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टिहरी में दुनिया के भौतिक विज्ञानी और अलीगढ़ में जमा होंगे साहित्य के कामरेड

उच्च शिक्षा में अकादमिक जगत के लोग कई ऐसे विषयों और शहरों को चुन रहे हैं जो अभी तक वाक़ई में हाशिए में रहे हैं और उनके अनुभव के हिसाब से इतिहास में सब पहली बार हो रहा है। इस हफ्तावार कॉलम में पढ़ें आने वाले दिनों में बौद्धिक जगत के मुख्य कार्यक्रमों के बारे में

अकादमिक दुनिया में समाज व इतिहास

गुजरात में आदिवासियों पर संगोष्ठी

गुजरात साहित्य अकादमी, गांधीनगर ने आदिवासी भाषा, साहित्य समाज और इतिहास पर 21 अक्टूबर 2019 को राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की है। यह संगोष्ठी सरकारी राष्ट्रीय विनयन एवं वाणिज्य कॉलेज, आहवा-डांग की मदद से की जा रही है।

कार्यक्रम का उद्घाटन आईएएस अधिकारी एन.के. डामोर करेंगे। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अजय सिंह चौहाण होंगे जो महामात्रा गुजरात साहित्य अकादमी के गांधीनगर से हैं। महाराजा सयाजीराव यूनिवर्सिटी बड़ौदा के गुजराती विभाग के अध्यक्ष पुंडरिक पवार भी संगोष्ठी में आदिवासियों की भाषा और संस्कृति पर विचार रखेंगे। मुख्य वक्तव्य महाराष्ट्र के स्कॉलर वाहरू सोनवणे का है।

संगोष्ठी सुबह 10 बजे से होगी। इसमें शामिल होने के लिए 21 अक्टूबर को ही सुबह 9 बजे से पंजीकरण होगा। संगोष्ठी के संयोजक दिलीप कुमार गावित हैं। इस संबंध में ज्यादा जानकारी के लिए गुजरात साहित्य अकादमी के फोन नंबरों 079-23256797, 23256798 पर संपर्क किया जा सकता है।

दलित-आदिवासी की चिंता में महिला कालेज

यह बहुत संतोष की बात है कि साहिर लुधियानवी के शहर लुधियाना में दलित, आदिवासी और किन्नर समाज को लेकर गहरी चिंता है। दूसरा संतोष यह भी कि इसका आयोजन महिला कॉलेज ने किया है। खालसा कॉलेज फॉर वूमेन सिविल लाइंस, लुधियाना के हिंदी विभाग एवं केन्द्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के संयुक्त तत्वावधान में एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का 5 नवम्बर 2019 को आयोजन किया गया है। इस संगोष्ठी का विषय हिंदी साहित्य में विभिन्न विमर्शों की भूमिका की परख करना है। इस आयोजन में शिक्षकों और शोधार्थियों से आलेख आमंत्रित किए गए हैं।

कार्यक्रम की पूरी अवधारणा के बारे में आयोजकों का कहना है कि हिंदी साहित्य में आज अनेक विमर्शों की उत्पत्ति हो चुकी है। विमर्शों की महत्ता को देखते हुए संगोष्ठी का विषय- ‘हिंदी साहित्य के विभिन्न विमर्शों की भूमिका’ रखा गया है। 

आज के दौर में समाज में अनेक तरह की समस्याएं पैदा हो गई हैं। हर समस्या का समाधान फौरन मुमकिन नहीं हैं। साहित्यकार, लेखक, बुद्धिजीवी, आदि जब तक किसी भी चुनौती को परख नहीं लेते हैं, तब तक कोई भी विचार विमर्श पूरा नहीं हो सकता है और ना हो पाता है। संगोष्ठी में महज विमर्श ही नहीं उठाया जा रहा है बल्कि इस पर बात पर गहराई से विचार किया जा रहा है कि दलित और आदिवासी समाज और इस वर्ग के लोगों की हालत जस की तस क्यों बनी हुई है। किसानों की समस्याएं भी किसी से छिपी नहीं हैं। किन्नर समाज भी आज अपनी समस्याओं को लेकर अधिकारों के प्रति जागरूक हुआ है और उसके लिए प्रयत्नशील है। नारी की स्थिति भी लगातार सवालों में घिरी है। साहित्य के विविध पहलुओं को उजागर करने के लिए संगोष्ठी बहुत महत्वपूर्ण हो सकती है।

