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तमिलनाडु में पैठ बनाने के लिए संघ कर रहा है पेरियार पर हमला : वी. गीता

लेखिका वी. गीता बता रही हैं कि पेरियार की पुण्यतिथि पर तमिलनाडु भाजपा ने उनके बारे में अपमानजनक ट्वीट क्यों किया. उनका कहना हैं कि पेरियार, हिन्दू धर्म के सतत और कठोर आलोचक थे और महिलाओं को केवल बच्चों को जन्म देने वाली मशीन मानने के विरुद्ध थे. संघ परिवार की महिलाओं के बारे में ठीक यही सोच है और इसे औचित्यपूर्ण सिद्ध करने के लिए ही उसने ‘राष्ट्रमाता’ की छवि गढ़ी है.

गत 24 दिसंबर को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की तमिलनाडु इकाई ने एक ट्वीट के जरिये आयु में अपने से 40 वर्ष छोटी मनिअमाई से विवाह करने के लिए पेरियार का मखौल बनाया. इस ट्वीट की तमिलनाडु और अन्य राज्यों में त्वरित और अत्यंत कड़ी प्रतिक्रिया के बाद उसे हटा दिया गया. तमिलनाडु भाजपा के आईटी विंग के ट्विटर हैंडल पर यह टिप्पणी पुनः कुछ समय के लिए देखी गयी. ट्वीट में कहा गया था: “आज मनिअमाई के पिता पेरियार की पुण्यतिथि है. आइए, हम सब उन लोगों को मौत की सजा के प्रावधान का समर्थन करें जो बच्चों के विरुद्ध यौन हिंसा करते हैं और यह शपथ लें कि हम एक ऐसे समाज का निर्माण करेगें जिसमें एक भी पोक्सो आरोपी नहीं होगा”.  पोक्सो, लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 का संक्षिप्तीकरण है. फॉरवर्ड प्रेस के साथ एक ईमेल साक्षात्कार में वी. गीता, जिन्होंने पेरियार पर विस्तृत शोध किया है और उन पर अनेक पुस्तकें लिखीं हैं, पेरियार के विवाह और उन पर अपमानजनक टिप्पणी को एक व्यापक परिप्रेक्ष्य में रख रही हैं: 

वी. गीता

यह विद्वेषपूर्ण टिप्पणी किस तरह की मानसिकता की द्योतक है ? आपके अनुसार, इन लोगों की महिलाओं और पेरियार के बारे में क्या सोच है? इस तरह की बातें करने का क्या उद्देश्य हो सकता है ? 

जहाँ तक पेरियार के बारे में संघ परिवार की सोच का सवाल है, यह ट्वीट शायद उसकी सबसे घटिया अभिव्यक्ति है. पेरियार के विचारों को गलत ठहराने और उन्हें एक दानव के रूप में प्रस्तुत करने का कोई मौका संघ परिवार ने कभी अपने हाथों से नहीं जाने दिया. अतः यह ट्वीट आश्चर्यजनक नहीं है. पहले यही काम तमिल ब्राह्मण किया करते थे; वे पेरियार को नीचा दिखाने और उनकी राजनैतिक प्रतिबद्धताओं पर प्रश्नचिन्ह लगाने के लिए पेरियार के बारे में अनर्गल बातें किया करते थे. और इसका असर समाज पर होता भी था. मुझे याद है कि 1995 में, नगरीय संस्कृतियों पर एक सम्मलेन के समाप्ति के बाद देश के सबसे जानेमाने और अत्यंत प्रतिष्ठित समाजशास्त्री, जो उस समय 80 वर्ष से ज्यादा आयु के थे, मुझे एक ओर ले गए और मुझसे पूछा कि क्या मैं यह जानती हूँ कि पेरियार असल में आस्तिक थे! उन्हें बताया गया था कि मैं पेरियार पर एक किताब लिख रही हूँ और यह जानकारी, मेरी किताब में उनका योगदान था! मैंने उनसे कहा यह सरासर गलत और कोरी अफवाह है. परन्तु उनका कहना था कि उन्हें यह जानकारी ऐसे स्रोतें से मिली है जिनकी विश्वसनीयता पर उन्हें तनिक भी संदेह नहीं है. उन्हें बताया गया था कि पेरियार के घर के बगीचे में गणपति का एक मंदिर था, वे जहाँ वे दुनिया से छुप पर पूजा-अर्चना करते थे.     

