h n

जातिगत जनगणना नहीं तो 2024 में भाजपा को वोट नहीं : जस्टिस ईश्वरैय्या

जस्टिस ईश्वरैय्या के मुताबिक, देश की कई अदालतों में ओबीसी आरक्षण से जुड़े मामले लंबित हैं। सरकार कहती है कि उसके पास आंकड़े नहीं हैं। लेकिन वह आंकड़े जुटाने ही नहीं चाहती है क्योंकि उसकी नीयत ठीक नहीं है। इसी वजह से  वह जातिगत जनगणना नहीं करा रही है

“केंद्र में सत्तासीन भाजपा सरकार को दूसरे देशों में रहने वाले हिंदुओं की चिंता है। वे इस देश में रहने वाले मुसलमानों को अलग-थलग करने की फिराक में हैं। लेकिन उनकी चिंता में हम देश के बहुसंख्यक ओबीसी नहीं हैं। इसलिए हम लोगों ने यह तय किया है कि यदि केंद्र सरकार वर्ष 2021 में होनेवाली जनगणना में ओबीसी जनगणना नहीं कराएगी तब हम 2024 में भाजपा को वोट नहीं देंगे।” देश भर के अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लोगों से यह आह्वान ऑल इंडिया बैकवर्ड क्लासेज फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष जस्टिस (आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश) व्ही. ईश्वरैय्या ने 25 दिसंबर, 2019 को किया। वे पिछड़ा वर्ग के लिए राष्ट्रीय आयोग के पूर्व अध्यक्ष भी रहे हैं।

मौका था नई दिल्ली के आंध्र भवन के सभागार में आयोजित बैठक का। इस बैठक में देश भर से करीब 70 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। करीब चार घंटे तक चली इस बैठक का मकसद उन रणनीतियों पर विचार करना था ताकि केंद्र सरकार पर जातिगत जनगणना के लिए दबाव बनाया जा सके। बैठक की शुरुआत महाराष्ट्र के जुझारू ओबीसी कार्यकर्ता सचिन राजुरकर ने की। उन्होंने कहा कि “हम सभी यह मानते हैं कि जातिगत जनगणना हमारे लिए क्यों जरूरी है। इसमें कोई विवाद नहीं है। हम यह भी जानते हैं कि आखिर किन कारणों से वर्ष 1931 के बाद जातिगत जनगणना नहीं की गई है। हालांकि 2011 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने जातिगत जनगणना करवायी, लेकिन उसे यह कहकर भाजपा सरकार ने खारिज कर दिया कि वह विश्वसनीय नहीं है। सितंबर, 2018 में तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने जातिगत जनगणना करवाने की बात कही थी। लेकिन तब उन्हें 2019 में ओबीसी के मतदाताओं का वोट लेना था। अब सरकार आनाकानी कर रही है। लिहाजा देश भर से आए हम सभी इसलिए एकजुट हुए हैं ताकि यह तय कर सकें कि कैसे जातिगत जनगणना करवाने के लिए सरकार पर दबाव बनाएं।” 

बैठक को संबोधित करते जस्टिस ईश्वरैय्या (दाएं से दूसरे)

ऑफलाइन-ऑनलाइन दोनों स्तरों पर हो आंदोलन

बैठक में आए कुछ युवाओं ने कहा कि हमें सोशल मीडिया का पूरा इस्तेमाल करना चाहिए। एक मोबाइल ऐप का इस्तेमाल किया जाय जिसके जरिए ओबीसी के लोग जुड़ सकें। वे अपना पंजीकरण कराएं और जाति जनगणना के लिए चलाए जा रहे आंदोलनों के बारे में जानकारी शेयर करें। व्हाट्सअप ग्रुप बनाए जाएं। फेसबुक पेज का भी इस्तेमाल हो। मोबाइल ऐप ऐसा हो जिससे सोशल मीडिया के सभी प्लेटफार्मों को जोड़ा जा सके। इस संबंध में न्यू जर्सी, अमेरिका से आ डा. हरि इपन्नापल्ली ने कहा कि ऑनलाइन तरीकों का इस्तेमाल बेहतर तरीके से हो सके, इसके लिए समन्वय बनाने की आवश्यकता है। मोबाइल ऐप और वेबसाइटों पर जानकारी की सुरक्षा सुनिश्चित हो, इसके लिए भी प्रयास होने चाहिए। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि ऑनलाइन के साथ ही जमीनी स्तर पर भी पहल की जाए। 