संगोष्ठी के विमर्श बिन्दु हैं- 1. हिंदी साहित्य में चर्चित विमर्श, 2. दलित विमर्श : विविध आयाम, 3. आदिवासी विमर्श : चुनौतियां और संभावनाएं, 4. वृद्ध विमर्श : अतीत और वर्तमान, 5. बाल विमर्श : चुनौतियां और संभावनाएं, 6. किन्नर विमर्श : अतीत और वर्तमान, 7. किसान विमर्श : बदलते परिप्रेक्ष्य में, 8.स्त्री विमर्श : बदलते परिप्रेक्ष्य में, 9. विमर्शो के माध्यम से बदलते परिदृश्य, 10. हिंदी साहित्य की समकालीन चिन्ताओ पर विमर्श, 11. विभिन्न विमर्शों पर बाजारवाद का प्रभाव, 12. विभिन्न विमर्शों पर मीडिया का प्रभाव, 13. प्राचीन साहित्य में विभिन्न विमर्शों का स्वरूप, 14. विभिन्न विमर्शों पर मनोविज्ञान का प्रभाव,15. विभिन्न विमर्शों पर समसामयिक राजनीति का प्रभाव।

संगोष्ठी में शोध आलेख प्रस्तुत करने के लिए/ भाग लेने/ सम्मिलित होने के लिए ऑनलाइन पंजीकरण अनिवार्य है। प्रतिभागी खालसा कॉलेज की वेबसाइट www.kcwludhiana.org  पर जाकर सेमिनार के लिंक से पंजीकरण करा सकते हैं। 


ज्यादा जानकारी और सहायता के लिए डॉ. कामिनी साहिर, अध्यक्ष, हिंदी विभाग, खालसा कॉलेज फॉर वूमेन, सिविल लाइंस लुधियाना से संपर्क किया जा सकता है उनके मोबाइल नंबर हैं 9463449925, 9877243850। साथ ही डॉ. सोनिया माला सहायक प्रवक्ता, हिंदी विभाग, खालसा कॉलेज फॉर वूमेन, सिविल लाइंस लुधियाना मोबाइल नंबर 9815193355 पर संपर्क किया जा सकता है। इस आयोजन को लेकर केंद्रीय हिंदी संस्थान के नंद किशोर पांडेय का खासा योगदान बताया जा रहा है।

उच्च शिक्षा में तनाव

हेमवतीनंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय, श्रीनगर, गढ़वाल ने उच्च शिक्षा में खुशी और कल्याण विषयक एक लघु अवधि का प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया है जो 16 से 22 अक्टूबर को आयोजित किया है। प्रशिक्षण कार्यक्रम फैकल्टी डेवलपमेंट सेंटर में होगा। आयोजक मानते हैं कि विश्व स्तर पर यह बात किसी से छिपी नहीं रह गई है कि समकालीन परिदृश्य में समाज में व्यक्तिगत और संस्थागत तनाव लगातार बढ़ रहे हैं। इनमें उच्च शिक्षा से जुड़े संकाय सदस्य और छात्र भी साइकोफिजिकल असंतुलन के शिकार हैं। किसी भी उच्च शिक्षा संस्थान को प्रभावी ढंग से कार्य करने के लिए संकाय सदस्यों के साथ-साथ छात्रों के प्रतिबद्ध प्रयासों की आवश्यकता होती है। हालांकि, व्यावसायिक मांगों, संसाधनों की कमी, चुनौतीपूर्ण कार्य, विभिन्न शैक्षणिक और प्रशासनिक कर्तव्यों और जिम्मेदारियों के कारण अकादमिक बिरादरी को मानसिक अशांति का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए, वर्तमान परिदृश्य में, शिक्षकों और छात्रों में प्रसन्नता हो, यह शिक्षण प्रक्रिया की भी गहन आवश्यकता है।

हेमवतीनंदन बहुगुणा विश्वविद्यालय के टिहरी कैंपस का मनोहारी दृश्य

विश्वविद्यालय ने कार्यक्रम प्रारूप में कहा है कि प्रगति और कल्याण के लिए संकाय सदस्यों में प्रसन्नता लाना, उनको स्वास्थ्य के नजरिए से मदद और तैयार करना समय की आवश्यकता है। संकाय सदस्यों में मानसिक शांति से संबंधित तकनीक और अभ्यास आवश्यक हैं। केवल एक खुश शिक्षक खुशी के साथ और खुशी के लिए ज्ञान प्रदान करते हैं; और परिणामस्वरूप, वे छात्रों को मानसिक तौर पर तैयार करते हैं जो जाहिर है पूरे समुदाय के समग्र कल्याण का कारण बन सकता है। यह कार्यक्रम पंडित मदन मोहन मालवीय नेशनल मिशन ऑन टीचर्स एंड टीचिंग योजना के तहत मानव संसाधन मंत्रालय की कार्ययोजना के मुताबिक होना है। प्रशिक्षण कार्यक्रम इस तरह डिज़ाइन किया गया है ताकि संकाय सदस्यों को प्रसन्नता और भलाई के लिए सभी तकनीक पक्षों और अभ्यासों के बारे में जानकारी हासिल हो सके।

