ने जाति से जुड़े मुद्दों पर सबसे अधिक ध्यान दिया. इस विषय पर प्रकाशित लेखों में से 60 प्रतिशत द इंडियन एक्सप्रेस में छपे थे. इस दैनिक में समाचार और संपादकीय – दोनों प्रकार के पृष्ठों में जाति के विषय में लेख प्रकाशित हुए यद्यपि इन लेखों की विषयवस्तु का आंकलन इस अध्ययन के क्षेत्र से बाहर था.

तालिका 5 : जाति के मुद्दों पर लिखने वालों की जाति

सामान्यएससीएसटीओबीसीउपलब्ध नहींकह नहीं सकते
द इकनोमिक टाइम्स100-----
हिंदुस्तान टाइम्स24.415.50.13.411.144.4
द हिन्दू34.34.41.16.37.746.2
द इंडियन एक्सप्रेस50.48.70.16.314.520.0
द टेलीग्राफ86.1--13.9--
द टाइम्स ऑफ़ इंडिया100-----
कुल51.67.50.26.211.123.3

हिंदी समाचारपत्र

इस अध्ययन के लिए चुने गए हिंदी समाचारपत्रों – दैनिक भास्कर, अमर उजाला, नवभारत टाइम्स, राजस्थान पत्रिका, प्रभात खबर, पंजाब केसरी और हिंदुस्तान – में नेतृत्व करने वाले पदों पर कार्यरत पत्रकारों में से एक भी एससी, एसटी या ओबीसी नहीं था.

तालिका 1 : नेतृत्व वाले पद (%)

सामान्यएससीएसटीओबीसीउपलब्ध नहींकह नहीं सकते
87.5000012.5

इन समाचारपत्रों में प्रकाशित अधिकांश लेखों में बाइलाइन नहीं थी इसलिए हमने उन्हें अपने विश्लेषण में शामिल नहीं किया.

तालिका 2 : जाति समूहवार समग्र विश्लेषण 

सामान्यएससीएसटीओबीसीउपलब्ध नहींकह नहीं सकते
अमर उजालाउपस्थिति62.65.70.510.56.114.6
पैनलिस्ट53.46.70.88.75.924.5
दैनिक भास्करउपस्थिति68.27.40.310.63.110.4
पैनलिस्ट56.29.60.411.64.517.8
हिंदुस्तानउपस्थिति61.16.71.47.43.919.6
पैनलिस्ट57.66.51.18.58.118.2
नवभारत टाइम्सउपस्थिति685.40.29.86.310.2
पैनलिस्ट64.46.80.210.16.711.7
प्रभात खबरउपस्थिति59.57.82.811.26.811.8
पैनलिस्ट57.29.23.811.26.811.8
पंजाब केसरीउपस्थिति49.811.80.312.19.616.4
पैनलिस्ट50.811.90.412.15.619.2
राजस्थान पत्रिकाउपस्थिति66.511.91.99.22.48.2
पैनलिस्ट65.94.71.99.34.713.5
कुलउपस्थिति60.38.30.910.16.314.1
पैनलिस्ट56.28.11.19.76.518.4

अंग्रेजी समाचारपत्रों की तुलना में, हाशियाकृत समुदायों के प्रतिनिधित्व की दृष्टि से, हिंदी समाचार-पत्रों में स्थिति कुछ बेहतर थी. पंजाब केसरी और राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित लेखों में से लगभग 12 प्रतिशत के लेखक एससी थे.

तालिका 3 : पृष्ठवार जातिगत विश्लेषण (%)

सामान्यएससीएसटीओबीसीउपलब्ध नहींकह नहीं सकते
अमर उजालाउपस्थिति62.65.70.510.56.114.6
पैनलिस्ट53.46.70.88.75.924.5
दैनिक भास्करउपस्थिति68.27.40.310.63.110.4
पैनलिस्ट56.29.60.411.64.517.8
हिंदुस्तानउपस्थिति61.16.71.47.43.919.6
पैनलिस्ट57.66.51.18.58.118.2
नवभारत टाइम्सउपस्थिति685.40.29.86.310.2
पैनलिस्ट64.46.80.210.16.711.7
प्रभात खबरउपस्थिति59.57.82.811.26.811.8
पैनलिस्ट57.29.23.811.26.811.8
पंजाब केसरीउपस्थिति49.811.80.312.19.616.4
पैनलिस्ट50.811.90.412.15.619.2
राजस्थान पत्रिकाउपस्थिति66.511.91.99.22.48.2
पैनलिस्ट65.94.71.99.34.713.5
कुलउपस्थिति60.38.30.910.16.314.1
पैनलिस्ट56.28.11.19.76.518.4

प्रकाशित लेखों के संख्या के आधार पर लेखकों के उच्चतम दश्मक में से लगभग 20 प्रतिशत – एससी, एसटी या ओबीसी थे.

