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क्यों नागरिकता संशोधन अधिनियम पर आंदोलित हो रहा है भारत?

ताबिश बलभद्र बता रहे हैं कि नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) क्या है और इसे लेकर संसद से लेकर सियासी गलियारे तक में किस तरह की चर्चा चल रही है। वे एनआरसी व इससे जुड़े इतिहास का भी अवलोकन कर रहे हैं

नागरिकता संशोधन अधिनियम पर पूर्वोत्तर भारत के राज्यों सहित देश भर में बवाल मचा है। सभी राज्यों में इसके खिलाफ विरोध के स्वर मुखर हो रहे हैं। खासकर असम और पश्चिम बंगाल में इस कानून के विरोध में हिंसक आंदोलन हो रहे हैं। विरोध का कारण इस कानून को विभेदकारी और भारत के संविधान की आत्मा के विरूद्ध होना बताया जा रहा है जबकि सरकार इसे लाखों विदेशी हिंदू शरणार्थियों के हित में बताकर खुद अपना पीठ थपथपा रही है।

संसद में भारी विरोध

पहली बार चार दिसंबर को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में नागरिकता संशोधन विधेयक को मंजूरी दी गई। चार दिन बाद 9 दिसंबर को इस विधेयक को लोकसभा में पेश किया गया जहां विपक्षी दलों ने इसका विरोध किया। देर रात तक तकरीबन 12 घंटे चली लंबी बहस के बाद वोटिंग हुई जिसमें विधेयक के पक्ष में 311 वोट पड़े जबकि विपक्ष में 80 वोट पड़े। लोकसभा में बिल पास होने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुशी ज़ाहिर की और कहा कि यह भारत की सदियों पुरानी परम्परा और मानवीय मूल्यों में विश्वास के अनुरूप है।

कांग्रेस ने इस विधेयक को विभाजनकारी बताया। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता शशि थरूर ने कहा कि हमारे संविधान के लिए आज काला दिन है क्योंकि जो कुछ हुआ वो असंवैधानिक था। इसका स्पष्ट निशाना मुस्लिम समुदाय हैं, ये बहुत शर्म की बात है।

कोलकाता में विरोध करते लोग

एआईएमआईएम के नेता असद उद्दीन ओवैसी ने इस विधेयक पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि आधी रात को एक झटके में, जब पूरी दुनिया सो रही थी, स्वतंत्रता, बराबरी, भाईचारा और इंसाफ़ के बारे में भारत के आदर्श के साथ धोखा किया गया।

इस विधेयक का समर्थन करने वालों में नीतीश कुमार की पार्टी जनतादल यूनाईटेड (जेडीयू) भी शामिल है और इस बात को लेकर पार्टी के नेता प्रशांत किशोर ने नाराज़गी ज़ाहिर की है। उन्होंने कहा है कि यह बिल धर्म के आधार पर नागरिकता में भेदभाव करने वाला है।


असम के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तरुण गोगोई ने कहा है कि असम के लिए ये बहुत ही ख़तरनाक़ है। ये बिल पूर्वोत्तर की आबादी के गठन, विरासत और संस्कृति पर प्रतिकूल असर डालेगा।11 दिसंबर को इस विधेयक को राज्यसभा में पेश किया गया जहां सत्तारूढ़ दल के सांसदों की संख्या कम होने के कारण विपक्ष का थोड़ा विरोध झेलना पड़ा, लेकिन सरकार की रणनीति के तहत लगभग आठ घंटे चली बहस  के बाद यहां भी नागरिकता संशोधन विधेयक को पारित कर दिया गया। विधेयक के पक्ष में 125 मत पड़े, जबकि प्रस्ताव के विरोध में 105 सदस्यों ने मतदान किया। यहां जेडीयू, वायएसआर कांग्रेस, बीजू जनता दल और शिवसेना जैसे दलों का भी सरकार को साथ मिला। 

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इसे संवैधानिक इतिहास का काला दिन और भारत की अनेकता पर संकीर्ण मानसिकता और कट्टर ताक़तों की जीत बताया। 

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वहीं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में बिल पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि बंटवारे के बाद पैदा हुए हालात के कारण ये विधेयक लाना पड़ा। मुसलमानों को इस बिल में शामिल नहीं करने पर सवाल पर शाह ने कहा कि यह बिल तीन देशों के अंदर जिन लोगों के साथ धार्मिक प्रताड़ना हुई है, उन्हें नागरिकता देने के लिए हैं। उन्होंने कहा कि जब मैं माइनॉरिटी शब्द का इस्तेमाल करता हूं तो विपक्ष में बैठे लोग बताएंगे कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान में इस्लाम को मानने वाले अल्पसंख्यक हैं क्या? देश का धर्म इस्लाम हो तो मुस्लिमों पर अत्याचार की संभावना कम है। उन्होंने कहा कि सिर्फ मुसलमानों के आने भर से ही धर्मनिरपेक्षता साबित नहीं होती है। हम अपने विवेक से क़ानून ला रहे हैं और मुझे यकीन है कि अदालत में भी यह सही साबित होगा। गृह मंत्री ने आगे कहा कि अल्पसंख्यकों को चिंता करने की ज़रूरत नहीं है, किसी की भी नागरिकता छीनी नहीं जाएगी और धार्मिक रूप से प्रताड़ित लोगों को नागरिकता दी जाएगी। 

