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आंबेडकर ने रखी थी भारत की जल संसाधन नीति की नींव

डॉ. आंबेडकर 20 जुलाई, 1942 से लेकर 29 जून 1946 तक वाइसराय की कार्यकारी परिषद् के श्रम सदस्य थे। चार वर्ष और ग्यारह माह की इस अवधि में इस दूरदर्शी नेता ने राष्ट्रनिर्माण की दिशा में बहुत कुछ किया। उनकी 129वीं जयंती पर ए.के. विस्वास इस दौर में उनके कार्यो के एक ऐसे ही पक्ष पर प्रकाश डाल रहे हैं, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं

मुंबई में 14 अप्रैल, 2016 को “मेरीटाइम इन्वेस्टमेंट समिट, 2016” का उद्घाटन करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि भारतीय संविधान के निर्माता आंबेडकर, भारत की जल संसाधन एवं नदी परिवहन नीति के सर्जक भी थे। राष्ट्र निर्माण में डॉ. आंबेडकर के इस योगदान, जिसके बारे में लोगों को बहुत कम जानकारी है, की चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, “हम में से अधिकांश यह नहीं जानते हैं कि बाबासाहेब ने जल संसाधन, जल परिवहन और विद्युत से संबंधित दो महत्वपूर्ण संस्थाओं की नींव रखी थी। वे थीं – केंद्रीय जल, सिंचाई व जल परिवहन आयोग और सेंट्रल टेक्निकल पॉवर बोर्ड। डॉ. आंबेडकर भारत की जल संसाधन एवं नदी परिवहन नीति के निर्माता भी हैं।” (1)

यह दुखद है कि भारत की जल नीति एवं जल संसाधनों के विकास में डॉ. आंबेडकर की महती भूमिका को लोगों के सामने आने से रोकने के लिए एक शक्तिशाली लॉबी लगातार काम कर रही है। जबकि उनकी इस भूमिका से संबंधित विस्तृत शासकीय अभिलेख उपलब्ध हैं, परन्तु इसके बावजूद इस आशय के सुनियोजित प्रयास किये जा रहे हैं कि इस दूरदृष्टा के इस अप्रतिम योगदान को अकादमिक क्षेत्र और सार्वजनिक विमर्श में मान्यता न मिले।   

केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण विभाग ने वर्ष 2016 में 307 पृष्ठों के एक स्मारक ग्रन्थ का पुनर्प्रकाशन किया। इस ग्रन्थ का शीर्षक था ‘जल संसाधनों के विकास में आंबेडकर का योगदान’। यह ग्रन्थ मूलतः डॉ. आंबेडकर के जन्म शताब्दी वर्ष 1993 में प्रकाशित हुआ था। पुनर्प्रकाशित ग्रन्थ में अपने सन्देश में तत्कालीन जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने लिखा कि डॉ. आंबेडकर भारत के जल संसाधनों के विकास और प्रबंधन के लिए समग्र और समन्वित दृष्टिकोण अपनाने के हामी थे।  

वाइसराय की कार्यकारी परिषद् के सदस्य बतौर लोगों से चर्चा करते आंबेडकर

वर्ष 1942 से 1946 के बीच डॉ. आंबेडकर ने देश के जल संसाधनों का सभी के हित में समुचित दोहन करने हेतु एक नई जल व विद्युत नीति का खाका तैयार किया था। उनकी मान्यता थी कि इस सन्दर्भ में अमेरिका की टेनेसी वैली परियोजना भारत के लिए आदर्श हो सकती है। उनका कहना था कि नदियों पर बहुउद्देशीय परियोजनाओं का निर्माण किया जाना चाहिए, जिससे सिंचाई और विद्युत उत्पादन दोनों हो सके। इस तरह की परियोजनाओं से अकाल और बाढ़ को रोका जा सकेगा और देश की गरीब जनता का जीवन स्तर सुधारने में मदद मिलेगी।  

डॉ. आंबेडकर जल संसाधनों के विकास हेतु बहुउद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं को अपनाने पर जोर दिया। उन्होंने नदी घाटी प्राधिकरणों की अवधारणा भी विकसित की। इसे ही अब समन्वित जल संसाधन प्रबंधन कहा जाता है।  

सन् 1944-46 की अवधि में श्रम विभाग ने जिन नदी घाटी परियोजनाओं को लागू करने पर सक्रियता से विचार किया, उनमें शामिल थीं – दामोदर, सोन, महानदी (हीराकुंड), कोसी, चम्बल व दक्कन की नदियों से संबंधित परियोजनाएं। 

