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‘ई.वी. रामासामी पेरियार : दर्शन-चिंतन और सच्ची रामायण’ प्रकाशित, अमेजन-फ्लिपकार्ट पर बिक्री के लिए उपलब्ध

लंबे समय से हिंदी पाठकों को एक ऐसे मुकम्मल किताब की जरूरत महसूस हो रही थी, जो पेरियार के विचारों के विविध आयामों से उन्हें परिचित करा सके। फारवर्ड प्रेस द्वारा इस किताब का प्रकाशन इसी जरूरत को पूरा करने के लिए किया गया है

दलित-बहुजनों के महानायकों पर आधारित पुस्तक शृंखला के तहत फारवर्ड प्रेस द्वारा दक्षिण भारत के महान विचारक ई.वी. रामासामी नायकर ‘पेरियार’ के मौलिक लेखों का संग्रह प्रकाशित हो गया है। इस संग्रह में उनकी सबसे अधिक विवादास्पद कृति ‘सच्ची रामायण’ व सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले का हिंदी अनुवाद भी शामिल है। इसकी भूमिका दक्षिण भारत की प्राख्यात लेखिका और पेरियार की विशेषज्ञ वी. गीता ने लिखा है जो इस किताब का अहम हिस्सा है। यह किताब बिकी के लिए उपलब्ध है। आज ही अमेजनफ्लिपकार्ट के जरिए घर बैठे खरीदें। 

पेरियार को पढ़ना जरूरी क्यों?

ई.वी. रामासामी नायकर ‘पेरियार’ (17 सितंबर, 1879—24 दिसंबर, 1973) भारत की बहुजन-श्रमण परंपरा के आधुनिक युग के महानतम नायकों में एक हैं। वे एक ऐसे नायक हैं, जिन्हें अन्याय एवं असमानता का कोई रूप स्वीकार नहीं है। वे जाति एवं पितृसत्ता को भारतीय समाज के पांव की एक ऐसी बेड़ी मानते हैं, जिसे तोड़े बिना न्याय एवं समता आधारित आधुनिक लोकतांत्रिक भारत का निर्माण नहीं किया जा सकता है। उनका कहना था कि जाति व्यवस्था को पोषित करने वाले ब्राह्मणवाद, शास्त्रों, धर्म और ईश्वर के विनाश के बिना जाति का विनाश नहीं हो सकता है, क्योंकि ये सब लोगों में गुलामी की भावना भरने और अज्ञानता की वृद्धि के लिए रचे गए हैं। 

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पेरियार के इन क्रांतिकारी विचारों को उत्तर भारत में प्रवेश से रोकने के लिए उत्तर भारतीय आर्य-ब्राह्मण-द्विज श्रेष्ठता से ग्रस्त हिंदी की द्विज वैचारिकी ने अपने दरवाजे-खिड़कियां बंद कर दिए। इतना ही नहीं, हिंदी में प्रकाशित उनकी सच्ची रामायण को जब्त कर लिया और उस पर प्रतिबंध लगा दिया। ताकि पेरियार के विचार द्विज वर्चस्व की गाय पट्टी में प्रवेश न कर सकें। क्योंकि उनके विचार उनकी श्रेष्ठता और वर्चस्व के उन सभी दावों को तथ्यों, तर्कों और न्याय की कसौटी पर इस तरह से खारिज करते हैं कि उनका जवाब देना उनके लिए नामुमकिन सा था और है। लेकिन द्विज विचारकों  को चुनौती देते हुए बहुजन विचारकों-नायकों ने पेरियार के विचारों का उत्तर भारत में स्वागत किया और उसके प्रचार-प्रसार का बीड़ा उठाया। त्रिवेणी संघ, अर्जक संघ जैसे संगठनों और पेरियार ललई सिंह यादव जैसे बहुजन नायकों ने हिंदी समाज को पेरियार परिचित कराने की एक हद तक कोशिश की।