जिन पत्रकारों की बाइलाइन खेल पृष्ठों में प्रकाशित थी, उनमें से लगभग 58 प्रतिशत ऊँची जातियों से थे और करीब 80 प्रतिशत लेख उनके द्वारा लिखे गए थे. किसी भी अख़बार के खेल पृष्ठ पर, दमित अल्पसंख्यक समुदायों के एक भी लेखक का लेख प्रकाशित नहीं था. व्यापार-व्यवसाय पृष्ठों पर भी ऊंची जातियों के पत्रकारों का वर्चस्व था.

इन सात अख़बारों में प्रकाशित बाइलाइन लेखों में से करीब 50 प्रतिशत को विषय के आधार पर राजनीति और सार्वजनिक जीवन की श्रेणी में रखा गया और उनमें से 60 प्रतिशत के लेखक, ऊँची जातियों के थे. शेष लेखों में से अधिकांश के लेखकों की जाति का हम पता नहीं लग सके.

तालिका 4 : विषयानुसार विश्लेषण

सामान्यएससीएसटीओबीसीउपलब्ध नहींकह नहीं सकते
व्यापार एवं अर्थव्यवस्थाउपस्थिति614.40.311.73.719
पैनलिस्ट62.870.49.16.314.8
अपराध और दुर्घटनाएं उपस्थिति51.316.31.2143.413.7
पैनलिस्ट51.614.20.913.62.717
संस्कृति और मनोरंजन उपस्थिति58.171.69.95.318.1
पैनलिस्ट55.57.41.910.16.918.1
रक्षा व राष्ट्रीय सुरक्षा उपस्थिति37.89.70.48.327.816
पैनलिस्ट51.9130.513.44.816.4
पर्यावरण व उर्जाउपस्थिति53.97.80.48.616.312.9
पैनलिस्ट54.810.40.410.57.616.3
अंतर्राष्ट्रीय मामलेउपस्थिति60.88.11.77.38.313.8
पैनलिस्ट58.85.52.26.66.720.1
राजनीतिउपस्थिति61.78.40.411.46.411.2
पैनलिस्ट62.27.60.79.96.513.2
सार्वजनिक जीवनउपस्थिति61.48.31.29.23.416.5
पैनलिस्ट55.77.11.69.95.720.1
विज्ञान व तकनीकीउपस्थिति62.77.97.210.111.954.2
पैनलिस्ट54.210.10.28.49.517.6
खेलउपस्थिति78.16.60.860.67.9
पैनलिस्ट54.511.81.79.92.319.8
राज्य व नीतिउपस्थिति60.710.21.111.27.88.9
पैनलिस्ट61.68.41.410.66.611.5

जाति के मुद्दे पर नवभारत टाइम्स और राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित लेखों में से क्रमशः 76 प्रतिशत और 90 प्रतिशत के लेखक ऊँची जातियों से थे. जाति के मुद्दे पर हमें हिंदी समाचार-पत्रों में बाइलाइन लेख बहुत कम मिले. इन समाचार-पत्रों में प्रकाशित अधिकांश लेख ‘अपराध एवं दुर्घटनाएं’ और ‘राज्य व नीति’ विषयक थे. अध्ययन की अवधि में, सरकार ने सामान्य श्रेणी के आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों को आरक्षण देने का निर्णय लिया था. कदाचित इस कारण, राज्य व नीति विषयक लेख इस अवधि में अधिक संख्या में प्रकाशित हुए.

तालिका 5 : जाति के मुद्दों पर लिखने वालों की जाति

  सामान्यएससीएसटीओबीसीउपलब्ध नहींकह नहीं सकते
अमर उजाला100-----
दैनिक भास्कर44.310.20.316.6-28.8
हिंदुस्तान23.44.40.813.08.350.0
नवभारत टाइम्स76.28.60.414.8--
प्रभात खबर52.33.711.810.016.75.6
राजस्थान पत्रिका89.6--10.4--
कुल51.86.44.411.97.817.6

डिजिटल मीडिया

इस अध्ययन के लिए 11 समाचार वेबसाइटों को चुना गया. वे थीं –  फर्स्ट पोस्ट, न्यूज़लांड्री (अंग्रेजी), स्क्रॉल डॉट इन, स्वराज्य, द केन, द न्यूज़ मिनट, द प्रिंट, द क्विंट, द वायर (अंग्रेजी), न्यूज़लांड्री (हिंदी) और सत्याग्रह (हिंदी).

अन्य मीडिया की तरह, इन डिजिटल समाचार माध्यमों में भी नेतृत्व वाले पदों पर ऊँची जाति के पत्रकारों का एकाधिकार था.

