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हम ओबीसी के लोग इसी देश के नागरिक हैं, हमारी गिनती करो : गोपीनाथ मुंडे

इस देश की 54 प्रतिशत आबादी अगर विकास से सुविधा से प्रगति से दूर रहेगी, तो यह देश तरक्की करेगा कैसे? आगे बढ़ेगा कैसे? मुझे लगता है कि ओबीसी को राष्ट्रीय मुख्यधारा में लाना ही होगा, उन्हें आरक्षण देना ही होगा और उनकी जनगणना करनी ही होगी! लोकसभा में गोपीनाथ मुंडे का संबोधन

[अगले वर्ष होने वाले जनगणना को लेकर प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। देश भर में जातिगत जनगणना कराए जाने की मांग उठने लगी है। इसकी आवश्यकता क्यों है, इस संबंध में सड़क से लेकर संसद तक बहस भी जारी हैं। प्रस्तुत संबोधन भाजपा के वरिष्ठ ओबीसी नेता रहे गोपीनाथ मुंडे का है। उनके इस संबोधन को महाराष्ट्र के सामाजिक कार्यकर्ता श्रवण देवरे ने अपनी मराठी पुस्तक “ओबीसी जनगणनाः संसदीय जीवघेणा संघर्ष” में संकलित किया है। इसे हम साभार प्रकाशित कर रहे हैं]

10 मई, 2010 को जातिगत जनगणना के संदर्भ में गोपीनाथ मुंडे का संसद में संबोधन

अध्यक्ष महोदय, मैं मानता हूं कि आज इस सदन में बहुत ही ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण बहस हो रही है। इस देश में लगभग 54 प्रतिशत ओबीसी है। इसका मतलब साफ जाहिर है कि आज हम देश के 54 करौड लोगों के जीवन से संबंधित बहस कर रहे हैं। जिनके संदर्भ में अब तक किसी भी सरकार ने कोई भी फैसला नहीं लिया है। इस देश में सिर्फ एक बार 1931 में ओबीसी जनगणना हुई थी। आज 60 साल हुए अपने देश में ओबीसी की संख्या कितनी है किसी को कोई भी खबर नहीं। ओबीसी की जनगणना ही नहीं हुई, तो पता चलेगा कैसे? और अगर हम इस समय भी होने वाली जनगणना में ओबीसी की जनगणना नहीं करेंगे, तो उन्हें सामाजिक न्याय कैसे मिलेगा?  

जाहिर सी बात है कि ओबीसी को सामाजिक न्याय के लिए और 10 साल इंतजार करना पड़ेगा। क्या इतने सालों तक प्रतीक्षा करने वाले ओबीसी पर और 10 साल हम अन्याय ही करते रहेंगे? आखिर यह अन्याय क्यों? आखिर ओबीसी जनगणना की माँग हो क्यों रही है? यह भी जान लेना आवश्यक है। 2007 में आईआईटी और आईआईएम में ओबीसी को आरक्षण देने के मुद्दे पर एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान ओबीसी के आँकड़े कोर्ट में प्रस्तुत करने के लिए सरकार को कहा गया, तब सरकार ने सीधे कहा कि आजादी के बाद के ओबीसी के कोई आँकड़े हमारे पास उपलब्ध नहीं हैं। कोई स्टेटेस्टिकल डेटा ही उपलब्ध नहीं है, तो कितने प्रतिशत आरक्षण दिया जाए? यह तय नहीं किया जा सकता। उस समय की बहस में एडिशनल एडवोकेट जनरल ने भरी अदालत में कहा । कि सरकार को ओबीसी जनगणना करनी चाहिए। (लॉ मिनिस्टर मोइली जी यहाँ उपस्थित है वह इस बात को रखें) अब उसके बाद जब 2011 में जनगणना होने जा रही है, तो उसमें ओबीसी जनगणना क्यों नहीं की जा रही है?