कार्यक्रम की पूरी रूपरेखा में 1- भारत की पारंपरिक और सांस्कृतिक विरासत, 2- माइंडफुलनेस का अभ्यास, 3- योगिक अभ्यास और आध्यात्मिक प्रगति, 4- मेडिटेशन के तरीके, 5- तनाव प्रबंधन की तकनीक, 6- टाइम-मैनेजमेंट, 7- वैज्ञानिक आविष्कार आदि विषय शामिल हैं। प्रत्याशित परिणामों में यह उम्मीद जाहिर की गई है कि इससे प्रतिभागी प्रसन्न रहने की मूलभूत तकनीकों और अभ्यासों से मुखातिब हो सकेंगे, कठिन परिस्थिति और सख्त संस्थागत माहौल में काम करने के लिए संकाय सदस्य कौशल हासिल कर सकेंगे। तनाव और दबाव के साइकोफिजिकल लक्षणों के बारे में प्रतिभागियों को पता लगाने में ट्रेनिंग कार्यक्रम मार्गदर्शन का काम करेगा।

उच्च शिक्षण क्षेत्र से जुड़े शिक्षक निर्धारित आवेदन पत्र के माध्यम से इस कार्यक्रम में शिरकत कर सकते हैं। इसके लिए 7 अक्टूबर, 2019 आवेदन भेज देना होगा। प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल होने के लिए कोई पंजीकरण शुल्क नहीं होगा। इस बारे में अधिक जानकारी के लिए ईमेल fdchnbgu@gmail.com पर संपर्क करें। आवेदन पत्र डाउनलोड करें, लिंक है http://hnbgu.ac.in/forms/list.aspx?lid=1709&id=1411

उदय प्रकाश अरोड़ा का सम्मान  

प्रसिद्ध इतिहासकार, शिक्षक और स्कॉलर उदय प्रकाश अरोड़ा 75 साल के हो गए हैं। इस सिलसिले में जेएनयू में एक पुस्तक विमोचन और सम्मान समारोह 8 अक्टूबर को आयोजित किया गया है। इस मौके पर उनके छात्र और उनको जानने वाले विद्वान अपने विचार रख सकेंगे।

ज्ञातव्य है कि 1944 में जन्मे उदय प्रकाश अरोड़ा देश के उन प्रसिद्ध इतिहासकारों में हैं जिन्हें ग्रीक सभ्यता पर गहन अध्ययन के लिए जाना जाता है। वह दुनियाभऱ में अमेरिका और कनाडा के विश्वविद्यालयों समेत यूरोप, एशिया और अफ्रीका में विजिटिंग फैलो रहे हैं। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में 1965 से लेकर 1985 तक अध्यापन कार्य किया जिसके बाद वो रुहेलखंड विश्वविद्यालय बरेली के कुलपति भी रहे। यहां से जेएनयू की ग्रीक पीठ में प्रोफेसर बने। रिटायरमेंट के बाद उन्हें फिर यहां विजिटिंग प्रोफेसर पर काम करने का मौका मिला। प्रोफेसर अरोड़ा ने 4 प्रमुख पुस्तकें लिखी हैं और एक दर्जन से ज्यादा का संपादन किया है। वह आज भी लेखन-अध्यापन में सक्रियता से काम कर रहे हैं।

यह कार्यक्रम जेएनयू के भाषा, साहित्य और सांस्कृतिक अध्ययन केंद्र विभाग की ग्रीक पीठ ने आयोजित किया है जो शाम को 3.30 बजे शुरू होगा।

साहित्य क्षेत्रे

भाषा के संरक्षण में साहित्य की भूमिका

कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी हिंदी और डॉ. बी.आर. आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा के भाषाविज्ञान विद्यापीठ ने शिक्षक उन्नयन कार्यक्रम का आयोजन किया है। इसका विषय है साहित्य और भाषा विज्ञान: एक परिचय। यह कार्यक्रम क्षेत्रीय अभिलेखागार आगरा के सहयोग से 11 नवंबर से 17 नवंबर 2019 को आयोजित किया गया है।