सभी ओबीसी सांसदों का हो घेराव

दिल्ली विश्वविद्यालय में अतिथि शिक्षक रमाशंकर कुशवाहा ने कहा कि पहले भी जनप्रतिनिधियों को जातिगत जनगणना हेतु ज्ञापन दिए गए हैं। इसमें और तेजी आनी चाहिए। साथ ही उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि ओबीसी वर्ग के सभी सांसदों का एक-एककर घेराव हो और उन पर दबाव बनाया जाय कि वे सरकार से जातिगत जनगणना के लिए मांग करें। बिहार की राजधानी पटना से आए एक प्रतिनिधि अशोक कुमार ने कहा कि वर्ष 2011 में जातिगत जनगणना के लिए सरकार इस कारण से मजबूर हो सकी क्योंकि तब इसके लिए राजनीतिक स्तर पर कई चेहरे सामने आए थे। इनमें मुलायम सिंह यादव, शरद यादव और लालू यादव सरीखे नेता थे। इस बार भी हमलोगों को ओबीसी नेताओं से बात करनी चाहिए। उन्हें इसके लिए तैयार करना चाहिए कि वे सामने आएं। उनके सामने आने से देश में एक संदेश जाएगा।

बैठक में शामिल प्रतिनिधि

छत्तीसगढ़ से आए एक प्रतिनिधि ने कहा कि आज देश के कई राज्यों में ओबीसी मुख्यमंत्री हैं। मसलन, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार। यदि इनमें से कोई इस आंदोलन का नेतृत्व करने आगे आएं तो यह आंदोलन तेजी से आगे बढ़ेगा।

वहीं कई लोगों ने यह मंतव्य भी रखा कि यदि कोई राजनेता इस आंदोलन में आना चाहें तो उन्हें रोका न जाय, लेकिन यह एक सामाजिक आंदोलन है और इसे दलगत राजनीति से अलग रखा जाय। इससे आंदोलन व्यापक बनेगा।

और तय हुई यह रणनीति

करीब चार घंटे तक चले इस विमर्श का समापन फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष जस्टिस ईश्वरैय्या के संबोधन से हुआ। उन्होंने नारा दिया कि हम ओबीसी के लोग भाजपा को वोट नहीं करेंगे यदि भाजपा 2021 में जातिगत जनगणना नहीं कराती है। उन्होंने कहा कि दिल्ली में एक केंद्रीय कार्यालय बनाया जाएगा जहां से जातिगत जनगणना के लिए आंदोलन के कार्यों का निष्पादन होगा। इसके लिए कारपस फंड की बात उन्होंने कही और आह्वान किया कि सभी इसमें सहयोग करें।

जस्टिस ईश्वरैय्या के इस आह्वान पर बैठक में शामिल लोगों ने सहयोग दिया और साढ़े पांच लाख रुपए जमा हो गए।

जस्टिस ईश्वरैय्या ने कहा कि आगामी 6 जनवरी को राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को एक ज्ञापन भेजा जाएगा। इसके अलावा 20 जनवरी को देश के सभी राज्यों में प्रदर्शन किया जाएगा। उन्होंने कहा कि यह लड़ाई इतनी आसान नहीं है। हमें संगठित होकर संघर्ष करना होगा। वे हमारे लोगों को अधिकार नहीं देना चाहते हैं। वे डरते हैं कि जब हमारी संख्या सार्वजनिक होगी तो वे कहीं भी हमारी राह में रोड़ा नही अटका सकेंगे। अभी देश के विभिन्न अदालतों में मामले लंबित हैं। इनमें पदोन्नति में आरक्षण से लेकर मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश और क्रीमी लेयर से जुड़े हैं। अभी तो सरकार यह कहकर बच निकलती है कि उसके पास ओबीसी के आंकड़े नहीं हैं। लेकिन वह यह नहीं बताती है कि वह आंकड़े क्यों नही इकट्टा करना चाहती है?

(कॉपी संपादन : सिद्धार्थ)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

संबंधित आलेख

उत्तर प्रदेश में लड़ रही हैं मायावती, लेकिन सवाल शेष
कई चुनावों के बाद लग रहा है कि मायावती गंभीरता से चुनाव लड़ रही हैं। चुनाव विश्लेषक इसकी अलग-अलग वजह बता रहे हैं। पढ़ें,...
वोट देने के पहले देखें कांग्रेस और भाजपा के घोषणापत्रों में फर्क
भाजपा का घोषणापत्र कभी 2047 की तो कभी 2070 की स्थिति के बारे में उल्लेख करता है, लेकिन पिछले दस साल के कार्यों के...
शीर्ष नेतृत्व की उपेक्षा के बावजूद उत्तराखंड में कमजोर नहीं है कांग्रेस
इन चुनावों में उत्तराखंड के पास अवसर है सवाल पूछने का। सबसे बड़ा सवाल यही है कि विकास के नाम पर उत्तराखंड के विनाश...
मोदी के दस साल के राज में ऐसे कमजोर किया गया संविधान
भाजपा ने इस बार 400 पार का नारा दिया है, जिसे संविधान बदलने के लिए ज़रूरी संख्या बल से जोड़कर देखा जा रहा है।...
केंद्रीय शिक्षा मंत्री को एक दलित कुलपति स्वीकार नहीं
प्रोफेसर लेल्ला कारुण्यकरा के पदभार ग्रहण करने के बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की विचारधारा में आस्था रखने वाले लोगों के पेट में...