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सीएए-एनआरसी : क्यों डोल रही नीतीश कुमार की ‘अंतरात्मा’?

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी जदयू ने भले ही संसद में बहिष्कार का दिखावा कर भाजपा को मदद पहुंचाई, लेकिन अभी तक उन्होंने यह साफ नहीं किया है कि वे अपने राज्य में सीएए को लागू करेंगे अथवा नहीं। ‘हां’ या ‘ना’ के बीच डोल रही नीतीश की सियासत पर नवल किशोर कुमार की रिपोर्ट

नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिकता पंजी (एनआरसी) का विरोध पूरे देश में किया जा रहा है। केरल, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ व पश्चिम बंगाल आदि राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने यह साफ कर दिया है कि वे अपने-अपने राज्यों में इस कानून को लागू नहीं करेंगे। विरोध करने वाले राज्यों में वे राज्य शामिल हैं जहां सरकार में भाजपा नहीं है। इन सबके बीच बिहार की हालत अलग है, जहां भाजपा जदयू के साथ सरकार में शामिल भी है। वहां के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अभी तक अपना रूख स्पष्ट नहीं किया है। यह बात अलग है कि उनकी सरकार के क्द्दावर दलित मंत्री श्याम रजक ने सीएए-एनआरसी के विरोध में बयान दिया है। सवाल उठता है कि आखिर नीतीश कुमार की अंतरात्मा डोल क्यों रही है। 

पीके ने फोड़ी विरोध की मटकी

इस पूरे प्रसंग में उल्लेखनीय है कि जदयू खेमे में सबसे पहले प्रशांत किशोर ने संसद में अपनी पार्टी के स्टैंड का विरोध किया। दरअसल, जदयू ने सीएबी के सवाल पर संसद में बहिष्कार किया। इसे सियासी गलियारे में इस रूप में देखा गया कि जदयू ने भाजपा सरकार काे अपना समर्थन दिया। इसके विरोध में प्रशांत किशोर ट्वीटर पर अपना विरोध जताया। उनके विरोध के सामने आने के बाद जदयू के राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी ने भी अपना विरोध सार्वजनिक किया।  

प्रशांत किशोर और केसी त्यागी दोनों नीतीश कुमार के करीबी माने जाते हैं। यही वजह रही कि इन दोनों नेताओं के विरोध के बाद पटना से लेकर दिल्ली तक के सियासी गलियारे में हड़कंप ही मचा गया। आननफानन में नीतीश कुमार के एक और बेहद करीबी व राज्यसभा में जदयू के नेता आरसीपी सिंह ने प्रशांत किशोर और केसी त्यागी के विरोध को खारिज किया। साथ ही परोक्ष रूप से यह संदेश भी दिया कि ये दोनों नेता अपनी जुबान पर नियंत्रण रखें और दल के अन्य नेता भी।

प्रशांत किशोर और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार

दो धड़ों में बंट गई जदयू!

जब यह सब चल रहा था तब ऐसा लगने लगा कि जदयू सीएए के सवाल पर दो फाड़ हो गई है। एक धड़ा जिसमें प्रशांत किशोर, केसी त्यागी और श्याम रजक जैसे नेता शामिल रहे, जो सीएए का विरोध कर रहे हैं। दूसरा धड़ा वह जो भाजपा को मूल पार्टी मानते हैं और नाम के वास्ते जदयू के सदस्य हैं। इस धड़ा ने आगे बढ़कर बिल का समर्थन भी किया। इन सबके बावजूद सभी को नीतीश कुमार की ओर से आने वाले बयान का इंतजार रहा। एक वजह तो यह कि वे स्वयं पार्टी के एकमेव सुप्रीमो (राष्ट्रीय अध्यक्ष) हैं और दूसरी वजह यह कि नीतीश कुमार प्रारंभ से ही एक समय में दोहरे राजनीतिक व्यवहार के लिए कुख्यात रहे हैं।

बिहार की राजधानी पटना में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लापता होने संबंधी होर्डिंग

सीएए के सवाल पर नीतीश कुमार का स्टैंड क्या है, इसे लेकर प्रशांत किशोर ने अपनी प्रतिक्रिया उस समय दी जब वे पटना में नीतीश कुमार से मिलने के बाद मीडियाकर्मियों से बातचीत कर रहे थे। उनका साफ कहना था कि नीतीश कुमार ने उन्हें विश्वास दिलाया है कि बिहार में सीएएए कानून लागू नहीं किया जाएगा। 

सीएम से पूछें उनका बयान : त्यागी और रजक 

सनद रहे कि यह बयान प्रशांत किशोर ने दिया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस बारे में कोई टीका-टिप्पणी नहीं की है। आखिर उनकी चुप्पी का राज क्या है, इस संबंध में नीतीश सरकार में कैबिनेट मंत्री श्याम रजक ने दूरभाष पर फारवर्ड प्रेस से बातचीत में कहा कि उन्होंने अपने स्तर पर कहा है कि बिहार में सीएए कानून लागू नहीं किया जाएगा। लेकिन यह पूछने पर कि नीतीश कुमार के द्वारा इस संबंध में कुछ भी नहीं कहा गया है, तो उन्होंने कहा – “मैंने अपनी बात कह दी। आप मुख्यमंत्री जी से टाइम लेकर मिल लिजीए। उनकी बात मैं कैसे कह सकता हूं।”