सहित्य और भाषा विज्ञान के बारे में आयोजकों का कहना है कि साहित्य एक प्रकार से भाषा का स्थाई रूप है, इसलिए भाषा विज्ञान के अध्ययन का बहुत महत्वपूर्ण आधार है। जिस भाषा का साहित्य नहीं है, उसकी भाषा वैज्ञानिक अध्ययन का विस्तार भी कम है। उस भाषा का कम-से-कम ऐतिहासिक और तुलनात्मक अध्ययन तो संभव ही नहीं है। संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश आदि भाषाओं का ऐतिहासिक दृष्टि से विकास देखना समझना इसलिए संभव है क्योंकि उनमें विस्तृत और संपन्न साहित्य उपलब्ध है, अन्यथा इन भाषाओं की भी वही स्थिति होती जो मुंडा, संथाली या सुसार की ऐसी हजारों अन्य भाषाओं की है। सैकड़ों भाषाएं जो भाषा वैज्ञानिक दृष्टि से बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकती थीं, और लुप्त हो चुकी है, और उनका साहित्य ना होने से उनके अध्ययन का मांग भी अवरुद्ध है। प्राचीन अंग्रेजी से मध्यकालीन अंग्रेजी और मध्यकालीन से आधुनिक अंग्रेजी में क्या अंतर है और यह कब हुआ, इनका विवेचन उपलब्ध साहित्य के आधार पर ही हो पाता है। हमारे यहां ऋग्युवेदों में प्रयुक्त भाषा के पहले भी कोई भाषा रही होगी लेकिन उसका साहित्य प्राप्य न रहने से उसके संबंध में कुछ भी कहने में हम असमर्थ हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से ही नहीं, तुलनात्मक दृष्टि से भी साहित्य भाषा वैज्ञानिक अध्ययन के लिए पर्याप्त सामग्री प्रस्तुत करता है। संस्कृत, ग्रीक, लातिन, ईरानी, स्लाविक या यूरोप की अनेक अन्य भाषाएं, जिन्हें आज हम भारत यूरोपीय परिवार में रखते हैं, एक ही स्रोत से निकली हैं, यह जानना साहित्य के जरिए ही संभव हो पाया है। इस परिवार की और भी भाषाएं विभिन्न स्थानों में प्रयुक्त होती रही हो, किंतु आज उनका कोई साहित्य उपलब्ध ना होने से उनके विषय में कुछ भी कहना असंभव प्राय है। तात्पर्य यह है कि भाषा के ऐतिहासिक और तुलनात्मक अध्ययन की सामग्री मुख्यत साहित्य ही प्रस्तुत करता है। जहां साहित्य भाषा विज्ञान के अध्ययन में उपयोगी है। जहां भाषा विज्ञान भी साहित्य के लिए कम उपयोगी नहीं है। प्राचीन साहित्य में बहुत सारे शब्द ऐसे मिलते हैं जिनका आशय आसानी से समझ मे नहीं आता। कभी-कभी ऐसा भी देखा जाता है कि एक ही शब्द पहले दूसरे आशय में प्रयुक्त होता था और अब दूसरे आशय में प्रयुक्त हो रहा है। ऐसे स्थलों का समाधान भाषा विज्ञान की सहायता से सकता है। भाषा विज्ञान ध्वनि-परिवर्चन या आशय- परिवर्तन के कारकों को स्पष्ट कर सन्देह का निवारण कर देता है। इतना ही नहीं भाषा वैज्ञानिक आधार पर साहित्य का विश्लेषण करने के लिए शैली विज्ञान नामक सुचिंतित शास्त्र का विकास हो गया है जो निर्विवाद रूप से साहित्य और भाषा विज्ञान के औजार मुहैया कराता है।

परिचर्चा के मुख्य विषय हैं- हिंदी/ अंग्रेजी साहित्य में भाषा विज्ञान,संस्कृत साहित्य में भाषा विज्ञान, शिक्षाशास्त्र/ समाज विज्ञान में साहित्य एवं भाषा विज्ञान, पांडुलिपि एवं संरक्षण विभाग में साहित्य एवं भाषा विज्ञान। कार्यक्रम स्थल है: सूर कक्ष, कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी हिंदी तथा भाषा विज्ञान विद्यापीठ डॉ बीआर आंबेडकर विश्वविद्यालय, आगरा। कार्यक्रम की संयोजक डॉ. नीलम यादव हैं।

अलीगढ़ बताएगा साहित्य का इतिहास

“अलीगढ़ कार्यशाला : साहित्य का इतिहास” इस शीर्षक के साथ 7, 8 और 9 दिसंबर 2019 अलीगढ़ में एक विशेष कार्यशाला का आयोजन किया गया है। जानकारी के अनुसार हाल में साहित्य के इतिहास से जुड़ी समस्याओं को समझने के लिए भारत के लेखकों की अग्रणी संस्था जनवादी लेखक संघ (जलेस) ने सिलसिलेवार चार तीन-दिवसीय कार्यशालाओं के आयोजन की योजना मंजूर दी है। पहली कार्यशाला दिनांक 7-9 दिसंबर 2019 को अलीगढ़ में होगी। इस कार्यशाला में साहित्य के इतिहास-दर्शन को समझने की कोशिश होगी। इसके साथ हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन की परंपरा और उससे जुड़ी समस्याओं पर विचार किया जाएगा।

आयोजकों के मुताबिक साहित्य के इतिहास-लेखन की समुचित जानकारी तभी हासिल की जा सकती है जब दूसरी भाषाओँ के साहित्येतिहास से परिचय हो। इस अपेक्षा को ध्यान में रखते हुए कार्यशाला में अंग्रेजी, जर्मन, रूसी, स्पेनिश, फ्रेंच, अरबी, फारसी आदि भाषाओँ के साहित्येतिहास पर चर्चा होगी। भारतीय भाषाओं संस्कृत, बांग्ला, मलयालम, मराठी, पंजाबी और उर्दू साहित्य के इतिहास पर भी विमर्श किया जाएगा|