मेरी यह मान्यता है कि आज संघी जो कर रहे हैं, वह तमिल ब्राह्मणों के दुष्प्रचार से गुणात्मक दृष्टि से एकदम अलग है. तमिलनाडु के ब्राह्मण और अन्य उच्च जातियों के लोग, पेरियार द्वारा उनकी कटु आलोचना से भयाक्रांत थे. वे यह भी जानते थे कि राज्य में पेरियार का जबरदस्त प्रभाव है. अतः, वे उनके महत्व को कम करने के लिए प्रयासरत थे. संघियों की परियोजना के लक्ष्य भिन्न हैं. वे न केवल पेरियार को बदनाम करना चाहते हैं बल्कि उन्हें, उनके जीवन और उनके विचारों को घृणा का पात्र बनाना भी चाहते हैं. जैसा कि सूर्यकांत वाघमोरे ने लिखा है, पेरियार जाति की सीमाओं से परे लोगों को एक समुदाय के रूप में संगठित करना चाहते थे. इस तथ्य के प्रकाश में, संघ परिवार जो कर रहा है वह अत्यंत विडम्बनापूर्ण है. उसका एजेंडा स्पष्ट है: अगर उसे तमिलनाडु में पैर जमाना है तो उसे पेरियार को निशाना बनाना ही होगा. वे पेरियार से इसलिए भी चिढ़ते हैं क्योंकि पेरियार ने हिन्दू धर्म की सतत निंदा की और वे इस्लाम के प्रबल समर्थक थे – वह इसलिए क्योंकि इस्लाम बंधुत्व की बात करता है और उसका आचरण भी. पेरियार का तर्किकतावाद, संघ परिवार की राजनीति से तनिक भी मेल नहीं खाता. संघ परिवार द्वारा अपने गुस्से के इज़हार के लिए लैंगिक मुद्दों को चुनना भी आश्चर्यजनक नहीं हैं. मुसलमानों के प्रति उनकी घृणा भी लैंगिकता से जुड़ी रही है, जिसमें मुस्लिम पुरुषों को कामुक और लम्पट और मुस्लिम महिलाओं को एक वस्तु के रूप में प्रस्तुत किया जाता रहा है. मुसलमानों की उच्च जन्म दर के मिथक और एक से अधिक महिलाओं से विवाह करने की उनकी तथाकथित प्रवृत्ति के मुद्दे को लेकर देश में उनके विरुद्ध असंतोष और गुस्सा भड़काया जा रहा है…तीन तलाक को अपराध घोषित करने के निर्णय की पीछे भी मुसलमानों को उनके कथित पुरुषत्व की सजा देने की मंशा है. पेरियार के मामले में भी वे वहीं बातें कर रहे हैं परन्तु वे वहीं रुक नहीं रहे हैं, उससे भी आगे बढ़ रहे हैं. जैसा कि हम सब जानते है, पेरियार ने लैंगिक समानता और महिलाओं के उनके शरीर पर अधिकार की वकालत की थी और वे इसके विरुद्ध थे कि महिलाओं को विवाह करने और माँ बनने के लिए मजबूर किया जाये. उन्होंने यह साफ़ कहा था कि लैंगिक नैतिकता, दरअसल, एक सापेक्ष अवधारणा है. एक पीढ़ी जिसे ‘सामान्य’ समझती है, वही दूसरी पीढ़ी के लिए अजीब और गलत हो सकता है. वे महिलाओं को केवल बच्चों को जन्म देने वाली मशीन मानने के खिलाफ थे. संघ परिवार की महिलाओं के बारे में ठीक यही सोच है और इसे औचित्यपूर्ण सिद्ध करने के लिए ही उसने ‘राष्ट्रमाता’ की छवि गढ़ी है. इसके अतिरिक्त, वे नैतिक और लैंगिक मान्यताओं को लेकर तनाव और संशय की संस्कृति – जिसके जन्मदाता वे स्वयं हैं – को यौन अपराधियों को पकड़ने के लिए लोगों पर नज़र रख कर और बच्चों के साथ बलात्कार और उनके विरुद्ध यौन हिंसा के लिए मौत की सजा का समर्थन कर मजबूती देना चाहते हैं. यही कारण है कि उन्होंने पेरियार की पुण्यतिथि पर ट्वीट कर लोगों को याद दिलाया कि पेरियार ने अपने से 40 साल छोटी महिला से शादी की थे. इस संदर्भ में उन्होंने पोक्सो की चर्चा की और यह मांग की कि बच्चों के विरुद्ध अपराधों के मामले में कानून को सख्त होना चाहिए. 