गोपीनाथ मुंडे (12 दिसंबर, 1949 – 3 जून, 2014)

अध्यक्ष महोदय, ओबीसी जनगणना इसलिए कीजिए कि अभी हमारे भक्त चरणदास कह रहे थे कि जाति विरहित समाज व्यवस्था होनी चाहिए। योग्यता के आधार पर सभी को अवसर मिलने चाहिए। आप तो मुझे दूसरे मनु ही लग रहे हो (उपेक्षा से चरण दास की तरफ हाथ करते हुए ………….. सभी सांसद खूलकर हंसते हैं ।) कहाँ है समाज में समानता? (सभी की ओर देखते हुए सवाल) और आप दलित होते हुए अनुसूचित जाति संवर्ग से होते हुए खुली सीट पर चुनकर आए हैं| मैं आपका अभिनंदन करता हूँ, परंतु क्या हमारे संविधान में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण नहीं होता तो क्या बाकी सदस्य जीत कर आ सकते थे? 

आप (भक्त चरण दास) की सोच सच्चाई से कोसों दूर है, और आप को अकेले को न्याय मिला इसलिए बाकी सभी को अन्याय में मत धकेलिये|  

अध्यक्ष महोदय, मैं पूछना चाहता हूँ। (आप खुद अनुसूचित जाति से है) आजादी के इतने दिनों बाद भी क्या आज छुआछूत का भेदभाव बंद हो चुका है? क्या आज भी दलितों को मंदिरों में प्रवेश मिल रहा है? बाबासाहब आंबेडकर को ही नहीं, अपितु इस देश के हर आंबेडकर को मंदिर प्रवेश नकारा जा रहा है। छोडिए कल की बातें! परसों हरियाणा [मिर्चपुर] में दलितों के घर नहीं जलाए गए? (और एक सांसद बोले कि घर ही नहीं, बल्कि दलितों को भी जलाया गया) ……. हाँ, वही तो मैं  कह रहा हूँ।

अध्यक्ष महोदय, दलितों के घर जलाए, दलितों को जलाया। महाराष्ट्र में खैरलांजी गांव में बहन, बेटी, मां और पूरे दलित परिवार को नंगा बनाकर जुलूस निकाला गया (गुस्से में जोर से) और अध्यक्ष महोदय जलाया गया ।  मैं किसी सरकार को दोष नहीं दे रहा हूँ, बल्कि इस देश की सामाजिक वास्तविकता बता रहा हूँ। हम आए दिन मंच से बड़ी-बड़ी बातें करते रहते हैं कि छुआछूत बंद हो गई है। अब हम सभी एक समान है। पर यह सभी कहने भर की बातें है। वास्तविकता से कोसों दूर है। यहाँ तो कथनी और करनी में बहुत बड़ी खाई है। आप तो बिना देखे ही जाति विरहित समाज का निर्माण करना चाह रहे हो।  मैं पूछना चाहता हूँ कि हिंदुस्तान में रहने वाले बहुत से लोग पुनर्जन्म में विश्वास नहीं करते। अगर मुझे हिंदुस्तान में फिर से जन्म लेना है तो क्या मैं भगवान के पास कोई एप्लीकेशन कर सकता हूँ कि वह मुझे किसी बिना जाति वाले घर में जन्म दे दें। संभव है यह? 

देखिए, ओबीसी जाति नहीं, एक संवर्ग है| क्योंकि अब तीन संवर्ग बनाए गए हैं | अनुसूचित जाति एक संवर्ग हो गया; अनुसूचित जनजाति दूसरा संवर्ग बन गया और ओबीसी तीसरा संवर्ग बना| अनुसूचित जाति में कई जातियाँ आती हैं, अनुसूचित जनजाति में भी कई जातियाँ आती हैं। यह दोनों संवर्ग हुए और संविधान ने उन्हें अधिकार दिया है, मैंने या आपने नहीं। हमारे कहने से क्या होने वाला है? संविधान में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति को आरक्षण दिया गया है; ओबीसी को पार्लियामेंट में नहीं दिया है। लेकिन काका कालेलकर समिति गठित हुई और उसमें विभिन्न प्रदेशों को अधिकार दिया गया कि वह अपने-अपने प्रदेशों में ओबीसी को अधिकार दे।