दावा किया गया है कि यह कार्यशाला साहित्य के अध्यापकों, शोधार्थियों के लिए विशेष रूप से उपयोगी है। इतिहास, संस्कृति और समाजार्थिक राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों को यह कार्यशाला सार्थक लगेगी। स्नातक, स्नातकोत्तर और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे विद्यार्थियों के लिए कार्यशाला निश्चय ही उपादेय साबित होगी।

कार्यशाला के पहले दिन तीन सत्रों में इतिहास लेखन और साहित्येतिहास लेखन, साहित्य का इतिहास दर्शन और हिंदी साहित्य के इतिहास की समस्याएं- ये तीन प्रमुख विचार बिंदु होंगे। साहित्येतिहास का स्वरूप और समस्याएं (एक)- संस्कृत, अरबी, फारसी, साहित्येतिहास का स्वरूप और समस्याएं(दो)- फ्रेंच, जर्मन, साहित्येतिहास का स्वरूप और समस्याएं (तीन) रूसी स्पेनिश, साहित्येतिहास का स्वरूप और समस्याएं (चार) उर्दू दूसरे दिन के विषय हैं। तीसरे दिन साहित्येतिहास का स्वरूप और समस्याएं (पांच) तमिल, मलयालम, साहित्येतिहास का स्वरूप और समस्याएं (छह) पंजाबी, मराठी के अलावा आखिरी चर्चा भाषा का इतिहास बनाम साहित्य का इतिहास पर केंद्रित है।

कार्यशाला में प्रतिभागिता के लिए इच्छुक लोग तय प्रारूप में अपना आवेदन किसी एक संयोजक के वाट्सएप नंबर अथवा ईमेल पर दस अक्टूबर 2019 तक प्रेषित कर सकते हैं। चयन समिति की अनुशंसा मिलने के बाद प्रतिभागियों को सूचित किया जाएगा। यदि आप नौकरी में हैं तो पदनाम सहित अपने संस्थान की जानकारी देनी होगी। यदि सामाजिक कार्यकर्ता या किसी लेखक संगठन के सदस्य हैं तो उसकी जानकारी देनी होगी। आयोजकों ने कहा कि अधिकतम 250 शब्दों में  बताना होगा कि आप इस कार्यशाला में क्यों आना चाहती/चाहते हैं। संपर्क सूत्र हैं- संयोजक सुधीर सिंह, वाट्सएप नंबर- 9415317341। उनका ईमेल एड्रेस sudhirhollandhall@gmail.com है। साथ ही उनके सहयोगी बजरंग बिहारी को उनके वाट्सएप नंबर 9868261895 पर या bajrangbihari@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।

इच्छुक प्रतिभागियों के लिए अलीगढ़ में कार्यशाला की अवधि 7, 8, 9 दिसंबर के दौरान ठहरने और भोजन की व्यवस्था करेगी। कार्यशाला की समाप्ति पर प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र दिया जाएगा।

विज्ञान की दुनिया में

ऊर्जा और पेट्रोलियम की खोज में वैज्ञानिक

पेट्रोलियम भू-भौतिकविद सोसाइटी (एसपीजी) का 13वां द्विवार्षिक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन और प्रदर्शनी लुलु बोलगाटी अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन सेंटर, कोच्चि, केरल में  23 से 25 फरवरी 2020 को आयोजित की गई है। द्विवार्षिक सम्मेलन का निर्धारित विषय ऊर्जा स्थिरता की नई चुनौतियां हैं। ये विषय रखने का मुख्य मकसद देश की स्थिरता के लिए ऊर्जा सुरक्षा में हाइड्रोकार्बन क्षमता हासिल करना और चुनौतियों का पता लगाना है।

सम्मेलन को पेट्रोलियम ऊर्जा और क्षमता के पारंपरिक, अपरंपरागत और साथ ही अक्षय ऊर्जा स्रोत से संबंधित सभी पहलुओं पर केंद्रित किया गया है। इसमें जियो साइंस के पेशेवरों को चर्चा कराने और हाल की प्रगति और प्रौद्योगिकियों की बारीकियों से परिचय कराया जाएगा। आयोजकों का दावा है कि वैसे भी, पिछले दो दशक में एसपीजी के सम्मेलनों ने समकालीन दौर का नया बेंचमार्क स्थापित किया, अग्रणी स्थान हासिल करने में भी कामयाब रहे जहां पेट्रोलियम साइंस और तकनीकी खोज में नवीनतम विचारों को मंच मिला। एसपीजी इंडिया ने पेशेवरों और पेट्रोलियम उद्योग की कुशलता को नई खिड़की से रोशनी दिखाई है।

संस्थान ने कहा है कि कोच्चि-2020 में संस्था की प्रेरक परंपराओं पर काम करना जारी रहेगा। यानी हाइड्रोकार्बन की खोज को लेकर भूवैज्ञानिकों को जिसमें तरह-तरह की खोजों में अनेक जटिलताओं और चुनौतियां सामने आती हैं, उनका समाधान मिल सके। इसके साथ ही ये कोशिश भी की जाती रहेगी कि इस कार्य में नए विचारों का समावेश हो ताकि बेहतर कल के लिए नई ऊर्जा वास्तुकला की शुरुआत हो सके।

