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हार्वर्ड विवि में ये चार बहुजन पत्रकार उठाएंगे भारतीय मीडिया में हिस्सेदारी का सवाल

चार युवा बहुजन पत्रकार दिलीप मंडल, अशोक दास, ध्रुबो ज्योति व यशिका दत्त आगामी 15 फरवरी को अमेरिका के हार्वर्ड विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा आयोजित इंडिया कांफ्रेंस में भाग लेंगे। यह पहला अवसर है जब विश्व समुदाय भारतीय मीडिया में बहुसंख्यकों की हिस्सेदारी व उपेक्षा की कड़वी सच्चाई से रू-ब-रू होगा

अमेरिका के विश्व प्रसिद्ध हार्वर्ड विश्वविद्यालय में यह सवाल आगामी 15 फरवरी को उठेगा कि भारतीय मीडिया में दलित-बहुजनों की हिस्सेदारी नगण्य क्यों है और उनके सवालों को मीडिया में जगह क्यों नहीं मिल पाती। ये सवाल उठाएंगे भारतीय पत्रकारिता में अपनी अलग पहचान बनाने वाले चार दलित-बहुजन युवा। इनमें  वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल और दलित दस्तक के संपादक अशोक दास के अलावा समलैंगिकों के सवालों पर मुखर तरीके से लिखने वाले ध्रुबो ज्योति व युवा दलित लेखिका-पत्रकार याशिका दत्त शामिल हैं।

गौरतलब है कि हार्वर्ड विश्वविद्यालय द्वारा 15-16 फरवरी, 2020 को आयोजित होने वाला 17वां हार्वर्ड इंडिया कांफ्रेंस एक ग्लोबल मंच है जिसका मकसद भारत के विषयों पर विचार-विमर्श करना है। यह इसलिए भी खास है कि इसका आयोजन हार्वर्ड केनेडी स्कूल और हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के स्नातक छात्रों द्वारा संयुक्त रूप से किया जाता है और इसमें लगभग पूरे विश्व से आए शोधार्थी, सरकारों के प्रतिनिधि व प्रबुद्ध बुद्धिजीवी भाग लेते हैं। 

दिलीप मंडल, यशिका दत्त, ध्रुबो ज्योति व अशोक दास

बात सबसे पहले उस विषय की जो भारत के बहुसंख्यकों से सीधे तौर पर जुड़ा है। वह है भारतीय मीडिया में इस वर्ग के लोगों की नगण्य हिस्सेदारी का। इस विषय पर चर्चा 15 फरवरी को हार्वर्ड केनेडी स्कूल के सभागार में होगी, जिसका विषय ‘कास्ट एंड मीडिया’ रखा गया है। दिलीप मंडल, अशोक दास, ध्रुबो ज्योति और यशिका दत्त इस विषय पर अपनी बात रखेंगे।

दरअसल, भारतीय मीडिया में दलित-बहुजनों की हिस्सेदारी का सवाल मुखर होकर सामने आ रहा है। इसकी एक वजह यह भी है कि दलित-बहुजनों में शिक्षा का प्रसार बढ़ा है और कहना गैरवाजिब नहीं कि आज भारतीय मीडिया के पाठकों-दर्शकों में सबसे अधिक हिस्सेदारी इन्हीं वर्गों की है। दूसरी ओर वास्तविकता यह है कि तथाकथित मुख्यधारा की मीडिया उनके ही सवालों और विषयों की उपेक्षा करता है। इस संदर्भ में हाल ही में ऑक्सफेम इंडिया और न्यूजलांड्री द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट को देखा जा सकता है, जिसके मुताबिक वह चाहे हिंदी मीडिया संस्थान हों या फिर अंग्रेजी, दलित-बहुजनों की हिस्सेदारी नगण्य है। इस रिपोर्ट के अनुसार भारतीय समाचारपत्रों, टीवी न्यूज़ चैनलों, न्यूज़ वेबसाइटों और पत्रिकाओं में न्यूजरूम का नेतृत्व करने वाले 121 व्यक्तियों – मुख्य संपादकों, प्रबंध संपादकों, कार्यकारी संपादकों, ब्यूरो प्रमुखों व इनपुट/आउटपुट संपादकों – में से 106 पत्रकार ऊंची जातियों से थे। इनमें एक भी एससी या एसटी नहीं था। इलेक्ट्रानिक मीडिया का हाल भी कुछ ऐसा ही है। रिपोर्ट बताती है कि प्रमुख बहस कार्यक्रमों के हर चार एंकरों में तीन ऊंची जाति के थे और उनमें से एक भी दलित, आदिवासी या ओबीसी नहीं था।

