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कोरोना : खौफजदा हैं नर्स एवं स्वास्थ्य कर्मी

कोरोना संक्रमण को सीमित करने के लिए भले ही केंद्र सरकार ने 21 दिनों का लॉकडाउन घोषित कर दिया हो, लेकिन इसका नकारात्मक असर स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ रहा है। खासकर स्वास्थ्यकर्मियों और नर्सों के मन में खौफ गहराता जा रहा है। एक वजह यह भी कि उनके लिए आवश्यक उपकरणों की व्यवस्था ही नहीं की गई है। बता रहे हैं गोल्डी एम. जार्ज

बीते 24 मार्च, 2020 से चल रहे इक्कीस दिवसीय कोविड-19 लॉकडाउन ने लोगों के चिंताओं, भय और चुनौतियों को नई ऊंचाइयों के साथ पूरे देश में एक संकट पैदा कर दिया है। वैसे तो नर्सोंं को “स्वर्गदूत” के रूप में वर्णित किया गया है, जिनका काम मानवों की सेवा करना है। परंतु, वे आज जो विशेष रूप से निजी अस्पतालों में काम कर रही हैं, कई अनापेक्षित चुनौतियों का सामना भी कर रही हैं।

देश के अलग-अलग शहरों से जो खबरें आ रही हैं, उसके अनुसार अब तक दस नर्सोंं, डाक्टरों और स्वास्थ्य कर्मी कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं। इस करण ये सभी खौफ में हैं। इन नर्सों में बड़ी संख्या गरीब और कमज़ोर समुदायों से आने वाली महिलाओं की है। हालांकि इनमें से कुछ ही होंगी, जो अपनी सामाजिक पृष्ठभूमि के बारे में बात करती हैं, लेकिन गहराई से समझने से स्पष्ट होता है कि इनमें से अधिकांश ने अपनी पढाई के लिए या तो बैंक से ऋण लिया है या फिर छात्रवृत्ति प्राप्त की है।

भारत अपने हाल के इतिहास में सबसे गंभीर स्वास्थ्य संकट के तीसरे चरण के कगार पर है। पूरे भारत में कोरोनो वायरस संक्रमण के लगभग 3100 मामले व 86 मौतों के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित लॉकडाउन, 2016 में घोषित नोटबंदी से भी भयानक रूप में सामने आ रहा ह है। प्रधानमंत्री के इस देशव्यापी तालाबंदी से दैनिक मजदूरों के अलावा पेशेवर स्वास्थ्य कर्मियों को बड़ी तकलीफ उठानी पढ़ रही है, जिसमें डाक्टर, नर्स, पैरा-मेडिकल, सहायक कर्मचारी और अन्य शामिल हैं।

देश में कोविड-19 के बढ़ने मामलों को देख दिल्ली और देश के अन्य राज्यों के निजी अस्पतालों ने कमर कस ली है। इनमें से कई ने परीक्षण के साथ-साथ उपचार के लिए आइसोलेशन वार्ड भी बनाए हैं। कोरोना संकट की शुरुआत के बाद से सरकार निजी अस्पतालों से उनके सहयोग की आग्रह करती रही है। विगत कुछ दिनों से भारत में कई कॉरपोरेट अस्पताल, विशेषकर दिल्ली में ड्राई रन और मॉक ड्रिल कर रही हैं। लेकिन इन अस्पतालों में काम करने वाली नर्सोंं और पैरा मेडिकल कर्मियाें की एक अलग कहानी है।

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कर्नाटक के कलबुर्गी में कोरोनो वायरस के संक्रमण की वजह से मृत्यु के लगभग तीन सप्ताह बीत चुके है, फिर भी कई नर्सें सुरक्षित रहने के तरीके को लेकर अभी भी असमंजस की स्थिति में हैं। चाहकर भी वे अपनी वास्तुस्थिति के बारे में खुलकर नहीं बोल पा रही हैं, क्योंकि इन्हें अपनी नौकरी से हाथ धोने का डर ज्यादा सताता है।