मैं कहता हूँ आजादी की बात छोड़िए, हमारे  जमाने में मद्रास और कर्नाटक ऐसे प्रदेश हैं जिन्होंने आजादी के पहले भी एससी, एसटी, ओबीसी को आरक्षण दिया था और मैं तो उस महाराष्ट्र से हूँ जहाँ शाहूजी महाराज ने आजादी से पहले ओबीसी और एससी को आरक्षण दिया था। 

अध्यक्ष महोदय, यह जाति व्यवस्था किसी सत्ता या आपके कारण नहीं, परंतु यह भारत की वास्तविकता है। जो कभी नहीं जाती वह जाति है, यहाँ धर्म बदला जा सकता है परंतु जाति नहीं। अंग्रेजों के समय जिन्होंने ईसाई धर्म स्वीकार किया या मुगलों के समय जिन्होंने मुस्लिम वह भी अपनी जाति लेकर ही वहां गए। उनका धर्म तो बदला पर जाति नहीं।

और जाति के आधार पर हमें जनगणना की आवश्यकता क्यों है। क्योंकि पिछड़ापन जाति से जुड़ा हुआ है और जाति पिछड़ेपन से जुड़ी है| जन्म के आधार पर पिछड़ापन है। जन्म के आधार पर गरीबी है| वे पिछड़े हैं जो गाँव में रहते हैं, जिनको पीने का पानी नहीं है, जिनको सड़क-बिजली नहीं, जिनके तन पर पहनने लायक कपड़ा नहीं है। यह लोग पिछड़े हैं। अब 63 साल की आजादी के बाद भी आप उनको न्याय नहीं देना चाहते। जनगणना में ओबीसी की जनगणना न करना यानी ओबीसी को सामाजिक न्याय ही नकारना है। सरकार सामाजिक न्याय देना ही नहीं चाहती है। डॉ. बाबासाहब आंबेडकर, महात्मा ज्योतिबा फुले, राजर्षी शाहूजी महाराज न होते तो यह वर्ग कभी संघटित भी न होता। उन्हें अपनी लड़ाई लड़ने की ताकत भी न मिलती। हमारे देश में भिन्न-भिन्न जातियाँ होना अच्छा है या बुरा है, यह अब सोचने का समय नहीं है। जातिगत अनेकता में भी एकता है…….

अलग जाति, अलग देश। 

अलग भाषा, अलग प्रदेश। 

फिर भी हमारा एक देश।  

इसलिए पिछड़े हुए वर्गों की देशभक्ति के बारे में संदेह व्यक्त करना गलत है। किसी भी काम के लिए होते हैं हम! वह पिछड़ापन सालों का है, सदियों का है, उनको हम वेलफेयर स्टेट गवर्नमेंट में न्याय देना चाहते हैं या नहीं? यही अहम सवाल है, काका कालेलकर के बाद मंडल आयोग आया। मंडल आयोग ने कितनी जातियाँ ढूँढी? 3743 जातियाँ। इतनी जातियाँ हैं।

कितनी जातियाँ हैं और उसमें भी उपजातियाँ हैं। अब वह कहते हैं कि रोटी-बेटी व्यवहार होता है। मगर नहीं होता है। होना चाहिए। अरे भाई जातियाँ इतनी हैं कि जयप्रकाश नारायण जी ने जाति तोड़ो आंदोलन चलाया। कई लोगों ने अंतरजातीय विवाह किए। मैंने भी किया। अब इंटरकास्ट मैरिज करने वालों की ही एक अलग जाति बन गई है। जाति तो नहीं गई। जाति कुछ चीज ही ऐसी है कि वह जाती ही नहीं।