तालिका 1 : नेतृत्व वाले पद (%)

सामान्यएससीएसटीओबीसीउपलब्ध नहींकह नहीं सकते
84.2005.3010.5

यद्यपि न्यूज़ वेबसाइटों के मामले में हमने केवल ऐसे लेखकों को अपने विश्लेषण में शामिल किया, जिन्होंने छह माह की अवधि में कम-से-कम पांच लेख लिखे हों, परन्तु हमने भारी मात्रा में सामग्री एकत्रित कर किए. हमने यह भी पाया कि कई मामलों में एक ही व्यक्ति का नाम, अलग-अलग वेबसाइटों द्वारा अलग-अलग ढंग से लिखा जा रहा था. जैसे, न्यूज़लांड्री के लिए अक्सर लिखने वाले मेघनाद सहस्रभोजनी का नाम कुछ अन्य वेबसाइटों द्वारा मेघनाद एस. लिखा जाता था. जहाँ तक हो सका, हमने इस तथ्य को ध्यान में रखा परन्तु हो सकता है कि आंकड़ों के परिमाण को देखते हुए, कुछ मामलों में एक ही व्यक्ति को दो अलग-अलग व्यक्तियों के रूप में गिन लिया गया हो. लेखकों के एक बड़े हिस्से की जाति का पता हम नहीं लगा सके.

द केन, न्यूज़लांड्री (अंग्रेजी), न्यूज़लांड्री (हिंदी) और सत्याग्रह में प्रकाशित लेखों के संख्या के आधार पर लेखकों के उच्चतम दश्मक में शामिल सभी लेखक ऊँची जातियों से थे.

प्रिंट और दृश्य-श्रव्य मीडिया की तरह, डिजिटल मीडिया में भी एसटी लेखक सिरे से गायब थे. डिजिटल मीडिया में प्रवेश पाना अपेक्षाकृत आसान है. ज्यादातर वेबसाइटों का छोटा-सा ‘कोर’ स्टाफ होता है और प्रकाशन हेतु अधिकांश सामग्री उन्हें स्वतंत्र लेखकों, विद्यार्थियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं से प्राप्त होती है. इस कारण हमारी अपेक्षा थी कि समाचारपत्रों और टीवी चैनलों की तुलना में, वहां एसटी लेखकों की संख्या अधिक होगी. परन्तु ऐसा नहीं था.

अन्य मीडिया की तुलना में, डिजिटल मीडिया में ऊँची जातियों से इतर वर्गों के लेखकों द्वारा लिखित लेखों की संख्या सबसे ज्यादा थी. परन्तु इसका कारण था कुल लेखों की बड़ी संख्या. ऊँची जातियों के व अन्य जातियों के लेखकों के अनुपात के दृष्टि से, न्यूज़ वेबसाइटों की स्थिति अखबारों या टीवी चैनलों से बेहतर नहीं थी. द केन में लिखने वालों में से केवल 2 प्रतिशत एससी-एसटी थे. किसी भी वेबसाइट के मामले में यह आंकड़ा 9 प्रतिशत से ज्यादा नहीं था.

तालिका 2 : जाति समूहवार समग्र विश्लेषण 

सामान्यएससीएसटीओबीसीउपलब्ध नहींकह नहीं सकते
फर्स्ट पोस्टउपस्थिति56.930.696.324.3
पैनलिस्ट56.34.50.78.47.123.1
न्यूज़ लांड्री ( अंग्रेजी ) उपस्थिति69.5214.41013.2
पैनलिस्ट48.94.62.410.215.519.1
न्यूज़ लांड्री ( हिंदी )उपस्थिति76.76.20.1103.92.4
पैनलिस्ट608.80.31410.46.5
सत्याग्रह ( हिंदी ) उपस्थिति79.35.80.2923.7
पैनलिस्ट686.50.312.66.36.3
स्क्रॉल . इनउपस्थिति62.43.40.76.210.716.6
पैनलिस्ट62.74.718.69.213.8
स्वराज्यउपस्थिति56.83.10.27.12.230.5
पैनलिस्ट52.35.70.48.81.431.3
द केनउपस्थिति59.21.20.11310.815.8
पैनलिस्ट44.81.50.210.714.328.6
द न्यूज़ मिनटउपस्थिति41.43-14.58.632.5
पैनलिस्ट40.72.4-3.56.746.7
द प्रिंटउपस्थिति72.53.10.45.36.711.9
पैनलिस्ट62.150.589.415
द क्विंटउपस्थिति54.730.14.711.725.9
पैनलिस्ट57.14.20.15.512.720.4
द वायरउपस्थिति55.74.70.15.116.417.9
पैनलिस्ट56.240.25.816.816.8
कुलउपस्थिति60.13.30.47.78.220.3
पैनलिस्ट54.95.60.78.68.921.9