लेकिन लंबे समय से हिंदी पाठकों को एक ऐसे मुकम्मल किताब की जरूरत महसूस हो रही थी, जो पेरियार के विचारों  के विविध आयामों से उन्हें परिचित करा सके। फारवर्ड प्रेस द्वारा इस किताब का प्रकाशन इसी जरूरत को पूरा करने के लिए किया गया है। हमने पेरियार के विविध लेखों और सच्ची रामायण का ऐसे अनुवाद कराने की कोशिश की है, जो सटीक तो हो, लेकिन साथ ही सहज, सरल, सुपाठ्य और पूरी तरह संप्रेषणीय हो।

किताब में यह है खास

पेरियार मानव जाति के लिए कैसी दुनिया की कल्पना करते हैं, इसकी विस्तृत रूपरेखा उन्होंने ‘भविष्य की दुनिया’ शीर्षक लेख में प्रस्तुत किया है, यह लेख इस किताब का पहला लेख है। पेरियार के चिंतन का दायरा अत्यन्त व्यापक है। विभिन्न विषयों पर पेरियार के उद्धरणों को ‘सुनहरे बोल’ शीर्षक के तहत प्रस्तुत किया गया है। इन उद्धरणों के माध्यम से उनके प्रतिनिधि विचारों से पाठक का पूरी तरह परिचय हो जाएंगे। पेरियार ब्राह्मणवादी धर्म-ग्रंथों की विस्तृत व्याख्या की है। इन धर्मग्रंथों के बारे उनकी क्या राय है, इससे संबंधित लेख ‘ब्राह्मणवादी धर्मग्रंथों में क्या है’ शीर्षक से प्रस्तुत किया गया है। पेरियार स्वयं एक दार्शनिक थे, उनके द्वारा की गई दर्शन-शास्त्र के बारे में उनके विचारों को इस किताब ‘दर्शन-शास्त्र क्या है’ शीर्षक से प्रस्तुत किया गया है। जिसमें उन्होंने ईश्वर और धर्म की विस्तृत व्याख्या की है। जाति एवं पितृसत्ता के बारे में उनकी सोच को प्रस्तुत करने वाले लेख भी इस किताब में समाहित हैं। 

पढ़ें पेरियार की सच्ची रामायण

‘सच्ची रामायण’ पेरियार की बहुचर्चित एवं सबसे विवादास्पद कृति रही है। पेरियार की नजर में रामायण एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि एक राजनीतिक ग्रंथ है। जिसकी रचना का मूल उद्देश्य अनार्यों पर आर्यों, बहुजनों पर द्विजों और महिलाओं पर पुरूष के वर्चस्व को स्वीकृति प्रदान करना है। इस किताब में पेरियार की सच्ची रामायण का सटीक, सुपाठ्य, संप्रेषणीय और अविकल अनुवाद प्रस्तुत किया गया है। इसके साथ ही सच्ची रामायण के बारे में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले को भी किताब के परिशिष्ट में जगह दी गई है।

उनकी विशिष्ट तर्क-पद्धति, तेवर और अभिव्यक्ति शैली के चलते जून 1970 में यूनेस्को ने उन्हें ‘आधुनिक युग का मसीहा’, ‘दक्षिण-पूर्वी एशिया का सुकरात’, ‘समाज सुधारवादी आंदोलनों का पितामह’ तथा ‘अज्ञानता, अंधविश्वास, रूढ़िवाद और निरर्थक रीति-रिवाजों का कट्टर दुश्मन’ स्वीकार किया । इस किताब को पढ़ते हुए पाठक उनकी इस विशेषताओं से परिचय प्राप्त कर सकेंगे।

प्रकाशित पुस्तक : ई.वी. रामासामी पेरियार : दर्शन-चिंतन और सच्ची रामायण

भूमिका : वी. गीता

प्रकाशक : फारवर्ड प्रेस

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थोक खरीद के लिए संपर्क करें : फारवर्ड प्रेस, 803 दिपाली बिल्डिंग, 92 नेहरू प्लेस, नई दिल्ली – 110019

दूरभाष : 7827427311

ईमेल : fpbooks@forwardpress.in

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एफपी डेस्‍क

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