दिल्ली के अस्पताल में कर्यरत एक नर्स

कुव्यवस्थाओं की शिकार हो रहीं नर्सें

यूनाइटेड नर्सेज एसोसिएशन (यूएनए) के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष रिंस जोसफ ने असंतोष व्यक्त करते हुए बताया कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने अब तक कोविड-19 के संदर्भ में स्वास्थ्य कर्मियों के सुरक्षा संबंधित अनिवार्य दिशा-निर्देश अब तक जारी नहीं की। जोसफ के अनुसार, “नर्स और हेल्थकेयर पेशे से जुड़े लोग कोरोनो वायरस से डरते नहीं हैं। फ्लोरेंस नाइटिंगेल द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन करके हम वायरस को हरा सकते हैं। लेकिन निजी अस्पताल प्रबंधन की उदासीनता और सरकार की धीमी कार्यवाही बड़ी समस्या है।”

नर्स और स्वास्थ्य कर्मचारी बिना विश्राम लिए काम करते हैं, लेकिन उनके प्रोत्साहन के बदले उन्हें अत्यंत दबाव, सुरक्षा उपकरणों की कमी और मनोवैज्ञानिक परेशानियों से गुज़रना पड़ता है। एक कॉरपोरेट अस्पताल की वरिष्ठ नर्स नीता (परिवर्तित नाम) कहती हैं, “हमें वायरस के संपर्क में आने का बहुत खतरा है और अस्पताल प्रबंधन और सरकार इस एक्सपोज़र को सीमित करने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठा रहे हैं।” आईसीयू के प्रभारी सिंधु (परिवर्तित नाम) के मुताबिक व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) का जीवाणुरहित और नया होना अनिवार्य होता हैं। कई बड़े कॉरपोरेट अस्पतालों में नर्सोंं को नकली एन-95 मास्क पीले रंग के दिए गए हैं, जोसेफ ने यह शिकायत भी की।

एक कॉरपोरेट अस्पताल के निदेशक ने नाम न छापने की शर्त पर लॉकडाउन की कड़ी शब्दों में आलोचना की। उनके मुताबिक, “लॉकडाउन से अस्पतालों के बुनियादी दवाओं की आपूर्ति में बाधा हुई है। रोगियों की इलाज करने वाले डाक्टरों और अन्य चिकित्सा कर्मचारियों की संख्या घट गयी है। इसके अलावा कई बीमार लोग भी चिकित्सा के लिए नहीं पहुंच पा रहे है।”

नकली एन95 मास्क पहनी हुई एक नर्स

लॉकडाउन में निजी अस्पताल प्रशासन इस उलझन में हैं कि वे अपने स्वास्थ्यकर्मियों को कैसे संभालें। इसका ख़ामियाज़ा नर्सों को भरना पड़ता है। बुनियादी सुविधाओं की कमी और डर की स्थितियों को बयान करते हुए, कुछ नर्सोंं (नाम न देने की शर्त पर) ने आक्रोश व्यक्त किया कि उनसे ज़बरदस्ती डबल ड्यूटी करवाया जा रहा है। साप्ताहिक अवकाश भी नहीं दिया जा रहा है।यहां तक कि कभी-कभी भोजन भी समय पर नहीं मिलता। इन कारणों से हमेशा जबर्दस्त तनाव बना रहता हैं। जोसफ बताते है, “जब जूनियर स्टाफ पीपीई की मांग करते हैं, तो वरीय अधिकारी उनके उपर चिल्लाते हैं।इस रवैये से नर्सें मानसिक रूप से प्रताड़ित होती है। नर्सें अति जोखिम परिस्थितियों में काम करती हैं। संभवतः वे वायरस के संपर्क में भी आती हैं, लेकिन उनका कोरोना परीक्षण नहीं किया जा रहा है। इनके पास पर्याप्त एन-95 मास्क, चश्मे, कोरोना सुरक्षा किट, पीपीई नहीं है।”

