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अंतरण : कोरोना काल में ग्रामीण बुनकरों के बीच बिखेर रहा मुस्कान

कोरोना के मद्देनजर लॉकडाउन के बीच टाटा ट्रस्ट के अंतरण परियोजना से जुड़े शिल्पकारों ने पिछले बीस दिनों में करीब 19 लाख रुपए का कारोबार किया है। यह राशि उन्हें अग्रिम के रूप में प्राप्त हुई है। नवल किशोर कुमार की रिपोर्ट

वैश्विक महामारी कोरोना ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है और लोग अपने घरों में  कैद रहने पर मजबूर हैं। इस तनाव और अवसाद के बीच टाटा ट्रस्ट ग्रामीण शिल्पकारों व बुनकरों के जीवन में मुस्कान लाने की नायाब कोशिशों में जुटा है। अंतरण नामक इस परियोजना के जरिए ग्रामीण शिल्प के शौकीनों को शिल्पकारों से सीधे जोड़ने की पहल की गई है। इसके लिए एक ऑनलाइन पोर्टल की शुरुआत की गयी है, जिसके जरिए लोग अपनी पसंद की चीजें खरीद सकते हैं। हालांकि संगठन द्वारा यह तय किया गया है कि क्रय की गई वस्तुओं की डिलीवरी लॉकडाउन के बाद की जाएगी। 

टाटा ट्रस्ट के क्राफ्ट्स हेड शारदा गौतम बताते हैं कि यह विशेष पहल शिल्पकारों व बुनकरों को कोरोना काल में आर्थिक संकट से बचाने के लिए की गयी है। इसके जरिए लोग अपनी पसंद की वस्तुओं की अग्रिम खरीद कर सकते हैं और भुगतान कर इन ग्रामीण शिल्पकारों की मदद कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि पिछले बीस दिनों में पोर्टल के जरिए करीब 19 लाख रुपए के आर्डर शिल्पकारों को प्राप्त हुए हैं। इनमें से एक ओडिशा के गोपालपुर की इतिश्री हैं, जिन्होंने पिछले बीस दिनों में करीब 3 लाख रुपए का कारोबार किया है। यह राशि उन्हें लॉकडाउन के दौरान प्राप्त हुई है और उन्हें अपने व्यवसाय को जारी रखने में उपयोगी सिद्ध हो रही है। 

सफलता की नयी गाथा लिख् रहीं महिला उद्यमी। बायें से उड़ीसा की इतिश्री, आसाम की मंजू दास कलिता व नागालैंड की ल्हूसालू

बताते चलें कि ग्रामीण शिल्पकारों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से अंतरण के रूप में यह प्रयास 2018 में टाटा ट्रस्ट के तत्वावधान में शुरू किया गया था। पांच वर्षीय इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य ग्राहकों व शिल्पकारों के बीच प्रत्यक्ष संबंध स्थापित करना है। शारदा गौतम के मुताबिक फिलहाल इसके जरिए हैंडलूम उत्पादों को बिक्री के लिए प्रदर्शित किया गया है। इसमें आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, नागालैंड और आसाम आदि राज्यों के उत्पादों को रखा गया है। 

डिजिटल मार्केटिंग के गुर सीख रहे ग्रामीण शिल्पकार

इस प्रयास के बेहतर परिणाम सामने आ रहे हैं। शारदा गौतम के मुताबिक इस सामाजिक उद्यम के जरिए जहां एक ओर ग्रामीण शिल्पकारों को बाजार उपलब्ध करवाया जा रहा है वहीं दूसरी ओर उनके उत्पादों के बारे में आम लोगों में जागरूकता भी फैलायी जा रही है। इसके अलावा शिल्पकारों को बाजार की मांग के मुताबिक प्रशिक्षण आदि भी उपलब्ध कराया जा रहा है। उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के दौरान शिल्पकारों ने अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है। इस दौरान अंतरण के सदस्य उनके बीच अनुपस्थित रहे। इसके बावजूद शिल्पकारों ने अपने स्तर पर ग्राहकों से लेन-देन किया। इसमें उत्पादों की बेहतर फोटो भेजने से लेकर आर्डर मिलने पर भुगतान की गयी राशि की पावती उपलब्ध कराना शामिल है। इन कामों को ये शिल्पकार अब बखूबी अंजाम दे रहे हैं।

