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अनुशासित रह आदिवासी युवाओं ने कहा – “जय भीम”, पेश की नयी मिसाल

छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल के सुदूर कांकेर जिले में आदिवासी समुदाय के लोगों ने कृतज्ञतापूर्वक डॉ. आंबेडकर को उनकी 129वीं जयंती पर याद किया। उन्होंने यह सब लॉकडाउन के नियमों का पालन करते हुए किया। तामेश्वर सिन्हा की खबर

कोरोना के कारण पूरे देश में लॉकडाउन है। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और बेंगलूरू जैसे शहरों में सन्नाटा है। इसी तरह का सन्नाटा छत्तीसगढ़ के सुदूर कांकेर जिले में भी है। सभी कोरोना के कारण या तो दहशतवश या फिर सरकारी फरमान के कारण अपने घरों में बंद हैं। लेकिन, बीते 14 अप्रैल, 2020 को बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर की 129वीं जयंती के मौके पर आदिवासी समुदाय के लोग कोविड-19 के सभी प्रोटोकॉल का अनुसरण करते हुए जुटे। इस मौके पर सभी ने समवेत स्वर में डॉ. आंबेडकर को याद करते हुए “जय भीम” का उद्घोष भी किया। उनके द्वारा यह आयोजन इसलिए भी खास है क्योंकि देश और दुनिया भर में जहां बाबा साहेब के अनुयायी लॉकडाउन के चलते इस असमंजस में रहे कि आंबेडकर जयंती कैसे मनाया जाए, बस्तर आंचल के आदिवासियों ने एक नयी मिसाल कायम की। 

छत्तीसगढ़ के उत्तर बस्तर में आनेवाले कांकेर जिला अन्तर्गरत नरहरपुर ब्लॉक के बनसागर नामक गांव के सुरेंद्र वट्टी ने बताया कि उनके गांव के युवाओं में आंबेडकरी चेतना पहले से ही रही है। पूर्व में भी बाबा साहब की जयंती व परिनिर्वाण दिवस के मौके पर कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता रहा है। हम इस बार भी जयंती पूरे धुमधाम से मनाना चाहते थे। करीब दो महीने से हम इसकी तैयारी भी कर रहे थे। हमारी योजना यह थी कि गांव में ही एक आंबेडकर चौक का निर्माण हो और इस बार वहां आंबेडकर जयंती का आयोजन हो। इसकी तैयारी में गांव के हम युवा पहले से ही जुटे थे। हम अगल-बगल के गांव वालों को न्यौता भी दे रहे थे।

बनसागर गांव में आंबेडकर जयंती मनाते आदिवासी

पेश की नयी मिसाल

वट्टी के मुताबिक इस वर्ष गांव में एक विराट आंबेडकर जयंती महोत्सव की तैयारी थी। परंतु, 24 मार्च, 2020 को जैसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशभर में लॉकडाउन की घोषण की, हम युवाओं का उत्साह जाता रहा। लेकिन गांव के लोगों ने आपस में विचार किया और सभी सहमत थे कि इस बार भी बाबा साहेब की जयंती अवश्य मनायी जाय, परंतु एक अलग ढंग से। फिर हम सभी इस बात के लिए राजी हुए कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए कम से कम एक मीटर की दूरी बनाकर सभी इसमें शामिल हों। इसके लिए हम लोगों ने एक-एक मीटर की दूरी पर गोल घेरे तैयार किए तथा सभी ग्रामीणों को मास्क बांटा। इसके बाद हमलोगों ने आंबेडकर जयंती मनायी। 

बताते चले कि लॉकडाउन के मद्देनजर बस्तर अंचल के आदिवासियों ने अपने ही तरीके से बचाव का रास्ता अपनाया है। वे अपने गांवों की सीमा पर हर आने-जाने वालों का ध्यान रख रहे हैं। साथ ही वे गांव के भीतर भी एहतियात बरत रहे हैं। हालांकि इसमें बाहर से आनेवाले लोग नहीं शामिल हो सके, फिर भी गांव के लोगों ने जयंती को हर्षोल्लास के साथ मनाया।

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बहरहाल, इस मौके पर एक परिचर्चा भी आयोजित की गई। स्थानीय युवा सामाजिक कार्यकर्ता बसंत कुंजाम ने गांव के लोगों को डॉ. आंबेडकर के द्वारा संविधान में दिए गए अधिकारों के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि बाबा साहेब ने शोषितों और पीड़ितों के लिए आजीवन संघर्ष किया। वे इसके पक्षधर थे कि यहां के मूल निवासियों को उनका वाजिब अधिकार मिले ताकि उनका शोषण व उत्पीड़न बंद हो। इस क्रम में उन्होंने मताधिकार से लेकर छूआछूत उन्मूलन, शिक्षा का अधिकार, रोजगार का अधिकार सुनिश्चित किये।

आयोजन में रमेश साहू, कृष्ण पटेल, जोहन कुंजाम, मनोहर कुंजाम, राहुल कुंजाम, माधव, कपिल वाट्टी, लोकेश कावड़े, संतोष मांडवी, कावल शोरी, गोविंदा पटेल,  टिकू, तुलसी, जितेंद्र, हिमांशु, विवेक, सुभाष और समस्त ग्रामवासी उपस्थित हुए।

(संपादन : नवल/गोल्डी)

लेखक के बारे में

तामेश्वर सिन्हा

तामेश्वर सिन्हा छत्तीसगढ़ के स्वतंत्र पत्रकार हैं। इन्होंने आदिवासियों के संघर्ष को अपनी पत्रकारिता का केंद्र बनाया है और वे विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर रिपोर्टिंग करते हैं

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