तालिका 3 : विषयानुसार विश्लेषण

सामान्यएससीएसटीओबीसीउपलब्ध नहींकह नहीं सकते
व्यापार एवं अर्थव्यवस्थाउपस्थिति54.85.10.715.79.714.2
पैनलिस्ट58.950.67.96.920.8
अपराध और दुर्घटनाएं उपस्थिति63.92.80.44.47.421.1
पैनलिस्ट59.23.80.57.29.719.5
संस्कृति और मनोरंजन उपस्थिति583.70.19.55.722.9
पैनलिस्ट59.240.38.11020.7
रक्षा व राष्ट्रीय सुरक्षा उपस्थिति57.21.90.24.926.69
पैनलिस्ट63.340.37.212.612.6
पर्यावरण व उर्जाउपस्थिति66.11.90.46.19.116.4
पैनलिस्ट63.60.58.37.919.7
अंतर्राष्ट्रीय मामलेउपस्थिति66.72.10.1613.511.6
पैनलिस्ट56.63.70.27.312.419.7
राजनीतिउपस्थिति66.74.20.36.75.416.7
पैनलिस्ट58.54.70.48.96.920.6
सार्वजनिक जीवनउपस्थिति56.23.20.34.98.826
पैनलिस्ट55.950.68.79.320.4
विज्ञान व तकनीकीउपस्थिति24.70.61.119.315.538.8
पैनलिस्ट52.83.30.57.28.927.4
खेलउपस्थिति55.522.40.53.64.633.4
पैनलिस्ट59.13.40.46.75.225.2
राज्य व नीतिउपस्थिति71.33.30.36.37.311.4
पैनलिस्ट615.20.77.67.418.1

जाति से जुड़े मुद्दों पर लिखने वालों में से भी अधिकांश ऊँची जातियों के थे. सत्याग्रह में, जाति के मुद्दे पर लिखने वाले हर पांच लेखकों में से चार ऊँची जातियों के थे.

तालिका 4 : जाति के मुद्दों पर लिखने वालों की जाति

सामान्यएससीएसटीओबीसीउपलब्ध नहींकह नहीं सकते
फर्स्ट पोस्ट48.65.00.219.513.313.3
न्यूज़ लांड्री (अंग्रेजी)49.24.8-1.6-44.4
न्यूज़ लांड्री (हिंदी)53.420.30.625.7--
सत्याग्रह (हिंदी)74.411.80.513.3--
स्वराज्य51.41.90.113.3-33.3
न्यूज़ मिनट46.06.7-0.713.333.3
प्रिंट68.95.80.67.48.78.7
क्विंट57.10.0-14.3-28.6
वायर63.00.70.09.66.720.0
स्क्रॉल. इन49.51.90.111.329.417.6
कुल55.85.60.29.79.818.9

पत्रिकाएँ

इस अध्ययन के लिए हमने राजनीति से लेकर व्यापार तक और संस्कृति से लेकर खेल तक जैसे विविध विषयों पर केन्द्रित 12 पत्रिकाएँ चुनीं. इनमें शामिल थीं – बिज़नस टुडे, कारवां, फेमिना, फ्रंटलाइन, इंडिया टुडे (अंग्रेजी), इंडिया टुडे (हिंदी), आर्गेनाइजर, आउटलुक (अंग्रेज़ी), आउटलुक (हिंदी), सरिता, स्पोर्ट्स स्टार और तहलका.

समाचारपत्रों, टीवी न्यूज़ चैनलों और समाचार वेबसाइटों की तुलना में, पत्रिकाओं में नेतृत्व वाले पदों में ओबीसी का प्रतिनिधित्व बेहतर था. परन्तु यहाँ भी एससी और एसटी के लिए कोई स्थान नहीं था.

तालिका 1 : नेतृत्व वाले पद (%)

सामान्यएससीएसटीओबीसीउपलब्ध नहींकह नहीं सकते
72.70013.6013.6

प्रकाशित लेखों के संख्या के आधार पर लेखकों के उच्चतम दश्मक में से केवल 10 प्रतिशत, एससी, एसटी या ओबीसी थे. तहलका के मामले में उच्चतम दश्मक में केवल उच्च जातियों के लोग थे.

यद्यपि कारवां, ऊँची जातियों के वर्चस्व की दृष्टि से अपवाद प्रतीत होता है तथापि तथ्य यह है कि हम इसके एक-चौथाई लेखकों की जाति का पता नहीं लगा पाए. इससे इस निष्कर्ष की विश्वसनीयता संदिग्ध हो जाती है. इन 12 पत्रिकाओं में प्रकाशित जिन 972 लेखों का हमने विश्लेषण किया, उससे यह पता चलता है कि उनमें से 0.5 प्रतिशत से भी कम एसटी समुदाय के सदस्यों द्वारा लिखित थे.