यह भी पढ़ें : सीएए-एनआरसी के खिलाफ एकजुट हों दलित-बहुजन-मुसलमान : प्रकाश आंबेडकर

वहीं केसी त्यागी ने फारवर्ड प्रेस से दूरभाष पर कहा कि “अब मुझे इस बारे में कुछ नहीं कहना है, पार्टी अपना स्टैंड साफ कर चुकी है।” लेकिन यह पूछने पर कि पार्टी का स्टैंड क्या है, उन्होंने यह कहते हुए फोन काट दिया कि “आप पार्टी के बड़े नेताओं से बात कर लिजीए।”

तेजस्वी हुए आक्रामक

मतलब साफ है कि बिहार में सीएए लागू होगा या नहीं, इसका फैसला अभी तक नहीं किया गया है। उनकी इस चुप्पी पर मुख्य विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने सवाल उठाया है। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने 16 दिसंबर को ट्वीटर पर जारी अपने संदेश में लिखा – “नीतीश कुमार ने किराए पर कुछ रुदालिए रखे हुए है। जब-जब वो अपने विश्वासघाती कुकृत्यों जैसे जनादेश अपमान, 370, #CAB के चलते दुःख-तकलीफ़ में फँसते हैं तो दिखावटी बनावटी करुण क्रंदण के लिए उन रुदालियों को आगे कर देते हैं। अब ये बेसुरा ढोल दोनों तरफ से नहीं बजेगा।”


भाजपा को भी नीतीश से उम्मीद

नीतीश सरकार में शामिल भाजपा ने हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं किया है कि बिहार में सीएए-एनआरसी लागू होगा अथवा नहीं, लेकिन अपना मत जरूर रखा है कि इसे लागू किया जाना चाहिए। भाजपा को भी नीतीश कुमार की तरफ से स्पष्ट राय का इंतजार है। उप-मुख्यमंत्री व भाजपा के कद्दावर नेता सुशील कुमार मोदी ने 17 दिसंबर को ट्वीटर पर लिखा – “धर्म के आधार पर तीन पड़ोसी देशों में जब लाखों लोगों को प्रताड़ित किया जाता रहा, उनके धर्मस्थल तोड़े जाते रहे ,तब भारत में सेक्युलरिज्म का चोला ओढ़ने वालों ने कभी उन देशों के खिलाफ आवाज क्यों नहीं उठायी? जो लोग नागरिकता कानून का विरोध कर रहे हैं, उन्होंने धर्म के आधार पर समाज को बांटा है और राजनीति की है।”


यह है नीतीश की चुप्पी का ‘राज’

नीतीश कुमार की चुप्पी का राज क्या है, इस बारे में बिहार के वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेलारी का मानना है कि “ऐसा कर वे (नीतीश कुमार) वर्ष 2024 में पीएम पद के लिए अपनी उम्मीदवारी बचाकर रखना चाहते हैं। उन्हें उम्मीद है कि 2024 में नरेंद्र मोदी की सत्ता पर पकड़ ढीली पड़ेगी और यदि  मिली-जुली सरकार के गठन की नौबत हुई तो वे अपना दावा पेश कर सकें कि भाजपा के साथ रहने पर भी भाजपाई एजेंडे से दूर रहा। दरअसल यही उनकी राजनीति रही है। यदि आप प्रारंभ से उनकी राजनीति को देखें तो आप पाएंगे कि सभी बड़े मसलों पर उन्होंने अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं की। किस मूव से कैसा फायदा और कितने लंबे समय तक मिलेगा, इसका आकलन वे पहले कर लेते हैं। आप देखिए कि अनुच्छेद 370 को लेकर उन्होंने क्या किया। अंत-अंत तक वे कहते रहे कि इसे नहीं हटाया जाना चाहिए। लेकिन अंत में हुआ क्या। उनकी पार्टी ने बहिष्कार कर भाजपा के एजेंडे को अपना समर्थन दिया। सीएए के मामले में भी यही हो रहा है।” 

बहरहाल, नीतीश कुमार की राजनीति में दलित-बहुजन-पसमांदा के सवाल मायने नहीं रखते। इसकी वजह उनका आधार वोट भी है। उनका अपना आधार वोट कुर्मी जाति और अति पिछड़ा वर्ग की जातियों पर टिका है। भाजपा के समर्थन से वे अब भी सरकार में बने हैं। अगले वर्ष यानी 2020 में चुनाव होने हैं, लिहाजा उनकी अंतरात्मा का डोलना राजनीतिक रूप से अप्राकृतिक नहीं ही है।

(संपादन : गोल्डी)


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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