पिछले कुछ दशकों से भारत में अस्पताल उद्योग कॉरपोरेट कंपनियों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है और इसमें काफी पूँजी निवेश कर रहे है। दिल्ली-एनसीआर में सबसे अधिक निजी काॅरपोरेट अस्पताल हैं जैसे अपोलो, मैक्स, मेदांता, नारायण, एस्कॉर्ट्स आदि। निर्मला (परिवर्तित नाम) कहती है कि मौजूदा कर्मचारी काफी जोखिम में हैं क्योंकि उन्हें काम के तनाव के अलावा उनके पौष्टिक आहार उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है, जिससे उनके शरीर में प्रतिरोधक क्षमता का ह्रास हुआ है।

सिंधु बताती है कि जब किसी अस्पताल में कोविड​-19 पॉजिटिव के बारे में मकान मालिकों को सुनने मिले, तो किराए में रहने वाली नर्स को घर छोड़ने के लिए कहा जाता है। यह लॉकडाउन के दौरान अधिक परेशानी का सबब है।

निर्मला को संदेह है कि उसके अस्पताल में संभवतः एक कोविड-19 का मरीज आये हों। नर्सोंं और पैरामेडिकल कर्मियों को वायरस संक्रमण होना ज्यादा संभव है, क्योंकि वे मरीजों के संपर्क में अधिक रहते हैं। इन अति जोखिम वाले क्षेत्रों में भी तत्काल रक्त परीक्षण की कोई सुविधा नहीं है।

लॉकडाउन के साथ परिवहन का दायरा शून्य है और जो नर्सें काम पर हैं उनपर बोझ बहुत ज्यादा आता है, जिन्हें ओवरटाइम काम करना पड़ता है। नर्सोंं, और स्वास्थ्य कर्मियों का हवाला देते हुए, लोकसभा सदस्य एंटो एंटनी ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को लिखा है कि निजी क्षेत्र के स्वास्थ्य कर्मियों को भी बीमा लाभ सहित अन्य योजनाओं में शामिल किया जाए।

इस अचानक और अप्रत्याशित लॉकडाउन में बड़ी संख्या में लोग भोजन, पानी, आश्रय, परिवहन, आवश्यक सुविधाओं और सामाजिक सुरक्षा के बिना जीने को मजबूर हुए।

नर्सोंं और स्वास्थ्यकर्मियों की सुरक्षा भगवान भरोसे चल रहा है। वाशिंगटन केंद्रित सेंटर फॉर डिसीज डायनेमिक्स, इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी (सीडीडीईपी) ने जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी और प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के साथ एक रिपोर्ट जारी की है। इसमें बताया गया कि भारत में राष्ट्रीय तालाबंदी लाभदायक नहीं अपितु गंभीर आर्थिक नुकसान का कारण बन सकता है। यह भी सवाल उठता है कि इन निजी अस्पताल में कितनी नर्सोंं और पैरामेडिकल कर्मियों को कोरोना के संबंध में आवश्यक जानकारी और निवारक सतर्कता पर दिशा-निर्देश दिए गए हैं? क्या सरकार ने इस सन्दर्भ में कोई गाइडलाइन जारी की है या नहीं?

निजी अस्पतालों में हज़ारों नर्स और डाक्टर जबर्दस्त जोखिम के बावजूद अथक सेवा कर रहे हैं। फिर भी वे मोदी सरकार द्वारा घोषित पैकेज का हिस्सा नहीं हैं। इनका बीमा कवरेज भी नहीं है।

बहरहाल, 30 मार्च, 2020 को मोदी सरकार ने घोषणा की कि लॉकडाउन को 21 दिनों की सीमा से आगे नहीं बढ़ाया जाएगा। कोरोना वायरस से निपटने एवं इस भयानक आर्थिक संकट से किस तरह केंद्र के भाजपा सरकार निपट पाती है, यह तो समय ही बताएगा।

(संपादन : नवल)

लेखक के बारे में

गोल्डी एम जार्ज

गोल्डी एम. जॉर्ज फॉरवर्ड प्रेस के सलाहकार संपादक रहे है. वे टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज से पीएचडी हैं और लम्बे समय से अंग्रेजी और हिंदी में समाचारपत्रों और वेबसाइटों में लेखन करते रहे हैं. लगभग तीन दशकों से वे ज़मीनी दलित और आदिवासी आंदोलनों से जुड़े रहे हैं

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