दोनों सदनों में विधेयक के पारित होने के बाद 12 दिसंबर को देर शाम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के इसपर दस्तखत के बाद यह विधेयक कानून बन गया। उसी दिन से असम और पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में हिंसक विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।  यहां कई इलाकों में इंटरनेट सेवाएं स्थगित कर दी गई और कर्फ्यू लगा दी गई है। शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए अर्धसैनिक बलों की कई कंपनियां तैनात की गई है। पश्चिम बंगाल में नागरिकता कानून का विरोध कर रहे प्रदर्शनकारियों ने कई बसों, ट्रेनों, रेलवे स्टेशनों और दुकानों को निशाना बनाकर उसे आग के हवाले कर दिया है। अन्य सरकारी संपत्तियों को भी नुकसान पहुंचाया गया है। दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया और अलीगढ़ विश्वविद्यालय के छात्र भी इस आंदोलन के समर्थन में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।  तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा, हैदराबाद से सांसद और एमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन औवैसी व कई अन्य नागरिक संगठनों की तरफ से इस नागरिकता संशोधन कानून को उच्चतम न्यायालय मे चुनौती दी गई है। इस कानून की संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी कड़ी आलोचना की है। इस कानून से विश्व समुदाय में भारत की छवि को आघात पहुंचा है। कानून के खिलाफ होने वाले विरोध-प्रदर्शनों के बीच 16 से 17 दिसंबर को गुवाहाटी में प्रधानमंत्री मोदी और उनके जापानी समकक्ष शिंजो आबे के बीच होने वाली वार्ता अगली तारीख तक के लिए टाल दी गई है। इससे पहले बांग्लादेश के दो मंत्रियों का प्रस्तावित भारत दौरा भी रदद कर दिया गया था।

भाजपा को नागरिकता संशोधन कानून से फायदा मिलने की उम्मीद

भाजपा को उम्मीद है कि इस विवादास्पद कानून के लागू होने से उसे फायदा होगा। पार्टी खासकर पश्चिम बंगाल में अपनी संभावनाओं को लेकर काफी उत्साहित हैं जहां इस कानून से काफी संख्या में लोगों को लाभ होगा। भाजपा के पश्चिम बंगाल इकाई के अध्यक्ष दिलीप घोष ने दावा किया कि विदेशी हिंदू शरणार्थियों की संख्या प्रदेश में दो करोड़ हो सकती है। भाजपा असम में अभी सत्ता में है जबकि पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में या तो अपने बल पर अथवा क्षेत्रीय दलों के साथ सत्ता में है। असम और पश्चिम बंगाल दोनों राज्यों में अप्रैल, मई 2021 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं इसके अलावा तमिलनाडु, केरल और पुडूचेरी में भी चुनाव होने वाले हैं।

बहरहाल, पश्चिम बंगाल सरकार के मंत्री फिरहाद हाकिम ने कहा कि नागरिकता संशोधन कानून,2019 को लेकर पश्चिम बंगाल के कई हिस्सों में जारी हिंसक विरोध प्रदर्शन से केवल भाजपा को ही लाभ होगा। विरोध प्रदर्शन से राज्य को मदद नहीं मिलेगी जबकि इससे भाजपा के हाथ मजबूत होंगे।

सात राज्यों ने किया कानून लागू करने से इंकार

कानून के लागू होने के बाद पश्चिम बंगाल, पंजाब, केरल, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों ने घोषणा की है कि यह कानून असंवैधानक है और उनके संबंधित राज्यों में इसके लिए कोई जगह नहीं है। वहीं  भाजपा की सहयोगी जनता दल यूनाईटेड ने भी रविवार को अपना रुख स्पष्ट करते हुए कहा है कि वह भी नागरिकता संशोधन बिल पर सरकार के साथ है जबकि एनआरसी पर सरकार के फैसले से इत्तेफाक नहीं रखती है और वह एनआरसी को राज्य में लागू नहीं करेगी। राज्यों के इस प्रतिक्रिया पर केंद्र सरकार ने कहा है कि राज्यों को ऐसे किसी भी केंद्रीय कानून को लागू करने से इनकार करने का अधिकार नहीं है जो संघ सूची में है और नागरिकता का मसला संघ सूची का विषय है।

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नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 में क्या है?