तालिका 2 : जाति समूहवार समग्र विश्लेषण 

सामान्यएससीएसटीओबीसीउपलब्ध नहींकह नहीं सकते
बिज़नस टुडेउपस्थिति624.50.25.611.815.8
पैनलिस्ट606.20.28.76.118.2
कारवांउपस्थिति38.87.50.212.814.825.9
पैनलिस्ट36.97.80.212.815.426.9
फेमिनाउपस्थिति57.12.8-4.51.733.9
पैनलिस्ट47.45.60.15.94.536.4
फ्रंटलाइनउपस्थिति56.24.20.28.516.714.3
पैनलिस्ट58.12.30.16.214.319
इंडिया टुडे ( अंग्रेजी )उपस्थिति73.33.2-4.46.112.9
पैनलिस्ट642.4-2.817.912.8
इंडिया टुडे ( हिंदी )उपस्थिति723.40.14.57.112.9
पैनलिस्ट59.93.80.14.918.812.5
आर्गेनाइजरउपस्थिति54.210.30.38.81.112.1
पैनलिस्ट53.88.30.27.61.612.5
आउटलुक ( अंग्रेजी )उपस्थिति52.38.41.27.815.514.9
पैनलिस्ट45.68.41.87.912.124.2
आउटलुक ( हिंदी )उपस्थिति52.210.91.3168.710.9
पैनलिस्ट51.713.31.813.87.612.1
सरिताउपस्थिति57.99.30.312.813.16.6
पैनलिस्ट57.18.40.814.21010
स्पोर्ट्स स्टारउपस्थिति523.70.15.55.333.3
पैनलिस्ट47.540.15.97.535
तहलकाउपस्थिति57.260.18.7208
पैनलिस्ट44.770.112.428.67.1
कुलउपस्थिति55.96.10.47.79.216.8
पैनलिस्ट52.27.20.58.810.221.1

अंतर्राष्ट्रीय मामलों पर प्रकशित लेखों में से 44 प्रतिशत के लेखक, धार्मिक अल्पसंख्यक थे. इन लेखों में से एक-तिहाई फ्रंटलाइन और आउटलुक में प्रकाशित थे. मार्च 2019 में समाप्त होने वाले छह महीनों में, केवल तीन कवर स्टोरी विज्ञान और तकनीकी से सम्बंधित थीं.

तालिका 3 : विषयानुसार विश्लेषण

सामान्यएससीएसटीओबीसीउपलब्ध नहींकह नहीं सकते
व्यापार एवं अर्थव्यवस्थाउपस्थिति61.37.20.28.48.314.6
पैनलिस्ट61.670.28.52.320.5
अपराध और दुर्घटनाएं उपस्थिति5717.90.310.67.17.1
पैनलिस्ट58.716.70.297.77.7
संस्कृति और मनोरंजन उपस्थिति67.37.30.17.17.810.4
पैनलिस्ट60.380.17.810.213.6
रक्षा व राष्ट्रीय सुरक्षा उपस्थिति5860.25.511.818.4
पैनलिस्ट57.29.20.36.212.514.6
पर्यावरण व उर्जाउपस्थिति51.917.20.28.411.111.1
पैनलिस्ट5.917.20.28.411.111.1
अंतर्राष्ट्रीय मामलेउपस्थिति31.53.70.18.243.513
पैनलिस्ट305.30.17.837.518.8
राजनीतिउपस्थिति64.15.61.18.35.615.5
पैनलिस्ट55.38.31.39.4817.7
सार्वजनिक जीवनउपस्थिति52.96.10.27.310.622.9
पैनलिस्ट51.96.6-7.711.422.2
विज्ञान व तकनीकीउपस्थिति33.3----66.7
पैनलिस्ट50----50
खेलउपस्थिति54.43.30.15.36.230.8
पैनलिस्ट49.63.50.15.58.732.6
राज्य व नीतिउपस्थिति67.85.80.29.28.98.2
पैनलिस्ट59.17.90.312.410.110.1

केवल चार पत्रिकाओं – इंडिया टुडे (अंग्रेजी), इंडिया टुडे (हिंदी), कारवां और सरिता – ने अपने मुखपृष्ठ पर जाति से जुड़े मुद्दों पर लेखों का हवाला दिया.