पेरियार से पोक्सो को जोड़ना न केवल विद्वेषपूर्ण है वरन उसका लक्ष्य तमिलनाडु के हम जैसे रहवासियों को चोट पहुँचाना भी है. इसके साथ ही, वे नैतिकता के वर्तमान मानदंडों का लाभ उठाना भी चाहते है. पेरियार का 31 वर्ष की मनिअमाई, जो उनके द्रविड़ कड़गम (डीके) की सदस्य और उनकी सहयोगी थी, के साथ विवाह करने का निर्णय एकतरफा नहीं था. मनिअमाई ने इसकी स्वीकृति दी थी और पेरियार उन्हें अपने एक साथी और विधिक प्रतिनिधि के रूप में देखते थे, जो यह सुनिश्चित करेगीं कि उन्होंने अपनी पार्टी के लिए जो संसाधन जुटाए थे, वे उनके इस दुनिया से जाने के बाद उन्हीं उद्देश्यों के लिए प्रयुक्त किये जाएं, जिनके लिए वे उनका साथ चाहते थे. यह एक तार्किक निर्णय था. उन्होंने एक तरह से अपने उत्तराधिकारी को ‘गोद’ लिया था – एक ऐसे उत्तराधिकारी को जो उनकी जाति की नहीं थी और महिला थी. हमें यह याद रखना चाहिए कि तब तक गोद लेने सम्बन्धी हिन्दू विधि में संशोधन नहीं हुआ था और किसी युवा महिला को अपने क़ानूनी उत्तराधिकारी के रूप में गोद लेना संभव नहीं था. ऐसे में, उन्होंने वह एकमात्र कानूनी विकल्प चुना जो उन्हें उपलब्ध था – और वह था विवाह. इसके लिए उन्हें अपने निकटतम सहयोगियों के कोप का भाजन भी बनना पड़ा. इनमें शामिल थे द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) के पहले मुख्यमंत्री सीएन अन्नादुरै, जिन्होंने इस विवाह के बहाने डी.के. को छोड़ दिया और अपनी नयी पार्टी (डीएमके) की स्थापना की. अन्नादुरै ने पार्टी छोड़ने के अपने कारण को लैंगिक मुद्दों से जोड़ा और मनिअमाई के बारे में अपमानजनक बातें कहीं. परन्तु उनके इस निर्णय के पीछे केवल पेरियार का विवाह नहीं था. वे डीके के 15 अगस्त को शोक दिवस के रूप में मनाने के निर्णय से भी अप्रसन्न थे. पेरियार की यह मान्यता थी कि भारत की स्वाधीनता, देश में ब्राह्मण-बनिया राज का आगाज़ थी. अन्नादुरै, चुनावी राजनीति से दूर रहने के डी.के. के निर्णय से भी इत्तेफाक नहीं रखते थे. वे लोकलुभावन राजनीति करना चाहते थे और अपनी तरह की सोच रखने वाले व्यक्तियों के साथ, डी.के. को छोड़ने के लिए सही मौके का इंतज़ार कर रहे थे. उन्होंने डी.के. को अलविदा कहने के अपने निर्णय के लिए घिसे-पिटे लैंगिक तर्क दिए और पेरियार को एक ऐसे बूढ़े व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत किया, जिसने अपने सिद्धांतों से समझौता कर लिया था और मनिअमाई को एक ऐसी महिला के रूप में, जो पेरियार के इस निर्णय का पूरा लाभ उठाना चाहतीं थीं. यह दुखद है कि अन्नादुरै ने पेरियार पर ऐसे लैंगिक ताने कसे, जिन्हें पचाना मुश्किल था. 