आयोजकों ने वैज्ञानिक और शोध जगत से जुड़े स्कॉलरों से इस संबंध में तकनीकी पेपर आमंत्रित किए हैं। इनकी जांच आयोजन समिति से जुड़े वैज्ञानिक करेंगे। शोध या आलेख 31 अक्टूबर तक मिल जाने चाहिए। लेखक इसके लिए मौखिक या पेपर प्रजेंटेशन का विकल्प चुन सकता है। महत्वपूर्ण तिथियां कुछ इस तरह हैं- एसपीजी प्रदर्शनी और सम्मेलन 23-25 फरवरी 2020, तकनीकी पेपर प्रस्तुति 1 अक्टूबर-31 अक्टूबर 2019, प्रदर्शनी बूथ पंजीकरण 15 से 31 अक्टूबर 2019 और सम्मेलन पूर्व पाठ्यक्रम पंजीकरण 15 नवंबर 2019 से 15 जनवरी 2020 के दरमियान होंगे।

इसकी अधिक जानकारी के लिए एसपीजी इंडिया की वेबसाइट www.spgindia.org पर जाना चाहिए। इस संबंध में सम्मेलन चेयरमैन प्रदीप्ता मिश्रा को 9969224402 और या उनके ईमेल एड्रेस pmishra61@yahoo.com, रोमी गंजू सचिव एसपीजी को 9410390636 पर संपर्क किया जा सकता है। रोमी गंजू का ईमेल एड्रेस ganjuromi@gmail.com है। ‘कोच्ची 2020’ के लिए एसपीजी का सम्मेलन सचिवालय देहरादून के ओएनजीसी कैंपस में स्थित है।

वैज्ञानिक चिंता में टिहरी कैंपस

अंतर्राष्ट्रीय भौतिक विज्ञान अकादमी (आईएपीएस) के रजत जयंती समारोह के तहत हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय ने एप्लाइड साइंस की उन्नति के लिए 22-23 अक्टूबर को दो दिन का राष्ट्रीय सेमिनार आयोजित किया है। कार्यक्रम गढ़वाल विश्वविद्यालय के सबसे नए परिसर एसआरटी बादशाही थौल, टिहरी गढ़वाल में आयोजित किया गया है। यह वही कैंपस है जो टिहरी में एशिया का विशालकाय बांध बनने के बाद एसआरटी कैंपस की जगह स्थापित किया गया था।

विश्वविद्यालय का मानना है कि मानव समाज की बेहतरी के लिए यह समझना जरूरी हो गया है कि वैज्ञानिक ज्ञान और इसके अनुप्रयोगों से विज्ञान की विभिन्न शाखाओं (भौतिक विज्ञान, जीवन विज्ञान, पृथ्वी विज्ञान, सामाजिक विज्ञान आदि) के बीच अंतर करना काफी कठिन होता जा रहा है। इसलिए, इंटरेक्टिव बहस के लिए एक सामान्य मंच का होना आवश्यक हो जाता है ताकि विभिन्न विषयों में ज्ञान की खोज में शामिल वैज्ञानिकों के बीच चर्चा और अंतःविषय दृष्टिकोण को जाना जा सके। विज्ञान की उन्नति को इस तरह का बढ़ावा देना जरूरी हो जाता है। सम्मेलन उन प्रतिभागियों के लिए एक मंच प्रस्तुत करेगा जो अपने विचारों और शोध पत्रों को विज्ञान की विभिन्न शाखाओं में उन्नति से जोड़कर प्रस्तुत करना चाहते हैं।

सम्मेलन के उद्देश्य और लक्ष्य हैं: एक- अकादमी बिरादरी और युवा शोधकर्ताओं के बीच वैज्ञानिक टेंपरामेंट को विकसित करना, दो- संबंधित शैक्षणिक समुदाय, फैकल्टी मेंबर्स की प्रगति और उनमें सक्रिय चर्चा को बढ़ावा देना, तीन- मानव जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए अनुसंधान और इसके परिणामों के बीच की खाई को पाटने में मदद करना।

इस सिलसिले में टिहरी के बादशाही थौल कैंपस ने शिक्षकों और जानकारों से मौखिक प्रस्तुतियाँ/ वार्ताएं आमंत्रित की हैं। कुछ विषय/ क्षेत्र विशेष में प्रस्तुत पोस्टर पर आधारित योगदान पर होंगे। इसके लिए 300 शब्दों तक सार संक्षेप को ईमेल एड्रेस kcpetwal@gmail.com 8 अक्टूबर 2019 तक भेजा जा सकता है। इसकी स्वीकृति 12 अक्टूबर को दी जाएगी।

