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केवल ओबीसी ही नहीं, सभी जातियों की जनगणना कराए सरकार : राज नारायण

जनहित अभियान के संयोजक राज नारायण बता रहे हैं कि  जाति जनगणना से ही ठीक-ठीक यह पता चल पाएगा कि किस जाति का देश के संसाधनों एवं संपत्ति पर कितना कब्जा है। उनका यह भी कहना है कि जाति जनगणना के नाम पर ओबीसी की गणना की मांग भरमाने वाली बात है। प्रस्तुत है, राजनारायण से नवल किशोर कुमार की बात-चीत का संपादित अंश :

[वर्ष 2021 में जनगणना होनी है। वर्ष 2018 के सितंबर महीने में तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने एक बयान दिया था कि सरकार 2021 में जातिगत जनगणना कराएगी। लेकिन अभी तक इस बारे में कोई आधिकारिक आदेश जारी नहीं किया गया है। इसे लेकर कुछ संगठनों द्वारा आंदोलन की सुगबुगाहट तेज होने लगी है। हम अपने पाठकों को इस विषय से संबंधित सभी सूचनाओं और घटनाओं से वाकिफ कराएंगे। इस कड़ी में आज पढ़ें जनहित अभियान, नई दिल्ली के संयोजक राज नारायण से बातचीत के संपादित अंश :]

 

नवल किशोर कुमार : वर्ष 2021 में जनगणना करायी जानी है। कुछ संगठनों की मांग है कि  सरकार इसबार ओबीसी की गणना भी कराए। आपकी राय क्या है?

राज नारायण : यह तो बिलकुल गलत बात है। सरकार केवल ओबीसी की गणना क्यों कराएगी। यह तो कभी मांग भी नहीं की गई। जो लोग केवल ओबीसी की गणना की बात कर रहे हैं, वे लोग  मुद्दे को भटका रहे हैं। सरकार के कुचक्र का शिकार बन रहे हैं। वर्ष 2011 में जब जातिगत जनगणना करवाने हेतु जन आंदोलन की बात हुई तो सबसे पहले हम लोगों ने जनहित अभियान के बैनर तले यह मांग रखा कि सभी जातियों की गणना हो। किस जाति के कितने लोग हैं, उनकी जनगणना हो। एक बार जब आंकड़े सामने आएंगे तब यह बात समझ में आएगी कि भारत में संसाधनों का बंटवारा कितना विषम है। 

न.कि.कु. : सवाल यह है कि ओबीसी गणना की मांग कहां से उठी?

रा. ना. : यह सब वर्ष 2018 में हुआ। दिल्ली में ही एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अत्यंत करीबी रामबहादुर राय भी थे। दिलीप मंडल व अन्य बुद्धिजीवी भी मौजूद थे। मुझे भी बोलने के लिए आमंत्रित किया गया था। लेकिन मैं जानता था कि जातिगत जनगणना के बहाने किस तरह की बातें होंगी। इसलिए मैं नहीं गया। उसी कार्यक्रम में ओबीसी के गणना की बात कही गई। फिर उसके बाद ओबीसी गणना की बात तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने की। तब भी उनके बयान की आलोचना हुई थी और हम लोगों ने मांग की थी कि यदि गणना हो तो सभी जातियों की हो। जैसा कि 1931 में हुआ था।

राज नारायण, संयोजक, जनहित अभियान

न.कि.कु. : क्या आपको नहीं लगता है कि 2011 में जातिगत जनगणना के लिए जो आंदोलन हुए, उसकी तुलना में इस बार सक्रियता बहुत कम है?

रा. ना. : आपने सही कहा। वर्ष 2009 में हम लोगों ने जनहित अभियान के तहत आंदोलन छेड़ा। हमारे प्रयासों के कारण संसद में जातिगत जनगणना का प्रारूप रखा जा सका। बाद में कई दलों के नेतागण भी हमारे साथ आए और हम सभी ने मिलकर सरकार पर दबाव बनाया। लेकिन तब चिदंबरम और प्रणव मुखर्जी ने पूरी प्रक्रिया को तहस-नहस कर डाला। आपको जानकर यह आश्चर्य होगा कि उस समय साढ़े तीन हजार करोड़ का आवंटन किया गया था जिसे बाद में भाजपा सरकार ने पांच हजार करोड़ रुपए कर दिया। इस प्रकार आप देखेंगे तो भारत के गरीब-गुरबों की मेहनत के पांच हजार करोड़ रुपए  सरकार ने पानी में बहा दिए। जातिगत जनगणना का कार्य उन्हें दे दिया गया,जिनके पास अनुभव नहीं था। इसके कारण हुआ यह कि जो आंकड़े आए, उसे सरकार ने यह कहकर खारिज कर दिया कि वे विश्वसनीय नहीं थे। 


नवल किशोर कुमार : अब जनहित अभियान की क्या योजना है? क्या फिर से एक आंदोलन शुरु करेंगे आप लोग?

राज नारायण : हमलोग तो आंदोलनरत हैं। अभी हमलोगों ने बिहार से इस आंदोलन की शुरुआत की है। मार्च में हम दिल्ली में एक बड़ा कार्यक्रम करेंगे। इस बीच हम लोग देश के सभी दलों के नेताओं से बात कर रहे हैं कि वे सरकार पर जातिगत जनगणना करवाने को लेकर दबाव बनाएं। याद रखिए कि जब तक जातिगत जनगणना नहीं होगी तब तक विकास की किसी भी योजना का समुचित लाभ वास्तविक लाभार्थियों तक नहीं पहुंचेगा। आरक्षण का सवाल भी इसमें निहित है।

(संपादन : सिद्धार्थ/अनिल)


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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