मंत्री के अनुसार, “इन योजनाओं से एक साथ कई लक्ष्य हासिल किये जाने थे, जिनमें शामिल थे बाढ़ नियंत्रण, सिंचाई, जल परिवहन, घरेलू उपयोग के लिए जल आपूर्ति व जल विद्युत उत्पादन. दामोदर घाटी परियोजना और हीराकुंड बहुउद्देशीय परियोजना हमें इस महान दूरदृष्टा की याद दिलाते हैं।”(2)

राष्ट्र निर्माण में डॉ. आंबेडकर के इस योगदान को देश को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए, इस पर जोर देते हुए उमा भारती ने लिखा, “अंतरराज्यीय जल विवाद अधिनियम 1956 और रिवर बोर्ड्स अधिनियम 1956 प्रमाणित करते हैं कि डॉ. आंबेडकर कई राज्यों में बहने वाली नदियों से संबंधित मुद्दों पर कितने सजग थे। जल विवाद अधिनियम की भूमिका में कहा गया है कि इसका उद्देश्य, “अंतरराज्यीय नदियों और नदी घाटियों के पानी से संबंधित विवादों का निपटारा करना है।”(3)

वाइसराय की कार्यकारी परिषद् के अन्य सदस्यों के साथ आंबेडकर

डॉ. आंबेडकर और वाइसराय वेवेल में टकराव

भारत के विकास में डॉ. आंबेडकर का यह योगदान टकरावों और विवादों के बिना संभव नहीं हो सका। यह सुनिश्चित करने के लिए कि भारत को इस क्षेत्र के विश्व के सर्वश्रेष्ठ विशेषज्ञों की सेवाएं उपलब्ध हो सकें, डॉ आंबेडकर, भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के सर्वोच्च कर्ताधर्ता वाइसराय लार्ड वेवेल से भिड़ने से भी पीछे नहीं हटे। भारतीय पत्रकारिता के पितामह दुर्गा दास लिखते हैं :

“बिहार में दामोदर घाटी में बाढ़ नियंत्रण के उपायों की योजना बनाने के लिए गठित निगम के मुखिया बतौर एक चीफ इंजीनियर की नियुक्ति की जानी थी। वेवेल चाहते थे कि इस पद पर एक ब्रिटिश विशेषज्ञ को नियुक्त किया जाय, जो मिस्र के असवान बाँध परियोजना में सलाहकार था। परन्तु, डॉ. आंबेडकर का मानना था कि इस काम के लिए किसी ऐसे अमेरिकी इंजीनियर की सेवाएं हासिल की जानी चाहिए, जिसे टेनेसी वैली अथॉरिटी की परियोजनाओं में काम करने का अनुभव हो। उनका तर्क था कि चूंकि ब्रिटेन में एक भी बड़ी नदी नहीं है इसलिए वहां के इंजीनियरों को बड़े बांधों के निर्माण का कोई अनुभव नहीं हो सकता। अपनी कौंसिल के इस सदस्य के मज़बूत तर्कों, जिसे उन्होंने निर्भयतापूर्वक और अत्यंत प्रभावशाली ढंग से सामने रखा, ने वाइसराय को चुप कर दिया और डॉ. आंबेडकर की जीत हुई। डॉ. आंबेडकर ने दामोदर घाटी निगम में अमेरिकl के डब्ल्यू. एल. वूरदुइन नामक सज्जन की नियुक्ति की। वे इस निगम के पहले तकनीकी विशेषज्ञ थे और उन्हें टेनेसी वैली अथॉरिटी में काम करने का व्यापक अनुभव था। दामोदर घाटी निगम का मुखिया नियुक्त होते ही वूरदुइन ने अपना कार्यभार ग्रहण कर लिया और अगस्त, 1944 में अपना ‘प्रिलिमिनरी मेमोरेंडम ऑन द यूनिफाइड डेवलपमेंट ऑफ़ द दामोदर वैली’ प्रस्तुत कर दिया।(4)  