ज्यादा जानकारी के लिए डॉ. के.सी. पटवाल को संपर्क किया जा सकता है जो आयोजन सचिव हैं। एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय केंद्रीय विश्वविद्यालय है। अधिक जानकारी के लिए वेब पेज: www.hnbgu.ac.in  पर जाना चाहिए। डॉक्टर पटवाल के मोबाइल फोन नंबर हैं- 9627108167; 9758037370 और 9411316082।

टिहरी कैंपस कोई दो दशक से नई टिहरी शहर में है जहां अक्टूबर से भारी ठंड शुरू हो जाती है। इसलिए यहां जाने के लिए गर्म कपड़े साथ लेकर जाएं। बता दें कि अधिक ऊंचाई पर बसे होने से ये शहर मसूरी और पौड़ी से भी ज्यादा ठंडा है। देहरादून, ऋषिकेश, हरिद्वार और मसूरी से यह कैंपस अच्छी तरह से सड़क परिवहन से कनेक्ट है। दिल्ली से ऋषिकेश तक रेलसेवा भी है जहां से टिहरी गढ़वाल के पहाड़ शुरू हो जाते हैं।

कृषि परिवर्तन और ग्रामीण विकास

एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय ने कृषि परिवर्तन और भारत में ग्रामीण विकास: मुद्दे, चुनौतियाँ और संभावनाएँ विषय पर आईसीएसएसआर, नई दिल्ली के सौजन्य से राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई है। संगोष्ठी 12-13 अक्टूबर को आयोजित की गई है। कार्यक्रम को भारतीय आर्थिक संघ (आईईए) के सहयोग से किया जा रहा है।

आयोजकों का मानना है कि महात्मा गांधी हमेशा यह मानते थे कि “भारत का भविष्य उसके गांवों से” और वह आश्वस्त थे कि “यदि गाँव नष्ट हुए तो, भारत भी नष्ट हो जाएगा।” उनके लिए राष्ट्र के पुनर्निर्माण के लिए गाँवों को सहेजना जरूरी है। हालांकि आज शहरीकरण बढ़ रहा है और इसके परिणामस्वरूप अनुपात में कुल जनसंख्या में ग्रामीण जनसंख्या अब भी धीरे-धीरे घट रही है। 2011 की जनगणना के अनुसार सत्तर प्रतिशत के करीब या 743 मिलियन लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं। रोजगार का दबाव सबसे अधिक कृषि पर है और यह इसलिए भी कि कृषि विकास ही गरीबी उन्मूलन प्रक्रिया की कुंजी है। अभी जब 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने की जरूरत बताई जा रही है तो समग्र रूप से कृषि से संबंधित मुद्दों का विश्लेषण करना जरूरी है। यह एक तथ्य है कि कृषि के बुनियादी ढांचे में वांछित से कहीं कम सार्वजनिक निवेश है, सप्लाई चेन, प्रसंस्करण सुविधाएं अविकसित हैं, इनपुट की कीमत लगातार बढ़ रही हैं और बाजार से इसकी संबद्धता अत्यधिक अपर्याप्त हैं। जनसंख्या का बढ़ना लगातार स्वामित्व और परिचालन के आकार को कम कर रहा है। सामुदायिक संसाधनों का कमतर होना, उर्वरक का अत्यधिक उपयोग का जोर पकड़ना, कुछ क्षेत्रों में तो कीटनाशकों के भारी इस्तेमाल से जल और मिट्टी बर्बाद हो चुके हैं। इससे कृषि उत्पादन में पर्यावरणीय समस्याएं ही पैदा नहीं हुईं बल्कि स्वास्थ्य पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

अन्य मुद्दे जो कृषि विकास से जुड़े हुए हैं वह ग्रामीण क्षेत्रों में असमानताओं को बढ़ा रहे हैं। खेत का आकार कम होने के कारण, इनपुट कीमतों में वृद्धि और कमजोर बाजार मांग ऐसे कारक हैं कि कई छोटे और सीमांत किसान कृषि छोड़ रहे हैं। इन लोगों ने खुद को कृषि से बाहर कर दिया है। वे ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में अकुशल श्रमिकों की श्रेणी में शामिल हो चुके हैं। नकदी फसल पैदा करने वाले किसानों की हालत विपरीत हालत में मुश्किल हो रही है। ग्रामीण ऋण ग्रस्तता सार्वजनिक नीति की चिंता में हमेशा एक गंभीर मुद्दा रहा है लेकि नबाजार की असफलताओं के साथ ऋण ग्रस्तता गंभीर हो जाती है।

हाल के दशकों में विभिन्न सरकारों ने कार्यान्वयन के स्तर पर कई कार्य किए हैं, कुछ हालात बदले भी हैं। लेकिन वर्तमान संदर्भ में कृषि परिवर्तन से कुछ मुद्दों का पता चलता है जैसे कि अमीर और छोटे किसानों के बीच बढ़ती आय असमानता। प्रस्तावित संगोष्ठी में ग्रामीण भारत में परिवर्तन और समझ पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा, साथ ही हर तरह की चुनौतियों पर भी इसमें विचार किया जाएगा।