मेरा कहना यह है कि पेरियार के लैंगिकता, हिन्दू धर्म और ब्राह्मणों के वर्चस्व सम्बन्धी विचारों को तमिलनाडु में एक-समान स्वीकार्यता प्राप्त नहीं है. राजनैतिक सन्दर्भों में उनके महत्व से इंकार नहीं किया जा सकता परन्तु जो लोग उनके राजनैतिक समर्थक हैं, वे उनकी सोच के अन्य पहलुओं के प्रति उतने ही प्रतिबद्ध हैं और उन पर बौद्धिक और समालोचनात्मक बहस करना चाहते हैं, यह संशय के घेरे में है. और यही अस्पष्टता, पेरियार की सार्वजनिक स्वीकार्यता में बाधक है. अगर हम इन मुद्दों पर रचनात्मक ढंग से विचार नहीं करेंगे तो हम संघियों से मुकाबला नहीं कर पाएंगे. इस मुद्दे पर जो राजनैतिक बवाल मच रहा है, वह अपनी जगह है परन्तु हमारे लिए यह ज़रूरी है कि अपनी भिन्न विश्व-दृष्टि पर जोर दें और उन मूल्यों की रक्षा करें जो हमें इस देश के महान जाति-विरोधी आन्दोलन से विरासत में प्राप्त हुए हैं.

पेरियार और मनिअमाई

अगर पेरियार आज जीवित होते तो इस मसले पर उनकी क्या प्रतिक्रिया होती?

ऐसी प्रबल सम्भावना है कि वे मनिअमाई से विवाह करने के अपने निर्णय को उसके सही परिप्रेक्ष्य में लोगों के सामने रखते और विवाह के सम्बन्ध में आमजनों की धारणाओं का तार्किक विखंडन करते. जहाँ तक संघियों का सवाल है, वे उनकी यौन विकृतियों और महिलाओं के प्रति सम्मान के भाव के उनमें अभाव की तीखी और व्यंग्यात्मक आलोचना करते. वे हमें यह भी बताते कि ब्राह्मणवाद किस तरह विभिन्न चालों से उन विश्व-दृष्टियों को कलंकित कर रहा है, जो उसे चुनौती दे रही हैं. वे शायद तमिल गैर-ब्राह्मणों को इस बात के लिए फटकारते कि उन्होंने संघ परिवार को यह मौका ही क्यों दिया कि कम से कम मीडिया में वह कुछ हद तक प्रमुखता पा सका. और सबसे अधिक महत्वपूर्ण यह कि वे हमें संघ परिवार के इस्लाम-विरोध के विभिन्न निहितार्थों से हमें परिचित करवाते और यह बताते कि हमें मुसलमानों और उनसे जुडी सभी चीज़ों के प्रति घृणा फैलाने के प्रयासों का डट का मुकाबला करना है और उनसे दूर नहीं भागना है. वे कहते कि हमें मुसलमानों से ही नहीं बल्कि इस्लाम से भी जुड़ना चाहिए. 

क्या पेरियार, संघ परिवार के लिए एक स्वाभाविक निशाना हैं? ऐसा क्यों है?

मुझे लगता है कि मैं इस प्रश्न का उत्तर दे चुकी हूँ. 

(अनुवाद: अमरीश हरदेनिया, संपादन- सिद्धार्थ)

लेखक के बारे में

अनिल वर्गीज

अनिल वर्गीज फारवर्ड प्रेस के प्रधान संपादक हैं

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