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कोरोना टेस्टिंग की सुविधाएं बढ़ीं, मगर नहीं बदले हालात

संक्रमित लोगों की पहचान को लेकर देश भर में तीन बड़ी दिक़्क़तें हैं। एक, सरकारी संस्थाओं की सीमित संख्या, दो निजी संस्थानों में 4500 रुपये की फीस और तीसरा, राज्यों में पीड़ित मरीज़ों से अपराधी की तरह बर्ताव। बता रहे हैं जैगम मुर्तजा

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लॉकडाउन और तमाम कोशिशों के बावजूद देश में कोरोना मरीज़ों की संख्या लगातार बढ़ रही है। भारत में कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या 50 हज़ार को पार कर चुकी है और संख्या के लिहाज़ से हम दुनिया में तेरहवें स्थान पर हैं। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में ही 7 मई की सुबह तक कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या 5530 से ज़्यादा थी। यह संख्या और भी ज़्यादा हो सकती है क्योंकि देश में कोरोना की पहचान यानि टेस्टिंग के लिए अभी तक समुचित इंतज़ाम नहीं हैं।

हालांकि मार्च के मुक़ाबले देश भर में टेस्टिंग केंद्रों की संख्या में इज़ाफा हुआ है। लेकिन देश की जनसंख्या और क्षेत्रफल के नज़रिए से सरकार की अभी तक की कोशिशें नाकाफी नज़र आती हैं। भारत में कोरोना की टेस्टिंग, कहां, कब औऱ कैसे हो, इसके लिए भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद यानि आईसीएमआर को ज़िम्मेदार बनाया गया। 

आईसीएमआर के मुताबिक़ 6 मई, 2020 को शाम 6 बजे तक देश भर में कोविड-19 की टेस्टिंग के लिए कुल 327 सरकारी और 118 निजी लैब/संस्थान अधिकृत किए गए हैं। इनमें आंध्र प्रदेश में सबसे ज़्यादा 48 सरकारी जांच केंद्र हैं। राज्य में अभी किसी निजी लैब को टेस्टिंग के लिए अधिकृत नहीं किया गया है। तमिलनाडु में 3 सरकारी, 16 निजी, महाराष्ट्र में 33 सरकारी, 25 निजी, कर्नाटक में 20 सरकारी 10 निजी, राजस्थान में 17 सरकारी, 3 निजी, मध्य प्रदेश में 10 सरकारी, 3 निजी, बिहार में 7 सरकारी, गुजरात में 15 सरकारी, 9 निजी, जबकि उत्तर प्रदेश में 21 सरकारी और 3 निजी लैब कोरोना टेस्ट के लिए अधिकृत हैं। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में कुल 26 टेस्टिंग केंद्र हैं। इनमें 13 सरकारी और 13 ही निजी लैब/संस्थान हैं। 

देश भर में जांच के लिए लाए गए है अबतक कुल 12 लाख 76 हजार 781 सैंपल

हालांकि अगले कुछ दिन में देश भर में क़रीब 100 और जांच केंद्रों को जांच करने की अनुमति मिल सकती है। इस बीच टेस्टिंग किट के आयात का मुद्दा भी चर्चा में रहा। दाम, क्वालिटी, इसकी ख़रीद में घोटाला, कई राज्यों का लेने से इंकार और फिर आईसीएमआर की रोक समेत तमाम मुद्दे हैं जिनकी वजह से ये किट अभी भी लोगों की पहुंच से बहुत हद तक बाहर हैं।

आईसीएमआर की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक़ 6 मई, रात 9 बजे देश भर में कुल 12 लाख 76 हजार 781 सैंपल जांच के लिए विभिन्न जांच केंद्रों में लाए गए हैं। 135 करोड़ की आबादी के लिहाज़ से ये संख्या काफी कम नज़र आती है। इसे हम दक्षिण कोरिया के सापेक्ष देखें तो भारत में कम से कम कुल आबादी के 1.2 फीसदी लोगों की जांच होनी चाहिए, जो 1 करोड़ 62 लाख के करीब है। इसके विपरीत भारत में अभी तक केवल 12 लाख 76 हजार 781 सैंपल  की जांच हो सकी है।

गौर तलब है कि संख्या के लिहाज़ से संक्रमित लोगों की सबसे ज़्यादा तादाद महाराष्ट्र में है। यहां 6 मई की शाम तक 15 हजार 525 लोगों में संक्रमण की पुष्टि हो चुकी थी। गुजरात में इसी समय तक 6245 लोगों में संक्रमण की पुष्टि हो चुकी थी और तादाद के लिहाज़ से ये दूसरे स्थान पर है। 5104 लोगों में संक्रमण की पुष्टि के साथ ही राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली देश में तीसरे स्थान पर है।