इस विधेयक में बांग्लादेश, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के छह अल्पसंख्यक समुदायों (हिंदू, बौद्ध, जैन, पारसी, ईसाई और सिख) से ताल्लुक रखने वाले लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रस्ताव है। वहीं इन देशों से आने वाले मुस्लिम शरणार्थियों को इस कानून से बाहर रखा गया है। मौजूदा कानून के मुताबिक किसी भी व्यक्ति को भारतीय नागरिकता लेने के लिए कम से कम 11 साल भारत में रहना अनिवार्य है। इस विधेयक में पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों के लिए यह समयावधि 11 से घटाकर छह साल कर दी गई है। मौजूदा कानून के तहत भारत में अवैध तरीके से दाखिल होने वाले लोगों को नागरिकता नहीं मिल सकती है और उन्हें वापस उनके देश भेजने या हिरासत में रखने का प्रावधान है।

विधेयक को लेकर क्यों हो रहा है बवाल?

विपक्षी पार्टियों का कहना है कि यह विधेयक मुसलमानों के खिलाफ है और भारतीय संविधान के अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन करता है। एक धर्मनिरपेक्ष देश किसी के साथ धर्म के आधार पर भेदभाव कैसे कर सकता है? भारत के पूर्वोत्तर राज्यों असम, मेघालय, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश में भी इसका विरोध हो रहा है क्योंकि ये राज्य बांग्लादेश की सीमा के बेहद करीब हैं। इन राज्यों में इसका विरोध इस बात को लेकर हो रहा है कि यहां कथित तौर पर पड़ोसी राज्य बांग्लादेश से मुसलमान और हिंदू दोनों ही बड़ी संख्या में आकर बसे हैं। आरोप यह भी है कि मौजूदा सरकार हिंदू मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की कोशिश में प्रवासी हिंदुओं के लिए भारत की नागरिकता लेकर यहां बसना आसान बनाना चाहती है और एनआरसी लिस्ट से बाहर हुए अवैध हिंदुओं को वापस भारतीय नागरिकता पाने में मदद करना इस सरकार का उद्देश्य है। पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों का यह भी मानना है कि इसके अमल में आने के बाद अवैध प्रवासियों की संख्या बढ़ जाएगी और इससे क्षेत्र की स्थिरता पर खतरा बढ़ेगा। भारतीय संविधान की छठीं अनुसूची में आने वाले पूर्वोत्तर भारत के कई इलाकों को नागरिकता संशोधन विधेयक में छूट दी गई है। छठीं अनूसूची में पूर्वोत्तर भारत के असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम आदि शामिल हैं, जहां संविधान के मुताबिक स्वायत्त जिला परिषद हैं जो स्थानीय आदिवासियों के अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करती है। वहां के मूल निवासी इस कानून से सबसे ज्यादा सशंकित हैं।

नागरिकता बिल  और एनआरसी में अंतर

नागरिकता अधिनियम, 1955 भारतीय नागरिकता से जुड़ा एक विस्तृत क़ानून है। इसमें बताया गया है कि किसी व्यक्ति को भारतीय नागरिकता कैसे दी जा सकती है और भारतीय नागरिक होने के लिए जरूरी शर्तें क्या हैं। इस अधिनियम में इसके पहले तक पांच बार (1986, 1992, 2003, 2005 और 2015) संशोधन किया जा चुका है। नेशनल सिटिजन रजिस्टर के निर्माण का मकसद असम में रह रहे घुसपैठियों की पहचान करना था, जबकि सरकार का कहना है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम ( 2019)  का मकसद पड़ोसी मुस्लिम देशों- अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश- से सन् 2014 तक आए हिंदू, बौद्ध, जैन, सिक्ख, पारसी और ईसाईयों को नागरिकता देना है। 

नागरिकता अधिनियम, 1955 क्या है?

नागरिकता अधिनियम, 1955 भारतीय नागरिकता से जुड़ा एक विस्तृत क़ानून है। इसमें बताया गया है कि किसी व्यक्ति को भारतीय नागरिकता कैसे दी जा सकती है और भारतीय नागरिक होने के लिए जरूरी शर्तें क्या हैं। इस अधिनियम में अब तक पांच बार (1986, 1992, 2003, 2005 और 2015) संशोधन किया जा चुका है।

 

(संपादन : सिद्धार्थ/नवल)


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लेखक के बारे में

ताबिश बलभद्र

मनवाधिकारकर्मी ताबिश बलभद्र फारवर्ड प्रेस समेत अनेक संस्थानों में बतौर पत्रकार काम कर चुके हैं। उन्होंने माखन लाल चतुर्वेदी पत्रकारिता व संचार विश्वविद्यालय, भोपाल से पीएचडी की है

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