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एनआरसी-सीएए से पसमांदा सहित सभी दलित-बहुजनों के सामने पहचान का संकट : अली अनवर

पसमांदा मुसलमानों के मुख्य स्वर और पूर्व सांसद अली अनवर बता रहे हैं कि नागरिकता संशोधन अधिनियम एवं एनआरसी  जितना मुसलमानों के लिए खतरनाक है, उतना ही खतरनाक दलित-बहुजनों के लिए भी है, उनके मुताबिक, यह भारतीय संविधान की मूल आत्मा की हत्या करता है। प्रस्तुत है फारवर्ड प्रेस के हिंदी संपादक नवल किशोर कुमार की अली अनवर से बातचीत

[पूरे देश में नागरिकता को लेकर चर्चा चल रही है। असम सहित पूरे पूर्वोत्तर में आंदोलन चल रहे हैं। लेकिन शेष भारत भी सामान्य नहीं है। आगामी 21 दिसंबर, 2019 को बिहार में मुख्य विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल ने बिहार बंद का आह्वान किया है। हम अपने पाठकों के बीच नागरिकता संशोधन अधिनियम से जुड़े विचारों को रख रहे हैं। इसके तहत हम दलित-बहुजन चिंतकों, विचारकों और जनप्रतिनिधियों  का साक्षात्कार प्रकाशित कर रहे हैं। आज पढ़ें, पसमांदा मुसलमानों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले पत्रकार व पूर्व राज्यसभा सांसद अली अनवर से इस विषय पर बातचीत की कि केंद्र सरकार के नए कानून से पसमांदा मुसलमानों सहित दलित-बहुजनों के सामने कौन सी चुनौतियां सामने आनेवाली हैं।]


नवल किशोर कुमार (न.कि.कु.) : राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हस्ताक्षर के बाद नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 (सीएए) अब पूरे देश में लागू हो चुका है। आपकी प्राथमिक प्रतिक्रिया क्या है?

अली अनवर (अ.अनवर) : देखिए, आरएसएस के निर्देश पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के संविधान की आत्मा की हत्या कर दी है। उन्होंने हमारे संविधान के प्रस्तावना में उल्लेखित पंथ निरपेक्षता और लोकतांत्रिक शब्द तो रहने दिया है, लेकिन जिस तरह यह कानून बनाया गया है, वह इसके बिल्कुल विपरीत है।

 

न.कि.कु. : आप पसमांदा मुसलमानों के हक-हुकूक को लेकर पहले से आवाज उठाते रहे हैं। आपकी नजर में सीएए का उनपर क्या असर पड़ेगा?

अ. अनवर : मैं, आपको यही बतलाना चाहता हूं कि केंद्र सरकार ने जो नया कानून बनाया है, उससे हमारा देश भारत, पाकिस्तान जैसा बनने की दिशा में आगे बढ़ गया है। मैं यह भी कहना चाहता हूं कि इस कानून से केवल मुसलमान शिकार नहीं होंगे। इसका असर देश के सभी दलित-बहुजन गरीबों पर होगा। आप इसे ऐसे समझिए कि इस देश में वे कौन हैं, जिनके सामने पहचान का संकट है। मैं आपको अपना उदाहरण देता हूं। मेरे परदादा बिहार के डुमरांव महाराज के मैनेजर की बग्घी के कोचवान थे। इसलिए मैनेजर के घर के सामने उन्हें रहने की सुविधा तब दी गई थी। उनके पास कोई कागजात नहीं था। बस डुमरांव महाराज के कहने पर जमीन का वह टुकड़ा मेरे परदादा को मिला। आज भी मेरे पास यही एक संपत्ति है। मेरे पिता ने जब मेरा दाखिला मदरसा में करवाया तो उन्होंने मौलवी साहब से मेरा नाम लिख लेने को कहा। तब मेरी जन्मतिथि व अन्य आवश्यक जानकारियां उन्होंने स्वयं तय कर दी। मेरे पिता बीड़ी मजदूर थे। उनके पास जब अपनी पहचान के लिए कोई कागजात नहीं था, तो मेरे लिए उनके पास कागजात कहां से होते।

अली अनवर, पूर्व सांसद, राज्यसभा

तो मैं यह कहना चाहता हूं कि आज देश में बड़ी संख्या में दलित-बहुजन और पसमांदा मुसलमान हैं, जिनके पास रहने को घर नहीं है। उनके पास अपना पता तक नहीं है। आप देखिए उन लोगों को रोजगार के लिए  शहरों में जाते हैं। वे जब जाते हैं तो केवल अपनी देह लेकर जाते हैं। यदि आप उनसे उनकी पहचान के दस्तावेज मांगेंगे तो वे कहां से देंगे। आप जब इस पर विचार करेंगे तो आपको यह समझना होगा कि ये कौन लोग हैं। इन्हें हिंदू और मुसलमान में बांटने की जो सरकार की नीति है, वह चलने वाली नहीं है। आप देखिए न कि असम में हिंदू और मुसलमान दोनों सरकार का विरोध कर रहे हैं।


न.कि.कु. : आपने यह सवाल सही ही उठाया कि जो भूमिहीन हैं, उनके पास पहचान के क्या दस्तावेज होंगे। चूंकि अब यह कानून बन चुका है तो निश्चित तौर पर सवाल तो उठेंगे ही।

अ.अनवर : सवाल तो उठने ही चाहिए। एकबार फिर मैं आपको अपना उदाहरण देता हूं। मेरे पूर्वजों ने इसी धरती पर जन्म लिया और यही दफनाए गए। अब वे हमसे हमारी पहचान के दस्तावेज मांग रहे हैं।

न.कि.कु. : अपने पूर्व के नेता नीतीश कुमार के बारे में आप क्या कहेंगे? उनकी पार्टी जदयू ने संसद में सीएबी के मामले में संसद का बहिष्कार कर एक तरह से सरकार का समर्थन ही किया।

अ.अनवर : आपने सही कहा। देखिए, मैं तो यह कहना हूं कि अब नीतीश जी का जीना भी उनके (भाजपा) ही संग होगा और मरना भी उनके संग ही। अब यदि नीतीश कुमार ने यदि अलग राह पकड़ी तो भाजपा उनको चबा जाएगी। मैं बता दूं कि यह एक लोकोक्ति है। चबा जाने का मतलब निगल जाना है। 

न.कि.कु. : अंतिम सवाल, देश के सामने अब क्या विकल्प बचा है?

अ. अनवर : विकल्प खत्म नहीं हुए हैं। जब हुकूमतें तानाशाह हो जाती हैं तो उसका जवाब जनता अपने तरीके से देती है। मैं उन सभी का आह्वान करना चाहता हूं जो भारत के संविधान में विश्वास रखते हैं, जो यह मानते हैं कि देश की विविधता बरकरार रहे, वे सड़क पर उतर आंदोलन करें। इसकी शुरुआत हो भी चुकी है। नार्थ-ईस्ट में यह शुरु भी हो चुका है। जनता चुप नहीं बैठने वाली है।

(कॉपी संपादन : सिद्धार्थ/अनिल)


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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