तालिका 4 : जाति के मुद्दों पर लिखने वालों की जाति

सामान्यएससीएसटीओबीसीउपलब्ध नहींकह नहीं सकते
कारवां67.117.9-25.025.025.0
इंडिया टुडे (अंग्रेजी)66.10.1-0.5-33.3
इंडिया टुडे (हिंदी)99.5--0.5--
सरिता63.09.4-27.5--
कुल36.210.1-16.112.525.0

टिपण्णी :

अछूतों के लिए तो प्रेस मानो है ही नहीं” – बी.आर. आंबेडकर, 1938

यह रपट इस अक्सर दुहराई जाने वाली बात का आनुभविक प्रमाण देती है कि भारतीय समाचार मीडिया, देश की आबादी के एक छोटे से हिस्से – ऊँची जातियों – की विश्व दृष्टि को प्रतिबिंबित करता है. यह इस तथ्य के बावजूद कि उसका यह दावा है कि वह पूरी देश की आवाज़ है. हमारे अध्ययन से पता चलता है कि समाचार-पत्रों, टीवी न्यूज़ चैनलों, समाचार वेबसाइटों और पत्रिकाओं द्वारा प्रस्तुत की जाने वाली सामग्री और उनके न्यूज़रूमों, दोनों में दलितों, आदिवासियों और ओबीसी का प्रतिनिधित्व बहुत कम, और कुछ मामलों में शून्य, है.

इसका अर्थ यह है कि मुख्यधारा के वे मीडिया संस्थान और वेब पोर्टल, जिन्हें इस अध्ययन में शामिल किया गया है, के लिए भारत की आबादी का बड़ा हिस्सा, उच्च जातियों के पत्रकारों द्वारा लिखी जाने वाली ख़बरों और लेखों का ‘विषय’ मात्र है और यह बहुसंख्यक तबका न तो समाचारों का निर्माता है और ना ही उनका वाहक. इस दृष्टि से, भारतीय मीडिया, 1960 के दशक के अमरीकी मीडिया से कुछ अलग नहीं है जिसकी कर्नर आयोग ने अफ़्रीकी-अमरीकियों की आवाज़ को नज़रअंदाज़ करने के लिए आलोचना करते हुए कहा था कि वह दुनिया को ‘श्वेतों की नज़र और उनके परिप्रेक्ष्य से देखता है.”

यह स्थिति कतई स्वीकार्य नहीं हो सकती है. विशेषकर इसलिए क्योंकि राष्ट्रीय विमर्श के निर्माण में ऊँची जातियों के नज़रिए को प्राथमिकता देने से भारतीय समाज का प्रजातान्त्रिक चरित्र कमज़ोर होता है.

अब समय आ गया है जबकि मीडिया संस्थानों को देश के सामाजिक और जनसांख्यिकीय चरित्र के अनुरूप अपने न्यूज़रूमों में विविधता लाने के लिए सकारात्मक भेदभाव सहित, अन्य कदम उठाने चाहिए. इस हेतु, ऐसी प्रणालियाँ विकसित की जानी चाहिए जिनसे समावेशिता को बढ़ावा मिले और समाज के सभी तबकों से पत्रकारों को प्रशिक्षण देने और उन्हें काम पर रखा जाने की दिशा में प्रयास होने चाहिए.

इस अध्ययन के दौरान हमने मीडिया संस्थानों के जिन प्रतिनिधियों और पत्रकारों से चर्चा की, वे सभी इस बात को मानते हैं कि भारतीय न्यूज़रूमों में हाशियाकृत समुदायों का प्रतिनिधित्व कम है परन्तु उनमें से कई का यह तर्क था कि जाति के बारे में बात करने और जातिगत असमानताओं का अध्ययन करने से जातिवाद बढ़ेगा!

हमें आशा है की यह रपट इस समस्या को स्वीकार करने की दिशा में एक प्राथमिक कदम सिद्ध होगी और भारतीय मीडिया में हाशियाकृत समुदायों के निम्न प्रतिनिधित्व के परिमाण का निर्धारण करने हेतु आगे और शोधकार्य को प्रोत्साहित करेगी.

परिशिष्ट 1 : स्रोत

समाचारपत्र (अंग्रेजी)

-हिंदुस्तान टाइम्स, मुंबई

-द इकोनॉमिक टाइम्स, मुंबई

-द हिन्दू, चेन्नई,

-द इंडियन एक्सप्रेस, दिल्ली

-द टेलीग्राफ, कोलकाता

-द टाइम्स ऑफ़ इंडिया, मुंबई

समाचारपत्र (हिंदी)

-अमर उजाला, लखनऊ

-दैनिक भास्कर, पटना

-हिंदुस्तान, दिल्ली

-नवभारत टाइम्स, दिल्ली

-प्रभात खबर, रांची

-पंजाब केसरी, लुधियाना

-राजस्थान पत्रिका, जयपुर

अंग्रेजी टीवी चैनल और बहस कार्यक्रम

-सीएनएन-न्यूज़ 18 (फेस ऑफ टुनाइट: व्यूपॉइंट)

-इंडिया टुडे (न्यूज़टुडे)

-मिरर नाउ (द अर्बन डिबेट)

-एनडीटीवी 24×7 (लेफ्ट, राईट एंड सेंटर: रियलिटी चेक)

-राज्यसभा टीवी (द बिग पिक्चर: इंडियाज वर्ल्ड)