इंडियन इनफार्मेशन की अप्रैल 6, 1946 की रपट के अनुसार, “टेनेसी वैली अथॉरिटी के प्रमुख इंजीनियरों में से दो – रोस एम. रिएगेल और फ्रेड सी. श्लेमेर – भारत पहुंच चुके हैं और वे मैथों, अल्यार और पंचेट हिल परियोजनाओं के क्रियान्वयन के लिए सेंट्रल टेक्निकल पॉवर बोर्ड द्वारा बनाई जा रही योजनाओं के सम्बन्ध में अपनी सलाह देंगे।”. दोनों लगभग आठ सप्ताह तक भारत में रुके और “उनकी सेवाओं को टेनेसी वैली अथॉरिटी द्वारा अमरीकी विदेश विभाग की सहमति से, भारत सरकार को उपलब्ध करवाया गया।”(5) दिल्ली में डॉ. आंबेडकर की अध्यक्षता में 25-26 अप्रैल को आयोजित बैठक, जिसमें केंद्र और बंगाल और बिहार सरकारों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था, ने अनुशंसा की कि तिलैया बाँध (जो दामोदर नदी पर पहला बाँध था) का निर्माण कार्य शुरू किया जाय। इस बांध की लागत 55 करोड़ रुपए थी।(6)   

कार्यकारी परिषद् के श्रम सदस्य के रूप में डॉ. आंबेडकर ने 15 नवम्बर, 1943 और 8 नवम्बर, 1945 के बीच पांच संगोष्ठियों को संबोधित किया। इनमें से दो दामोदर घाटी परियोजना (3 जनवरी और 23 अगस्त, 1944 को कलकत्ता में), एक उड़ीसा की नदियों पर बहुउद्देशीय परियोजनाओं (8 नवम्बर, 1945 को कटक में) और दो विद्युत उर्जा (25 अक्टूबर, 1943 और 2 फरवरी, 1945) पर केन्द्रित थीं।(7)

सन् 1945 में स्थापित केंद्रीय जल, सिंचाई व जल परिवहन आयोग को अब केंद्रीय जल आयोग कहा जाता है। जल शक्ति मंत्रालय के अंतर्गत कार्यरत यह आयोग, सरकार की राष्ट्रीय जल नीति का निर्धारण करता है और उसके कार्यान्वयन का पथ-प्रदर्शन भी।     

सन् 1993 में केंद्रीय जल आयोग के अध्यक्ष एम.एस. रेड्डी ने अपने एक भाषण में बताया कि डॉ. आंबेडकर का जल संसाधन के क्षेत्र में क्या योगदान था : 

…(1) भारत में जल और विद्युत संसाधनों के विकास के सम्बन्ध में एक स्पष्ट अखिल-भारतीय नीति का विकास; (2) केंद्रीय जल, सिंचाई व जल परिवहन आयोग और सेंट्रल टेक्निकल पॉवर बोर्ड, जिसे अब केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण कहा जाता है, का गठन। ये दोनों संस्थान केंद्रीय स्तर पर राज्यों को ऐसी प्रशासनिक और तकनीकी सहायता उपलब्ध करवाते थे, जिससे वे अपने-अपने क्षेत्रों में सिंचाई और विद्युत संसाधनों का विकास कर सकें; (3) विभिन्न क्षेत्रों में नदियों के समन्वित विकास हेतु नदी घटी प्राधिकारणों या निगमों की अवधारणा का विकास; (4) भारत में पहली बार नदियों के जलग्रहण क्षेत्र के बहुउद्देशीय विकास की अवधारणा की प्रस्तुति, संविधान की 74वीं प्रविष्टि में संशोधन कर उसके कुछ हिस्से को केंद्रीय सूची का भाग बनाना और संविधान में अनुच्छेद 262 जोड़ना, जो अन्तर-राज्यीय नदियों या नदी घाटियों से संबंधित विवादों के निपटारे के संबंध में है; और (5) दामोदर, सोन और महानदी घाटी परियोजनाओं की शुरुआत। ये सभी आज भी देश की महत्वपूर्ण नदी घाटी परियोजनाओं में शामिल हैं।(8)

दामोदर घाटी निगम के अंतर्गत झारखण्ड स्थित मैथोन बांध

आंबेडकर की उपलब्धियों को दूसरों का बताने के प्रयास 

श्यामाप्रसाद मुख़र्जी की हाल ही में प्रकाशित एक जीवनी में यह दावा किया गया है कि : 

“सरकार की औद्योगिक नीति के अनुरूप, डॉ. (एस.पी.) मुख़र्जी ने तीन विशाल और सफल इकाईयों की परिकल्पना से लेकर स्थापना तक में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। ये इकाईयां थीं : चित्तरंजन लोकोमोटिव वर्क्स (चित्तरंजन, पश्चिम बंगाल), हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट फैक्ट्री (बैंगलोर) और सिंदरी फ़र्टिलाइज़र फैक्ट्री (सिंदरी, बिहार)।

