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ओबीसी के नाम पर केवल राजनीति, नहीं मिलेगा ओबीसी क्लर्क-चपरासियों के बच्चों को आरक्षण

नरेंद्र मोदी को ओबीसी की याद तब आती है जब सिर पर चुनाव होते हैं। एक बार फिर देश के ओबीसी छले जा रहे हैं। पढ़ें, नवल किशोर कुमार की यह रिपोर्ट

ओबीसी के नाम पर गुजरात के मुख्यमंत्री से भारत के प्रधानमंत्री बने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ओबीसी के प्रति कितने असंवेदनशील हैं, इसका प्रमाण यह है कि उनकी सरकार ने साफ कर दिया है कि सार्वजनिक लोक-उपक्रमों और बैंकों आदि में काम करने वाले ओबीसी वर्ग के क्लर्क और चपरासियों के बच्चों को भी आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। इस आशय की घोषणा केंद्रीय सामाजिक न्याय व अधिकारिता राज्य मंत्री कृष्ण पाल गुज्जर ने गत 10 दिसंबर,2019 को लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में दी। वे वाईएसआर कांग्रेस के सांसद मारगनी भरत राम द्वारा पूछे गए सवाल का जवाब दे रहे थे।

मारगनी भरत राम ने केंद्र सरकार से यह प्रश्न किया कि “क्या सरकार पीएसयू और बैंकों में कार्यरत अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के कर्मचारियों की सलाना आया के परिकलन में यह पता लगाने हेतु कि वे क्रीमी लेयर में आएंगे कि नहीं, वेतन और कृषि आधारित आय को भी शामिल कर रही है और यदि हां तो, तत्संबंधी ब्यौरा क्या है।”

उन्होंने यह भी जानना चाहा कि कर्मचारियों की विभिन्न श्रेणियों हेतु विभिन्न मापदंड अपनाने के क्या कारण हैं, जिससे पीएसयू और बैंकों में कार्यरत कर्मचारियों के बच्चों को लाभ से वंचित होना पड़ रहा है। साथ ही यह भी कि इस विसंगति को दूर करने हेतु क्या कदम उठाए गए हैं। मारगनी भरत ने अंत में यह सवाल भी उठाया कि क्या केंद सरकार ओबीसी हेतु क्रीमी लेयर हटाने के लिए कोई कदम उठा रही है?

मारगनी भरत राम, सांसद, लोकसभा

दरअसल, देश भर के सार्वजनिक लोक-उपक्रमों में काम करने वाले ओबीसी वर्ग के कर्मियों को लेकर एक पेंच अब भी फंसा है। यह पेंच इस वजह से है कि भारत सरकार के कार्मिक मंत्रालय (डीओपीटी) ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि सार्वजनिक लोक-उपक्रमों में काम करने वाले समूह ‘ग’ और समूह ‘घ’ के कर्मियों को भारत सरकार के अधीन विभागों में काम करने वाले समूहाें के समान होंगे या नहीं। जैसे वे सरकारी कर्मी जिनकी आय आठ लाख से कम है, उन्हें क्रीमी लेयर में शामिल नहीं माना जाएगा। उनकी आय में वेतन व कृषि आधारित आय शामिल नहीं है। परंतु, सार्वजनिक लोक उपक्रमों के मामले में ऐसा नहीं है। इस पेंच के कारण उनके बच्चों को क्रीमी लेयर में मान लिया जाता है और नतीजतन उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाता है। मारगनी भारत का सवाल  इसी से संबंधित था।

कृष्ण पाल गुज्जर, केंद्रीय सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री

इसके जवाब में केंद्रीय सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री कृष्ण पाल गुज्जर ने सदन को जानकारी दी कि सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछडों (एसईबीसी) के बीच क्रीमी लेयर समानता से संबंधित मुद्दों की जांच करने के लिए भारत सरकार ने 8 मार्च 2019 को भानु प्रताप शर्मा (पूर्व सचिव, डीओपीटी) की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ कमिटी का गठन किया गया। इस कमिटी ने 17 सितंबर, 2019 को अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। इस रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए केंद्रीय मंत्री ने सदन को बताया कि सार्वजनिक उद्यम विभाग ने अपने दिनांक 6 अक्टूबर, 2017 के कार्यालय ज्ञापन में यह स्पष्ट किया है कि केंद सरकार के अधीन सार्वजनिक लोक-उपक्रमों (सीपीएसई) में क्रीमी लेयर मानदंड का निर्धारण करने के लिए सामान्य सिद्धांत यह होगा कि सीपीएसई में कार्यपालक स्तर के सभी पद अर्थात बोर्ड स्तरीय कार्यपालक और बोर्ड स्तर के नीचे के कार्यपालक, जो प्रबंधकीय स्तर के पद होते हैं, उन्हें क्रीमी लेयर के रूप में समझा जाएगा। बशर्ते कि वे कार्यपालक जिनकी वार्षिक आया डीओपीटी के 8 सितंबर, 1993 को जारी कार्यालय ज्ञापन के मुताबिक 8 लाख रुपए से कम है, उन्हें क्रीमी लेयर में नहीं माना जाएगा। 

लेकिन सार्वजनिक लोक-उपक्रमों में काम करने वाले ओबीसी वर्ग के लोगों के बच्चों को आरक्षण का लाभ मिलेगा या नहीं, इस संबंध में केंद्रीय मंत्री ने कहा कि ऐसे संस्थाओं में काम करने वाले लिपिकों और चपरासियों को भारत सरकार के अधीन काम करने वाले कर्मियों के समूह ‘ग’ के समकक्ष माना जाएगा और इसके कारण ये भी क्रीमी लेयर के दायरे में आते हैं। इसलिए इनके बच्चों को गैर-क्रीमी लेयर का लाभ नहीं मिलेगा।

(कॉपी संपादन : सिद्धार्थ/गोल्डी)

लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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