-रिपब्लिक टीवी (लेट टुनाइट: द डिबेट)

-टाइम्स नाउ (द न्यूज़ ऑवर)

हिंदी टीवी चैनल और बहस कार्यक्रम

-आज तक (हल्ला बोल : दंगल)

-न्यूज़ 18 इंडिया (आर पार)

-इंडिया टीवी (कुरुक्षेत्र)

-एनडीटीवी इंडिया (प्राइम टाइम : रणनीति)

-राज्यसभा टीवी (देश देशांतर)

-रिपब्लिक भारत (पूछता है भारत)

-जी न्यूज़ (ताल ठोक के)

डिजिटल मीडिया 

-फर्स्टपोस्ट
-न्यूज़लांड्री (अंग्रेजी)
-न्यूज़लांड्री (हिंदी)
-सत्याग्रह
-स्क्रॉल डॉट इन
-स्वराज्य
-द केन
-द न्यूज़ मिनट
-द प्रिंट
-द क्विंट
-द वायर

पत्रिकाएँ

-बिज़नस टुडे
-कारवां
-फेमिना

-फ्रंटलाइन
-इंडिया टुडे (अंग्रेजी)

-इंडिया टुडे (हिंदी)

-आर्गेनाइजर

-आउटलुक (अंग्रेजी)

-आउटलुक (हिंदी)

-सरिता
-स्पोर्ट्सस्टार
-तहलका

परिशिष्ट 2 :  विषयशीर्ष

आंकड़ों के विश्लेषण के लिए निम्नांकित विषय-शीर्षों का प्रयोग किया गया. प्रत्येक शीर्ष के अंतर्गत जो विषय सम्मिलित किए गए हैं वे केवल वर्णनात्मक हैं.

  1. व्यापार व अर्थव्यवस्था : समिष्टि अर्थशास्त्र संकेतक, वित्तीय बाजार, व्यक्तिगत व्यापार-व्यवसाय, घरेलू व अंतर्राष्ट्रीय व्यापार.
  2. अपराध व दुर्घटनाएं : दंगा, हत्या, साम्प्रदायिक हिंसा, यौन उत्पीड़न, दुष्कृत्य, दुर्घटना, भवनों का ढहना, अग्नि दुर्घटनाएं.
  3. संस्कृति व मनोरंजन : फिल्म, संगीत, कला, नृत्य, पुस्तकें, लेखक, साहित्यिक पुरस्कार, समालोचना, कला व साहित्य उत्सव
  4. रक्षा व राष्ट्रीय सुरक्षा : युद्ध, संघर्ष, सशस्त्र बल, आंतरिक विद्रोह, नक्सलवाद, आतंकवाद.
  5. पर्यावरण व ऊर्जा : जलवायु परिवर्तन, मौसम, वन्यजीव, पेड़-पौधे, पृथ्वी विज्ञान, नवकरणीय ऊर्जा, जीवाश्म ईधन, पर्यावरण विज्ञान में शोध.
  6. अंतर्राष्ट्रीय मामले : विदेशों की खबरें, भारत की राजनायिक गतिविधियां.
  7. राजनीति : पार्टियां, चुनाव, राजनेताओं के वक्तव्य.
  8. सार्वजनिक जीवन : विरोध प्रदर्शन, विभिन्न अधिकारों को प्राप्त करने के आंदोलन, सामाजिक असंतोष, रोजमर्रा का जीवन, मीडिया, पत्रकारिता.
  9. विज्ञान एवं तकनीकी : आविष्कार, खोजें, वैज्ञानिक परिघटनाओं का सरल शब्दों में वर्णन, संचार तकनीकी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग.
  10. खेल : सभी खेल, खेल संगठन, डोपिंग, स्कैंडल
  11. राज्य व नीति : कृषि, ग्रामीण मामले, नगरीय मामले, शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन, नौकरशाही, स्थानांतरण व भर्ती, मंत्रालय, न्यायपालिका

परिशिष्ट 3 :  पैनलिस्टों के कार्यक्षेत्र

  1. शैक्षणिक जगत
  2. व्यापार-व्यवसाय
  3. नौकरशाह
  4. वकील व न्यायविद
  5. रक्षा विशेषज्ञ (इनमें सेवानिवृत्त सीनियर कर्मी भी शामिल हैं)
  6. वित्तीय विशेषज्ञ
  7. स्वतंत्र विशेषज्ञ (पर्यावरणविद, चिकित्सक, खिलाड़ी, फिल्म निदेशक, लेखक)
  8. मीडिया
  9. एनजीओ व सीएसओ (स्वयंसेवी संस्था या सिविल सोसाइटी समूह से संबद्ध)
  10. राजनैतिक विश्लेषक (केवल राजनैतिक विश्लेषक, राजनैतिक दलों के प्रवक्ता नहीं)
  11. राजनैतिक दलों के प्रवक्ता
  12. धर्म विशेषज्ञ (आध्यात्मिक गुरु, धार्मिक प्रमुख)
  13. सामाजिक कार्यकर्ता
  14. थिंक टैंक