संक्रमित लोगों की पहचान को लेकर देश भर में तीन बड़ी दिक़्क़तें हैं। एक, सरकारी संस्थाओं की सीमित संख्या, दो निजी संस्थानों में 4500 रुपये की फीस और तीसरा, राज्यों में पीड़ित मरीज़ों से अपराधी की तरह बर्ताव। सरकारी संस्थानों की अपनी दिक्कतें हैं, लेकिन तमाम परेशानियों के बावजूद और कोई रास्ता नहीं है। अगर एक परिवार में 5 सदस्य हैं तो ज़ाहिर है सिर्फ वहम दूर करने के लिए 22,500 रुपये ख़र्च करने की हालत में बहुत कम लोग हैं।

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अगर संक्रमितों की पहचान के बाद इलाज की बात करें तो हालात और भी ख़राब हैं। देश में जगह जगह क्वारंटीन सेंटर बना तो दिए गए लेकिन इनमें कुप्रबंधन और सुविधाओं की कमी को लेकर तमाम तरह की ख़बरें आ रही हैं। कई जगह इन केंद्रों पर भर्ती लोगों को दवा तो दूर खाना तक नहीं मिल पा रहा। ऊपर से संक्रमण को लेकर फैली तमाम भ्रांतियों ने हालात और ख़राब कर दिए हैं। स्थिति ये है कि डॉक्टर एक तो रक्षा किट औऱ दवाओं की कमी से जूझ रहे हैं, दूसरे मेडिकल स्टाफ की ख़ुद की चिकित्सकीय व सामाजिक सुरक्षा दोनों को लेकर तमाम चिंताएं हैं। मेरठ के शास्त्रीनगर इलाके में कोरोना संक्रमण फैलने के डर से डाक्टर प्रशांत के साथ उनके मुहल्ले वालों ने जैसे मारपीट की, वो एक छोटा सा उदाहरण है।

मरीज़ों औऱ संक्रमण के संभावितों की अलग चिंताएं हैं। कई जगह महज़ संक्रमण की आशंका पर लोगों को ऐसी जगहों पर रख दिया गया, जहां पहले से संक्रमित लोग भर्ती थे। उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में संभावित मरीज़ों को जिस तरह क्वारेंटाइन केंद्रों में जबरन ठूंसा गया और भागने वालों के ख़िलाफ मुक़दमे दर्ज हुए, उनकी अलग ही कहानी है। राज्य सभा सांसद जावेद अली ख़ान के मुताबिक़ अगर कोई संक्रमित है तो उसे मरीज़ की तरह सहानुभूतिपूर्वक देखा जाना चाहिए, लेकिन यूपी में मरीज़ों से अपराधी जैसा बर्ताव किया गया। उनका कहना है कि कई क्वारेंटीन केंद्रों पर बुनियादी ज़रूरतें तक पूरी नहीं की गई। जब भूख और संक्रमण के ख़ौफ से डर कर लोग भागे तो उनपर मुक़द्दमे करा दिए गए। जिन लोगों को अस्पताल से ठीक होकर अपने घर आ जाना चाहिए था वो अब जेल में हैं।

यूपी के आगरा में 19 मार्च, 2020 को कोरोना संक्रमण से जुड़ी जानकारी छिपाने और संक्रमण फैलाने के लिए देश की पहली एफआईआर दर्ज हुई। आरोपी के बेटी बेंगलुरु से लौटी थी जहां उसका पति आईटी इंजीनियर है। इसके बाद तो कनिका कपूर और जमातियों समेत तमाम मामले सामने आए जहां लोगों के ख़िलाफ आपराधिक मामले दर्ज हुए। इनमें मुरादाबाद में स्वास्थ्य टीम पर हमला करने वालों से लेकर आगरा, लखनऊ समेत तमाम शहरों में मरीज़ों की जानकारी छिपाने वाले अस्पताल और डॉक्टर भी शामिल हैं। राज्य में आईपीसी की धारा 188 के तहत कुल 37853 मामले और ई.सी. एक्ट के तहत 6 मई तक 586 अभियोग पंजीकृत किए जा चुके हैं।

(संपादन : नवल/अनिल)

लेखक के बारे में

सैयद ज़ैग़म मुर्तज़ा

उत्तर प्रदेश के अमरोहा ज़िले में जन्मे सैयद ज़ैग़़म मुर्तज़ा ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से लोक प्रशासन और मॉस कम्यूनिकेशन में परास्नातक किया है। वे फिल्हाल दिल्ली में बतौर स्वतंत्र पत्रकार कार्य कर रहे हैं। उनके लेख विभिन्न समाचार पत्र, पत्रिका और न्यूज़ पोर्टलों पर प्रकाशित होते रहे हैं।

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