सफलता की गाथा लिख रहे ग्रामीण कलाकार

टाटा ट्रस्ट के इस सामाजिक उद्यम का असर ग्रामीण कलाकारों के जीवन पर पड़ रहा है। ऐसी ही एक दास्तान मंजू दास कलिता की है जो कामरूप, आसाम की रहने वाली हैं। वर्तमान में मंजू न केवल सफल उद्यमी हैं बल्कि अपने इलाके में कई लोगों के लिए पथ-प्रदर्शक भी हैं। मंजू ने इससे पहले अंतरण इनक्यूबेशन एंड डिजायन सेंटर, भगतवतीपारा से सिंथेटिक धागे से हैंडलूम उत्पाद बनाने की आधुनिक तकनीक का प्रशिक्षण लिया। हालांकि प्रारंभ में इन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिली। परंतु, बाद में इन्होंने सिंथेटिक धागों के मुकाबले एरी सिल्क के महत्व को समझा और अपने उद्यम को नयी दिशा दी। अब मंजू इस कला में निपुण हो चुकी हैं। इनका मानना है कि अंतरण ने उनके उद्यम को नयी गति दी है। कोरोना काल में टाटा ट्रस्ट की इस पहल को महत्वपूर्ण बताते हुए वे कहती हैं कि इसने अंधकार के दौर में आशा की किरणों का संचार किया है। 

मंजू दास कलिता की तरह ही नागालैंड के दीमापुर की ल्हूसालू हैं, जिनकी उम्र केवल 21 वर्ष है। महज पन्द्रह वर्ष की उम्र में इन्होंने अपनी दादी से लॉइन धागों के जरिए कपड़े बुनना सीखा। इनके पिता छोटे किसान हैं। परिवार बड़ा होने व आर्थिक तंगी के कारण ये केवल नवीं कक्षा तक पढ़ सकीं। विषम परिस्थितियों से निजात पाने के लिए ल्हूसालू ने पारंपरिक कपड़ों का व्यवसाय शुरू किया। पिछले वर्ष 2019 में अंतरण द्वारा आयोजित एक कार्यशाला में भाग लेने के दौरान इन्होंने आधुनिक तकनीक व बाजार आदि का प्रशिक्षण लिया और अब अपने उद्यम का विस्तार कर रही हैं। इसके लिए इन्होंने अपने गांव की महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है और अब उनके सहयोग से बाजार के मुताबिक उत्पाद बनाने में सफल हो रही हैं।

भविष्य की योजना

शारदा गौतम के मुताबिक अभी केवल 4 राज्यों में छह क्लस्टरों पर काम किया जा रहा है। इसकी पृष्ठभूमि की चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि बनारस, सूरत सहित देश के कई इलाकों में हैंडलूम उत्पाद बन रहे हैं और कहीं न कहीं उनके बारे में सभी जानते हैं। परंतु हमारी कोशिश है कि हम उन क्षेत्रों के शिल्पकारों व बुनकरों आदि को सामने लाएं जो गुमनाम हैं। शारदा गौतम ने यह भी बताया कि 2023 में हमारी योजना देश भर में कम से कम 50 क्लस्टर तैयार करने की है। 

शारदा गौतम, हेड क्राफ्ट्स, टाटा ट्रस्ट

बहरहाल, टाटा ट्रस्ट की यह पहल एक नजीर है कि कैसे ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले कलाकारों, शिल्पकारों को शेष विश्व से जोड़ा जा सकता है। साथ ही यह भी कि कोरोना काल में लॉकडाउन के कारण अर्थव्यवस्था को करारा झटका लगा है और इस मॉडल का उपयोग कर ग्रामीण अर्थव्यवस्था का कैसे संरक्षण किया जा सकता है।

(संपादन : अनिल/अमरीश)

लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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