परिशिष्ट 4 :  प्रश्ननावली

नमस्कार, हम लोग द मीडिया रंबल परियोजना के लिए आक्सफेम व यूएन वूमेन के सहयोग से एक शोध अध्ययन कर रहे हैं. इसकी रपट टीमवर्क आर्टस और न्यूजलांड्री द्वारा अगस्त में आयोजित होने वाली द मीडिया रंबल 2019 में प्रस्तुत की जाएगी. हम पत्रकारों, रिपोर्टरों और मीडिया कर्मियों से संबंधित जनसांख्यिकीय सूचनाएं एकत्रित कर रहे हैं, ताकि समाचार माध्यमों और मीडिया संस्थानों में लिंग, जन्म के स्थान, जाति व आयु के आधार पर प्रतिनिधित्व का पता लगाया जा सके. बहुत अच्छा होगा यदि आप हमारे सर्वेक्षण हेतु निम्नांकित कुछ प्रश्नों का उत्तर दे सकें (जो जानकारियां हम एकत्रित करेंगे उन्हें गुप्त रखा जाएगा) :

नाम :

आयु : 18-30 वर्ष/ 30-45 वर्ष/ 45 वर्ष से अधिक/ कह नहीं सकता

शैक्षणिक योग्यता : डिप्लोमा/ स्नातक / स्नातकोत्तर / पीएचडी

संस्थान :

पद :

कार्यानुभव (अनुमानतः वर्षों में) :

लिंग (जिसमें आप जन्मे) :  पुरूष / महिला / ट्रांसजेंडर / अन्य

लिंग (जिससे आप स्वयं को जोड़ते हैं) :  पुरूष / महिला / ट्रांसजेंडर / अन्य

जाति (जिसमें आप जन्मे) :  ऊंची जाति अथवा सामान्य / ओबीसी / एससी / एसटी

जाति (जिससे आप स्वयं को जोड़ते हैं ) : ऊंची जाति अथवा सामान्य / ओबीसी / एससी / एसटी

धर्म (जो आपको जन्म से मिला) :  हिन्दू / मुस्लिम / सिक्ख / ईसाई / नास्तिक / अन्य

धर्म (जिससे आप स्वयं को जोड़ते हैं) : हिन्दू / मुस्लिम / सिक्ख / ईसाई / नास्तिक / अन्य

जन्मस्थान : शहर या नगरीय / ग्रामीण

रहवास का वर्तमान स्थान : शहर या नगरीय / ग्रामीण

आपके ठीक ऊपर के अधिकारी का नाम :

जब आप बड़े हो रहे थे तब क्या आपको आपके घर में पचास पुस्तकें पढ़ने के लिए उपलब्ध थीं : हां / नहीं

आप सार्वजनिक परिवहन का कितना उपयोग करते हैं : लगभग हमेशा / अक्सर / न के बराबर

आपने अपनी उच्चतम स्तर की शिक्षा कहां से प्राप्त की : महानगर / नगर या कस्बा / गांव / विदेश

क्या आपने कभी अपनी शिक्षा हेतु ऋण लिया है : हां / नहीं

(अनुवाद : अमरीश हरदेनिया, काॅपीसंपादन : राजन कुमार)

 

[i] ऑक्सफेम इंडिया और न्यूजलांड्री वेब पोर्टल द्वारा तैयार की गयी यह रिपोर्ट 2 अगस्त 2019 को अंग्रेजी में जारी की गयी। हिन्दी में इसे फारवर्ड प्रेस द्वारा अनूदित किया गया है।

[ii] Social profile of the key decision-makers in the national media in 2006

[iii] रिपोर्ट में पैनलिस्ट शब्द का उपयोग न्यूज चैनलों के कार्यक्रमों में भाग लेने वाले व्यक्तियों के लिए किया गया है। जबकि समाचार पत्रों व वेब पोर्टल आदि के संदर्भ में इसका आशय लेखकों व स्तंभकारों से है


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

लेखक के बारे में

ऑक्सफेम इंडिया और न्यूज़लांड्री की सर्वेक्षण टीम

ऑक्सफेम इंगलैंड की स्वयंसेवी संस्था है। भारत में इस संस्था ने 1951 में काम करना शुरू किया। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार आदि के अलावा दलित, आदिवासी विषयक सवालों को लेकर भी यह संस्था काम करती है। वहीं न्यूजलॉंड्री डॉट कॉम एक भारतीय वेब पोर्टल है जो अंग्रेजी व हिन्दी में समाचार, लेख, आलोचना आदि प्रकाशित करता है

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