मंडल आयोग ने कहा है कि 52 प्रतिशत ओबीसी है। उनको 52 प्रतिशत आरक्षण मिलना चाहिए, परंतु कोर्ट ने सवाल किया 50% आरक्षण क्यों? जिन लोगों को आज तक सामाजिक न्याय नहीं मिला, जो दूसरों के बराबरी के नहीं हैं, उनको न्याय देने के लिए आरक्षण है। और फिर आरक्षण किस आधार पर दिया जाता है, केवल जाति के आधार पर तो आरक्षण दिया जाता है, इसीलिए जातिगत जनगणना आवश्यक है।

अध्यक्ष महोदय, 2004 में अटल जी की सरकार के कार्यकाल में रेणके आयोग गठित हुआ। 2007 में उन्होंने सामाजिक न्याय मंत्री को अपनी रिपोर्ट सौंपी। उसमें उन्होंने कहा कि 45% ओबीसी को राशन कार्ड नहीं है। ऐसे कई लोग हैं जिनके मतदाता सूची में नाम नहीं हैं। यह आयोग घुमंतू जातियों के लिए नियुक्त किया गया था| रेणके आयोग की रिपोर्ट सरकार ने जारी नहीं की। मेरी माँग है कि सरकार जल्द से जल्द रेणके आयोग की रिपोर्ट जारी करे और ओबीसी को न्याय देना चाहिए।  उनको घर नहीं! उनको जमीन नहीं!!

अध्यक्ष महोदय, काका कालेलकर आयोग, मंडल आयोग और रेणके आयोग इन तीनों आयोगों का ही यह परिणाम है कि आज देश में सबसे बड़ा सवाल पूछा जा रहा है कि ओबीसी की जनसंख्या कितनी है? इसका अंदाजा किसी को भी नहीं है| हमारे संविधान में अनुसूचित जातियों के लिए शेड्यूल है।  राजीव गांधी ने संविधान में परिवर्तन करके पंचायत राज में शेड्यूल लाया था। मेरी माँग है कि शेड्यूल कास्ट के लिए शेड्यूल है, शेड्यूल ट्राइब के लिए एक शेड्यूल है कॉन्स्टिट्यूशन में। अभी ओबीसी के लिए भी शेड्यूल होना चाहिए। इसके लिए अलग मंत्रालय भी होना चाहिए। बातें तो बहुत करते हैं, लेकिन उनके लिए सभी जातियाँ बराबर है। क्रीमीलेयर जारी है। एससी, एसटी के लिए क्रीमीलेयर नहीं है, लेकिन ओबीसी को क्रीमीलेयर है। मेरा बेटा ओबीसी की सहुलत नहीं ले सकता, यादव जी [लालू प्रसाद] का बेटा ओबीसी की सहुलत नहीं ले सकता, क्रीमीलेयर जैसी तांत्रिक तासे ओबीसी आरक्षण पंगु बन गया है। एससी को 15% आरक्षण है, एसटी को 7.5% है। क्या आज इतने लोग सर्विस में हैं? सच्चर आयोग से आपने जिस प्रकार मुसलमानों की स्थिति की जाँच की, मैं माँग करता हूं कि एससी, एसटी और ओबीसी के आरक्षण उनको 63 वर्षों में मिले या नहीं मिले? 15% में से केवल 4% ही मिला, ओबीसी को तो मात्र 24 प्रतिशत ही मिला है। आरक्षण तो 27% है | लेकिन मिला कितना है? कागजों पर फैसले करने मात्र से उनको न्याय नहीं मिलने वाला है। जिस दिन उनका अधिकार उन्हें मिलेगा, उस दिन उनको न्याय मिला, ऐसा कहा जाएगा। परंतु उस प्रकार का न्याय आज तक नहीं मिला है। इसलिए यह लड़ाई सामाजिक न्याय की लड़ाई है। जनगणना में नाम लिखाने मात्र की नहीं है। अब अमीरों गरीबों में भी अंतर बढ़ता गया है। चरणदास जी, मैं आपको पूछना चाहता हूँ कि 63 सालों में सबको बराबरी का दर्जा होता, सबको बराबरी का अवसर होता तो ओबीसी भी आरक्षण नहीं माँगते। 