उपविषय :

1 . कृषि परिवर्तन में संरचना, आयाम और इसका प्रभाव, कृषि परिवर्तन और ग्रामीण विकास का बुनियादी ढाँचा, भूमि स्वामित्व, फसल पद्धति, भूमि उपयोग,कृषि उत्पादन और उत्पादकता, कृषि और गैर-कृषि क्षेत्र और कार्यबल के बीच बदलाव, कृषि परिवर्तन और इसका सामाजिक-आर्थिक प्रभाव, कृषि क्षेत्र में असमानताएं (सामाजिक-आर्थिक, लिंग,भौगोलिक आदि). धारणाएं और कृषि के प्रति दृष्टिकोण में परिवर्तन, कृषि परिवर्तन और पलायन

2. कृषि और ग्रामीण क्षेत्र का योगदान- ग्रामीण अर्थव्यवस्था में कृषि और गैर-कृषि क्षेत्र का योगदान, रोजगार और विकास के लिए कृषि परिवर्तन, सतत ग्रामीण विकास और इसके आयाम, सतत् ग्रामीण विकास की अवधारणा: अध्ययन, कृषि और गैर-कृषि क्षेत्र के बीच संबंध, पोषण और खाद्य सुरक्षा, कृषि विकास: महिलाओं की भागीदारी और सशक्तिकरण, कृषि परिवर्तन और सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी)

3. ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि संबंधी समस्याएं और चुनौतियां- जलवायु परिवर्तन और कृषि पर इसका प्रभाव, ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि संबंधी विपणन संबंधी मुद्दे, क्षेत्र विशेष की कृषि समस्याएं, कृषि अवसंरचना संबंधी मुद्दे, कृषि वित्त संबंधी मुद्दे, ग्रामीण स्तर पर कृषि और खाद्य सुरक्षा प्राप्त करना,  कृषि श्रमिक समस्याएं, मृदा और जल संरक्षण के मुद्दे और मिट्टी का क्षरण, कृषि के हाशिए से जुड़े मुद्दे, सामुदायिक संसाधन मुद्दे और चुनौतियाँ

4. कृषि और आजीविका: नीतियां और शासन, किसान की आय दोगुनी करने की नीतियां, किसानों के लिए नाबार्ड और वित्तीय समावेशन नीतियां, कृषि मूल्य निर्धारण और बीमा पॉलिसी, कृषि में निजी क्षेत्र की भागीदारी का विकास, विपणन नीति: सहकारी विपणन और राज्य सरकारों की अन्य नीतियां, कृषि इनपुट: वित्त, उर्वरक, कीटनाशक, बीज आदि,  भूमिहीन कृषि श्रमिक: रोजगार की गारंटी कार्यक्रम मनरेगा और अन्य कार्यक्रम, कृषि और खाद्य सुरक्षा, एकीकृत मूल्य श्रृंखला और खाद्य उत्पादों का निर्यात

5. खाद्य प्रसंस्करण और ग्रामीण समृद्धि के लिए मूल्यवर्धन के माध्यम से कृषि सुधार, खाद्य प्रसंस्करण की ग्रामीण क्षेत्र में भूमिका, बागवानी, औषधीय पौधे और डेयरी विकास, कृषि प्रसंस्करण आधारित उद्यमिता विकास, खाद्य प्रसंस्करण स्टार्ट-अप, किसानों के अनुकूल खाद्य प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी, ग्रामीण क्षेत्र में खाद्य प्रसंस्करण को बढ़ावा देने के लिए कौशल और प्रशिक्षण, कृषि-व्यवसाय गतिविधियों में युवा भागीदारी

6. पहाड़ में खेती की स्थिरता- सीमांत खेती और स्थायी आजीविका, पहाड़ का पर्यावरणीय और पारिस्थितिक पहलू, कृषि संकट: प्राकृतिक आपदा, मिट्टी का क्षरण, भोजन सुरक्षा, पर्वतीय कृषि का विविधीकरण, पलायन और कृषि परिवर्तन, पर्वतीय क्षेत्रों के लिए विशिष्ट कृषि नीतियां और कार्यक्रम।

इस बारे में अधिक जानकारी के लिए प्रोफेसर एमसी सती, संयोजक संगोष्ठी (मोबाइल नंबर- 9412079534) डॉक्टर प्रशांत कंडारी, आयोजन सचिव (मोबाइल नंबर- 9412079485), अर्थशास्त्र विभाग, एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय  श्रीनगर से संपर्क किया जा सकता है यहां का ईमेल पता है- seminarhnbgu2019@gmail.com।

(कॉपी संपादन : नवल)


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लेखक के बारे में

कमल चंद्रवंशी

लेखक दिल्ली के एक प्रमुख मीडिया संस्थान में कार्यरत टीवी पत्रकार हैं।

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