विश्व के सामने रखेंगे भारतीय मीडिया का दोहरा चरित्र : दिलीप मंडल

दलित-बहुजन युवाओं में लोकप्रिय दिलीप मंडल वर्तमान में वेब पत्रिका दी प्रिंट में नियमित स्तंभकार हैं। वे माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय में एंगजक्ट प्रोफेसर के अलावा इंडिया टुडे के पूर्व कार्यकारी संपादक रहे हैं। फारवर्ड प्रेस से बातचीत में उन्होंने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि हार्वर्ड विश्वविद्यालय का मंच एक बड़ा मंच है और इस बार चूंकि भारतीय मीडिया में जाति के सवाल को विषय बनाया गया है, तो यह एक महत्वपूर्ण अवसर है। मंडल के मुताबिक वह अपने संबोधन में चार तथ्यों पर विचार रखेंगे। इनमें पहला तो यह कि वर्तमान में भारतीय मीडिया में दलित-बहुजनों की हिस्सेदारी की स्थिति क्या है। दूसरी यह कि हिस्सेदारी नहीं होने का असर क्या पड़ता है और कैसे बहुसंख्यक वर्ग खुद को ठगा हुआ पाता है। तीसरी बात यह कि क्या भारत में दलित-बहुजनों के लिए वैकल्पिक मीडिया का स्पेस बन रहा है। चाैथी यह कि आखिर किन कारणों से आज चाहे वह अखबार हों या फिर न्यूज चैनलाें या यूट्यूब चैनलों के सब्सक्राइबरों में सबसे अधिक दलित-बहुजन ही होते हैं। क्या इसके पीछे कारण यह है कि सवर्ण मीडिया का एक धड़ा खुद को प्रगतिशील भले कहता हो, लेकिन जिनके लिए दलित-बहुजनों के सवाल हाशिए के सवाल ही होते हैं।

‘कमिंग आउट ऐज दलित’ की लेखिका हैं यशिका दत्त

दलित समुदाय की यशिका दत्त हार्वर्ड विश्वविद्यालय के छात्रों के इस महत्वपूर्ण आयोजन की महत्वपूर्ण वक्ताओं में एक हैं। वे सुर्खियों में तब आयीं जब उनकी किताब ‘कमिंग आउट ऐज दलित’ प्रकाशित हुई। कोलंबिया विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाली यशिका न्यूयार्क में रहती हैं और विश्व स्तर पर भारतीय समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव के सवालों को मुखर तरीके से उठाती रहती हैं। 

वैकल्पिक मीडिया से जुड़े सवालों पर रहेगा जोर : अशोक दास

भारत के पिछड़े राज्यों में शुमार बिहार के गोपालगंज के मूलनिवासी अशोक दास दलित पत्रकारिता जगत में अहम स्थान रखते हैं। फारवर्ड प्रेस से बातचीत में उन्होंने कहा कि निश्चित तौर पर यह एक बड़ा मौका है जब हमें उन सवालों को विश्व समुदाय के सामने रखने का मौका मिलेगा, जिन्हें लेकर हम हमेशा सवाल उठाते रहते हैं। सबसे बड़ा सवाल हिस्सेदारी का ही है। साथ ही यह भी कि दलित-बहुजनों का अपना मीडिया संस्थान क्यों नहीं हो सकता है। दास ने बताया कि इस मौके पर वे दलित-बहुजन पत्रकारिता में चुनौतियों पर भी अपनी बात रखेंगे।

 बहरहाल, मीडिया में जाति के सवाल के अलावा इस बार हार्वर्ड विश्वविद्यालय के मंच पर जिन विषयों पर विचार होंगे उनमें ‘इंटेंट टू इम्पैक्ट स्टेट कैपिसिटी एंड पब्लिक सर्विस डिलीवरी इन इंडिया’, ‘वुमेन ऑफ इंडिया : लीडर्स, इनेबल्स एंड इन्फ्लूएंसेज’ और ‘दी वॉचमैन – सिटीजन एंड मीडिया ओवरसाइट इन डेमोक्रेसी’ भी शामिल हैं।

(संपादन : सिद्धर्थ)

लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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