लेकिन क्यों पिछड़े और अधिक  पिछड़ते चले जा रहे हैं? शिक्षा राजनीति आदि प्रत्येक क्षेत्र में अवसर के अभाव में पिछड़े ही रहेंगे। इस देश की 54 प्रतिशत आबादी अगर विकास से सुविधा से प्रगति से दूर रहेगी, तो यह देश तरक्की करेगा कैसे? आगे बढ़ेगा कैसे? मुझे लगता है कि ओबीसी को राष्ट्रीय मुख्यधारा में लाना ही होगा, उन्हें आरक्षण देना ही होगा और उनकी जनगणना करनी ही होगी! 

ओबीसी जनगणना की माँग हम इसलिए कर रहे हैं कि यह अवसर है, सरकार को भी और आपको भी। इस मौके को खोना नहीं चाहिए। स्वामीजी! मोईली जी, ऐसे मंत्रिमंडल में अगर आपकी बात सुनी नहीं जाती है, तो क्यों बैठे हो ऐसे मंत्रिमंडल में? होने दो ओबीसी के लिए एक लड़ाई। लोग सर पर उठाएंगे आपको।

 तो अध्यक्ष महोदय, यह मामला जनसंख्या का है। 80 साल से ओबीसी की जनगणना नहीं हुई है। एक कॉलम भरना है बस। एससी, एसटी और ओबीसी का एक और कॉलम। ओबीसी लिखकर उसमें आपकी जाति लिखेगा, उसमें आपका क्या नुकसान है? और सरकार का भी क्या नुकसान है? देश के सभी ओबीसी संघटन ओबीसी जनगणना की माँग कर रहे हैं, क्या सरकार बहरी है? क्या उनके कानों तक ओबीसी की आवाज नहीं पहुँच पा रही है?

ओबीसी आवाज उठा रहे हैं। आज मैं कहना चाहता हूँ सरकार से……… आज मंत्री महोदय जवाब देंगे, तब उन्हें यहाँ घोषणा करनी चाहिए कि ओबीसी की जनगणना होगी। 

अगर आप जनगणना नहीं करेंगे तो ओबीसी एससी, एसटी यानी 75% जनसंख्या का गुस्सा आप पर होगा। आज सरकार आपकी है। सरकार किसी की भी हो सरकार का दायित्व होता है समाज को न्याय देना। वह काम आप करें। न्याय देने का कार्य करें। आप पर जो संवैधानिक जिम्मेवारी है, वह आप पूरी करें। जिस संविधान में पिछड़े हुए वर्गों को न्याय  देने की भूमिका डॉ. बाबासाहब आंबेडकर ने लिखी है, उनका सपना पूरा होगा और भारत के सभी गरीब लोगों की एक आशा आकांक्षा है कि लोकतंत्र में हमें न्याय मिलेगा। इस विश्वास के साथ ही वे 63 सालों से जीते आ रहे हैं। इस विश्वास को कभी न कभी तो पूरा करो। बहुत अधिक कुछ हमारी माँग नहीं है! बस मात्र हमारी जनगणना करो। हम इस देश के नागरिक हैं। हमारी भी गिनती करो। तो एक बार यह गिनती करो। 

जय हिंद । जय भारत ।

(संपादन : नवल/ गोल्डी)

लेखक के बारे में

गोपीनाथ मुंडे

गोपीनाथ मुंडे (12 दिसंबर, 1949 - 3 जून, 2014) महाराष्ट्र के भूतपूर्व उपमुख्यमंत्री व लोकसभा सांसद रहे।

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