लेखक ने यह दावा भी किया है कि बहुउद्देशीय दामोदर नदी घाटी परियोजना, जो टेनेसी वैली परियोजना पर आधारित परन्तु उससे कहीं अधिक जटिल थी, डॉ. मुख़र्जी की एक और असाधारण उपलब्धि थी। दामोदर नदी में 1943 में आई बाढ़ के बाद इस परियोजना की आवश्यकता और अधिक तीव्रता से महसूस की गई।(9)

दामोदर घाटी निगम के संबंध में जो दावा किया गया है, उसका कोई आधार नहीं है। ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि डॉ. मुख़र्जी ने इस परियोजना के क्रियान्वयन में कोई योगदान दिया था। इससे भी एक कदम और आगे बढ़कर, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 24 जून, 2018 को रेडियो से प्रसारित अपनी ‘मन की बात’ में दावा किया कि, “डॉ. मुख़र्जी ने दामोदर घाटी निगम और अन्य नदी घाटी परियोजनाओं पर विशेष जोर दिया। डॉ. श्यामाप्रसाद मुख़र्जी ने इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया।”(10). 

यह सर्वज्ञात है कि जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में आजाद भारत के पहले मंत्रिमंडल, जिसमें डॉ. श्यामाप्रसाद मुख़र्जी भी शामिल थे, ने 15 अगस्त 1947 को शपथ ली थी। ऐसे में यह समझ से परे है कि दामोदर घाटी परियोजना, जिसकी शुरुआत डॉ. मुख़र्जी के उद्योग और आपूर्ति मंत्री के रूप में शपथ लेने के तीन साल पहले ही हो गई थी, के लिए उन्हें श्रेय कैसे दिया जा सकता है।

डॉ. आंबेडकर के दामोदर घाटी परियोजना की स्थापना में योगदान के सम्बन्ध में अकाट्य तथ्यों के उपलब्ध होने के बावजूद, डॉ. मुख़र्जी के सम्बन्ध में जो दावे किये जा रहे हैं, उनका उद्देश्य केवल पाठकों और अध्येताओं को भ्रमित करना है। इससे इस पुरानी कहावत का सच एक बार फिर साबित होता है कि ‘सफलता के कई पिता होते हैं।” 

सन्दर्भ

(1) समाचार दिनांक 18 अप्रैल 2016, ‘डॉ आंबेडकर जल, नदी परिवहन नीति के निर्माता भी: मोदी’

(2) केंद्रीय जल आयोग, जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण विभाग, नई दिल्ली द्वारा जल संसाधनों के विकास में आंबेडकर का योगदान विषय पर प्रकाशित स्मारक ग्रन्थ, द्वितीय संस्करण, 2016, पृष्ठ 233-274

(3) वही

(4) दुर्गा दास: इंडिया – फ्रॉम कर्ज़न टू नेहरु एंड आफ्टर, कॉलिंस, लन्दन, 1969, पृष्ठ 236 

(5) “टी.वी.ए. एक्सपर्ट्स टू एडवाईस ऑन दामोदर वैली प्रोजेक्ट”, इंडियन इनफार्मेशन, 1 अप्रैल 1946,  राइटिंग्स एंड स्पीचेस ऑफ़ डॉ बी. आर. आंबेडकर, खंड 10, महाराष्ट्र सरकार, बम्बई, पृष्ठ 403 में उदृत 

(6) वही पृष्ठ 682

(7) केंद्रीय जल आयोग, जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण विभाग, नई दिल्ली द्वारा जल संसाधनों के विकास में आंबेडकर का योगदान विषय पर प्रकाशित स्मारक ग्रन्थ, द्वितीय संस्करण, 2016, पृष्ठ 233-274

(8) जल संसाधन मंत्रालय द्वारा डॉ आंबेडकर पर प्रकाशित स्मारक ग्रन्थ

(9) डॉ श्यामाप्रसाद मुख़र्जी, लाइफ एंड टाइम्स, पेंगुइन वाइकिंग, 2018, पृष्ठ 247

[10]https://www.dnaindia.com/india/report-shyama-prasad-mukherjee-s-hard-work-ensured-that-a-part-of-bengal-was-in-india-pm-modi-during-mann-ki-baat-2628656

(अनुवाद: अमरीश हरदेनिया, संपादन : नवल)

लेखक के बारे में

एके विस्वास

एके विस्वास पूर्व आईएएस अधिकारी हैं और बी. आर. आम्बेडकर विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर बिहार के कुलपति रह चुके हैं

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